पैड न्यूज



- अरविंद सिसोदिया 
सारा मीडिया तो नहीं मगर लीडिंग करने वाला मीडिया तो पैड न्यूज में बुरी तरह फंस चुका है। मीडिया की पेड न्यूज ( पैसा लेकर पक्ष में समाचार छापना ) पर प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जी के द्वारा कोई ठोस नियंत्रण नहीं करने की घोषणा से निराशा ही हाथ लगी है। अभी पांच राज्यों के चुनाव में चुनाव लडने वालों से जम कर मीडियाई वसूली होगी। बेशर्मी से यह कह कर होगी कि हमें भी तो पैसा चाहिये। क्यों कि मीडिया अब उद्योगपतियों और व्यवसाईयों की मिल्कियत में है। एक निर्धन या कम पैसे वाले का अच्छे से अच्छा समाचार चार आठ लाईन में आयेगा और जो पैसा देगा उसका समाचार चार कालम में आयेगा।
प्रधानमंत्री को इस दुष्प्रवुति पर रोक के ठोस उपाय करने चाहिये , पैड न्यूज भी एक प्रकार का मीडियाई भ्रष्टाचार है।
--------------
http://www.p7news.com
'मीडिया पर नियंत्रण की ज़रूरत नहीं'

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मीडिया की आज़ादी की ज़ोरदार वकालत की है, लेकिन साथ ही उन्होंने मीडिया को सनसनी फैलने से बचने की सलाह भी दी। दिल्ली में एक समारोह में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज़ाद मीडिया लोकतंत्र की पहली निशानी है।
उन्होंने कहा कि देश में इस बात पर आम सहमति है कि मीडिया पर किसी प्रकार का बाहरी नियंत्रण नहीं लगाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका मानना है कि मीडिया ख़ुद अपने पर नियंत्रण रखे और पेड न्यूज़ जैसी बुराइयों के लिए ख़ुद के गाइडलाइंस बनाए।

--------------
http://www.eklavyashakti.com
पेड न्यूज क्या है
पेड न्यूज क्या है ? इसकी परिभाषा क्या है। यह स्पष्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि अनेक समाचार ऐसे होते हैं जो दिखने में ऐसे साधारण दिखते हैं परन्तु उसके पीछे गम्भीर षड़यन्त्र की योजना होती है। इमरजेन्सी के समय देश भर के समाचार पत्रों में खासकर मध्यप्रदेश में सत्यनारायण की कथा होने की सूचना समाचार पत्र में छपती थी परन्तु उसका अर्थ होता था यह आमन्त्रण विशेष मीसा बन्दी के समाचार उसके रिश्तेदार तक पहुचाने का माध्यम होता था। इसी तरह पाठक कोई समाचार को साधारण रूप से पढ़ लेता फिर लगता है इसका विशेष प्रयोजन है। मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग का पहले नाम सूचना एवं प्रकाशन था। सूचना देना मुख्य उद्देश्य था। परन्तु किसको सूचना दी जायगी र्षोर्षो प्रदेश की जनता से संपर्क बनाने के लिये प्रदेश के विकास में उनकी सहभागिता बढ़ाने ओर शासन द्वारा शिक्षा, स्वास्थय कृषि, पानी, पर्यावरण एवं बिजली सड़क के विकास के लिये गहन रूप से समाचार के माध्यम से उन तक पहंचना जरूरी है।
क्या प्रदेश के नागरिकों को विज्ञापन, लेखों के माध्यम से जागरूक करने का कार्य किस श्रेणी में आयेंगे। जनता के हित में सबेसे बड़ी पेड न्यूज देने वाली संस्था जनसंपर्क विभाग है। यह जनता के हित में है। आज राजनैतिक नेताओं ने चुनाव के समय ऐसी ऐजेसियों का सहारा लेते हैं जो सभी मीडिया को मेनेज करने का दावा करती है। अपनी इच्छानुसार समाचार छपवाने के लिये धन के साथ शराब और शवाब की व्यवस्था करती है। मध्य प्रदेश के लोकसभा ओर विधानसभा के चुनाव में दिल्ली और भोपाल के होटलों में कर रखी थी । मीडिया को मेनेज करने का यह कार्य मध्य प्रदेश बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में चल रहा है सेक्स शराब का उपयोग आज बड़े टेन्डर पास करने के बाद उनके पूरे होने तक जारी हें किसी परियोजना के घोटालों और भ्रष्टाचार को छुपाने के लिये अखबार को विज्ञापन के माध्यम धन मुआया कराया
जाता है। पेड न्यूज का चलन टाईम्स आफ इण्डिया दिल्ली से 80 के दशक से शुरू हुआ था, जो अब दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता, मद्रास के समाचार (मीडीया) पत्रों के साथ देश के सभी बैंक और बड़ी कंपनीयां 70 के दशक में पूरे पृष्ठ बुक कर लेती थी। जिसमें उनके संस्थान की प्रगति का विवरण छपता था परन्तु अब राजनैतिक पार्टीयां ´´पैड न्यूज´´ का उपयोग करती हैं। मीडिया आज समाचार नहीं दे रहा बल्कि भावनाओं को भड़काने का काम भी कर रहा है। फिल्म समाचार पत्र और मग्जीन हमेशा पेड न्यूज देते रहे हैं। परन्तु भाषायी समाचार पत्र भी पेड न्यूज के चक्कर मे आजकर चारों और समचनातन्त्र, प्रचार तन्त्र में बदलता जा रहा है। नदियों की स्वच्छता, पर्यावरण के प्रति जनता की उदासीनता को मीडिया ललकारता नहीं दिखता।
क्या आने वाले समय में लादेन, दाउद, इब्राहीम, नक्सलवादी भी न्यूज पेड का सहारा नहीं लेंगें? यह प्रवृति खतरनाक है। क्योंकि आज देश में ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा है। इसका हमें विरोध करना चाहिए।

-------------------
http://shabdshikhar.blogspot.com 

'पेड़ न्यूज' के चंगुल में पत्रकारिता
आकांक्षा यादव : Akanksha Yadav 
आजकल ‘पेड-न्यूज’ का मामला सुर्खियों में है। जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, ‘पेड-न्यूज’ ने उसकी विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया जिस तरह से लोगों की भूमिका को मोड़ देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा है, ऐसे में उसकी स्वयं की भूमिका पर उठते प्रश्नचिन्ह महत्वपूर्ण हो जाते हैं। मीडिया का काम समाज को जागरूक बनाना है, न कि अन्धविश्वासी. फिर चाहे वह धर्म का मामला हो या राजनीति का. पर मीडिया में जिस तरह कूप-मंडूक बातों के साथ-साथ आजकल पैसे लेकर न्यूज छापने/प्रसारित करने का चलन बढ़ रहा है, वह दुखद है. शब्दों की सत्ता जगजाहिर है. शब्द महज बोलने या लिखने मात्र को नहीं होते बल्कि उनसे हम अपनी प्राण-ऊर्जा ग्रहण करते हैं। शब्दों की अर्थवत्ता तभी प्रभावी होती है जब वे एक पवित्र एवं निष्कंप लौ की भाँति लोगों की रूह प्रज्वलित करते हैं, उसे नैतिक पाश में आबद्ध करते हैं। सत्ता के पायदानों, राजनेताओं और कार्पोरेट घरानों ने तो सदैव चालें चली हैं कि वे शब्दों पर निर्ममता से अपनी शर्तें थोप सकें और लेखक-पत्रकार को महज एक गुर्गा बना सकें जो कि उनकी भाषा बोले। उनकी कमियों को छुपाये और अच्छाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करे. देश के कोने-कोने से निकलने वाले तमाम लघु अखबार-पत्रिकाएं यदि विज्ञापनों के अभाव और पेट काटकर इस दारिद्रय में भी शब्द-गांडीव की तनी हुई प्रत्यंचा पर अपने अस्तित्व का उद्घोष करते हैं तो वह उनका आदर्श और जुनून ही है. पर इसके विपरीत बड़े घरानों से जुड़े अख़बार-पत्रिकाएँ तो 'पत्रकारिता' को अपने हितों की पूर्ति के साधन रूप में इस्तेमाल करती हैं.



‘पेड-न्यूज’ का मामला दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव में तेजी से उठा और इस पर एक समिति भी गठित हुई, जिसकी रिपोर्ट व सिफारिशें काफी प्रभावशाली बताई जा रही हैं।पर मीडिया तो पत्रकारों की बजाय कारपोरेट घरानों से संचालित होती है ऐसे में वे अपने हितों पर चोट कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं। अतः इस समिति की रिपोर्ट व सिफारिशों को निष्प्रभावी बनाने का खेल आरंभ हो चुका है। पर समाज के इन तथाकथित कर्णधारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि रचनात्मक पत्रकारिता समाज के लिए काफी महत्वपूर्ण है। पत्रकारिता स्वतः स्फूर्ति व स्वप्रेरित होकर निर्बाध रूप से चीज को देखने, विश्लेषण करने और उसके सकारात्मक पहलुओं को समाज के सामने रखने का साधन है, न कि पैसे कमाने का. यहाँ तक कि किसी भी परिस्थिति में मात्र सूचना देना ही पत्रकारिता नहीं है अपितु इसमें स्थितियों व घटनाओं का सापेक्ष विश्लेषण करके उसका सच समाज के सामने प्रस्तुत करना भी पत्रकारिता का दायित्व है.

आज का समाज घटना की छुपी हुई सच्चाई को खोलकर सार्वजनिक करने की उम्मीद पत्रकारों से ही करता है। इस कठिन दौर में भी यदि पत्रकांरिता की विश्वसनीयता बढ़ी है तो उसके पीछे लोगों का उनमें पनपता विश्वास है. गाँव का कम पढ़ा-लिखा मजदूर-किसान तक भी आसपास की घटी घटनाओं को मीडिया में पढ़ने के बाद ही प्रामाणिक मानता है। कहते हैं कि एक सजग पत्रकार की निगाहें समाज पर होती है तो पूरे समाज की निगाहें पत्रकार पर होती है। पर दुर्भाग्यवश अब पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। सम्पादक खबरों की बजाय 'विज्ञापन' और 'पेड न्यूज' पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। यह दौर संक्रमण का है. हम उन पत्रकारों-लेखकों को नहीं भूल सकते जिन्होंने यातनाएं सहने के बाद भी सच का दमन नहीं छोड़ा और देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. ऐसे में जरुरत है कि पत्रकारिता को समाज की उम्मीद पर खरा उतरते हुए विश्वसनीयता को बरकरार रखना होगा। पत्रकारिता सत्य, लोकहित में तथा न्याय संगत होनी चाहिए।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

अम्बे तू है जगदम्बे........!

कांग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता का प्रमाण

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

राजस्थान समेत पूरे देश में भाजपा की अभूतपूर्व लहर - प्रधानमंत्री मोदी जी

रामसेतु (Ram - setu) 17.5 लाख वर्ष पूर्व

भाजपा का संकल्प- मोदी की गारंटी 2024

Ram Navami , Hindus major festival