कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में उत्तर तथा पूर्वी भारत की घोर उपेक्षा भी - अरविन्द सिसोदिया

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में उत्तर तथा पूर्वी भारत की घोर उपेक्षा भी 

- अरविन्द सिसोदिया 9414180151
Bharat Jodo Yatra
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी, लंबे समय से कांग्रेस को नुकसान पहुचाते आ रहे हैं । वरिष्ठ कांग्रेसियों को उनकी कतई नहीं बनती है और इसी कारण असंतुष्ट कांग्रेसियों का एक धड़ा बना हुआ है जो लगातार उनके विरुद्ध कुछ ना कुछ कहता रहता है । पहलीबार उन्हें भारत में कांग्रेस के प्रभाव वाले क्षेत्रों से जोड़नें के लिए,कांग्रेस पार्टी की ओर से गंभीर प्रयास हुआ हैं। ये यात्रा कांग्रेस को बचानें  एवं राहुल गांधी को स्थापित करनें की दृष्टि से की जाना प्रतीत हो रही हैं । 

यात्रा को लेकर कई तरह के कयास मीडिया में चल रहे हैं । किसी का मानना है कि ई डी की कार्यवाही एवं हेराल्ड प्रकरण के अदालत में होनें के चलते , यह निर्णय कांग्रेस के द्वारा लिया गया है। दूसरा विचार यह भी है कि कांग्रेस को बचानें के लिए "करो या मरो" की स्थिति में सड़क पर उतरना आवश्यक था । 

यूं तो इस यात्रा का नाम "भारत जोड़ों यात्रा " Bharat Jodo Yatra रखा गया हैं, किंतु वास्तविकता यही है कि यह यात्रा "कांग्रेस बचाओ यात्रा" है। इस यात्रा में कांग्रेस बचती - बचाती सुरक्षित क्षेत्रों से होकर ही निकल रही है । इस यात्रा में भारत जोडो जैसी बात बहुत कम है,बल्कि कांग्रेस के पक्ष में जो बचा खुचा क्ष्रेत्र है , उसे 2024 में बचाये रखनें की मुहिम अधिक है । 

1977 में आपातकाल के बाद जब आम चुनाव हुये थे, इंदिरा गांधी विरोधी लहर में , कांग्रेस उत्तर एवं पूर्वी भारत से साफ हो गई थी। कांग्रेस की सर्वेसर्वा श्रीमती इंदिरा गांधी स्वयं चुनाव हार गईं थीं। तब भी कांग्रेस दक्षिण भारत में बची रही थी और बड़ी संख्या में लोकसभा सीटें जीती थीं। अर्थात कांग्रेस को संकट के समय भी दक्षिण भारत से सहयोग और समर्थन मिलता रहा है। 

कांग्रेस की रणनीति यही है कि भाजपा एवं अन्य विपक्षी दलों के बड़े प्रभावशाली क्ष्रेत्रों से सीधा टकराव लिये बिना,अपना प्रभाव क्षेत्र बचाये रखनें एवं उसमें कांग्रेस को मजबूती देना।  राहुल गांधी स्वयं भी दक्षिण से ही लोकसभा में हैं । कांग्रेस की जो वर्तमान लोकसभा सीटें हैं, वे भी अधिकांश दक्षिण से ही हैं । इसी कारण यात्रा का अधिकांश समय दक्षिण को ही दिया गया है । इसके बाद मध्यप्रदेश एवं राजस्थान को काफी समय मिला है । इसका कारण यात्रा मार्ग और दिग्विजयसिंह एवं अशोक गहलोत की निकटता एवं 2023 के विधानसभा चुनाव हैं ।

भारत जोड़ो यात्रा में कांग्रेस नें  भाजपा, सपा, बसपा,राजेडी, जेडीयू,टीएमसी, बीजू जनता दल सहित पक्ष व विपक्ष से सीधा टकराव टाला है। उनकी रणनीति प्रथमतर दक्षिण में कांग्रेस बचाओ, प्रधानमंत्री मोदी एवं संघ पर प्रहार करो एवं राहुल गांधी को कांग्रेस के पूर्ण स्वामी के रूप में  स्थापित करो है। इस यात्रा के बाद असन्तुष्ट कांग्रेसियों का धड़ा बेमानी ही जायेगा।

कांग्रेस यह भी समझती है कि वह अचानक ही संपूर्ण भारत जीतनें वाली नहीं है,उसे प्रधानमंत्री पद भी विपक्ष के अन्य दलों के सहयोग से ही प्राप्त होगा । उसको अधरझूल हिन्दुओं सहित गैर हिन्दू वोट ही मिलना है। केरल पर फोकस का मकसद भी यही था कि यहां ईसाई और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 70 प्रतिशत है । दक्षिण भारत यूं भी हिन्दू मुद्दों पर शांत रहता है । 

कांग्रेस की बड़ी रणनीति राष्ट्रव्यापी प्रचार की है। अधिकतम कांग्रेस स्वीकार्यता बढ़ाना ही मुख्यलक्ष्य है । 2019 में भी उसको वोट काफी अच्छे मिले थे । देश में सपोर्टर बढ़ाना और इस हेतु  बहुत आक्रामक काम मीडिया क्षेत्र में करना है। मीडिया, सोसल मीडिया,चेनल्स आदि सभी प्लेटफार्मों पर खूब खर्च और परिश्रम किया जा रहा है । 

यात्रा का मूलस्वरूप भारत जोड़ो का नहीं है बल्कि उत्तर एवं पूर्व भारत को उपेक्षित करनें का भी है। जहां कांग्रेस प्रभाव शून्य है, उधर आँख उठा कर भी नहीं देखा गया। कुछ कांग्रेस प्रभाव के क्षेत्र भी छोड़ दिये गये हैं। इस पूरी यात्रा से सबसे ज्यादा चिंता केरल के वामपंथी दलों की ही बड़ी है, क्योंकि राहुल गांधी के पक्ष में ईसाई धुर्वीकरण हुआ है । जिसके चलते केरल वामपंथीयों के हाथ से निकल सकता है ।

यूं तो यह यात्रा बहुत ही अधिक खर्च वाली है ।  मगर राजनीति में इस तरह के खर्च इंवेष्टमेन्ट मानें जाते हैं। लगभग 500 व्यक्ति यात्रा में निरन्तर संगठन के बनें रहें इस तरह की पार्टी की व्यवस्था है। वहीं इवेंट कल्चर से भी लोगों को जुटानें के तरीके चल निकले हैं, जिन्हें स्थानीय जरूरत के मुताबिक अपनाया जाएगा ।
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में उत्तर तथा पूर्वी भारत की घोर उपेक्षा भी - अरविन्द सिसोदिया


अभी तक इस तरह की यात्राओं का लाभ राजनैतिक दलों को मिलता रहा है। सबसे सफल यात्रा श्रीरामजन्मभूमि को लेकर लालकृष्ण आडवाणी की थी,  कश्मीर में तिरंगा फहराने वाली एकता यात्रा के द्वारा मुरलीमनोहर जोशी नें भी भाजपा को फायदा पहुँचाया था और भी  यात्राओं नें सत्ता की कुर्सी तक पहुँच कर सफलता पाई है।

राहुल गांधी की इस यात्रा का लाभ कांग्रेस को मिलेगा, इसमें तो कोई दो राय नहीं हो सकती । लेकिन राहुल गांधी के क्रियाकलापों को लेकर हमेशा संशय रहता है । वे अपनी कार्यवाहीयों से ही काँग्रेस का अधिक नुकसान करते हैं । देखना यही होगा कि यात्रा के दौरान वे कोई समस्या पैदा न कर दें ।

कांग्रेस इस यात्रा के बाद भारत के उत्तरी क्षेत्र में पश्चिम से पूर्व की ओर भी यात्रा कर सकती है। 

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