कविता - कारसेवक kar sevk
कविता - कारसेवक
केसरिया बाना पहन कर निकले थे कारसेवक,
परिजन की आँखों में आंसू छोड़ कर,
लक्ष्य की और बढ़ गये थे कारसेवक,
कार्यपूर्ण करेंगे केशव ! माधव की सौगंध उठाई थी।
गुलामी के प्रतीक को,ध्वस्त कर, आजादी प्रगटाई थी।
रामजन्मभूमि की मुक्ती के साथ ही,
असली स्वतंत्रता की धर्म ध्वजा लहराई थी।
केसरिया बाना पहन कर निकले थे कारसेवक,
परिजन की आँखों में आंसू छोड़ कर,
लक्ष्य की और बढ़ गये थे कारसेवक,
कार्यपूर्ण करेंगे केशव ! माधव की सौगंध उठाई थी।
===1===
पता था लहू से सरयू लाल हुई थी, छातियों नें गोली खाई थी।
आहुतियों की गाथा लेकर, बलिदानी पथ कर चुन आए थे,
धर्म-धरा के अपमान की पुकार थी, दृढ़ संकल्प की ऊर्जा भाई थी।
हर बाधा पर सिंहनाद कर, आगे ही बढ़ते जाना था,
अन्याय के अत्याचार को, बलिदानी शौर्य से हटाना था।
केसरिया बाना पहन कर निकले थे कारसेवक,
परिजन की आँखों में आंसू छोड़ कर,
लक्ष्य की और बढ़ गये थे कारसेवक,
कार्यपूर्ण करेंगे केशव ! माधव की सौगंध उठाई थी।
===2===
संगठन शक्ति की लहरों से, परिवर्तन का जनउफान था ,
राष्ट्र मन के उद्गारों से, इतिहास नया बनाना था ।
एक-एक कण में त्याग, तपस्या और बलिदानी गूँज सुनाई थी,
अयोध्या की पुकार थी, सौगंध भरतवंश ने खाई थी।
केसरिया बाना पहन कर निकले थे कारसेवक,
परिजन की आँखों में आंसू छोड़ कर,
लक्ष्य की और बढ़ गये थे कारसेवक,
कार्यपूर्ण करेंगे केशव ! माधव की सौगंध उठाई थी।
===3===
अब कर्तव्य पथ पर अडिग रह कर नवयुग का निर्माण करें,
माँ भारती के चरणों में सतत स्वाभिमान का प्रणाम करें।
शौर्य,शांति, सेवा, समर्पण को, युगों युगों से पाया है।
उज्ज्वल भविष्य की राहों में,
पुरषार्थ के विश्वास का ओज जगाया है ।
जय श्रीराम के मंत्र से, हर भय को दूर भगाया है।
केसरिया बाना पहन कर निकले थे कारसेवक,
परिजन की आँखों में आंसू छोड़ कर,
लक्ष्य की और बढ़ गये थे कारसेवक,
कार्यपूर्ण करेंगे केशव ! माधव की सौगंध उठाई थी।
=== समाप्त ===
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें