कोंग्रेस सरकार को शासन का अधिकार नहीं हे




- अरविन्द सिसोदिया
कोंग्रेस सरकार को शासन का अधिकार नहीं हे 
विपक्षी पार्टियों ने कॉपरेरेट्स, मीडिया और विदेशी चंदा प्राप्त करने वाले एनजीओ को इसके दायरे में लाने की मांग करते हुए संशोधन प्रस्तुत किए थे। ये अस्वीकृत हो गए। सी बी आई को भी सरकार ने अपने पास रखा हे |  कुछ भी नहीं हे इस लोकपाल में ....एक कडवा सच यह हे कि  लोकसभा में सरकार को बनें रहने के लिए २७२ सांसदों कि जरूरत हे ..मगर सरकार को लोकपाल बिल पर मात्र २५० ही सांसदों का समर्थन मिला , एक प्रकार से सरकार को शासन का अधिकार नहीं हे ... यह अल्पमत सरकार हे ..
संविधान संशोधन बिल पर गच्चा खा गई कांग्रेस
Story Update : Wednesday, December 28, 2011    4:15 AM
लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की राहुल गांधी की पहल आखिरी वक्त पर कांग्रेस के फ्लोर मैनेंजमेंट की कमी की वजह से धरी की धरी रह गई। लोकपाल बिल को ध्वनि मत से पास करा लेने के बाद यूपीए संविधान संशोधन बिल के तीन प्रावधानों पर दो तिहाई बहुमत जुटाने में कामयाब नहीं हो पाई। इसके साथ ही संविधान में 116वां संशोधन नहीं हो सका। राजीव गांधी भी 22 साल पहले पंचायती राज विधेयक को संसद से संवैधानिक दर्जा नहीं दिला सके थे। हालांकि बाद में कांग्रेस की अगली सरकार ने इसे संवैधानिक दर्जा दिला लिया था।
संवैधानिक लोकतंत्र के लिए निराशाजनक दिन
जानकार इसे कांग्रेस की ओर से फ्लोर मैनेजमेंट में जुटे पवन बंसल और नारायण सामी जैसे मंत्रियों की नाकामी बता रहे हैं। लेकिन सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने इसका पूरा ठीकरा मुख्य विपक्षी दल भाजपा पर फोड़ दिया। संशोधन बिल गिर जाने के बाद प्रणव मुखर्जी ने कहा कि लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिया जाना देश हित में था। लेकिन विपक्ष ने सहयोग नहीं दे कर गलत किया है। यह संवैधानिक लोकतंत्र के लिए निराशाजनक दिन है।
तीन प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत नहीं पा सके
उधर, भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने इस आरोप के जवाब में कहा कि सरकार ने इस मामले में भाजपा से कोई मदद नहीं मांगी थी। बिल पास कराना सरकार की जिम्मेदारी है और अगर सरकार ने उनसे पहले कहा होता कि उनके सहयोग के बिना संशोधन बिल पास नहीं हो पाएगा तो पार्टी उसपर जरूर विचार करती। संवैधानिक संशोधन के प्रावधानों पर वोटिंग शुरू हुई तो चार में तीन प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत नहीं पा सके। जानकारों के मुताबिक लोकपाल बिल पर ध्वनिमत के दौरान सदन छोड़ कर चले गए बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के 42 सांसदों को कांग्रेस संवैधानिक संशोधन बिल पर वोटिंग के लिए राजी कर सकती थी। क्योंकि इन दोनों पार्टियों को लोकपाल के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति थी। लेकिन संशोधन बिल पर इन दोनों पार्टियों ने कोई विरोध नहीं जताया था। मालूम हो कि 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी पंचायती राज विधेयक को काननी दर्जा दिलाने में नाकाम रहे थे। इसके बाद उन्होंने लोकसभा भंग कर दी थी। हालांकि बाद में आई कांग्रेस सरकार ने पंचायती राज विधेयक को संवैधानिक दर्जा दिलाया था।

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