Ram Navami , Hindus major festival
Ram Navami is one of the major festivals of Hindus. According to Hindu beliefs, Maryada Purushottam Lord Shri Ram was born in Ayodhya about 17.5 lakh years ago on the Navami of Chaitra month. That is why this festival is celebrated on the ninth date of Shukla Paksha of Chaitra month in memory of the birthday of Lord Shri Ram. This date is called Ram Navami.
अयोध्या नगरी में इस दिन ’भये प्रकट कृपाला दीन दयाला’ चौपाई से गूंजायमान हो जाया करती है। रामनवमी पर हर वर्ष देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अयोध्या पहुंचकर प्रातः चार बजे से ही सरयू नदी में स्नान करके मंदिर में पूजा अर्चना शुरु कर देते हैं। दोपहर के समय बारह बजे से पूर्व यह कार्यक्रम कुछ समय के लिए रोक देते हैं और भगवान श्री राम के प्रतीकात्मक जन्म की तैयारी शुरू हो जाती हैं। जैसे ही दोपहर के बारह बजते हैं पूरी अयोध्या नगरी में भगवान श्रीराम की जय जय कार होने लगती है।
On this day in the city of Ayodhya, 'Bhaye Prakat Kripala Deen Dayala' resonates with Chaupai. Every year on Ram Navami, lakhs of devotees from India and abroad reach Ayodhya, take bath in the Saryu river from 4 am in the morning and start worshiping in the temple. This program is stopped for some time before 12 noon and preparations for the symbolic birth of Lord Shri Ram begin. As soon as it is twelve o'clock in the afternoon, people start chanting Jai Jai of Lord Shri Ram in the entire city of Ayodhya.
अयोध्या के प्रसिद्ध कनक भवन मंदिर में भगवान श्रीराम का जन्म भव्य तरीके से मनाया जाता है। मंदिरों में बधाई गीत और चौपाई शुरू हो जाती है। श्रद्धालु भी इसका भरपूर आनंद लेते हैं। इस रामनवमी के अवसर पर किन्नर भी श्रीराम के जन्म पर सोहर गाते हैं और धूम धड़ाके से नाचते हैं।
The birth of Lord Shri Ram is celebrated in a grand manner in the famous Kanak Bhawan temple of Ayodhya. Congratulatory songs and Chaupai start in the temples. Devotees also enjoy it a lot. On the occasion of Ram Navami, eunuchs also sing Sohar on the birth of Shri Ram and dance with great enthusiasm.
अयोध्या रामनवमी त्योहार के महान अनुष्ठान का मुख्य केन्द्र बिन्दु है। यहां पर भगवान श्रीराम, उनकी धर्मपत्नी सीता, छोटे भाई लक्ष्मण व भक्त हनुमान की रथ यात्राएं बड़ी धूम धाम से मंदिरों से निकाली जाती हैं। हिन्दू घरों में रामनवमी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद घर में जल छिड़का जाता है और प्रसाद वितरित किया जाता है।
Ayodhya is the main focal point of the great rituals of Ramnavami festival. Here the chariot processions of Lord Shri Ram, his wife Sita, younger brother Lakshman and devotee Hanuman are taken out from the temples with great pomp. Ram Navami is worshiped in Hindu homes. After the puja, water is sprinkled in the house and prasad is distributed.
श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कहते हैं कि असुरों के राजा रावण को मारने के लिए भगवान ने श्रीराम का अवतार मनुष्य रूप में लिया। उन्होंने आजीवन मर्यादा का पालन किया इसीलिये उनको मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं। भगवान श्रीराम बहुत बड़े पित्रभक्त थे। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी वह अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग कर 14 वर्षों के लिए अपने छोटे भई लक्ष्मण और अपनी पत्नी सीता के साथ वन चले गये। वन में जाकर रक्षसों के सबसे बड़े राजा रावण का सर्वनास करके लंका का राज्य विभीषण को सौंपकर वापस अयोध्या आ गये। हनुमान जी एवं वानरराज सुग्रीव भगवान श्रीराम के परमभक्त तथा परममित्र थे।
Shri Ram is considered to be the incarnation of Lord Vishnu. It is said that to kill the demon king Ravana, God took the incarnation of Shri Ram in human form. He followed dignity throughout his life, that is why he is called Maryada Purushottam Shri Ram. Lord Shri Ram was a great devotee of his ancestors. Despite being the prince of Ayodhya, to fulfill his father's promise, he gave up all his wealth and went to the forest with his younger brother Lakshman and his wife Sita for 14 years. He went to the forest and destroyed Ravana, the greatest king of demons, and handed over the kingdom of Lanka to Vibhishana and returned to Ayodhya. Hanuman ji and monkey king Sugriva were great devotees and best friends of Lord Shri Ram.
भगवान श्रीराम को उनके सुख-समृद्धि पूर्ण, शांतिपूर्ण शासन के लिए याद किया जाता है। श्रीराम का शासन (राम राज्य) आज भी शांति व समृद्धि के लिए पर्यायवाची बन गया है। परिस्थिति यह है कि भगवान के आदर्श सिर्फ टी.वी. धरावहिकों और किताबों तक सिमटकर रह गये हैं। यदि वास्तव में राम राज्य स्थापित करना है तो ’’जय श्री राम’’ जपने से काम नहीं चलेगा वल्कि भगवान श्रीराम के आचरण को अपने जीवन में उतारना होगा। यही इस राम नवमीं का उद्देश्य है।
Lord Shri Ram is remembered for his prosperous and peaceful rule. Shri Ram's rule (Ram Rajya) has become synonymous with peace and prosperity even today. The situation is that God's ideals are visible only on TV. Are limited to physical media and books. If we really want to establish Ram Rajya, then chanting “Jai Shri Ram” will not work, rather we will have to adopt the conduct of Lord Shri Ram in our lives. This is the purpose of this Ram Navami.
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करुना-सुख-सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिँ स्रुति सन्ता।
सो मम-हित-लागी, जन-अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकन्ता॥
दया व करुणा के सागर, जन-जन पर अपनी प्रीति रखने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम संपूर्ण जगत पर अपनी कृपा-दृष्टि बनाए रखें, यही कामना है।
karuna-sukh-saagar, sab gun aagar, jehi gaavahin sruti santa.
so mam-hit-laagee, jan-anuraagee, bhayu pragat shreekanta.
It is my wish that the Supreme Lord Shri Ram, the ocean of mercy and compassion and the one who loves everyone, keeps his blessings on the entire world.
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श्रीराम के पाँच गुण नीति-कुशल व न्यायप्रिय श्रीराम
भगवान राम विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत रहे। उन्होंने वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए सुखी राज्य की स्थापना की। स्वयं की भावना व सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साथ दिया। फिर चाहे राज्य त्यागने, बाली का वध करने, रावण का संहार करने या सीता को वन भेजने की बात ही क्यों न हो।
सहनशील व धैर्यवान
सहनशीलता व धैर्य भगवान राम का एक और गुण है। कैकेयी की आज्ञा से वन में 14 वर्ष बिताना, समुद्र पर सेतु बनाने के लिए तपस्या करना, सीता को त्यागने के बाद राजा होते हुए भी संन्यासी की भांति जीवन बिताना उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा है।
दयालु व बेहतर स्वामी
भगवान राम ने दया कर सभी को अपनी छत्रछाया में लिया। उनकी सेना में पशु, मानव व दानव सभी थे और उन्होंने सभी को आगे बढ़ने का मौका दिया। सुग्रीव को राज्य, हनुमान, जाम्बवंत व नल-नील को भी उन्होंने समय-समय पर नेतृत्व करने का अधिकार दिया।
दोस्त
केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण। हर जाति, हर वर्ग के मित्रों के साथ भगवान राम ने दिल से करीबी रिश्ता निभाया। दोस्तों के लिए भी उन्होंने स्वयं कई संकट झेले।
बेहतर प्रबंधक
भगवान राम न केवल कुशल प्रबंधक थे, बल्कि सभी को साथ लेकर चलने वाले थे। वे सभी को विकास का अवसर देते थे व उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग करते थे। उनके इसी गुण की वजह से लंका जाने के लिए उन्होंने व उनकी सेना ने पत्थरों का सेतु बना लिया था।
भाई
भगवान राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न सौतेली माँ के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। यही वजह थी कि भगवान राम के वनवास के समय लक्ष्मण उनके साथ वन गए और राम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बावजूद भरत ने भगवान राम के मूल्यों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता को न्याय दिलाया।
भरत के लिए आदर्श भाई, हनुमान के लिए स्वामी, प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के परम मित्र और सेना को साथ लेकर चलने वाले व्यक्तित्व के रूप में भगवान राम को पहचाना जाता है। उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से पूजा जाता है। सही भी है, किसी के गुण व कर्म ही उसकी पहचान बनाते हैं।
श्रीराम की गुरु भक्ति राम नवमी विशेष
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने शिक्षागुरु विश्वामित्र के पास बहुत संयम, विनय और विवेक से रहते थे। गुरु की सेवा में सदैव तत्पर रहते थे। उनकी सेवा के विषय में भक्त कवि तुलसीदास ने लिखा है-
मुनिवर सयन कीन्हीं तब जाई। लागे चरन चापन दोऊ भाई॥
जिनके चरन सरोरुह लागी। करत विविध जप जोग विरागी॥
बार बार मुनि आज्ञा दीन्हीं। रघुवर जाय सयन तब कीन्हीं॥
गुरु ते पहले जगपति जागे राम सुजान।
सीता-स्वयंवर में जब सब राजा धनुष उठाने का एक-एक करके प्रयत्न कर रहे थे तब श्रीराम संयम से बैठे ही रहे। जब गुरु विश्वामित्र की आज्ञा हुई तभी वे खड़े हुए और उन्हें प्रणाम करके धनुष उठाया।
सुनि गुरु बचन चरन सिर नावा। हर्ष विषादु न कछु उर आवा।
गुरुहिं प्रनाम मन हि मन किन्हा। अति लाघव उठाइ धनु लिन्हा॥
श्री सद्गुरुदेव के आदर और सत्कार में श्रीराम कितने विवेकी और सचेत थे, इसका उदाहरण जब उनको राज्योचित शिक्षण देने के लिए उनके गुरु वशिष्ठजी महाराज महल में आते हैं तब देखने को मिलता है। सद्गुरु के आगमन का समाचार मिलते ही सीताजी सहित श्रीराम दरवाजे पर आकर सम्मान करते हैं-
गुरु आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार जाय पद नावउ माथा॥
सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भांति पूजि सनमाने॥
गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले राम कमल कर जोरी॥
इसके उपरांत भक्तिभावपूर्वक कहते हैं- 'नाथ! आप भले पधारे। आपके आगमन से घर पवित्र हुआ। परन्तु होना तो यह चाहिए था कि आप समाचार भेज देते तो यह दास स्वयं सेवा में उपस्थित हो जाता।' इस प्रकार ऐसी विनम्र भक्ति से श्रीराम अपने गुरुदेव को संतुष्ट रखते हैं।
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Five qualities of Shri Ram: Ethical and justifiable Shri Ram
Lord Ram remained ethical even in adverse circumstances. He established a happy state by following the Vedas and dignity. He supported justice and truth by compromising with his own feelings and happiness. Be it renouncing the kingdom, killing Bali, killing Ravana or sending Sita to the forest.
tolerant and patient
Tolerance and patience is another quality of Lord Ram. Spending 14 years in the forest on the orders of Kaikeyi, performing penance to build a bridge over the sea, and living like a monk despite being a king after abandoning Sita, is the pinnacle of his tolerance.
kinder and better master
Lord Rama mercifully took everyone under his protection. There were animals, humans and demons in his army and he gave everyone a chance to move forward. He also gave the right to lead the kingdom to Sugriva, Hanuman, Jambavan and Nal-Neel from time to time.
Friend
Be it Kevat or Sugriva, Nishadraj or Vibhishana. Lord Ram maintained a close relationship with his friends from every caste and class. He himself faced many troubles for his friends also.
better manager
Lord Ram was not only an efficient manager but also took everyone along. He gave everyone an opportunity for development and made better use of the available resources. Because of this quality of his, he and his army had built a bridge of stones to go to Lanka.
Brother
Lord Ram's three brothers Lakshman, Bharat and Shatrughan were the sons of his stepmother, but he showed more love and sacrifice for all his brothers than his own brother. This was the reason that during the exile of Lord Ram, Lakshman went to the forest with him and despite getting the throne in Ram's absence, Bharat gave justice to the people by keeping Lord Ram's values in mind by placing Ram's feet on the throne.
Lord Ram is recognized as an ideal brother for Bharat, master for Hanuman, a policy-skilled and just-loving king for the people, a best friend of Sugriva and Kevat and a person who takes the army along. Due to these qualities, he is worshiped by the name of Maryada Purushottam Ram. It is true that someone's qualities and actions create his identity.
Guru Bhakti of Shri Ram Ram Navami Special
Maryada Purushottam Shri Ram lived with his teacher Vishwamitra with great restraint, humility and discretion. He was always ready to serve his Guru. Devotee poet Tulsidas has written about his service-
Munivar Sayan kinhi tab jaai.lage chran chapn dou bhai.
jinhe charan sroruh lagii.karat vividh jp jog viragi,
bar bar muni aagya dinhi. Raghuvar jay sayan kinhi.
guru te phye Jagapati Jage Ram Sujan .
मुनिवर सयन कीन्हीं तब जाई। लागे चरन चापन दोऊ भाई॥
जिनके चरन सरोरुह लागी। करत विविध जप जोग विरागी॥
बार बार मुनि आज्ञा दीन्हीं। रघुवर जाय सयन तब कीन्हीं॥
गुरु ते पहले जगपति जागे राम सुजान।
In Sita-Swayamvar, when all the kings were trying to lift the bow one by one, Shri Ram remained sitting with restraint. When Guru Vishwamitra ordered him, he stood up, bowed to him and raised his bow.
suni Guru Bachan Charan Siir Nawa. harsh vishadu na kachhu ur aava.
Guruhi Pranaam Man Hi Man Kinha. ati laghav uthai dhanu linha.
सुनि गुरु बचन चरन सिर नावा। हर्ष विषादु न कछु उर आवा।
गुरुहिं प्रनाम मन हि मन किन्हा। अति लाघव उठाइ धनु लिन्हा॥
An example of how wise and conscious Shri Ram was in respecting and honoring Shri Sadgurudev can be seen when his Guru Vashishthaji Maharaj comes to the palace to give him state-appropriate teachings. As soon as the news of Sadhguru's arrival was received, Shri Ram along with Sitaji came to the door and paid their respects -
Guru Aagamanu Sunat Raghunatha.dwar jay pad naav matha॥
saarad argh dei ghar aane. sorh bhanti pooji sanmane.
Gahe Charan Siya sahit Bahori. Bole Ram Kamal Kar Jori.
गुरु आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार जाय पद नावउ माथा॥
सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भांति पूजि सनमाने॥
गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले राम कमल कर जोरी॥
After this he says with devotion – 'Nath! You better come. The house became sacred with your arrival. But what should have happened was that if you had sent the news, this slave would have volunteered to attend the service. In this way, with such humble devotion, Shri Ram keeps his Gurudev satisfied.
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