कविता - दगा किसी का सगा नहीं है।
किया नहीं तो कर देखो ।।
जिसने जिससे दगा किया है।
जाकर उसका घर देखो ।।
दगा किया था रावण ने।
जब साधु वेश बनाया था ।।
भिक्षा लेने गया था लेकिन।
सीता जी हर लाया था ।।
लंका नगरी राख बनाई।
जाकर रघुवर को देखो ।।
जिसने जिससे दगा किया है।
जाकर उसका घर देखो।।
कौरव पांडव जुआ खेलें ।
शकुनि पासे फेंक रहा ।।
दुर्योधन की दगा गिरी को।
नटवर नागर देख रहा ।।
बिना शत्रु के वंश मिटाया।
लीला नटवर की देखो ।।
जिसने जिससे दगा किया है।
जाकर उसका घर देखो।
दगा किसी का सगा नहीं है।
किया नहीं तो कर देखो ।।
जिसने जिससे दगा किया है।
जाकर उसका घर देखो ।।
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