हिंदुओं के कानून ही बदलती है सरकारः सुप्रीम कोर्ट




हिंदुओं के कानून ही बदलती है सरकारः सुप्रीम कोर्ट
10 Feb 2011
नई दिल्ली ।। सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक समुदायों के पर्सनल लॉज में बदलाव न करने को लेकर सरकार की खिंचाई करते हुए कहा है कि सरकार सिर्फ हिंदुओं से जुड़े कानूनों में ही बदलाव करती है। इससे सरकार की धर्मनिरपेक्षता पर भी सवाल उठते हैं। 
अदालत ने मंगलवार को कहा कि पर्सनल लॉज में सुधार की सरकार की कोशिशें हिंदू समुदाय से आगे नहीं बढ़तीं। अदालत ने कहा कि हिंदू समुदाय परंपरागत कानूनों में सरकार की तरफ से होने वाली इन कोशिशों को लेकर सहिष्णु रहा है। लेकिन, इस मामले में धर्मनिरपेक्ष नजरिए की कमी दिखती है। ऐसा सुधार दूसरे धार्मिक समुदायों से जुड़े कानूनों में नहीं किया जा रहा।
जस्टिस दलवीर भंडारी और जस्टिस एक.के. गांगुली ने राष्ट्रीय महिला आयोग की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बातें कहीं। याचिका में कहा गया था कि विवाह की उम्र को लेकर अलग-अलग कानूनों से काफी उलझन है। इसलिए याचिका में शादी की न्यूनतम उम्र पर एक समान कानून की जरूरत बताई गई थी। 
--------------
Friday, February 11, 2011
सारे कानून सिर्फ हिन्दुओं के लिए ?
---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यकों के पर्सनल लॉ में बदलाव न करने को लेकर एक बार फिर केंद्र सरकार की खिंचाई की है। अदालत ने यह सही सवाल उठाया है कि आखिर क्यों सरकार सिर्फ हिन्दुओं के कानून ही बदलती है? जस्टिस दलबीर भंडारी और जस्टिस ए.के. गांगुली ने राष्ट्रीय महिला आयोग की याचिका पर सुनवाई के दौरान बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘पर्सनल लॉ में सुधार की कोशिशें हिन्दू समुदाय से आगे नहीं बढ़तीं। ऐसा सुधार दूसरे धार्मिक समुदायों से जुड़े कानूनों में नहीं हो रहा।’’ सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से एक बार पुन: देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत महसूस हो रही है। इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले दो दशक से अधिक समय में अनेक बार जोर दिया है। खास बात यह है कि १९८५ में शाहबानो मामले में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस वाय.वी. चंद्रचूढ़ तक ने राष्ट्रीय एकीकरण के लिए समान नागरिक संहिता को जरूरी बताया था। जस्टिस कुलदीप सिंह ने साफ शब्दों में कहा था, ‘‘संविधान के अनुच्छेद-४४ को कोल्ड स्टोरेज से बाहर निकाला जाना चाहिए।’’ इसी अनुच्छेद में जोर देकर कहा गया है कि धर्म, जाति और जनजाति से हटकर सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। इस तर्क से असहमत नहीं हुआ जा सकता कि सभ्य समाज में धार्मिक और पर्सनल लॉ के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं हो सकता है। अत: एक राष्ट्र में रहने वाले सभी लोगों, चाहे वे किसी भी धार्मिक समुदाय से संबंध रखते हों, एक ही या यह कहें कि समान कानून लागू किया जाना चाहिए। 
हमारे यहां अधिकांश परिवार कानून का निर्धारण धर्म के द्वारा किया जाता है। हिन्दू, सिख, जैन और बौद्धों को हिन्दू कानून के तहत रखा गया है। मुसलमानों और ईसाइयों के अपने कानून हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि एक ही देश में रहने वालों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू हैं। ऐसी स्थिति में सभी के साथ समान व्यवहार, उनके बीच भावनात्मक लगाव और राष्ट्रीय एकता की कल्पना किस हद तक की जा सकती है? इस देश में समान नागरिक संहिता को लेकर बहस आजादी के पूर्व से चली आ रही है। १९४९ में संविधान में अनुच्छेद-४४ के प्रावधानों का उद्देश्य भी एकरूपता लाना रहा है, लेकिन स्वतंत्रता के बाद से ही शुरू हो गई तुष्टिकरण की कांग्रेसी राजनीति इस सकारात्मक सुधार की राह में सबसे बड़ा अड़ंगा बन गई। कालान्तर में वामदल धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाकर अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चल पड़े। शाहबानो तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए राजीव गांधी की अगुआई वाले कांग्रेसी सरकार ने कानून में संशोधन कर तुष्टिकरण का निकृष्टतम उदाहरण पेश किया। 
न्यायपालिका की चिंता अपनी जगह वाजिब है। समस्या वोट बैंक की गंदी राजनीति के कारण जटिल हो रही स्थिति की है। पिछले दो दशकों में राजनीति में ऊग आई स्वयंभू सेकुलरिस्टों की खरपतवार एक नई मुसीबत है। यह धारणा बनाने की कोशिशें देखी और सुनी गईं कि समान नागरिक संहिता अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के निजी और धार्मिक कानूनों में हस्तक्षेप जैसी बात है। देश की सियासत में सड़ांध मारती नकारात्मक और स्वार्थ पूर्ण सोच के चलते जो नुकसान हो रहा है उसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं है। विद्वान न्यायाधीश-जस्टिस भंडारी और जस्टिस गांगुली का यह सवाल उचित और गंभीरतापूर्वक विचार करने योग्य है कि ‘‘ पर्सनल लॉ में सुधार की कोशिश हिंदू समुदाय से आगे क्यों नहीं बढ़ती?’’ विचार करें यही बात अन्य क्षेत्रों में तक देखी जाती है। बात कड़वी है किन्तु परिवार नियोजन अभियान को ले लें। आंकड़े स्वयं ही गवाह हैं ऐसा लगता है कि मानो इस कार्यक्रम की सफलता की जिम्मेदारी सिर्फ हिन्दुओं पर थोप दी गई है। हर क्षेत्र में इतना भेदभाव राष्ट्र को गंभीर स्थिति की ओर निरंतर धकेल रहा है।
Posted by Anil Bihari Shrivastava 

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

सफलता के लिए प्रयासों की निरंतरता आवश्यक - अरविन्द सिसोदिया

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश