कविता - भ्रष्टाचार की गंगा ऊपर से नीचे आती है
भ्रष्टाचार की गंगा
भ्रष्टाचार की गंगा ऊपर से नीचे आती है,
मैदानों में महानद बन,खेतों तक फैल जाती है!
सेवा शुल्क, सुविधा शुल्क भी नाम है इसका,
हर उल्टे काम की सीधी चाबी, यह कहलाती है।
भ्रष्टाचार की गंगा ऊपर से नीचे आती है!!
===1===
सेवा के नाम पर सौदा, सुविधा का व्यापार है,
फ़ाइल–फ़ाइल घूम रहा बस, रिश्वत अब अधिकार है।
हर उल्टे काम की चाबी, यही सीधा हथियार है,
न्याय भी आँखें मूँद लेता, बस पैसा असरदार है।
===2===
मैदानों में महानद बन, खेतों तक फैल जाती है,
मेहनत की हरियाली पर, लूट की रेत बिछाती है।
गरीब की सूनी थाली से, पहला निवाला जाती है,
दलाल की तिजोरी में, चुपचाप जगह बनाती है।
===3===
आओ अब भ्रष्टाचार से लड़ें,
ऊपर से नीचे तक सच की मशाल बनें ,
हर दरवाजे पर ईमान की पहरेदारी हो,
जो इस पाप को रोके, उसकी भागेदारी हो।
=== समाप्त ===
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें