राष्ट्रभाषा हिन्दी को गरिमा के अनुकूल सामर्थ्यवान बनाया जाये - अरविन्द सिसौदिया

अपने ही देश में संघर्ष करती राष्ट्रभाषा हिन्दी,अपने बलबूते विश्व में परचम फहरा रही है।
राष्ट्रभाषा हिन्दी को गरिमा के अनुकूल सामर्थ्यवान बनाया जाये - अरविन्द सिसौदिया

 

राष्ट्रभाषा हिन्दी को गरिमा के अनुकूल सामर्थ्यवान बनाया जाये - अरविन्द सिसौदिया

भारत में सबसे ज्यादा बोली व समझी जानें वाली हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने के बाद भी , राजनैतिक एवं प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार होना पडा है। आज भी मेडीकल लाईन और सर्वोच्च न्यायालय की भाषा अंग्रेजी ही है। इन क्षैत्रों में स्वदेशी भाषा अपनाने पर उतना काम हुआ ही नहीं जितनें की अपेक्षा थी। सही तो यह है कि इसे देश के शासनतंत्र ने स्व के स्वाभिमान को छोड कर विदेशी अंग्रेजी को न केबल बनाये रखा, बल्कि उसे और अधिक प्रोत्साहित किया जा रहा है।  

    हिन्दी को मान,सम्मान और स्वाभिमान मिल रहा है। वह उसकी खूबी एवं उसके बोलने वालों की संख्या के कारण मिल रहा है। जब से इन्टरनेट एवं सोसल मीडिया आया जब से हिन्दी पूरे विश्व में अपने बल बूते से ही बड रही है। किसी की कृपा से नहीं। हिन्दी को अर्न्तराष्टीय स्तर पर विदेशी संस्थानो ने भी इसलिये अपनाया कि वे आम हिन्दी भाषा में अपने माल को - अपने बेचान को, अपनी बात को, भारत में हिन्दी भाषी व्यक्ति तक पहुंचा सकें।

भारत के प्रशासनिक क्षेत्र में मात्र हिन्दी दिवस मनाने से आगे कुछ नहीं किया गया । जो काम हुये वे उस क्षमता और स्तर के नहीं हैं जिस स्तर व क्षमता का भारत है। भारत की राष्ट्रभाषा के साथ जो मान सम्मान होना चाहिये था, उसको जिस ताकत से स्थपित किया जाना चाहिये था उसका अभाव आज भी देखा जा रहा है। सिर्फ विज्ञान पढ़नें वालों का क्षैत्र इस तरह का है , जहां अंग्रेजी की जरूरत भारत को है। अन्य सभी क्षेत्रों में हिन्दी में काम किया जा सकता है। भारत के राज्या में भाषा सम्बंधी मतभेद के नाम पर गुलामी की भाषा को अंगीकृत किये रहनें का क्या अर्थ है। 130 करोड लोग न तो डॉक्टर बन रहे न इंजीनियर बन रहे न वैज्ञानिक बन रहे हैं। आप पूरे भारत को भाषाई गुलामी में कैसे डाल सकते है। अर्थात राष्ट्रभाषा हिन्दी के साथ न्याय किया जाये,उसको उसकी गरिमा के अनुकूल विकसित एवं सामर्थ्यवान बनाया जाये।

हिंदी दिवस

वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राजभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था। वर्ष 1949 में स्वतंत्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितम्बर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की अनुच्छेद 343(1) में इस प्रकार वर्णित है। संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा।

यह निर्णय 14 सितम्बर को लिया गया, इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। हालांकि जब राष्ट्रभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो अ-हिन्दी भाषी राज्यों के लोग इसका विरोध करने लगे विषेशकर तमिलनाडू इस कारण कुछ वर्षों के लिये अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा था। इस कारण हिन्दी भाषा में भी अंग्रेजी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा, हिन्दी अंग्रेजी मिक्स भी हो रही है।

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अपने बल बूते बड़ रही है, विश्वभर में हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी
तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा
हिन्दी वर्ष 1900 में यह दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में चौथे स्थान पर थी। स्टैटिस्टा के मुताबिक, उस समय मंदारिन पहले, स्पैनिश दूसरे व अंग्रेजी तीसरे स्थान पर थी।

दुनिया में हिंदी भाषा का वर्चस्व तेजी से बढ़ रहा है। सन 1900 से 2021 के दौरान यानी 121 साल में हिंदी के बढ़ने की रफ्तार 175.52 फीसदी रही। यह अंग्रेजी की 380.71 फीसदी के बाद, सबसे तेज है। अंग्रेजी और मंदारिन के बाद हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।

वर्ष 1900 में यह दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में चौथे स्थान पर थी। स्टैटिस्टा के मुताबिक, उस समय मंदारिन पहले, स्पैनिश दूसरे व अंग्रेजी तीसरे पायदान पर थी। जैसे-जैसे देश तरक्की की राह पर बढ़ा, भारतीय भाषाओं और विशेषतः हिंदी की पूछ बढ़ती गई। लंबी यात्रा तय करने के बाद हिंदी वर्ष 1961 में स्पैनिश को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन गई। तब दुनियाभर में 42.7 करोड़ लोग हिंदी बोलते थे। इनकी संख्या 2021 में बढ़कर 64.6 करोड़ पहुंच गई। यह संख्या उन 53 करोड़ लोगों के अतिरिक्त है, जिनकी मातृभाषा हिंदी है। अब तो यह शीर्ष-10 कारोबारी भाषाओं में भी शुमार है। 


देश में 53 करोड़ की मातृभाषा हिंदी
देश में 43.63 फीसदी यानी 53 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है। 13. 9 करोड़ यानी 11 प्रतिशत से अधिक की यह दूसरी भाषा है। 55 प्रतिशत भारतीयों की मातृभाषा या दूसरी भाषा हिंदी है। दुनिया में 64.6 करोड़ हिंदी भाषी हैं।

गूगल पर 10 लाख करोड़ पन्ने हिंदी में
मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने बताया कि गूगल पर सात साल में हिंदी सामग्री 94प्रतिशत की दर से बढ़ी है। गूगल पर 10 लाख करोड़ पन्ने हिंदी में उपलब्ध हैं।
दुनिया के 10 सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबारों में शीर्ष-6 हिंदी भाषी हैं।
भारत से बाहर 260 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।
विदेश में 28 हजार से ज्यादा शिक्षण संस्थान हिंदी सिखा रहे हैं।

1803- प्रेम सागर, हिन्‍दी भाषा में प्रकाशित पहली पुस्‍तक
1826- हिन्‍दी भाषा का पहला समाचार-पत्र था उदन्‍त मार्तण्ड
1881- हिन्‍दी को अपनाने वाला भारत का पहला राज्‍य बना बिहार
1931- हिन्‍दी भाषा की पहली फिल्‍म, आलमआरा
1949- जब हिन्‍दी बनी भारत की आधिकारिक भाषा
1975- पहला विश्व हिन्‍दी सम्‍मेलन
1977- संयुक्‍त राष्‍ट्र में पहली बार गूंजी हिन्‍दी
1997- भारत-दर्शन बनी इंटरनेट पर प्रकाशित होने वाली हिन्‍दी की पहली पत्रिका
1997- भारत ही नहीं, इन देशों की भी आधिकारिक भाषा है हिन्दी
2006- अमेरिका में भी हिन्‍दी का डंका
2006- विश्व हिन्‍दी दिवस का आयोजन
2019- हिन्‍दी भाषा का दायरा 20 हजार से बढ़कर 1.5 लाख शब्‍दों तक पहुंचा
2020- यूट्यूब में भारतीयों की पसंद है हिन्‍दी
ऑनलाइन वीडियो में आज भी भारतीय को पसंद हिन्‍दी भाषा ही है। अक्‍सर आधुनिक दिखने के नाम पर अंग्रेजी भाषा का एक वर्चस्‍व देखने को मिलता है। मगर यूट्यूब ने खुद बताया है कि आज भी 54 प्रतिशत भारतीय हिन्दी भाषा के वीडियो ही यूट्यूब में देखना पसंद करते हैं। वहीं महज 16 प्रतिशत लोग अंग्रेजी में वीडियो देखते हैं।

2022- पहली बार हिन्‍दी उपन्यास को मिला बुकर पुरस्कार
साहित्‍य के क्षेत्र में साल 2022 में हिन्‍दी भाषा ने एक महत्‍वपूर्ण उपलब्‍धि पाई है। पहली बार किसी हिन्दी उपन्यास को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिया गया। गीतांजलि श्री ने हाल ही में अपने उपन्यास रेत समाधि के लिए बुकर पुरस्कार जीता है। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जन्‍मी गीतांजलि छठी भारतीय हैं, जिन्‍होंने यह पुरस्कार हासिल किया है। इसके पहले भारत या भारतीय मूल के 5 लेखकों को यह पुरस्कार मिला है, लेकिन किसी हिन्‍दी उपन्यास को यह उपलब्धि पहली बार मिली है।

* हिंदी में मेडिकल की थीसीस लिखने की बात सोचना भी मुश्किल है लेकिन लखनऊ के डॉ. सूर्यकांत ने न सिर्फ हिंदी में थीसीस लिखी बल्कि उन्हें इसी थीसीस पर गोल्ड मेडल भी मिला

** 2016 - कड़े विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट प्रशासन को हिंदी में लिखी याचिका स्वीकार करनी पड़ी। याचिका पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता ब्रह्मदेव प्रसाद ने दायर की है। प्रसाद पटना हाईकोर्ट में हिंदी में लिखी याचिका ही दायर करते हैं और हिंदी में ही बहस भी करते हैं। सुप्रीम कोर्ट में हिंदी में लिखी याचिका को स्वीकार करवाना चुनौती थी।

अधिवक्ता ब्रह्मदेव ने बताया कि वह पटना हाईकोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका में पारित आदेश के खिलाफ 21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट गए थे। हिंदी में लिखी याचिका को देख कर सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार कार्यालय नाराजगी जताई। उनसे अपनी याचिका का अंग्रेजी अनुवाद दाखिल करने को कहा गया।

प्रसाद ऐसा करने को तैयार नहीं हुए। तब रजिस्ट्रार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 348 की बाध्यता के कारण हिंदी में याचिका नहीं दायर हो सकती। याचिकाकर्ता प्रसाद ने उन्हें संविधान के अनुच्छेद 300, 351 के साथ-साथ मूल अधिकार से जुड़े अनुच्छेद 13 एवं 19 को दिखाया, जिसमें हिंदी के साथ भेदभाव करने से मना किया गया है। आखिरकार उन्होंने अपनी बात मनवा ली।

महानिबंधक को सभी पहलुओं का अवलोकन करने के बाद अपने अधीनस्थ अधिकारियों को याचिका स्वीकार करने की अनुमति देनी पड़ी। संभावना है कि अगले महीने तक उनके मामले पर सुप्रीम कोर्ट को हिंदी में बहस सुननी होगी।


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