गीता भारतीय दर्शन : मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय
गीता धार्मिक पुस्तक नहीं – उच्च न्यायालय January 28, 2012
जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि गीता कोई धार्मिक पुस्तक नहीं बल्कि भारतीय दर्शन पर आधारित ग्रंथ है। कोर्ट ने कहा कि इसलिए स्कूलों में इसको पढ़ाए जाने पर रोक नहीं लगाई जा सकती। मध्य प्रदेश के स्कूली पाठ्यक्रम में गीता-सार को शामिल किए जाने के विरोध में दायर जनहित याचिका को जस्टिस अजित सिंह और जस्टिस संजय यादव की बेंच खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि ‘गीता’ में दर्शन है न कि धार्मिक सीख। कैथलिक बिशप काउंसिल के प्रवक्ता आनंद मुत्तंगल ने याचिका में कहा था कि यह फैसला अनुच्छेद 28 (1) का उल्लंघन है।
हाई कोर्ट ने कहा कि धार्मिक पुस्तक की जगह स्कूलों में सभी धर्मों का सारांश पढ़ाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 28 (1) नैतिक शिक्षा, सांप्रदायिक सिद्धांतों और सामाजिक एकता बनाए रखने वाले किसी प्रशिक्षण पर पाबंदी नहीं लगाता, जो नागरिकता व राज्य के विकास का जरूरी हिस्सा हैं। हाईकोर्ट ने अरुणा रॉय विरूद्ध केन्द्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का भी उल्लेख किया।
उसमें कहा गया है कि ‘ संविधान के अनुच्छेद 28 (1) में धार्मिक शिक्षा का उपयोग एक सीमित अर्थ में किया गया है। इसका मतलब है कि शैक्षणिक संस्थाओं में पूजा, आराधना, धार्मिक अनुष्ठान की शिक्षा देने के लिए राज्य सरकार के धन का उपयोग नहीं किया जा सकता। ‘
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के उस आदेश की प्रति भी पेश नहीं की, जिसमें गीता-सार को स्कूलों में शामिल करने का निर्णय किया गया था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील राजेश चंद को गीता पढ़ने के लिए दो महीने की मोहलत दी थी, ताकि वे इस बात को समझ सकें कि गीता जीवन का दर्शन है न कि किसी धर्म से संबंधित। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि हालांकि उन्होंने गीता का अध्ययन किया लेकिन उन्हें यह पूरी तरह से समझ में नहीं आई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें