मकर संक्रांति पर्व 15 जनवरी को



2016 में भी 15 जनवरी को होगी मकर संक्रान्ति 

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बदल जाएगा समय, 14 को नहीं 15 को मनेगी संक्रांति!
Dainik Bhaskar Network   13/01/२०१२
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इंदौर। मकर संक्रांति और 14 जनवरी को एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है। आमजन को यह मालूम है कि दीपावली, होली सहित कई पर्व की तारीख तय नहीं होती लेकिन मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। ऐसा क्यों? वह इसलिए क्योंकि सूर्य का धनु से मकर राशि में प्रवेश 14 को मध्यरात्रि के बाद होगा। पंडितों की मानें तो सन् 2047 के बाद ज्यादातर 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति आएगी। अधिकमास, क्षय मास के कारण कई बार 15 जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी।
इससे पहले सन् 1900 से 1965 के बीच 25 बार मकर संक्रांति 13 जनवरी को मनाई गई। उससे भी पहले यह पर्व कभी 12 को तो कभी 13 जनवरी को मनाया जाता था। पं. लोकेश जागीरदार (खरगोन) के अनुसार स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनकी कुंडली में सूर्य मकर राशि में था यानी उस समय 12 जनवरी को मकर संक्रांति थी। 20वीं सदी में संक्रांति 13-14 को, वर्तमान में 14 तो कभी 15 को मकर संक्रांति आती है। 21वीं सदी समाप्त होते-होते मकर संक्रांति 15-16 जनवरी को मनाने लगेंगे।
यह है कारण
सूर्य हर महीने राशि परिवर्तन करता है। एक राशि की गणना 30 अंश की होती है। सूर्य एक अंश की लंबाई 24 घंटे में पूरी करता है। पंचांगकर्ता डॉ. विष्णु कुमार शर्मा (जावरा) का कहना है अयनांश गति में अंतर के कारण 71-72 साल में एक अंश लंबाई का अंतर आता है। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से एक वर्ष 365 दिन व छह घंटे का होता है, ऐसे में प्रत्येक चौथा वर्ष लीप ईयर भी होता है। चौथे वर्ष में यह अतिरिक्त छह घंटे जुड़कर एक दिन होता है। इसी कारण मकर संक्रांति हर चौथे साल एक दिन बाद मनाई जाती है।
हर साल आधे घंटे की देरी
प्रतिवर्ष सूर्य का आगमन 30 मिनट के बाद होता है। हर तीसरे साल मकर राशि में सूर्य का प्रवेश एक घंटे देरी से होता है। 72 वर्ष में यह अंतर एक दिन का हो जाता है। हालांकि अधिकमास-क्षयमास के कारण समायोजन होता रहता है। (पंडितों के अनुसार)
संक्रांति की स्थिति
13 जनवरी को : सन् 1900, 01, 02, 1905, 06, 09, 10, 13, 14, 17, 18, 21, 22, 25, 26, 29, 33, 37, 41, 45, 49, 53, 57, 61 1965 में।
इन वर्षो में 15 को आएगी
2012, 16, 20, 21, 24, 28, 32, 36, 40, 44, 47, 48, 51, 52, 55, 56, 59, 60, 63, 64, 67, 68, 71, 72, 75, 76, 79, 80, 83, 84,86, 87, 88, 90, 91, 92, 94, 95, 99 और 2100 में। (पंचांगों और पंडितों से मिली जानकारी अनुसार।)
इस बार 15 को ही मनाना शास्त्र सम्मत
सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन संक्रांति है। सूर्य का धनु से मकर राशि में 14 जनवरी की रात 12.58 बजे प्रवेश हो रहा है। ऐसे में धर्म शास्त्रानुसार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जाना शास्त्र सम्मत है। पं. अरविंद पांडे के अनुसार इस साल 14 जनवरी को देर रात के बाद सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हो रहा है। ऐसे में संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को ही मनाया जाएगा। पुण्यकाल का मतलब है, स्नान-दान आदि।

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मकर संक्रांति क्या है 
और इस बार खास क्यों ?
शिव त्रिपाठी, 14-Jan-2012 
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भोपाल। जिस प्रकार तिल और गुड़ के मिलने से मीठे-मीठे लड्डू बनते हैं उसी प्रकार विविध रंगों के साथ जिंदगी में भी खुशियों की मिठास बनी रहे। जीवन में नित नई ऊर्जा का संचार हो और पतंग की तरह ही सभी सफलता के शिखर तक पहुंचे। कुछ ऐसी ही शुभकामनाओं के साथ सूर्य पर्व मकर संक्रांति पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। क्या है मकर संक्रांति प्रति माह होने वाला सूर्य का निरयण राशि परिवर्तन संक्रांति कहलाता है। सामान्यतया आमजन को सूर्य की मकर संक्रांति का पता है, क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है। इसी दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। संक्रांति को सजीव माना गया है।
प्रति माह संक्रांति अलग-अलग वाहनों व वस्त्र पहनकर, शस्त्र, भोÓय पदार्थ एवं अन्य पदार्थों के साथ आती है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति की अवधि ही सौरमास है। वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण हैं, जिनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति हैं।
मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान व पुण्य का शुभ समय का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गुड व तिल लगाकर नर्मदा में स्नान करना लाभदायी होता है। इसके पश्चात दान संक्रांति में गुड, तेल, कंबल, फल, छाता दान से जातकों को लाभ मिलेगा। जातकों को गुड़ व तिल से स्नान करना व दान-पुण्य करना लाभदायक रहता है।
इस बार खास क्यों
जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन माना गया है। इस दिन विशेष रूप से सूर्य की पूजा की जाती है। इस बार मकर संक्रांति के पर्व पर सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि के योग के साथ भानु सप्तमी होने से सूर्य की उपासना कर स्नान-दान पुण्य करने से सौगुना अधिक फल मिलेगा।
धार्मिक महत्व
* पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। हालांकि Óयोतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नहीं, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
* इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
* एक अन्य कथा के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

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