भारत को असली स्वतंत्रता मोदीजी की सरकार नें दी - अरविन्द सिसोदिया

2014 में जब भाजपा नें अपने बलबूते प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहूमत प्राप्त किया था , तब ब्रिटेन के सण्डे गार्जियन अखबार नें अपने सम्पादकीय में लिखा था कि वास्तविक तौर ब्रिटेन पर नें अब भारत छोड दिया है। उसनें लिखा था कि ...कांग्रेस पार्टी के अधीन भारत कई मायनों में अन्य तरीकों से ब्रिटिश राज की निरंतरता था।....अर्थात इसाई - इस्लामिक गठजोड की जो प्रभुसत्ता कांग्रेस के रूप में भारत पर अपरोक्ष शासन कर रही थी की समाप्ती 2014 में भाजपा का पूर्ण बहूमत में आना था। तब से ही इस गठजोड के टूलकिट भारत में आंतरिक व्यवधान उत्पन्न करनें में लगे हुए है। जिसे हम सभी को समझना और विफल करना होगा .....!

भारत का सांस्कृतिक उत्थान हो रहा है,
कांग्रेस हमेशा हिन्दू विरोधी रही...
उसे जनता सजा भी दे रही है
अब कांग्रेस को हिन्दू वोट मिलना कम होता जा रहा है,
जो आगे और भी कम हो जायेगी।
भारत में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 हुआ, तब भारत पर ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी का साम्राज्य हुआ करता था। जो कि ब्रिटिश सरकार की ओर से भारत पर अपना साम्राज्य बनाए हुए थी और भारत के राजवाडों के विरुद्ध मनमाने नियम बना कर, ब्रिटिश राज्य क्षेत्र में मिला रही थी। 

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को भारत के हिंदू और मुसलमान रजवाडों ने मिलकर के लड़ा था। यह संग्राम सफल भले ही नहीं हुआ, किंतु इस स्वतंत्रता संग्राम ने भारत के आजाद होने की इच्छा शक्ति को पुनः प्रकट कर दिया था और इससे ब्रिटिश साम्राज्य सचेत भी हो गईं थी ।

सबसे पहले ब्रिटिश सरकार ने भारत की सत्ता, ईस्ट इंडिया कंपनी से अपने हाथ में लेली और सीधे ब्रिटिश गवर्नमेंट भारत पर राज्य करनें लगी और ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत शासन सचिव बना दिया। वहीं भविष्य में इस तरह का विद्रोह भारत में नहीं हो पाए इसके लिए उन्होंने अपने विभिन्न राजनायिक और अधिकारियों को उपाय खोजने व नई रणनीति बनाने में लगा दिया।
तब ब्रिटिश गवर्नमेंट की जो नई नीतियां सामने आई उसमें जो परिलक्षित हो रहा था, वह इस प्रकार से है -

1- 1857 के बाद से ब्रिटिश सरकार की नई नीती में, हिंदू और मुसलमान को अलग - अलग किया जाए, आपस में लड़ाया जाए, भविष्य में उन्हें कभी एक न होने दिया जाए। 

2- भारत में अधिक से अधिक संख्या में राजभक्त अर्थात ब्रिटिश सरकार से वफादारी का भाव रखने वाले, हिंदू और मुस्लिम संगठनों का निर्माण किया जाए। उनसे अधिकतम लोगों को जोड़ कर ब्रिटिश गुलाम बनाया जाये। अर्थात ब्रिटिश राजभक्त तैयार किए जाएँ।

3- हिंदू और मुसलमान को आपस में हमेशा लड़ा के रखा जाए और वक्त जरूर मुसलमान का सहयोग करके उसे हिंदू से बड़ा दिखाई जाए। अंग्रेज और मुसलमान आपस में भाई-भाई है, क्योंकि दोनों भारत पर विदेशी हमलावर है। इसी आधार पर अंग्रेज और मुसलमानों में व्यापक एकता बनाई जावे। इसलिए मुसलमान के साथ अंग्रेजों की अनन्य मित्रता अनन्य एकता स्थापित की जाए। अर्थात भारत में तुष्टिकरण की राज व्यवस्था ब्रिटिश सरकार की देन है।

4- ब्रिटिश सरकार के द्वारा ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अंग्रेज अफसर ए ओ ह्युम के द्वारा करवाई गई, वही ब्रिटिश गवर्नमेंट के सर्वेसर्वाओं द्वारा ही मुस्लिम लीग की स्थापना करवाई। दोनों संगठनों का लक्ष्य था कि वे ब्रिटिश सरकार के सहयोग के लिए राजभक्त नागरिकों को तैयार करने के कार्य में, आयोजन, बैठकें, प्रचार - प्रसार एवं सहयोग में जुट जायेंगे । इसीक्रम में कांग्रेस व मुस्लिम लीग अस्तित्व में आईं और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी स्थापित हुआ। 

5- कांग्रेस आज भी उसी ब्रिटिश तुष्टिकरण की नीती पर चल कर भारत में रहते हुए भारत का तुष्टिकरण के माध्यम से बुरा कर रही है। जो उसके कृत्यओं, निर्णयों और विरोध प्रगटीकरण से समय - समय पर प्रगट होता रहा है।

6- याद रखिये कि भारत के विभाजन पर कांग्रेस कार्यालय में बैठक कर विभाजन का समर्थन किया गया था, सहमति दी गईं थी। अर्थात कांग्रेस वही कर रही थी जो अपरोक्ष रूप से ब्रिटिश एजेंट करता। अपरोक्ष रूप से ब्रिटिश सरकार के भारत शासन अधिनियम को ही संविधान का स्वरूप प्रदान किया गया, अर्थात लगभग 75 प्रतिशत अनुच्छेद संविधान में ब्रिटिश कानून से ही लिए गये हैँ, शेष भी विदेशी संविधानों से... अर्थात भारतीय आवश्यकता और भारतीय मौलिकता का उतना समावेश नहीं है जितनी जरूरत थी या है।

7- भारत के सनातन हिन्दुओं के प्रति विश्वस्तरीय इस्लामिक और ईसाई धर्मगुरुओं का अनुभव बहुत बुरा था, क्योंकि भारत को इस्लाम के तमाम हिंसक अत्याचारों के बाद भी 100 प्रतिशत इस्लाम में कन्वर्ट नहीं कर सके। वहीं ईसाई मिशनरियों नें तमाम प्रलोभन और छल, कपट और झूठ फैला कर भी हिन्दुओं को 100 प्रतिशत ईसाई नहीं बना पाये, जबकि इन्होंने दुनिया के अन्य क्षेत्रों में 100 प्रतिशत धर्मान्तरण बहुत आसानी से करवा लिया। अर्थात यह हिंदुत्व की अपने धर्म की बहुत बड़ी जीत ही थी कि वह संघर्ष और बलिदान से लगातार धर्मान्तरण के वीभत्स प्रयासों को पराजित करता रहा। इसी कारण आज भी हम सनातन हिन्दू हैँ।

8- यह देखने में भले ही लगता हो कि भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो गया और उस पर भारत की लोकतांत्रिक पद्धति से नियम, उप नियम और शासन चल रहा हैं। पर सच यही है कि भारत पर ब्रिटिश कूटनीति राज कर रही थी। वही लगातार काम कर रही थी, कांग्रेस के रूप में भारत पर ब्रिटिश सत्ता और ब्रिटिश नीतियां ही लगातार काम करती रही हैँ। 2014 में लंदन के अखबार नें यह अपने आर्टिकल में लिखा भी कि वास्तव में अब ( 2014 आम चुनाव ) भारत आजाद हुआ है।

9- 2014 की सरकार जिसे नरेन्द्र मोदी सरकार कहते हैं, भाजपा सरकार भी कह सकते हैं,यह अपने आप में पहली सरकार है जिसने भारत को ब्रिटिश प्रभु सत्ता के दृष्टिकोण और नीतियों से भारत को पूरी तरह मुक्त किया अर्थात भारत वास्तविकता में 2014 में सांस्कृतिक स्वतंत्रता को प्राप्त हुआ।

10- 2014 में जब भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार को देश की जनता नें चुना और उनके नेतृत्व में देश नें आगे बढ़ना प्रारंभ किया, तो सबसे पहले उन नीतियों को समाप्त किया जो देश को कमजोर कर रहीं थीं। मोदीजी के निर्णयों से देश सभी मोर्चाँ पर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में चल पढ़ा और फिर लगातार अपने कर्तव्यों को वह पूरा कर रही है। इस दौरान हिंदुत्व को अपना आत्मसम्मान पुनः प्राप्त हो रही है।
- मोदीजी की सरकार नें धारा 370 रद्द कर देश को ऐतिहासिक पूर्ण एकत्व दिया।



- 500 से अधिक वर्ष पूर्व बाबर नें सनातन हिंदुत्व को समाप्त करने की दृष्टि से श्रीरामजन्म भूमि मंदिर को ध्वस्त कर अपमानित किया था। मोदीजी की सरकार नें इस संदर्भ की सभी बाधाओं को दूर कर, भव्य और दिव्य नवीन मंदिर का निर्माण पूरा करवाया।

इसके अलावा बहुत सारी उपलब्धियां मोदीजी सरकार की हैँ जो भारत को विश्व का महान देश बनाता है सम्मान दिलाता है।
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द संडे गार्जियन  ( 18 May 2014)

This article is more than 9 years old
India: another tryst with destiny
This article is more than 9 years oldEditorial ( 18 May 2014)
It should be obvious that underlying changes in Indian society have brought us Mr Modi and not the other way round
Sun 18 May 2014 

भारत: नियति के साथ एक और मुलाकात
यह लेख 9 वर्ष से अधिक पुराना है संपादकीय (18 मई 2014)
यह स्पष्ट होना चाहिए कि भारतीय समाज में अंतर्निहित परिवर्तन हमें श्री मोदी द्वारा लाए हैं, न कि इसके विपरीत
रविवार 18 मई 2014

Today, 18 May 2014, may well go down in history as the day when Britain finally left India. Narendra Modi's victory in the elections marks the end of a long era in which the structures of power did not differ greatly from those through which Britain ruled the subcontinent. India under the Congress party was in many ways a continuation of the British Raj by other means. The last of midnight's children are now a dwindling handful of almost 70-year-olds, but it is not the passing of the independence generation that makes the difference.
आज, 18 मई 2014, इतिहास में उस दिन के रूप में दर्ज किया जा सकता है जब ब्रिटेन ने अंततः भारत छोड़ दिया था। चुनावों में नरेंद्र मोदी की जीत एक लंबे युग के अंत का प्रतीक है जिसमें सत्ता की संरचनाएं उन संरचनाओं से बहुत भिन्न नहीं थीं जिनके माध्यम से ब्रिटेन ने उपमहाद्वीप पर शासन किया था। कांग्रेस पार्टी के अधीन भारत कई मायनों में अन्य तरीकों से ब्रिटिश राज की निरंतरता था। आधी रात के आखिरी बच्चे अब लगभग 70 साल के बुज़ुर्गों में से मुट्ठी भर रह गए हैं, लेकिन आज़ादी की पीढ़ी के गुज़रने से फर्क नहीं पड़ता है।

The India those men and women lived in was one that, like its predecessor, was centralised, garrisoned, culturally constricted, and ruled by a relatively small English-speaking elite whose attitude toward the masses was alternately benevolent and exploitative but never inclusive. Universal suffrage gave Indians a vote but not, at least for much of the time, a voice. When that voice was occasionally heard, as it was in 1977 in the elections that followed the disastrously unpopular Emergency declared by prime minister Indira Gandhi, there could be a sudden sense of its almost volcanic capacity to remake the political landscape, but such moments were rare.
जिस भारत में वे पुरुष और महिलाएँ रहते थे, वह अपने पूर्ववर्ती की तरह, केंद्रीकृत, छावनीबद्ध, सांस्कृतिक रूप से संकुचित था और अपेक्षाकृत छोटे अंग्रेजी-भाषी अभिजात वर्ग द्वारा शासित था, जिसका जनता के प्रति रवैया उदार और शोषक था, लेकिन कभी भी समावेशी नहीं था। सार्वभौमिक मताधिकार ने भारतीयों को वोट तो दिया लेकिन, कम से कम अधिकांश समय के लिए, आवाज नहीं दी। जब वह आवाज़ कभी-कभार सुनाई देती थी, जैसा कि 1977 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित विनाशकारी अलोकप्रिय आपातकाल के बाद हुए चुनावों में हुआ था, तो राजनीतिक परिदृश्य को फिर से बनाने की इसकी लगभग ज्वालामुखी क्षमता का अचानक एहसास हो सकता था, लेकिन ऐसे क्षण दुर्लभ थे .
Now that voice has been heard again. It has endorsed a new kind of leader in the shape of Mr Modi. He is from the lower castes. He is not a natural English speaker. He has no truck with the secular and socialist traditions that shaped Congress. But, more important, that voice has announced a new kind of India. In the old India the poor were there to be helped, when the elite remembered to do so or when they needed to seek or, in effect, to buy votes. The middling classes were taken for granted and sometimes snubbed. The new India, most observers agree, is not interested in handouts, and refuses to be snubbed.
अब वह आवाज फिर से सुनाई दी है. इसने श्री मोदी के रूप में एक नए प्रकार के नेता का समर्थन किया है। वह निचली जाति से हैं. वह स्वाभाविक अंग्रेजी बोलने वाला नहीं है। उनका कांग्रेस को आकार देने वाली धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उस आवाज़ ने एक नए तरह के भारत की घोषणा की है। पुराने भारत में गरीबों की मदद की जाती थी, जब अभिजात वर्ग को ऐसा करने की याद आती थी या जब उन्हें वोट मांगने या वास्तव में वोट खरीदने की ज़रूरत होती थी। मध्यम कक्षाओं को हल्के में लिया जाता था और कभी-कभी तिरस्कृत किया जाता था। अधिकांश पर्यवेक्षक इस बात से सहमत हैं कि नए भारत को हैंडआउट्स में कोई दिलचस्पी नहीं है और वह तिरस्कृत होने से इनकार करता है।

Instead it wants the obstacles it sees as impeding its aspirations swept away. It has discarded the deference it displayed toward the Gandhi family and toward the Anglicised or, these days, Americanised top levels of society. Whether in its older and purer socialist guise or in its later embrace of the market, Congress has lost its magic, even though the party includes some profoundly decent and well-intentioned people. The core constituency of the Bharatiya Janata party, meanwhile, never shared the non-sectarian values that Congress imperfectly upheld and wants an India where its version of Hinduism has unchallenged primacy.
इसके बजाय वह चाहता है कि उसकी आकांक्षाओं में बाधा बनने वाली बाधाएं दूर हो जाएं। इसने गांधी परिवार और अंग्रेजीकृत या, आजकल, अमेरिकीकृत समाज के शीर्ष स्तरों के प्रति प्रदर्शित सम्मान को त्याग दिया है। चाहे अपने पुराने और शुद्ध समाजवादी स्वरूप में या बाद में बाजार को अपनाने में, कांग्रेस ने अपना जादू खो दिया है, भले ही पार्टी में कुछ बेहद सभ्य और नेक इरादे वाले लोग शामिल हों। इस बीच, भारतीय जनता पार्टी के मुख्य निर्वाचन क्षेत्र ने कभी भी उन गैर-सांप्रदायिक मूल्यों को साझा नहीं किया, जिन्हें कांग्रेस ने अपूर्ण रूप से बरकरार रखा था और वह एक ऐसा भारत चाहती है, जहां उसके हिंदू धर्म के संस्करण को निर्विवाद प्रधानता मिले।

It should be obvious that these underlying changes in Indian society have brought us Mr Modi and not the other way round. He sensed a great shift in mood and played to it. Nevertheless it matters enormously what kind of man he is. The answer is that we really do not know. It is not only that the question of what role he played in the Gujarat massacres of 2002 remains unresolved. Nor that his personality is rather closed, reserved, even secretive. It is more that the balance in his character between pragmatism and the extremist ideology with which he has been associated since he was a young man is not clear. Pragmatism would lead him to avoid sharp confrontation with Indian Muslims, perhaps offsetting any trouble at home by a peace-seeking diplomacy with Pakistan. It would temper any savage cuts in the subsidy programmes vital to many Indians on the breadline. It would put a measurable distance between the party and the Rashtriya Swayamsevak Sangh movement. And pragmatism would lead to caution in a man who has never held national office before. He has an unexpectedly large mandate, but India is not Gujarat. It is a very big ship to steer, and he will need all the help he can get.
यह स्पष्ट होना चाहिए कि भारतीय समाज में इन अंतर्निहित परिवर्तनों ने हमें श्री मोदी को लाया है, न कि इसके विपरीत। उन्होंने मूड में एक बड़े बदलाव को महसूस किया और उसके अनुसार खेला। फिर भी यह बहुत मायने रखता है कि वह किस तरह का आदमी है। इसका उत्तर यह है कि हम वास्तव में नहीं जानते। बात सिर्फ इतनी ही नहीं है कि 2002 के गुजरात नरसंहार में उनकी क्या भूमिका थी, यह सवाल भी अनसुलझा है। न ही यह कि उनका व्यक्तित्व बंद, आरक्षित, यहाँ तक कि गुप्त है। इससे भी बड़ी बात यह है कि उनके चरित्र में व्यावहारिकता और चरमपंथी विचारधारा के बीच संतुलन स्पष्ट नहीं है, जिसके साथ वह युवावस्था से ही जुड़े रहे हैं। व्यावहारिकता उन्हें भारतीय मुसलमानों के साथ तीखे टकराव से बचने के लिए प्रेरित करेगी, शायद पाकिस्तान के साथ शांति चाहने वाली कूटनीति से घरेलू स्तर पर किसी भी परेशानी को दूर किया जा सके। यह कई भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण सब्सिडी कार्यक्रमों में भारी कटौती को कम करेगा। यह पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आंदोलन के बीच एक मापनीय दूरी बनाएगा। और व्यावहारिकता उस व्यक्ति में सावधानी बरतेगी जिसने पहले कभी राष्ट्रीय पद नहीं संभाला है। उनके पास अप्रत्याशित रूप से बड़ा जनादेश है, लेकिन भारत गुजरात नहीं है। इसे चलाने के लिए यह एक बहुत बड़ा जहाज़ है और उसे हरसंभव सहायता की आवश्यकता होगी।

He knows that the aspirations that have swept him to power must be satisfied in part – they could never be satisfied in full – if his new beginning is not to flounder in a morass of disappointment and recrimination from which the temptation might be to take a extreme nationalist way out. Whatever else he is or is not, Mr Modi is a gifted politician. We must hope that he understands that his new India will sooner or later hold him to account.
वह जानता है कि जिन आकांक्षाओं ने उसे सत्ता तक पहुँचाया है, उन्हें आंशिक रूप से संतुष्ट किया जाना चाहिए - वे कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो सकते हैं - यदि उसकी नई शुरुआत निराशा और आरोप-प्रत्यारोप के दलदल में फँसने वाली न हो, जहाँ से प्रलोभन चरम पर पहुँच सकता है राष्ट्रवादी रास्ता. और कुछ भी हों या न हों, श्री मोदी एक प्रतिभाशाली राजनीतिज्ञ हैं। हमें आशा करनी चाहिए कि वह समझते हैं कि उनका नया भारत देर-सबेर उन्हें जवाबदेह ठहराएगा।
 This article was amended on 19 May 2014 because an earlier version gave a date of 18 March 2014 when it should have said 18 May 2014.
इस लेख को 19 मई 2014 को संशोधित किया गया था क्योंकि पुराने संस्करण में 18 मार्च 2014 की तारीख दी गई थी जबकि इसे 18 मई 2014 कहा जाना चाहिए था।

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