कांग्रेस के पैर की जूती बनाने वाला गठबंधन आखिर बिखरना ही है - अरविन्द सिसोदिया


कांग्रेस के पैर की जूती बनाने वाला गठबंधन आखिर बिखरना ही है - अरविन्द सिसोदिया

जब विपक्ष का गठबंधन बन रहा था तब ही बहुत से विपरीत लक्ष्य और आकांक्षायें थीं । जैसे पलटूराम नितिश कुमार का गठबंधन का नेता बनने की इच्छा थी, ममता और केजरीवाल अपने आप को गठबंधन का स्वयंभू नेता मानते थे। सबसे बडी बात बैठ कर भी कांग्रेस ने कभी अपने पत्ते नहीं खोले और वह गठबंधन की स्वयंभू नेता बनी रही , अभी भी कांग्रेस ही गठबंधन की नेता है। उसने जो व्यवहार अभी तक प्रदर्शित किया उससे तो अन्य दलों को कांग्रेस ने देसी भाषा में पैर की जूती मात्र माना है। में क्षमा चाहता हूं इस शब्द के लिए लेकिन यही सच है।

इस तथकथित गठबंधन में सब एकत्र मात्र इसलिए होते रहे कि इसका इस्तेमाल कर अपनी ताकत बडा लेंगे या अपनी हॉनी रोक लेंगे। मगर गठबंधन का नाम रखने से लेकर पत्रकारवार्ताओं तक में मात्र कांग्रेस राजकुमार राहुल गांधी ही नेता बने रहे , उन्होनें किसी भी अन्य को कोई महत्व नहीं दिया । यहां तक... न ही सीटों का बंटवारा किया और न ही कॉमन मिनीमम एजेण्डा सेट किया । कुल मिला कर हर मामले को टाल कर अपनी ही अपनी करते हुए कांग्रेस नें राहुल गांधी के नेतृत्व में दूसरी यात्रा भी प्रारम्भ करदी । गठबंधन के अन्य सदस्य सिर्फ तमाशबीन बन कर रह गये।

पिछले कुछ दिनों में ममता नें बंगाल को लेकर, आप पार्टी नें पंजाब को लेकर और महाराष्ट्र में शरद पंवार व उद्धव ठाकरे नें मिल कर लगभग अपनी स्वतंत्र राय रखदी है, जो गठबंधन के टूट नहीं तो दरार का संकेत तो हैं ही । इस समय देश में केन्द्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत मजबूत हैं, उन्हे नीतियों और कमियों के आाधार पर विपक्ष घेर नहीं पाया क्यों कि कांग्रेस की नीतियों मात्र हुडदंग और छीछोरेपन तक सीमित है। वह की एक अदृष्य सलाहकार के इशारे पर चलती नजर आ रही है। जो भिन्न भिन्न समय परे विदेशी टूलकिट एजेण्डे के माध्यम से प्रगट होता रहता है। 

राहुल गांधी को समझना इसलिए भी मुश्किल हो रहा है कि उन्हे ही पता नहीं होता कि उन्हे कोचिंग देनें वाला अगला काम क्या देनें वाला है। इसलिए पहेलीनुमा राहुल के चुंगल से बाहर निकलनें की जुगत लगभग जनाधार वाले सभी दल सोच रहे है। इसलिए यह गठबंधन कोई ठोस परिणाम देता नहीं दिख रहा है। बल्कि इसमें अर्न्तद्वंद ही अधिक महसूस हो रहे है। जिसमें जयराम रमेश हों तो बदतमीजी और बड जाती है, उनका व्यवहार ही कुछ इस तरह का है।

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