क्या पुनर्जन्म की बात को सच मानते हैं ?


क्या पुनर्जन्म की बात को सच मानते हैं ?
Do you believe in reincarnation to be true?
 
Reincarnation is the religious or philosophical belief that the soul or spirit, after biological death, begins a new life in a new body that may be human, animal or spiritual depending on the moral quality of the previous life's actions. 
 
पुनर्जन्म एक भारतीय सिद्धांत है जिसमें जीवात्मा के जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की मान्यता को स्थापित किया गया है। विश्व के सब से प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण, गीता, योग आदि ग्रंथों में पूर्वजन्म की मान्यता का प्रतिपादन किया गया है।

क्या वेद पुराणों में मौजूद पुनर्जन्म की बात को सच मानते हैं?
इस सिद्धांत के अनुसार शरीर का मृत्यु ही जीवन का अंत नहीं है परंतु जन्म जन्मांतर की श्रृंखला है। 84 लाख या 84 लाख प्रकार की योनियों में जीवात्मा जन्म लेता है और अपने कर्मों को भोगता है। आत्मज्ञान होने के बाद जन्म की श्रृंखला रुकती है; फिर भी आत्मा स्वयं के निर्णय, लोकसेवा, संसारी जीवों को मुक्त कराने की उदात्त भावना से भी जन्म धारण करता है। इन ग्रंथों में ईश्वर के अवतारों का भी वर्णन किया गया है। पुराण से लेकर आधुनिक समय में भी पुनर्जन्म के विविध प्रसंगों का उल्लेख मिलता है।

पुनर्जन्म और पूर्वजन्म की बात याद आ जाना ऐसी घटनाएं समय-समय पर होती रहती हैं। विज्ञान इस तरह की बातों को पूरी तरह स्वीकार नहीं करता है। लेकिन वेदों पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि आत्माओं का सफर निरंतर चलता रहता है।

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि आत्मा एक शरीर का त्याग करके दूसरा शरीर को धारण कर लेता है। यानी जिसकी भी मृत्यु हुई है फिर से लौटकर किसी दूसरे रुप में आएगा।

महाभारत में एक कथा का उल्लेख है कि, भीष्म श्रीकृष्ण से पूछते हैं, आज मैं वाणों की शैय्या पर लेटा हुआ हूं, आखिर मैंने कौन सा ऐसा पाप किया था जिसकी यह सजा है।

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं आपको अपने छः जन्मों की बातें याद हैं। लेकिन सातवें जन्म की बात याद नहीं है जिसमें आपने एक नाग को नागफनी के कांटों पर फेंक दिया था। यानी भीष्म के रुप में जन्म लेने से पहले उनके कई और जन्म हो चुके थे। इन्हें अपने पूर्व जन्मों की बातें भी याद थी।

महाभारत का एक प्रमुख पात्र है शिखंडी। कथा है कि शिखंडी को भी अपने पूर्व जन्म की बातें याद थी। यह पूर्व जन्म में काशी की राजकुमारी था। उस जन्म में हुए अपमान का बदला लेने के लिए ही इसने शिखंडी के रुप में जन्म लिया था।

ऋग्वेद के ऋक्संहिता में लिखा है कि महर्षि वामदेव को माता के गर्भ में ही आत्मज्ञान हो गया था। जिससे उन्होंने अनेक जन्मों की बातें जान ली थी। वेदों और पुराणों में ऐसी अनेकों कथाएं हैं जो इस बताती हैं कि मौत और पुनर्जन्म निश्चित सत्य है।

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मरने के 20 मिनट बाद ही उसने ले लिया दूसरा जन्म
टीम डिजिटल     अमर उजाला, दिल्ली

कहते हैं कि मरने के बाद आत्मा यमलोक जाती है फिर अपने कर्मों के अनुसार लौट कर पृथ्वी पर लौटती है। लेकिन कुदरत कब कौन सा चमत्कार कर दिखाए कहा नहीं जा सकता।

ऐसी ही एक चमत्कारी घटना उत्तर प्रदेश, मैनपुरी के तिलयानी गांव की है। साल 2010 में सत्यभान सिंह यादव के पुत्र मनोज को एक बिच्छू ने काट लिया। इस समय मनोज महज 8 साल का था।

मनोज को मिनी पीजीआई सैफई में भर्ती कराया गया। इसी दिन तिलियानी के ही राजू की पत्नी को प्रसव पीड़ा होने पर मिनी पीजीआई में भर्ती कराया गया। यह अजब संयोग था कि रात के 10:40 बजे मनोज की मौत हो गई और लगभग 11 बजे राजू की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम छोटू रखा गया।

परिवार वालों का कहना है कि छोटू जब ढाई साल का हुआ तो वह मनोज के पिता सत्यभान को पापा कहकर बुलाने लगा। छोटू को अपने पूर्व जन्म के रिश्तेदार और उनसे जुड़ी बातें याद है।

सत्यभान का दावा है कि छोटू ने ऐसी कई बातें बताई हैं जो मनोज या उसके घर वाले ही जानते थे। अब पुनर्जन्म को मानते हुए छोटू को सत्यभान और उसका परिवार मनोज की तरह प्यार करते हैं। छोटू के मां-बाप को इससे कोई ऐतराज नहीं हैं। उनका कहना है कि छोटू को दो-दो मां-बाप का प्यार मिल रहा है।

एसएन मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. विशाल सिन्हा का कहना है कि साइंस और मनोविज्ञान पिछले जन्म में विश्वास नहीं करता।

लेकिन विज्ञान और मनोविज्ञान से परे एक और विज्ञान है जिसे परामनोविज्ञान कहते हैं, जो इस तरह की घटनाओं का अध्ययन करता है।
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पुनर्जन्म से जुडी 10 सच्ची घटनाए (10 )

पुनर्जन्म सच या भ्रम :
जैसे भूत, प्रेत, आत्मा, से जुडी घटनाएं हमेशा से एक विवाद का विषय रही है वैसे हि पुनर्जन्म से जुड़ी घटनाय और कहानिया भी हमेशा से विवाद का विषय रही है। इन पर विश्वास और अविश्वास करने वाले, दोनो हि बड़ी संख्या मे है, जिनके पास अपने अपने तर्क है। यहुदी, ईसाईयत और इस्लाम तीनो धर्म  पुनर्जन्म मे यकीन नहि करते है, इसके विपरीत हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म पुनर्जन्म मे यकीन करते है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। हालांकि नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत हि कम लोगो को रह पाती है। इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती है। पुनर्जन्म की घटनाएं भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों मे सुनने को मिलती है।

Reincarnation


पुनर्जन्म के ऊपर हुए शोध :
पुनर्जन्म के ऊपर अब तक हुए शोधों मे दो शोध (रिसर्च) बहुत महत्त्वपूर्ण है।  पहला अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन का। इन्होने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब "रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी" लीखी जो कि पुनर्जन्म से सम्बन्धित सबसे महत्तवपूर्ण बुक मानी जाती है। दूसरा शोध बेंगलोर की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसीजय में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा किया गया है।  इन्होने भी एक बुक "श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया" लिखी है।  इसमें 1973 के बाद से भारत में हुई 500  पुनर्जन्म की घटनाओ का उल्लेख है।

गीताप्रेस गोरखपुर ने भी अपनी एक किताब 'परलोक और पुनर्जन्मांक' में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है। हम उनमे से 10 कहानियां यहां पर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है।


पहली घटना -
यह घटना सन 1950 अप्रैल की है। कोसीकलां गांव के निवासी भोलानाथ जैन के पुत्र निर्मल की मृत्यु चेचक के कारण हो गई थी। इस घटना के अगले साल यानी सन 1951 में छत्ता गांव के निवासी बी. एल. वाष्र्णेय के घर पुत्र का जन्म हुआ। उस बालक का नाम प्रकाश रखा गया। प्रकाश जब साढ़े चार साल का हुआ तो एक दिन वह अचानक बोलने लगा- मैं कोसीकलां में रहता हूं। मेरा नाम निर्मल है। मैं अपने पुराने घर जाना चाहता हूं। ऐसा वह कई दिनों तक कहता रहा।
प्रकाश को समझाने के लिए एक दिन उसके चाचा उसे कोसीकलां ले गए। यह सन 1956 की बात है। कोसीकलां जाकर प्रकाश को पुरानी बातें याद आने लगी। संयोगवश उस दिन प्रकाशकी मुलाकात अपने पूर्व जन्म के पिता भोलानाथ जैन से नहीं हो पाई। प्रकाश के इस जन्म के परिजन चाहते थे कि वह पुरानी बातें भूल जाए। बहुत समझाने पर प्रकाश पुरानी बातें भूलने लगा लेकिन उसकी पूर्व जन्म की स्मृति पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाई।
सन 1961 में भोलनाथ जैन का छत्ता गांव जाना हुआ। वहां उन्हें पता चला कि यहां प्रकाश नामक का कोई लड़का उनके मृत पुत्र निर्मल के बारे में बातें करता है। यह सुनकर वे वाष्र्णेय परिवार में गए। प्रकाश ने फौरन उन्हें अपने पूर्व जन्म के पिता के रूप में पहचान लिया। उसने अपने पिता को कई ऐसी बातें बताई जो सिर्फ उनका बेटा निर्मल ही जानता था।

दूसरी घटना :
यह घटना आगरा की है। यहां किसी समय पोस्ट मास्टर पी.एन. भार्गव रहा करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम मंजु था। मंजु ने ढाई साल की उम्र में ही यह कहना शुरु कर दिया कि उसके दो घर हैं। मंजु ने उस घर के बारे में अपने परिवार वालों को भी बताया। पहले तो किसी ने मंजु की उन बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब कभी मंजु धुलियागंज, आगरा के एक विशेष मकान के सामने से निकलती तो कहा करती थी- यही मेरा घर है।
एक दिन मंजु को उस घर में ले जाया गया। उस मकान के मालिक प्रतापसिंह चतुर्वेदी थे। वहां मंजु ने कई ऐसी बातें बताई जो उस घर में रहने वाले लोग ही जानते थे। बाद में भेद चला कि श्रीचतुर्वेदी की चाची (फिरोजाबाद स्थित चौबे का मुहल्ला निवासी श्रीविश्वेश्वरनाथ चतुर्वेदी की पत्नी) का निधन सन 1952 में हो गया था। अनुमान यह लगाया गया कि उन्हीं का पुनर्जन्म मंजु के रूप में हुआ है।

तीसरी घटना :
सन 1960 में प्रवीणचंद्र शाह के यहां पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम राजूल रखा गया। राजूल जब 3 साल की हुई तो वह उसी जिले के जूनागढ़ में अपने पिछले जन्म की बातें बताने लगी। उसने बताया कि पिछले जन्म में मेरा नाम राजूल नहीं गीता था। पहले तो माता-पिता ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब राजूल के दादा वजुभाई शाह को इन बातों का पता चला तो उन्होंने इसकी जांच-पड़ताल की।
जानकारी मिली कि जूनागढ़ के गोकुलदास ठक्कर की बेटी गीता की मृत्यु अक्टूबर 1559 में हुई थी। उस समय वह ढाई साल की थी। वजुभाई शाह 1965 में अपने कुछ रिश्तेदारों और राजूल को लेकर जूनागढ़ आए। यहां राजून ने अपने पूर्वजन्म के माता-पिता व अन्य रिश्तेदारों को पहचान लिया। राजूल ने अपना घर और वह मंदिर भी पहचान लिया जहां वह अपनी मां के साथ पूजा करने जाती थी।

चौथी घटना :
मध्य प्रदेश के छत्रपुर जिले में एम. एल मिश्र रहते थे। उनकी एक लड़की थी, जिसका नाम स्वर्णलता था। बचपन से ही स्वर्णलता यह बताती थी कि उसका असली घर कटनी में है और उसके दो बेटे हैं। पहले तो घर वालों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब वह बार-बार यही बात बोलने लगी तो घर वाले स्वर्णलता को कटनी ले गए। कटनी जाकर स्वर्णलता ने पूर्वजन्म के अपने दोनों बेटों को पहचान लिया। उसने दूसरे लोगों, जगहों, चीजों को भी पहचान लिया।
छानबीन से पता चला कि उसी घर में 18 साल पहले बिंदियादेवी नामक महिला की मृत्यु दिल की धड़कने बंद हो जाने से मर गई थीं। स्वर्णलता ने यह तक बता दिया कि उसकी मृत्यु के बाद उस घर में क्या-क्या परिवर्तन किए गए हैं। बिंदियादेवी के घर वालों ने भी स्वर्णलता को अपना लिया और वही मान-सम्मान दिया जो बिंदियादेवी को मिलता था।

पांचवी घटना :
सन 1956 की बात है। दिल्ली में रहने वाले गुप्ताजी के घर पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम गोपाल रखा गया। गोपाल जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम शक्तिपाल था और वह मथुरा में रहता था, मेरे तीन भाई थे उनमें से एक ने मुझे गोली मार दी थी। मथुरा में सुख संचारक कंपनी के नाम से मेरी एक दवाओं की दुकान भी थी।
गोपाल के माता-पिता ने पहले तो उसकी बातों को कोरी बकवास समझा लेकिन बार-बार एक ही बात दोहराने पर गुप्ताजी ने अपने कुछ मित्रों से पूछताछ की। जानकारी निकालने पर पता कि मथुरा में सुख संचारक कंपनी के मालिक शक्तिपाल शर्मा की हत्या उनके भाई ने गोली मारकर कर दी थी। जब शक्तिपाल के परिवार को यह पता चला कि दिल्ली में एक लड़का पिछले जन्म में शक्तिपाल होने का दावा कर रहा है तो शक्तिपाल की पत्नी और भाभी दिल्ली आईं।
गोपाल ने दोनों को पहचान लिया। इसके बाद गोपाल को मथुरा लाया गया। यहां उसने अपना घर, दुकान सभी को ठीक से पहचान लिया साथ ही अपने अपने बेटे और बेटी को भी पहचान लिया। शक्तिपाल के बेटे ने गोपाल के बयानों की तस्दीक की।

छठवी घटना :
न्यूयार्क में रहने वाली क्यूबा निवासी 26 वर्षीया राचाले ग्राण्ड को यह अलौकिक अनुभूति हुआ करती थी कि वह अपने पूर्व जन्म में एक डांसर थीं और यूरोप में रहती थी। उसे अपने पहले जन्म के नाम की स्मृति थी। खोज करने पर पता चला कि यूरोप में आज से 60 वर्ष पूर्व स्पेन में उसके विवरण की एक डांसर रहती थी।
राचाले की कहानी में सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जिसमें उसने कहा था कि उसके वर्तमान जन्म में भी वह जन्मजात नर्तकी की है और उसने बिना किसी के मार्गदर्शन अथवा अभ्यास के हाव-भावयुक्त डांस सीख लिया था।

सातवी घटना :
पुनर्जन्म की एक और घटना अमेरिका की है। यहां एक अमेरिकी महिला रोजनबर्ग बार-बार एक शब्द जैन बोला करती थी, जिसका अर्थ न तो वह स्वयं जानती थी और न उसके आस-पास के लोग। साथ ही वह आग से बहुत डरती थी। जन्म से ही उसकी अंगुलियों को देखकर यह लगता था कि जैसे वे कभी जली हों।
एक बार जैन धर्म संबंधी एक गोष्ठी में, जहां वह उपस्थित थी, अचानक रोजनबर्ग को अपने पूर्व जन्म की बातें याद आने लगी। जिसके अनुसार वह भारत के एक जैन मंदिर में रहा करती थी और आग लग जाने की आकस्मिक घटना में उसकी मृत्यु हो गई थी।

आठवी घटना :
जापान जैसे बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों में पुनर्जन्म में विश्वास किया जाता है। 10 अक्टूबर 1815 को जापान के नकावो मूरा नाम के गांव के गेंजो किसान के यहां पुत्र हुआ। उसका नाम कटसूगोरो था। जब वह सात साल का हुआ तो उसने बताया कि पूर्वजन्म में उसका नाम टोजो था और उसके पिता का नाम क्यूबी, बहन का नाम फूसा था तथा मां का नाम शिड्जू था।
6 साल की उम्र में उसकी मृत्यु चेचक से हो गई थी। उसने कई बार कहा कि वह अपने पूर्वजन्म के पिता की कब्र देखने होडोकूबो जाना चाहता है। उसकी दादी (ट्सूया) उसे होडोकूबो ले गई। वहां जाते समय उसने एक घर की ओर इशारा किया और बताया कि यही पूर्वजन्म में उसका घर था।
पूछताछ करने पर यह बात सही निकली। कटसूगोरो ने यह भी बताया कि उस घर के आस-पास पहले तंबाकू की दुकानें नहीं थी। उसकी यह बात भी सही निकली। इस बात ये सिद्ध होता है कि कटसूगोरो ही पिछले जन्म में टोजो था।

नौवी घटना :
थाईलैंड में स्याम नाम के स्थान पर रहने वाली एक लड़की को अपने पूर्वजन्म के बारे में ज्ञात होने का वर्णन मिलता है। एक दिन उस लड़की ने अपने परिवार वालों को बताया कि उसके पिछले जन्म के मां-बाप चीन में रहते हैं और वह उनके पास जाना चाहती है।
उस लड़की को चीनी भाषा का अच्छा ज्ञान भी था। जब उस लड़की की पूर्वजन्म की मां को यह पता चला तो वह उस लड़की से मिलने के लिए स्याम आ गई। लड़की ने अपनी पूर्वजन्म की मां को देखते ही पहचान लिया। बाद में उस लड़की को उस जगह ले जाया गया, जहां वह पिछले जन्म में रहती थी।
उससे पूर्वजन्म से जुड़े कई ऐसे सवाल पूछे गए। हर बार उस लड़की ने सही जवाब दिया। लड़की ने अपने पूर्व जन्म के पिता को भी पहचान लिया। पुनर्जन्म लेने वाले दूसरे व्यक्तियों की तरह इस लड़की को भी मृत्यु और पुनर्जन्म की अवस्थाओं के बीच की स्थिति की स्मृति थी।

दसवी घटना :
सन 1963 में श्रीलंका के बाटापोला गांवमें रूबी कुसुमा पैदा हुई। उसके पिता का नाम सीमन सिल्वा था। रूबी जब बोलने लगी तो वह अपने पूवर्जन्म की बातें करने लगी। उसने बताया कि पूर्वजन्म में वह एक लड़का थी। उसका पुराना घर वहां से चार मील दूर अलूथवाला गांव में है। वह घर बहुत बड़ा है। उसने यह भी बताया कि पूर्वजन्म में उसकी मृत्यु कुएं में डुबने से हुई थी।
रुबी के पुराने माता-पिता पुंचीनोना को ढूंढ निकालना मुश्किल नहीं था। उन्होंने बताया कि उनका बेटा करुणासेना 1956 में मरा था। उन्होंने उसके कुएं में डूब जाने की घटना और दूसरी बातें भी सच बताई और कहा कि लड़की की सारी बातें बिलकुल सच है।
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पुनर्जन्म की प्रक्रिया के विषय में श्रीमद्भगवद्गीता में स्पष्ट जानकारी दी गई है जो अत्यंत लोकप्रिय भी है। कर्मयोग का ज्ञान देते समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहाँ कि, 'सृष्टि के आरंभ में मैंने ये ज्ञान सूर्य को दिया था। आज तुम्हें दे रहा हूँ।' अर्जुन ने आश्वर्यचकित होकर प्रश्न पूछा कि, 'आपका जन्म तो अभी कुछ साल पूर्व हुआ और सूर्य तो कई सालों से है। सृष्टि के आरंभ में आपने सूर्य को ये (कर्मयोग का) ज्ञान कब दिया?' कृष्ण ने कहाँ कि, 'तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं, तुम भूल चुके हो किन्तु मुझे याद है। गीता में कृष्ण-अर्जुन का ये पूरा संवाद निम्नलिखित है:-

“श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌। विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥ (१)

„भावार्थ : श्री भगवान ने कहा - मैंने इस अविनाशी योग-विधा का उपदेश सृष्टि के आरम्भ में विवस्वान (सूर्य देव) को दिया था, विवस्वान ने यह उपदेश अपने पुत्र मनुष्यों के जन्म-दाता मनु को दिया और मनु ने यह उपदेश अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु को दिया। (१)

“एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ (२)

„भावार्थ : हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा से प्राप्त इस विज्ञान सहित ज्ञान को राज-ऋषियों ने बिधि-पूर्वक समझा, किन्तु समय के प्रभाव से वह परम-श्रेष्ठ विज्ञान सहित ज्ञान इस संसार से प्राय: छिन्न-भिन्न होकर नष्ट हो गया। (२)

“स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्‌ ॥ (३)

„भावार्थ : आज मेरे द्वारा वही यह प्राचीन योग (आत्मा का परमात्मा से मिलन का विज्ञान) तुझसे कहा जा रहा है क्योंकि तू मेरा भक्त और प्रिय मित्र भी है, अत: तू ही इस उत्तम रहस्य को समझ सकता है। (३)

“अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः। कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ॥ (४)

„भावार्थ : अर्जुन ने कहा - सूर्य देव का जन्म तो सृष्टि के प्रारम्भ हुआ है और आपका जन्म तो अब हुआ है, तो फ़िर मैं कैसे समूझँ कि सृष्टि के आरम्भ में आपने ही इस योग का उपदेश दिया था? (४)

“बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ॥ ५ ॥

„अर्थात-श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन ! मेरे और तेरे अनेक जन्म हो चुके हैं; उन सबको मैं जानता हूँ, किंतु हे परंतप ! तू (उन्हें) नहीं जानता।

इसमें श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है और स्वयं (कृष्ण) को अपने पिछले कई जन्मों की जानकारी होने की बात भी रखी है।



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