रामलला का अस्थाई मंदिर बना कर लोटे थे - अरविन्द सिसोदिया

परिजनों के आँखों में आंसू छोड़ कर गए और रामलला का अस्थाई मंदिर बना कर लोटे थे - अरविन्द सिसोदिया 
20 जनवरी, कोटा। कारसेवा 1992 जो की निर्णयक विजय का हरावल दस्ता था में हाड़ौती की भी बड़ी भूमिका थी।

कारसेवक रहे अरविन्द सिसोदिया नें बताया कि 1990 की कार सेवा में जो नृशंस व्यवहार हुआ था गोलियों से कारसेवकों को भून दिया गया था, हिंसक व्यवहार किया गया था, उसका आक्रोश हिन्दू युवा वर्ग में था और इसी कारण 1992 में केसरिया बाना सिर पर बांध कर कारसेवक अयोध्या को अपनी अपनी टोलियाँ बनाकर योजना से और स्वतंत्र रूप से पहुंच रहे थे। मेरे साथ छोटेलाल शर्मा डडवाडा,कामराज पंवार नेहरूनगर और गुमानपुरा के स्व0 अजय जैन पुत्र स्व0 नेमीचन्द जी जैन ( महावीर नमकीन ) थे । सत्यभान सिंह जी ददू नें बाबरी ढहते समय मुझे एक बड़े पत्थर की चपेट में आनें से बचाया था, तब हम युवा मोर्चा से जुड़े हुए थे ।

उन्होंने कहा यह भी सच है कि कारसेवकों के परिजनों में भयंकर भय था,क्योंकि 1990 के कष्टों और कारसेवकों पर गोली चलने की बात सभी को पता थी और इसी से वे शंकित थे। जब कोई कारसेवक घर से निकलता था तो वह अपने परिजनों की आँखों में आंसू ही छोड़ कर आगे बढ़ता था। रेल्वे प्लेटफार्म का दृष्य बहुत भावुक होता था। मुझसे नेमीचंद जी जैन नें रोते हुए कहा,इसे ( पुत्र अजय जैन को ) को लेतो जा रहे हो, इसे वापस भी लेकर आना... में समझाता था कि वहाँ हमारी सरकार है, कुछ नहीं होगा।

अयोध्या लगभग एक सप्ताह पूर्व पहुंच गये थे आपस में मिलने जुलने और दाल बाटी बनाने और खाने में समय व्यतीत होता था, 6 दिसंबर को कारसेवकों के जनआक्रोश नें ढांचे को ढहा दिया गया। सायंकाल में हम सभी अपने अपने ठहरे स्थानों में लौट आये। अचानक रात्री 10-11 बजे बुलावा आया की तुरंत ढांचे पर पहुँचे.... कोटा के जत्थे कई - कई जगह ठहरे हुए थे । उस जत्थे में करीब - करीब 40 - 50 कारसेवक थे..... सभी ढांचे पर पहुँचे वहाँ अस्थाई रामलला का मंदिर बनाने का काम चल रहा था, बल्लीयां गाड़ी जा रहीं थीं ओर कपड़े से वहाँ अस्थाई मंदिर बनाया जा रहा था, उस कार्य में हमें भी लगा दिया गया। सुबह होते - होते अस्थाई मंदिर में रामलला की आरती हुईं। यह इसलिए जरूरी था की क़ानूनी जरूरतों से मंदिर का वहां होना आवश्यक था। अन्यथा आगे दिग्गत रा जाती। रामलला उस अस्थाई मंदिर में लगभग 27 वर्ष से अधिक रहे, उसको बनानें में भी कोटा के कारसेवकों का योगदान था।

आज जब मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो रही हे , कार सेवकों के नाते हमारा भी सम्मान हो रहा है , यह सब हमें भी अच्छा लग रहा है और हमसे ज्यादा हमारे परिवार जन गौरवान्वित अनुभव कर रहे है ।

भवदीय 
अरविन्द सिसोदिया 
9414180151

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