सरकारी लोकपाल बिल : हार भी और भागना भी

- अरविन्द सिसोदिया 
सरकारी लोकपाल  बिल , कांग्रेस ही कमान के अभिमानी और अहंकारी कार्य प्रणाली के कारण लोकसभा में संवेधानिक दर्जा नहीं पा सका ,तो राज्यसभा  में हार की कगार पर पहुँच गया और सरकार ने वोटिंग के बजाये सदन को अनिश्चित काल को स्थगित किया गया | यानि हार भी और भागना भी....कोंग्रेस को अब भी सही तरीके से प्रयत्न करने चाहिए | असफलता का ठीकरा दूसरों से सर फोड़ने से कुछ नहीं होगा  ..|  कोंग्रेस को बीजेपी के माथे विफलता का ठीकरा फोड़ने के बजाये अपनी असफलता पर आत्म मंथन करना चाहिए !!!
------------------

मध्य रात्रि का ड्रामा,सबसे बड़ा धोखा: जेटली
 Friday, December 30, 2011
ज़ी न्यूज ब्यूरो 
नई दिल्ली: बीजेपी नेता अरुण जेटली ने कहा है कि लोकपाल विधेयक पर गुरुवार को मध्य रात्रि में हुआ ड्रामा सबसे बड़ा धोखा था।  जेटली ने लोकपाल बिल के मुद्दे पर कांग्रेस पर जमकर प्रहार किया है। शुक्रवार को नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों को संबोधित करते हुए जेटली ने कहा कि गुरुवार को राज्यसभा में वोटिंग से डरकर सरकार आधी रात को मैदान छोड़कर भाग गई। 
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की यह रणनीति शाम छह बजे ही जगजाहिर हो गई थी कि वह मैदान छोड़कर भागनेवाली है। 
जेटली ने कहा कि सरकार सत्ता में रहने का नैतिक अधिकार खो चुकी है। क्योंकि उसने देश के साथ धोखा किया है। इसलिए उसे इस्तीफा दे देना चाहिए।  उन्होंने कहा तीन बुनियादी मुद्दों पर संशोधन को लेकर पूरा सदन एकमत था फिर सरकार वोटिंग के पहले ही मैदान छोड़कर क्यूं भाग खड़ी हुई। 
जेटली ने कहा कि यह दुनिया के संसदीय इतिहास की सबसे बड़ी जालसाजी है और इस बहाने सरकार ने देश को एक मजबूत लोकपाल बिल से वंचित कर दिया। उन्होंने कहा कि वोटिंग टालने के और दूसरे भी रास्ते थे |
-------------------
40 साल से लटका हुआ है लोकपाल विधेयक
 Friday, December 30, २०११


नई दिल्ली : गुरुवार दिनभर चली चर्चा के बाद भी राज्यसभा में लोकपाल विधेयक पारित नहीं होने का यह पहला मामला नहीं है। 40 वर्ष का संसद का इतिहास गवाह है कि यह विधेयक एक पहेली बना हुआ है। 
गुरुवार रात राज्यसभा की कार्यवाही बिना लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011 पारित हुए अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी। रोचक संयोग यह है कि अब तक जब भी संसद में लोकपाल विधेयक पर विचार हुआ लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो चुकी थी। 
1968 से ऐसा ही देखने में आया है। उस साल नौ मई को लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक पेश किया गया था। इसे संसद की स्थाई समिति को भेजा गया। 
20 अगस्त, 1969 को यह ‘लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 1969’ के रूप में पारित हुआ। हालांकि राज्यसभा में यह विधेयक पारित होता उससे पहले चौथी लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो गयी और विधेयक लटक गया। 
इसके बाद 11 अगस्त, 1971 को एक बार फिर लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक लाया गया। इसे ना तो किसी समिति को भेजा गया और ना ही किसी सदन ने इसे पारित किया। पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यह निष्प्रभावी हो गया। 
उसके बाद 28 जुलाई, 1977 को लोकपाल विधेयक को लाया गया। इसे संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेजा गया। संयुक्त समिति की सिफारिशों पर विचार करने से पहले ही छठी लोकसभा स्थगित हो गयी और विधेयक भी लटक गया। लोकपाल विधेयक, 1985 को उस साल 28 अगस्त को पेश किया गया और संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया। हालांकि तत्कालीन सरकार ने अनेक किस्म के हालात को कवर करने में खामियों के चलते उसे वापस ले लिया। 
विधेयक को वापस लेते हुए तत्कालीन सरकार ने कहा कि वह जनता की शिकायतों के निवारण के साथ बाद में एक व्यापक विधेयक लेकर आएगी। 
वर्ष 1989 में यह विधेयक फिर आया और 29 दिसंबर को उसे पेश किया गया। हालांकि 13 मार्च 1991 को नौवीं लोकसभा की कार्यवाही स्थगित होने के बाद विधेयक निष्प्रभावी हो गया। 
संयुक्त मोर्चा की सरकार ने भी 13 सितंबर, 1996 को एक और विधेयक पेश किया था। उसे जांच और रिपोर्ट देने के लिए विभाग से संबंधित गृह मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति को भेजा गया। स्थाई समिति ने नौ मई, 1997 को संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की और इसके अनेक प्रावधानों में व्यापक संशोधन किये। 
सरकार स्थाई समिति की अनेक सिफारिशों पर अपना रुख तय करती तब तक 11वीं लोकसभा की कार्यवाही स्थगित हो गयी। 
पिछला ऐसा प्रयास 14 अगस्त, 2001 को भाजपा नीत राजग सरकार की ओर से किया गया था। उसे गृह मामलों की विभाग से संबंधित संसदीय स्थाई समिति को अध्ययन और रिपोर्ट देने के लिए भेजा गया लेकिन राजग मई 2004 में सत्ता से बाहर हो गया। (एजेंसी)

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

God’s Creation and Our Existence - Arvind Sisodia

Sanatan thought, festivals and celebrations

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

कविता - संघर्ष और परिवर्तन

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’: अंग्रेजों तुम्हारी नहीं मानूंगा - गोविन्द गुरू

सरदार पटेल प्रथम प्रधानमंत्री होते तो क्या कुछ अलग होता, एक विश्लेषण - अरविन्द सिसोदिया sardar patel

सरदार पटेल के साथ वोट चोरी नहीं होती तो, वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते - अरविन्द सिसोदिया