हनुमान जन्मोत्सव hanuman janmotsav

हनुमान जयंती
चिरंजीवी हनुमान जी अमर हें इसलिये उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। जयंती नहीं !
हनुमानजी को चिरंजीवी माना जाता है यानी की अजर अमर। वे आज भी सशरीर मौजूद हैं। उन्हें कल्प के अंत तक सशरीर में ही रहकर धरती पर धर्म की रक्षा करनी है। उन्हे यह वरदान प्राप्त है।
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हनुमान जी अमर हें इसलिये उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। जयंती नहीं !

हनुमान जन्मोत्सव (hanuman janmotsav) 

सहयोग के देवता हनुमान जी की कथा
हनुमान जन्म की कहानी

भगवान शिव के 11वें अवतार  सहयोग के देवता हनुमान जी के जन्मदिवस को चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जंयती के रूप में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हनुमान जी की माता का नाम अंजना और पिता का नाम केसरी है। बजरंगबली के जन्म की एक रोचक कथा है।

हनुमान भक्तों के लिए हनुमान जयंती का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, हनुमान जी को रामभक्त माना जाता है। हनुमान को बल, बुद्धि, विद्या, शौर्य और निर्भयता का प्रतीक माना जाता है। जब कोई कोई परेशानी सामने खड़ी हो जाती है तो सबसे पहले पवनसुत को ही याद किया जाता है। इनको कई नामों से भी पुकारते हैं जैसे चीरंजीवी, बजरंगबली, पवनसुत, महावीर, बालीबिमा, अंजनीसुत, संकटमोचन और अंजनेय आदि। हनुमान जी ने अपना पूरा जीवन रामभक्ति में व्यतीत कर दिया और श्रीराम ने उन्हें अजर अमर रहने वाला वरदान दिया। रामभक्ति में तल्लीन बजरंगबली जीवनभर ब्रह्चारी रहे।

पौराणिक कथानुसार, एक बार महान ऋषि अंगिरा भगवान इंद्र के देवलोक पहुंचे। वहां पर इंद्र ने पुंजिकस्थला नाम की अप्सरा द्वारा नृत्य प्रदर्शन की व्यवस्था की, लेकिन ऋषि को अप्सरा के नृत्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी,इसलिए वह गहन ध्यान में चले गए। अंत में जब उनके अप्सरा के नृत्य के बारे में पूछा गया तो उन्होंने ईमानदारी से कहा कि उन्हें नृत्य देखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। यह सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि पर क्रोधित हो गई बदले में ऋषि अंगिरा ने नर्तकी को श्राप देते हुए कहा कि वह एक बंदरिया के रूप में धरती पर जन्म लेगी। पुंजिकस्थला ने ऋषि से क्षमा याचना की लेकिन ऋषि ने अपना श्राप वापस नहीं लिया।

नर्तकी अप्सरा पुंजिकस्थला एक अन्य ऋषि के पास गई और ऋषि ने अप्सरा को आशीर्वाद दिया कि भगवान विष्णु का एक अवतार श्रीराम के रूप में प्रकट होगा। तब पुंजिकस्थला वानर राज कुंजर की बेटी अंजना के रूप में जन्म लेगी और उनका विवाह कपिराज केसरी से होगा , जो एक वानर राजा थे । उनके एक पुत्र होगा जो महा शक्तिशाली हनुमान कहलायेगा । तब उनको मृत्युलोक से मुक्ति प्राप्त होगी।

पौरा​णिक कथा के अनुसार, केसरी राज के साथ विवाह करने के बाद कई वर्षों तक माता अंजना को पुत्र सुख की प्राप्ति नहीं हुई। वह मंतग मुनि के पास जाकर पुत्र प्राप्ति का मार्ग पूछने लगीं| ऋषि ने बताया की वृषभाचल पर्वत पर भगवान वेंकटेश्वर की पूजा अर्चना और तपस्या करो। फिर गंगा तट पर स्नान करके वायु देव को प्रसन्न करो। तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।मुनि के बताये मार्ग के अनुसार पुत्र की कामना में अंजना ने सभी तप पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और धैर्य से किये। वह वायु देव को प्रसन्न करने में सफल रहीं। वायु देव ने उन्हें दर्शन देकर आशीष दिया कि उनका ही रूप उनके पुत्र के रूप में अवतरित होगा।

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हनुमान के जन्म की कथा,
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पवनपुत्र हनुमान का जन्म कैसे हुआ ?  
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हनुमान के जन्म की कथा, रामभक्त हनुमान के जन्म की कहानी


यह कथा सुनकर श्रीराम हाथ जोड़कर अगस्त्य मुनि से बोले, “ ऋषिवर! निःसन्देह बालि और रावण दोनों ही भारी बलवान थे, परन्तु मेरा विचार है कि हनुमान उन दोनों से अधिक बलवान हैं । इनमें शूरवीरता, बल, धैर्य, नीति, सद्गुण सभी उनसे अधिक हैं। यदि मुझे ये न मिलते तो भला क्या जानकी का पता लग सकता था ? मेरे समझ में यह नहीं आया कि जब बालि और सुग्रीव में झगड़ा हुआ तो इन्होंने अपने मित्र सुग्रीव की सहायता करके बालि को क्यों नहीं मार डाला। आप कृपा करके हनुमानजी के बारे में मुझे सब कुछ बताइये। ”
 
रघुनाथजी के वचन सुनकर महर्षि अगस्त्य बोले, “ हे रघुनन्दन! आप ठीक कहते हैं। हनुमान अद्भुत बलवान, पराक्रमी और सद्गुण सम्पन्न हैं, परन्तु ऋषियों के शाप के कारण इन्हें अपने बल का पता नहीं था। मैं आपको इनके विषय में सब कुछ बताता हूँ। इनके पिता केसरी सुमेरु पर्वत पर राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम अंजना था। इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने के लिये आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की कि देवराज ! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज जब अमावस्या के दिन मैं सूर्य को ग्रस्त करने के लिये गया तो मैंने देखा कि एक दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।“
 
“ राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और राहु को साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमान जी सूर्य को छोड़कर राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमान जी के ऊपर वज्र का प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर जा गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक ली। इससे कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मृत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने उन्हें जीवित कर दिया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सब प्राणियों की पीड़ा दूर की। चूँकि इन्द्र के वज्र से हनुमान जी की हनु (ठुड्डी) टूट गई थी, इसलिये तब से उनका नाम हनुमान हो गया। “
 
तब प्रसन्न होकर सूर्य ने हनुमान को अपने तेज का सौंवा भाग दिया। वरुण, यम, कुबेर, विश्वकर्मा आदि ने उन्हें अजेय पराक्रमी, अवध्य होने, नाना रूप धारण करने की क्षमता आदि के वर दिया। इस प्रकार नाना शक्तियों से सम्पन्न हो जाने पर निर्भय होकर वे ऋषि-मुनियों के साथ शरारत करने लगे। किसी के वल्कल फाड़ देते, किसी की कोई वस्तु नष्ट कर देते। इससे क्रुद्ध होकर ऋषियों ने इन्हें शाप दिया कि तुम अपने बल और शक्ति को भूल जाओगे। किसी के याद दिलाने पर ही तुम्हें उनका ज्ञान होगा। तब से उन्हें अपने बल और शक्ति का स्मरण नहीं रहा। बालि और सुग्रीव के पिता ऋक्षराज थे। चिरकाल तक राज्य करने के पश्चात् जब ऋक्षराज का देहान्त हुआ तो वालि राजा बना। बालि और सुग्रीव में बचपन से ही प्रेम था। जब उन दोनों में बैर हुआ तो सुग्रीव के सहायक होते हुये भी शाप के कारण हनुमान अपने बल से अनजान बने रहे।”

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हनुमान जी का अनोखा है व्यक्त्तिव जानें इसकी कुछ विशेषतायें

मंगलवार को श्री हनुमान का पूजन होता है।
आज आपका परिचय कराते हैं उनके अदभुद व्यक्त्तिव से जो बना है कठोर साधना और तप से।


साधना के तीन गुण

धर्मशास्त्रों में आत्मज्ञान की साधना के लिए तीन गुणों की अनिवार्यता बताई गई है- बल, बुद्धि और विद्या। यदि इनमें से किसी एक गुण की भी कमी हो, तो साधना का उद्देश्य सफल नहीं हो सकता है। सबसे पहले तो साधना के लिए बल जरूरी है। निर्बल व कायर व्यक्ति साधना का अधिकारी नहीं हो सकता है। दूसरे साधक में बुद्धि और विचार शक्ति होनी चाहिए। इसके बिना साधक पात्रता विकसित नहीं कर पाता है। तीसरा अनिवार्य गुण विद्या है। विद्यावान व्यक्ति ही आत्मज्ञान हासिल कर सकता है। हनुमान जी के जीवन में इन तीनों गुणों का अद्भुत समन्वय मिलता है। इन्हीं गुणों के बल पर वे जीवन की प्रत्येक कसौटी पर खरे उतरते हैं । रामकथा में हनुमानजी का चरित्र अत्यंत प्रभावशाली है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शो को मूर्त रूप देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

संवाद कुशलता

हनुमान जी का संवाद कौशल विलक्षण है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण अशोक वाटिका में जब वे पहली बार माता सीता से मिलते हैं तब दिखार्इ देता है। वे अपनी बातचीत से न सिर्फ उन्हें भयमुक्त करते हैं, बल्कि उन्हें यह भी भरोसा दिलाते हैं कि वे श्रीराम के ही दूत हैं- कपि के वचन सप्रेम सुनि, उपजा मन बिस्वास। जाना मन क्रम बचन यह, कृपासिंधु कर दास ।। (सुंदरकांड)। 

यह कौशल आज के युवा उनसे सीख सकते हैं। इसी तरह समुद्र लांघते वक्त देवताओं के कहने पर जब सुरसा ने उनकी परीक्षा लेनी चाही, तो उन्होंने अतिशय विनम्रता का परिचय देते हुए उस राक्षसी का भी दिल जीत लिया। कथा है कि श्री राम की मुद्रिका लेकर महावीर हनुमान जब सीता माता की खोज में लंका की ओर जाने के लिए समुद्र के ऊपर से उड़ रहे थे, तभी सर्पो की माता सुरसा उनके मार्ग में आ गई थीं। उसने कहा कि आज कई दिन बाद उसे इच्छित भोजन प्राप्त हुआ है। इस पर हनुमान जी बोले, 'मां, अभी मैं रामकाज के लिए जा रहा हूं, मुझे समय नहीं है। जब मैं अपना कार्य पूरा कर लूं तब तुम मुझे खा लेना। पर सुरसा नहीं मानी और हनुमानजी को अपना ग्रास बनाने के लिए तरह-तरह के उपक्रम करने लगी। तब हनुमान जी बोले, 'मां आप तो मुझे खाती ही नहीं है, अब इसमें मेरा क्या दोष?' सुरसा हनुमान का बुद्धि कौशल व विनम्रता देख दंग रह गई और उसने उन्हें कार्य में सफल होने का आशीर्वाद देकर विदा कर दिया। यह प्रसंग सीख देता है कि केवल साम‌र्थ्य से ही जीत नहीं मिलती है, विनम्रता से समस्त कार्य सुगमतापूर्वक पूर्ण किए जा सकते हैं।


साम‌र्थ्य के अनुसार प्रदर्शन

महावीर हनुमान ने अपने जीवन में आदर्शों से कोई समझौता नहीं किया। लंका में रावण के उपवन में हनुमान जी और मेघनाथ के मध्य हुए युद्ध में मेघनाथ ने 'ब्रह्मास्त्र' का प्रयोग किया। हनुमान जी चाहते तो वे इसका तोड़ निकाल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वे उसका महत्व कम नहीं करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने ब्रह्मास्त्र का तीव्र आघात सह लिया। तुलसीदास ने हनुमानजी की मानसिकता का सूक्ष्म चित्रण करते हुए लिखा है - 'ब्रह्मा अस्त्र तेहि सांधा, कपि मन कीन्ह विचार। जौ न ब्रहासर मानऊं, महिमा मिटाई अपार।। हनुमान के जीवन से हम शक्ति व साम‌र्थ्य के अवसर के अनुकूल उचित प्रदर्शन का गुण सीख सकते हैं। तुलसीदास जी हनुमान चालीसा में लिखते हैं- 'सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा।' सीता के सामने उन्होंने खुद को लघु रूप में रखा, क्योंकि यहां वह पुत्र की भूमिका में थे, लेकिन संहारक के रूप में वे राक्षसों के लिए काल बन गए।

विवेक के अनुसार निर्णय

अवसर के अनुसार खुद को ढाल लेने की हनुमानजी की प्रवृत्ति अद्भुत है। जिस वक्त लक्ष्मण रणभूमि में मूर्छित हो गए, उनके प्राणों की रक्षा के लिए वे पूरे पहाड़ उठा लाए, क्योंकि वे संजीवनी बूटी नहीं पहचानते थे। अपने इस गुण के माध्यम से वे हमें तात्कालिक विषम स्थिति में विवेकानुसार निर्णय लेने की प्रेरणा देते हैं। हनुमान जी हमें भावनाओं का संतुलन भी सिखाते हैं। लंका दहन के बाद जब वह दोबारा सीता जी का आशीष लेने पहुंचे, तो उन्होंने उनसे कहा कि वे अभी उन्हें वहां से ले जा सकते हैं, लेकिन वे ऐसा करना नहीं चाहते हैं। रावण का वध करने के पश्चात ही यहां से प्रभु श्रीराम आदर सहित आपको ले जाएंगे। इसलिए उन्होंने सीता माता को उचित समय पर आकर ससम्मान वापिस ले जाने को आश्वस्त किया। उनका व्यक्तित्व आत्ममुग्धता से कोसों दूर है। सीताजी का समाचार लेकर सकुशल वापस पहुंचे श्री हनुमान की हर तरफ प्रशंसा हुई, लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम का कोई किस्सा प्रभु राम को नहीं सुनाया। जब श्रीराम ने उनसे पूछा- 'हनुमान ! त्रिभुवनविजयी रावण की लंका को तुमने कैसे जला दिया? तब प्रत्युत्तर में हनुमानजी ने जो कहा उससे भगवान राम भी हनुमानजी के आत्ममुग्धताविहीन व्यक्तित्व के कायल हो गए- सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ।। (सुंदरकांड) ।

सेवाभाव की प्रबलता

भारतीय-दर्शन में सेवाभाव को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह सेवाभाव ही हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करता है। अष्ट चिरंजीवियों में शुमार महाबली हनुमान अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं और उनके ऊपर 'राम से अधिक राम के दास' की उक्ति चरितार्थ होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम स्वयं कहते हैं- जब लोक पर कोई विपत्ति आती है तब वह त्राण पाने के लिए मेरी अभ्यर्थना करता है, लेकिन जब मुझ पर कोई संकट आता है तब मैं उसके निवारण के लिए पवनपुत्र का स्मरण करता हूं। जरा विचार कीजिए! श्रीराम का कितना अनुग्रह है हनुमान पर कि वे अपने लौकिक जीवन के संकटमोचन का श्रेय उनको प्रदान करते हैं और कैसे शक्तिपुंज हैं हनुमान, जो श्रीराम तक के कष्ट का तत्काल निवारण कर सकते हैं।

हनुमान की पूजा

स्वामी रामकृष्ण परमहंस हनुमानजी के नाम-जप-निष्ठा का बराबर उदाहरण देते थे। भक्तों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- 'मन के गुण से हनुमानजी समुद्र लांघ गये। हनुमानजी का सहज विश्वास था, मैं श्रीराम का दास हूं और श्रीराम नाम जपता हूं। अत: मैं क्या नहीं कर सकता?' स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा था- 'देश के कोने-कोने में महाबली श्री हनुमानजी की पूजा प्रचलित होनी चाहिए। दुर्बल लोगों के सामने महावीर का आदर्श उपस्थित करना चाहिए। देह में बल नहीं, हृदय में साहस नहीं, तो फिर क्या होगा इस जड़पिंड को धारण करने से ? मेरी प्रबल आकांक्षा है कि घर-घर में बज्रांग श्री हनुमान की पूजा और उपासना हो।' युवा शक्ति को हनुमान जी की पूजा से अधिक उनके चरित्र को आत्मसात करने की आवश्यकता है, जिससे भारत को उच्चतम नैतिक मूल्यों वाले देश के साथ-साथ 'कौशल युक्त' भी बनाया जा सके।

टिप्पणियाँ

  1. Hi thanks for the information on your blog. Do you want to learn more about Hanuman Jayanti? Find out when Hanuman Jayanti 2023 will be celebrated and at what time. Learn more about the auspicious Hindu festival and how it is observed in India and around the world.

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