कांग्रेस में अध्यक्ष बन कर “ केसरी “ जैसी दुर्गती कोई नहीं करवाना चाहता - अरविन्द सिसौदिया
कांग्रेस में अध्यक्ष बन कर “ केसरी “ जैसी दुर्गती कोई नहीं करवाना चाहता - अरविन्द सिसौदिया
यूँ तो कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश सरकार की सहमति से जनता को, विशेष रूप से हिंदुओं को राजभक्त बनानें के लिये, अंग्रेज अफसर ए ओ ह्यूम नें की थी । मुसलमानों को राजभक्त बनानें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और मुस्लिम लीग की स्थापना भी ब्रिटिश सरकार नें ही करवाई थी । और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक विश्वस्तरीय समझौते के अंतर्गत सभी उपनिवेशों को जब स्वतन्त्र किया जा रहा था , तब ब्रिटिश सरकार नें कांग्रेस और मुस्लिम लीग को अलग अलग देश बना कर अपनी पसंद के नेहरू एवं जिन्ना को गद्दियां सौंपी थी ।
पहले कांग्रेस में लगभग प्रतिवर्ष - दो वर्ष में नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनता था, कुछ अवसर छोड़ दिये जायें तो अध्यक्ष बदला जाता था । स्वतन्त्रता के बाद धीरे - धीरे नेहरू वंश का इस पर कब्जा हो गया ।
सोनिया गांधी कांग्रेस में लगातार सबसे लंबे समय तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहीं हैं । कांग्रेस का कल्चर तो नेहरूजी के समय से ही वंशवादी था । मगर इंदिरा गांधी के समय से यह पार्टी मानसिकरुप से भी वंशवादी हो गई । इसी कारण यह पार्टी धीरे धीरे टूटती हुई अन्य कांग्रेसी वंशों में विभजित होती चली गई ।
सोनिया गांधी काल में नेहरू वंश से बाहर के राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी बनें थे और उन्हें टांगा - टोली कर कांग्रेस कार्यालय से बाहर फेंक दिया गया था। यही वह कार्यवाही है जिससे गैर नेहरू वंश का कोई भी व्यक्ति काँग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनना चाहता ।
लम्बे समय से कांग्रेस में बाहर के अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा चल रही है और बार-बार कुछ नाम सामने आते भी हैं, विशेषकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम बार-बार राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उभर रहा है ।
लेकिन हर वह व्यक्ति जिसका नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चल रहा है वह जानता है कि उसकी हालत बलि के बकरे जैसी होंगी , क्योंकि वहां राहुल गांधी ही सर्वेसर्वा हैं। जो किसी अन्य व्यक्ति की कोई बात सुनते ही नहीं है और यही कारण है कि कांग्रेस में सभी वरिष्ठ लोग अपने मान सम्मान को बचाए हुए इधर उधर भाग रहे हैं ।
कोई भी व्यक्ति कांग्रेस का अध्यक्ष इसीलिए नहीं बनना चाहता कि उससे आने वाले समय में कांग्रेस राज कुमार द्वारा भयंकर बेज्जती और अपमानजनक व्यवहार न हो जाये ।
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव से लेकर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कई बड़े नाम हैं जिनका बड़ा अपमान हुआ ।
कुल मिलाकर सीताराम केसरी फैक्टर जो है वहीं कांग्रेस की असली नियति है जो व्यक्ति नेहरू खानदान से बाहर का होकर यदि कांग्रेस का अध्यक्ष बन भी गया तो उसकी आने वाले समय में हालत वही होगी जो सीताराम से की हुई थी । वैसे यह सिर्फ बातें ही हैँ कांग्रेस अध्यक्ष नेहरू परिवार का ही बनेगा ।
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14 मार्च 1998 को बुरी तरह बेइज्जत किए गए सीताराम केसरी
14 मार्च 1998 ही वह तारीख है जिस दिन कांग्रेस के नेताओं ने सीताराम केसरी को बेइज्जत किया और उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाया । 5 मार्च 1998 को CWC (कांग्रेस कार्य समिति) की बैठक बुलाई गई । इसमें फैसला लिया गया कि सोनिया गांधी पार्टी के कार्यों में ज्यादा सक्रिय हों और संसदीय दल का नेता चुनने में हेल्प करें । उस वक्त संसदीय दल के नेता सीताराम केसरी ही थे । प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी के कानून में बदलाव कर तय कराया था कि पार्टी का नेता संसदीय दल का नेता हो सकता है, चाहे वह लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य हो या नहीं ।
पार्टी में अपने खिलाफ इस तरह की गतिविधियों को देखते हुए 9 मार्च 1998 को सीताराम केसरी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। कुछ ही मिनट बाद उनका मन बदल गया और कहा कि उन्होंने केवल मंशा जाहिर की है, इस्तीफा नहीं दिया है।
सीताराम केसरी ने तय किया कि वह AICC की आम सभा में कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ेंगे। इसके बाद 14 मार्च 1998 को CWC से करीब 13 नेता प्रणब मुखर्जी के घर पर जुटे और CWC की बैठक बुलाकर सीताराम केसरी को अपने इस्तीफे पर फैसला करने की मांग रख दी।
11 बजे CWC की बैठक हुई । इसमें प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में सीताराम केसरी के पार्टी के लिए किए गए कार्यों के लिए धन्यवाद कहा और कहा कि सोनिया गांधी पार्टी में अध्यक्ष पद संभालें । इस बात पर सीताराम केसरी नाराज हो गए। महज 8 मिनट में ही केसरी ने बैठक स्थगित कर दी और हॉल से सटे अपने दफ्तर चले गए । मनमोहन सिंह के साथ कुछ और नेता उन्हें मनाने पहुंचे लेकिन वह नहीं माने और दोबारा बैठक में नहीं आए।
इसके बाद पार्टी के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में दोबारा बैठक शुरू की गई। यहां औपचारिक रूप से सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया । तत्काल सीताराम केसरी का नेमप्लेट उखाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया गया । इतनी बेइज्जती के बाद सीताराम केसरी 24 अकबर रोड को छोड़कर जा रहे थे तभी यूथ कांग्रेस के कुछ उदंड कार्यकर्ताओं ने उनकी धोती खोलने की भी कोशिश की थी।
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