वह ख़ून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं - विमल सोनी




विमल सोनी
वह ख़ून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं
वह ख़ून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं
वह ख़ून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन न रवानी है
जो परवश में होकर बहता है, वह ख़ून नहीं है पानी है
उस दिन लोगों ने सही सही, खूँ की कीमत पहचानी थी
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मांगी उनसे कुर्बानी थी
बोले स्वतंत्रता की खातिर, बलिदान तुमहे करना होगा
बहुत जी चुके हो जग में, लेकिन आगे मरना होगा
आजादी के चरणों में जो, जयमाल चढाई जाएगी
वह सुनो तुम्हारे शीशों के, फूलों से गूंथी जाएगी
आज़ादी का संग्राम कहीं, पैसे पर खेला जाता है?
ये शीश कटाने का सौदा, नंगे सर झेला जाता है
आज़ादी का इतिहास कहीं, काली स्याही लिख पाती है?
इसको पाने को वीरों ने, खून की नदी बहाई जाती है
यह कहते कहते वक्ता की, आंखों में खून उतर आया
मुख रक्त वर्ण हो दमक उठा, चमकी उनकी रक्तिम काया
आजानु बाहु ऊंचा करके, वे बोले रक्त मुझे देना
इसके बदले में भारत की, आज़ादी तुम मुझसे लेना
हो गई सभा में उथल पुथल, सीने में दिल न समाते थे
स्वर इंकलाब के नारों के, कोसों तक झाए जाते थे
हम देंगे देंगे ख़ून, स्वर बस यही सुनाई देते थे
रण में जाने को युवक, खड़े तैयार दिखाई देते थे
बोले सुभाष इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है
मैं कलम बढ़ता हूँ, आये, जो खूनी हस्ताक्षर करता है
इसको भरने वाले जन को, सर्वस्व समर्पण करना है
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन, माता को अर्पण करना है
पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है
इसपर तुमको अपने तन का, कुछ उज्ज्वल रक्त गिराना है
वह आगे आए जिसकी रग में, खून भारतीय बहता है
वह आगे आए जो ख़ुद को, हिन्दुस्तानी कहता है
वह आगे आए जो इसपर, खूनी हस्ताक्षर देता है
मैं कफन बढाता हूँ आए, जो इसको हँसकर लेता है
सारी जनता हुंकार उठी, हम आते हैं, हम आते हैं
माता के चरणों में लो, हम अपना रक्त चढाते हैं
साहस से बढे युवक उस दिन, देखा बढते ही आते थे
चाकू छुरी कटारियों से, वे अपना रक्त गिराते थे
फिर उसी रक्त की स्याही में, वे अपना कलम डुबोते थे
आज़ादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे
उस दिन तारों ने देखा था, हिन्दुस्तानी विश्वास नया
लिखा था जब रणवीरों ने, खूँ से अपना इतिहास नया 


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