कांग्रेस के बागी घटनाक्रम के बाद सरकार की पकड प्रशासन से और ढ़ीली होगी - अरविन्द सिसौदिया

 

कांग्रेस के बागी घटनाक्रम के बाद सरकार की पकड प्रशासन से और ढ़ीली होगी - अरविन्द सिसौदिया

कांग्रेस की राजस्थान में जबसे राज्य की सरकार बनीं है तब से ही गुटबाजी के चक्कर में न विकास हो पा रहा है और न ही जनता का लोककल्याण ही हो पा रहा है। बल्कि इसके चलते कानून व्यवस्था पूरी तरह ठप्प है। चारों तरफ भ्रष्टाचार में प्रशासन लिप्त है। कुर्सी बचाओ अभियान के कारण कांग्रेस सरकार पूरी तरह विफल एवं जन शोषक साबित हो रही है। इस घटनाक्रम के बाद सरकार की पकड प्रशासन से और भी ढ़ीली होनी है।

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राजस्थान कांग्रेस की बगावत,नाक का सवाल बनीं तो बहुत कुछ उलट फेर होगें - अरविन्द सिसौदिया

1- यूं भी अशोक गहलोत की कोई बडी उपलब्धि तो है नहीं, राजस्थान से लोकसभा में जीरो सीटें कांग्रेस की हैं।
2- गहलोत इस हद तक बागी हुये हैं तो इसका एक ही अर्थ है कि वे अपने भविष्य को जान समझ चुके हें ।
3- गहलोत हाईकमान के हर बुरे निर्णय को स्विकार करनें की मानसिकता से ही बागी हुये है।
4- यूं भी कांग्रेस अध्यक्ष पद कहनें का ही था, सबनें सीताराम केसरी की दुर्गती देख रखी है ।
5- कांग्रेस के हाई कमान ने इस बगावत को नाक का सवाल बनाया तो बहुत कुछ उलट फेर देखनें को मिलेगा।

एक समय था जब राजस्थान सहित तमाम प्रदेशस्तरीय कांग्रेस की बैठकों में एक लाईन का निर्णय होता था कि “ हाई कमान पर निर्णय छोडा , वे जो करेंगे वह मंजूर होगा ” यही बात लेकर केन्द्र से आनें वाले पर्यवेक्षक जाते थे। पंजाब में भी लगभग यही हुआ था कि हटाये जानें से पूर्व ही मुख्यमंत्री केप्टन अमरिन्दर सिंह ने इस्तीफा दे दिया था और बाद में हाई कमान ने ही नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया था। राजस्थान में कांग्रेस अशोक गहलोत को अध्यक्ष बनानें से ज्यादा मुख्यमंत्री पद से हटानें में इन्टरस्टेड दिखी । जो नामांकन से पहले ही नया मुख्यमंत्री चुनने पहुंच गई , नतीजा वहां मुख्यमंत्री गुट ने इसे खुला अपमान मानते हुये विद्रोह कर दिया । इतना बडा विद्रोह कांग्रेस में लम्बे समय बाद देखा गया है। यूं भी कांग्रेस में लोकतंत्र कभी होता ही नहीं है। जो होता है वह नेहरू परिवार की इच्छा पर होता है।

यूं भी कांग्रेस अध्यक्ष पद कहनें का ही था, सबनें सीताराम केसरी की दुर्गती देख रखी है,नरसिंह राव का अपमान देख रखा है। फिर सोनिया गांधी,राहुल गांधी,प्रियंका गांधी सहित तमाम नेहरू परिवार और उनके पीए एवं कार्यालय संभालने वालों से नीचे गैर नेहरू परिवार के अध्यक्ष को रहना था । संभवतः अशोक गहलोत का मोह भंग इस अध्यक्ष पद से हो गया था । इसी कारण इतना बडा कदम उठाया गया है।

अब इस घटनाक्रम के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ से अशोक गहलोत बाहर हो गये होंगे। मीडिया की खबरों में केसी वेणुगोपाल, दिग्विजय सिंह, मुकुल वासनिक और मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के नए दावेदारों के रूप में सामने आ रहे हैं। अर्थात गहलोत अब अध्यक्ष पद के चुनाव से बाहर होते नजर आ रहे हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राजस्थान घटनाक्रम को लेकर,जयपुर से लौटे पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन एवं कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल के साथ बैठक की व लिखित में रिपोर्ट मांगी है।

राजस्थान कांग्रेस में बगावत करनें वालों ने कांग्रेस हाई कमान को बुरी तरह अपमानित किया है तथा उनके इस कदम को पंजाब जैसा आत्मघाती बताया है। जो काफी हद तक सही भी है। क्यों कि राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलेट का खेल पुराना है और इसे कांग्रेस हाई कमान ने ही बना कर रखा हुआ था। सुलह के बाद भी मतभेद मिटाये नहीं गये।

गहलोत इस हद तक बागी हुये हैं तो इसका एक ही अर्थ है कि वे अपने भविष्य को जान समझ चुके हें और उन्हे कांग्रेस अध्यक्ष जैसे कांटों भरे ताज से कहीं अधिक कांग्रेस से बाहर जाना ज्यादा ठीक लगा है। गहलोत हर बुरे निर्णय को स्विकार करनें की मानसिकता से ही बागी हुये है।

कांग्रेस के हाई कमान ने इस बगावत को नाक का सवाल बनाया तो बहुत कुछ उलट फेर देखनें को मिलेगा। यदि वह समय की मांग को समझ कर कडवा घूंट पी कर टाल जाती है तो पार्टी बची रह सकती है। जहां तक राजस्थान में अगले चुनाव का प्रश्न है वह किसी के भी नेतृत्व में लडा जाये कांग्रेस बुरी तरह हार रही है। यूं भी अशोक गहलोत की कोई बडी उपलब्धि तो है नहीं राजस्थान से लोकसभा में जीरो सीटें कांग्रेस की हैं।
 

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