सनातन धर्म के प्रतीक चिन्ह sanatan
सनातन धर्म के प्रतीक चिन्ह
सनातन धर्म, जिसे विश्व की सबसे प्राचीन जीवन पद्धति माना जाता है, केवल विश्वासों का समूह नहीं बल्कि प्रतीकों और विज्ञान का एक गहरा समन्वय है। यहाँ 'प्रतीक' का अर्थ केवल एक चित्र नहीं, बल्कि 'ब्रह्म' को समझने का एक माध्यम है। उपनिषदों के अनुसार, "चिह्नं विना न पूज्यते" अर्थात् बिना प्रतीक के ध्यान या पूजा संभव नहीं है, क्योंकि निराकार ईश्वर को समझने के लिए मन को किसी आधार की आवश्यकता होती है।
1. ॐ (ओम्): ब्रह्मांड का अनाहत नाद
'ॐ' केवल एक शब्द नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड की प्रतिध्वनि है। इसे 'अक्षर ब्रह्म' कहा जाता है। मांडुक्य उपनिषद में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है।
आध्यात्मिक व्याख्या: 'ॐ' तीन ध्वनियों से बना है— अ, उ, और म। 'अ' सृष्टि (ब्रह्मा) का, 'उ' स्थिति (विष्णु) का, और 'म' लय या संहार (महेश) का प्रतीक है। इसके ऊपर स्थित चंद्र-बिंदु 'तुरीय' अवस्था को दर्शाता है, जो जन्म और मृत्यु के चक्र से परे मोक्ष की स्थिति है।
वैज्ञानिक आधार: आधुनिक विज्ञान (Quantum Physics) भी मानता है कि ब्रह्मांड में हर वस्तु कंपन (vibration) कर रही है। जब हम 'ॐ' का उच्चारण करते हैं, तो उससे उत्पन्न होने वाली आवृत्ति (7.83 हर्ट्ज़) हमारे तंत्रिका तंत्र को शांत करती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करती है।
2. स्वस्तिक: मंगल और गतिशीलता का प्रतीक
'स्वस्तिक' शब्द 'सु' (शुभ) और 'अस्ति' (होना) से मिलकर बना है। यह ऋग्वेद के 'स्वस्ति वाचन' का दृश्य रूप है।
आध्यात्मिक व्याख्या: इसकी चार भुजाएं चार दिशाओं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम), चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) और जीवन के चार लक्ष्यों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) को दर्शाती हैं। मध्य का केंद्र बिंदु स्थिर ईश्वर है, जबकि भुजाएं निरंतर परिवर्तनशील संसार को दर्शाती हैं।
दार्शनिक अर्थ: यह दर्शाता है कि समय चक्र की तरह घूम रहा है, और इस परिवर्तनशील संसार के केंद्र में ईश्वर ही सत्य है। यह सूर्य की किरणों और ऊर्जा के प्रसार का भी प्रतीक है।
3. तिलक और त्रिपुंड: आत्म-साक्षात्कार की सीढ़ी
सनातन संस्कृति में माथे पर तिलक लगाना सम्मान और आध्यात्मिक जागृति का सूचक है।
तिलक (Urdhva Pundra): वैष्णव संप्रदाय में खड़ा तिलक लगाया जाता है, जो भगवान विष्णु के चरण कमलों का प्रतीक है। यह ऊपर की ओर बढ़ने वाली चेतना को दर्शाता है।
त्रिपुंड (Tripundra): शैव संप्रदाय में तीन क्षैतिज रेखाएं लगाई जाती हैं। ये तीन रेखाएं मनुष्य के तीन दोषों—अहंकार, मोह और माया—को भस्म करने का संदेश देती हैं।
वैज्ञानिक महत्व: माथे के मध्य में 'पीनियल ग्रंथि' (Pineal Gland) और 'आज्ञा चक्र' होता है। तिलक लगाने से इस स्थान पर दबाव पड़ता है, जिससे एकाग्रता बढ़ती है और शरीर में शीतलता बनी रहती है।
4. कमल: निर्लिप्तता का महान आदर्श
कमल सनातन धर्म का सबसे सुंदर प्रतीक है, जो कीचड़ में जन्म लेकर भी आकाश की ओर मुख किए रहता है।
आध्यात्मिक व्याख्या: यह 'वैराग्य' और 'अनासक्ति' का प्रतीक है। जिस प्रकार कमल के पत्ते पर पानी की बूंद ठहरती नहीं, उसी प्रकार मनुष्य को संसार में रहते हुए भी सांसारिक बुराइयों से अछूता रहना चाहिए।
देवताओं का आसन: ब्रह्मा (सृजन), लक्ष्मी (समृद्धि) और सरस्वती (ज्ञान) का कमल पर विराजमान होना यह दर्शाता है कि सृजन, धन और ज्ञान केवल उसी को प्राप्त होता है जो मन से शुद्ध और निर्लिप्त हो।
5. त्रिशूल: त्रिगुणों का संतुलन
भगवान शिव का त्रिशूल सृष्टि के तीन मूल सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करता है।
आध्यात्मिक व्याख्या: जीवन तीन गुणों से बंधा है— सत्व (पवित्रता), रज (क्रियाशीलता) और तम (अंधकार/आलस्य)। त्रिशूल इन तीनों को नियंत्रित करने का प्रतीक है। इसके अलावा, यह ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों के मिलन का भी संकेत है।
संदेश: शिव का त्रिशूल धारण करना यह बताता है कि जब तक व्यक्ति अपने इन तीनों गुणों और मानसिक विकारों पर विजय नहीं पाता, तब तक वह परमानंद को प्राप्त नहीं कर सकता।
6. कलश: ब्रह्मांड का लघु स्वरूप
यज्ञ और पूजा में कलश की स्थापना अनिवार्य है। इसे 'पूर्ण कुंभ' भी कहा जाता है।
आध्यात्मिक व्याख्या: कलश का मुख विष्णु, कंठ शिव और मूल ब्रह्मा का प्रतीक है। कलश के मध्य में स्थित जल 'अमृत' और ज्ञान की शुद्धता का प्रतीक है। नारियल को 'श्रीफल' कहा जाता है, जो मनुष्य के सिर (अहंकार) का प्रतीक है। नारियल चढ़ाने का अर्थ है अपना अहंकार ईश्वर को समर्पित करना।
7. श्री यंत्र: ब्रह्मांडीय ज्यामिति
श्री यंत्र को 'यंत्रराज' कहा जाता है। यह देवी ललिता त्रिपुरा सुंदरी का निवास स्थान माना जाता है।
संरचनात्मक व्याख्या: इसमें 9 अंतर्ग्रथित (interlocking) त्रिभुज होते हैं। 5 नीचे की ओर मुख किए हुए त्रिभुज 'शक्ति' (प्रकृति) को दर्शाते हैं और 4 ऊपर की ओर मुख किए हुए त्रिभुज 'शिव' (पुरुष) को। इनका मिलन सृष्टि के सृजन का प्रतीक है।
ध्यान का महत्व: श्री यंत्र पर ध्यान केंद्रित करने से मस्तिष्क के दाएं और बाएं दोनों हिस्से सक्रिय होते हैं, जिससे व्यक्ति की रचनात्मकता और तार्किक क्षमता बढ़ती है।
8. नंदी: धर्म, धैर्य और प्रतीक्षा
शिव मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले नंदी के दर्शन होते हैं।
आध्यात्मिक व्याख्या: नंदी 'धर्म' और 'आनंद' का प्रतीक है। उसका एक पैर उठा होना निरंतर कर्मशीलता को दर्शाता है। नंदी की एकाग्र दृष्टि शिव पर टिकी होती है, जो भक्त को यह सिखाती है कि मोक्ष के लिए लक्ष्य (ईश्वर) के प्रति निरंतर समर्पण और धैर्य आवश्यक है।
9. शंख: विजय और सकारात्मक ऊर्जा
समुद्र मंथन से उत्पन्न 14 रत्नों में से एक शंख, भगवान विष्णु का प्रिय वाद्य है।
आध्यात्मिक व्याख्या: शंख की ध्वनि 'अविद्या' (अज्ञान) के नाश और 'धर्म' की विजय का उद्घोष है। इसे 'नाद ब्रह्म' का प्रतीक माना जाता है।
वैज्ञानिक आधार: शंख बजाने से फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है। इसकी ध्वनि तरंगों में हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने की क्षमता होती है, जिससे वातावरण शुद्ध होता है।
10. सुदर्शन चक्र: काल और व्यवस्था
विष्णु का सुदर्शन चक्र 'सु' (शुभ) और 'दर्शन' (दृष्टि) से बना है।
व्याख्या: चक्र का अर्थ है 'गति'। यह समय (काल चक्र) का प्रतीक है जो कभी नहीं रुकता। यह अधर्मियों के नाश और ब्रह्मांडीय व्यवस्था (Order) को बनाए रखने का प्रतीक है। इसकी 108 तीलियाँ ब्रह्मांड के विभिन्न आयामों को दर्शाती हैं।
11. दीपक: अज्ञान के अंधकार का अंत
"तमसो मा ज्योतिर्गमय" सनातन धर्म का मूल मंत्र है, जिसका भौतिक रूप 'दीपक' है।
आध्यात्मिक व्याख्या: दीपक की लौ हमेशा ऊपर की ओर उठती है, जो मनुष्य की आत्मा की उच्च गति का प्रतीक है। तेल/घी मनुष्य के 'संस्कार' और 'वासना' हैं, जबकि लौ 'ज्ञान' है। जैसे दीपक अंधकार मिटाता है, वैसे ही ज्ञान अज्ञान के अंधेरे को मिटाता है।
12. गौ माता (गाय): करुणा और संपूर्ण देवत्व
सनातन धर्म में गाय केवल पशु नहीं, बल्कि पूजनीय माता है।
आध्यात्मिक व्याख्या: माना जाता है कि गाय के शरीर में 33 कोटि (प्रकार) के देवी-देवताओं का वास है। यह पृथ्वी, परोपकार और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है। पंचगव्य (दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र) का आयुर्वेद और पूजा में अत्यधिक महत्व है।
13. रुद्राक्ष: शिव की करुणा का अंश
रुद्राक्ष का शाब्दिक अर्थ है 'रुद्र की आंख' या 'अश्रु'।
आध्यात्मिक व्याख्या: पौराणिक कथा के अनुसार, जब शिव ने कल्याण की भावना से आंखें खोलीं, तो उनके आंसू गिरे जिनसे रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। यह सुरक्षा, मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति का भंडार माना जाता है।
वैज्ञानिक तथ्य: रुद्राक्ष में विद्युत-चुंबकीय (Electro-magnetic) गुण होते हैं, जो मानव शरीर के रक्त परिसंचरण और हृदय की गति को संतुलित रखते हैं।
14. ध्वज (केसरिया झंडा): त्याग और विजय
मंदिरों के शिखर पर फहराता ध्वज धर्म की रक्षा का प्रतीक है।
व्याख्या: केसरिया रंग अग्नि की लपटों का रंग है। यह आत्म-बलिदान, वैराग्य और पवित्रता का प्रतीक है। ध्वज का हवा में लहराना यह संदेश देता है कि सत्य और धर्म की पताका हमेशा सर्वोच्च रहनी चाहिए।
15. नमस्ते: आत्मा से आत्मा का मिलन
यह सनातन धर्म का सबसे सरल लेकिन सबसे प्रभावशाली प्रतीक है।
आध्यात्मिक व्याख्या: जब हम दोनों हथेलियों को हृदय के पास जोड़ते हैं, तो हम स्वीकार करते हैं कि "मेरे भीतर का परमात्मा आपके भीतर के परमात्मा को नमन करता है।" यह समानता, विनम्रता और द्वैत (भेदभाव) के अंत का प्रतीक है।
निष्कर्ष
सनातन धर्म के ये प्रतीक महज कर्मकांड नहीं हैं, बल्कि ये एक सूक्ष्म भाषा हैं जो हमें स्थूल (Physical) से सूक्ष्म (Spiritual) की ओर ले जाते हैं। ॐ से शुरू होकर नमस्ते तक की यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि यह पूरा ब्रह्मांड ईश्वरीय ऊर्जा से ओत-प्रोत है।
इन प्रतीकों को जीवन में धारण करने का अर्थ है— अनुशासन, शुचिता, धैर्य और ज्ञान को अपनाना। जब हम स्वस्तिक को देखते हैं, तो हमें समाज के कल्याण का स्मरण होता है; जब हम दीपक जलाते हैं, तो हमें अपने भीतर के अज्ञान को मिटाने की प्रेरणा मिलती है। संक्षेप में, सनातन प्रतीक वे 'सॉफ्टवेयर' हैं जो मानव जीवन के 'हार्डवेयर' को सुचारू रूप से चलाने और उसे परमात्मा से जोड़ने का कार्य करते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें