नेताजी स्पेशल नहीं बन पाये, वीआईपी स्टेटस नहीं मिला - अरविन्द सिसौदिया

 नेताजी स्पेशल नहीं बन पाये, वीआईपी स्टेटस नहीं मिला - अरविन्द सिसौदिया

भारत के सर्वोच्च न्यायलय नें राजनैतिक दल के नाते वीआईपी स्टेटस मांगने सर्वोच्च न्यायालय पहुँचे कांग्रेस सहित 14 विपक्षी दलों को, अपने तर्कोँ एवं तथ्यों के आधार पर याचिका वापस लेनें की स्थिति में ला दिया। उन्होंने जो कहा और में जो समझा उसके हिसाब से राजनैतिक दल के नेताओं को उक्त न्यायालय नें सामान्य नागरिकों की श्रेणी में ही रखते हुये विशेष श्रेणी देनें से या अतिरिक्त विशेष गाइडलाइन बनाने से मना कर दिया। इस घटनाक्रम से नेताजी स्पेशल नहीं बन पाये, वीआईपी स्टेट्स नहीं मिला।

यूँ तो भारत में राज आनें का मतलब या राज में होनें का मतलब ही नेताजी का सब कुछ होना होता है। उनका रौब रुतबा, उनका ईश्वर तुल्य होना। यह सर्वोच्चता का सिलसिला आजादी के बाद से ही चल रहा है। प्रतिदिन देश के कानून और व्यवस्था को प्रभावित करनें के लिये कार्यकर्ता या समर्थक के आधार पर, हजारो फोन सरकारी दफतरों में, अधिकारी, कर्मचारी आदी पर पहुंचते है। यह सब संविधान और लोकतंत्र से परे ही होता है  सच यह है कि यह कृत्य संविधान और लोकतंत्र की हत्या होता है। देश के अधिकारि कर्मचारी भी अधिकांशतः नेताजी की बात मान कर ही काम करते हैं, उन्हें संतुष्ट करते हैं।  नेताजी यदी सत्तारुढ दल के हैं तो काम नहीं करने वाले को, कम से कम तबादला तो करवा ही सकते हैं। यह परम्परा मूलतः कांग्रेस नें ही डाली है। यह सब अभी भी होता है और सभी दल के नेताजी इसमें लिप्त रहते हैं।

 देश की आजादी के बाद से ही केंद्रीय जांच एजेंसियों से लेकर पुलिस थानों तक अपनी प्रभुसत्ता चलानें के आरोप सत्ता पर लगते रहे हैँ। वहीं इन एजेंसियों के दुरूपयोग का आरोप, सत्तारुढ दल पर,  विपक्षी पार्टियां लगाती ही रही हैं। उनकी निष्पक्षता पर सवाल भी उठाती रही हैं। सत्ता में रहते हुये सबसे बडा सत्ता का दुरउपयोग "आपातकाल"  में कांग्रेस के द्वारा ही हुआ था । जब सम्पूर्ण विपक्ष को जेलों में डाल दिया गया था।

“ हाल ही में,भारत सरकार के विपक्ष में, कांग्रेस सहित 14 प्रमुख राजनीतिक दलों के समूह ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष साझा याचिका दायर कर कहा था कि “ केन्द्र सरकार विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों सीबीआई और ईडी का मनमाना इस्तेमाल कर, दुरुपयोग कर रही है। याचिका में राजनैतिक दलों के नेताओं पर होने वाली कार्यवाही को लेकर,जांच एजेंसियों को लेकर भविष्य के लिए दिशानिर्देश (गाइडलाइन) जारी करने की मांग माननीय न्यायालय से की गई थी।

साथ ही अनेकों आंकडों के माध्यम से इन राजनैतिक दलों नें वोट प्रतिशत एवं राज्यों में सत्ता रूढ़ होनें आदी  पर,  ध्यानाकर्षण करते हुये अपनी राजनैतिक विशिष्टता व प्रभाव को न्यायालय के सामने रख कर, सरकार व सरकारी एजेंसीयों पर सवाल उठाए गए थे। इन राजनीति पार्टियों ने याचिका में  न्यायालय से कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर , राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कराया जा रहा है। लिहाजा जांच एजेंसियों और न्यायालयों के लिए गिरफ्तारी और रिमांड पर विशिष्ट गाइडलाइन बनाई जाए।

जहां तक में समझ सका हूँ सर्वोच्च न्यायालय नें बहुत साफ साफ कहा है कि राजनैतिक दल का नेता व कार्यकर्ता भी नागरिक ही है। व्यायालय राजनैतिक लोगों के लिए अलग से कोई गाइडलाइन नहीं बना सकता।

उच्चतम न्यायालय ने उक्त याचिका को सुनते हुऐ कहा कि “ नेताओं को विशेष इम्यूनिटी नहीं दी जा सकती, नेताओं के भी आम नागरिकों जैसे अधिकार हैं। अगर सामान्य गाइडलाइन जारी की तो ये खतरनाक प्रस्ताव होगा। नेताओं की गिरफ्तारी पर अलग से गाइडलाइन नहीं हो सकती।

इसके बाद में उक्त दलों के द्वारा याचिका वापस ले ली गई है। सीजेआई ने कहा कि “ हम इस याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे। आप चाहें तो याचिका वापस ले सकते हैं। अदालत के लिए ये मुश्किल है। इसलिए दलों ने याचिका वापस ले ली। सीजेआई ने कहा कि ये कोई ऐसी याचिका नहीं है। जो प्रभावित लोगों ने दाखिल की हो। ये 14 राजनीतिक पार्टियों ने दाखिल की है । सीजेआई ने कहा कि देश में वैसे भी सजा की दर कम है।
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उक्त संदर्भ में एक रिपोर्ट......

 5 अप्रैल, 2023  
"नेताओं को विशेष छूट नहीं दे सकते": ED-CBI के दुरुपयोग की याचिका पर विपक्ष को SC से झटका

- सीजेआई ने कहा कि आपकी याचिका से ये लग रहा है कि विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन बहस में आप कह रहे हैं कि नेताओं को गिरफ्तारी से बचाया जाए.  ये कोई हत्या या सेक्सुअल असाल्ट का केस नहीं है.  हम इस तरह आदेश कैसे जारी कर सकते हैं.

- 14 राजनीतिक दलों ने ED-CBI के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी याचिका वापस ली

कांग्रेस सहित 14 राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है. ED और सीबीआई के दुरुपयोग की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार कर दिया है. SC ने कहा कि नेताओं को विशेष इम्यूनिटी नहीं दी जा सकती. नेताओं के भी आम नागरिकों जैसे अधिकार हैं. अगर सामान्य गाइडलाइन जारी की तो ये खतरनाक प्रस्ताव होगा. नेताओं की गिरफ्तारी पर अलग से गाइडलाइन नहीं हो सकती. याचिका वापस ले ली गई है. CJI ने कहा कि हम इस याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे. आप चाहें तो याचिका वापस ले सकते हैं. अदालत के लिए ये मुश्किल है. इसलिए दलों ने याचिका वापस ले ली. CJI ने कहा कि ये कोई ऐसी याचिका नहीं है, जो प्रभावित लोगों ने दाखिल की हो. ये 14 राजनीतिक पार्टियों ने दाखिल की है. CJI ने कहा कि देश में वैसे भी सजा की दर कम है.

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हम वैसा नहीं कह रहे हैं . हम चल रही जांच में दखल देने के लिए नहीं आए हैं. हम गाइडलाइन चाहते हैं. CJI ने कहा कि क्या हम इस आधार पर आरोपों को रद्द कर  सकते हैं? आप हमें कुछ आंकड़े दें.  अंततः एक राजनीतिक नेता मूल रूप से एक नागरिक होता है.  नागरिक के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं. सिंघवी ने कहा कि हम 14 पार्टियां मिलकर पिछले राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के विधानसभा चुनावों में डाले गए 45.19% वोटों का प्रतिनिधित्व करते हैं.  2019 के आम चुनावों में डाले गए वोटों का 42.5% था और हम 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सत्ता पर काबिज हैं.

CJI ने कहा कि राजनीतिक नेताओं को भी कोई इम्यूनिटी नहीं,  वो भी आम नागरिक के अधिकारों के तहत हैं. हम ये कैसे आदेश जारी कर सकते हैं कि तिहरे टेस्ट के बिना गिरफ्तारी ना करें. CRPC में पहले ही प्रावधान है. आप गाइडलाइन मांग रहे हैं, लेकिन ये सभी नागरिकों के लिए होगा. राजनीतिक नेताओं को कोई उच्च इम्यूनिटी नहीं है. क्या हम सामान्य केस में ये कह सकते है कि अगर जांच से भागने / दूसरी शर्तों के हनन की आशंका न हो तो किसी शख्स की गिरफ्तारी न हो. अगर हम दूसरे मामलों में ऐसा नहीं कह सकते तो फिर राजनेताओं के केस में कैसे कह सकते है.राजनेताओ के पास कोई विशेषधिकार नहीं है. उनका भी अधिकार आम आदमी की तरह ही है.

सीजेआई ने कहा कि आपकी याचिका से ये लग रहा है कि विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन बहस में आप कह रहे हैं कि नेताओं को गिरफ्तारी से बचाया जाए.  ये कोई हत्या या सेक्सुअल असाल्ट का केस नहीं है.  हम इस तरह आदेश कैसे जारी कर सकते हैं.  जिस क्षण आप लोकतंत्र कहते हैं, यह अनिवार्य रूप से राजनेताओं के लिए एक दलील है.

CJI ने आगे कहा कि आप ऐसे केसे में हमारे पास आ सकते हैं, जहां एजेंसियों ने कानून का पालन नहीं किया है. हमारे लिए इस तरह गाइडलाइन जारी करना संभव नहीं. हमने जमानत आदि को लेकर गाइडलाइन जारी की है, लेकिन वो सब तथ्यों के आधार पर जारी की थी. हम ऐसी गाइडलाइन कैसे जारी कर सकते हैं. अगर कोई व्यक्ति अपना केस लाता है तो हम कानून के मुताबिक फैसला करते हैं.

बता दें कि "14 राजनीतिक दलों ने विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों CBI और ED का दुरुपयोग कर मनमाने इस्तेमाल का आरोप लगाया गया था. याचिका में जांच एजेंसियों को लेकर भविष्य के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई थी. साथ ही ईडी, सीबीआई पर भी सवाल उठाए गए थे. केंद्रीय जांच एजेंसियों को लेकर विपक्षी पार्टियां लगातार विरोध जताती रही हैं.  उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाती रही हैं.  राजनीति पार्टियों ने याचिका में कहा है कि  केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है.  राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कराया जा रहा है.  लिहाजा जांच एजेंसियों और अदालतों के लिए गिरफ्तारी और रिमांड पर गाइडलाइन बनाई जाए. विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करने में ED  और CBI के मनमाने इस्तेमाल के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में चौदह राजनीतिक दलों की याचिका  ने साझा याचिका दायर कर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. राजनीतिक पार्टियों में DMK, राष्ट्रीय जनता दल, भारत राष्ट्र समिति, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस और अन्य शामिल थे."

याचिका में राजनीतिक दलों ने दी थी ये दलील:-

अपनी अर्जी में इन राजनीतिक दलों की दलील दी थी कि कि सन 2004 से 14 के बीच शिकायतें दर्ज कराने और उसके अनुसार कार्रवाई करने की दर 93% थी,  जबकि 2014 से 22 के बीच ये घटकर महज 29% रह गई है.  इन पिछले 8 वर्षों में पीएमएलए यानी धन शोधन निवारण कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर छापेमारी, गिरफ्तारी आदि के बाद उसे सजा दिलाने यानी दोषसिद्धि के सिर्फ 23 मुकदमे ही आए,  जबकि 2013-14 में 209, 2020- 21 में 981 और 2021-22 में 1180 मामले दर्ज किए गए यानी मुकदमे दर्ज करने का ग्राफ बढ़ता गया और दोषसिद्धि का घटता गया है.  इससे साफ है कि सरकार की मंशा सजा दिलाने की नहीं बल्कि राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने की है.

रिकॉर्ड के मुताबिक- 2004 से 14 के बीच दस सालों में 72 नेताओं के खिलाफ सीबीआई ने मुकदमे दर्ज किए गए.  इनमें से 60 फीसदी से भी कम यानी 43 विपक्ष के थे.  अब ये दर 95 फीसद हो गई है .  ईडी के मामलों में भी यही रुझान है. 2014 से पहले ईडी के शिकंजे में आने वाले विपक्ष के नेताओं का अनुपात 54 फीसदी था, लेकिन 2014 के बाद ये अचानक बढ़ कर 95 फीसदी तक पहुंच गया. याचिकाकर्ता 14 राजनीतिक दल का कहना है कि केंद्र सरकार के इस रवैए से देश में लोकतंत्र खतरे में है. हम मौजूदा जांच को प्रभावित करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, जिन 14 पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है उनमें -
ये हैं वो 14 राजनीतिक दल :-
1. कांग्रेस
2. तृणमूल कांग्रेस
3. आम आदमी पार्टी
4. झारखंड मुक्ति मोर्चा
5. जनता दल यूनाइटेड
6. भारत राष्ट्र समिति
7.राष्ट्रीय जनता दल
8.  समाजवादी पार्टी
9.  शिवसेना (उद्धव)
10.  नेशनल कॉन्फ्रेंस
11.  नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
12. सीपीआई
13. सीपीएम
14.  डीएमके
शामिल हैं. इनका कहना है कि पिछले विधानसभा चुनावों में इन दलों को 45.19 फीसदी जन समर्थन मिला था. इनकी 11 राज्यों में सरकार भी है.  इन्होंने कोर्ट से अपील की है कि जिनको अभियुक्त बनाया गया उसके अपराधिक रिकॉर्ड, सजा के मुताबिक- अभियोग की स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिए. ये देखना चाहिए कि मुलजिम हत्या, हत्या की कोशिश यानी जानलेवा हमला, रेप या फिर आतंकवाद के आरोपों या गतिविधियों में शामिल न हों.
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Supreme Court Of India :-
सुप्रीम कोर्ट आज (5 अप्रैल) कांग्रेस (Congress) समेत 14 राजनीतिक दलों की उस याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें केंद्रीय जांच एजेंसियों (Central Investigative Agencies) के दुरुपयोग का आरोप लगा है. विपक्षी दलों की याचिका पर प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ (Dhananjaya Y. Chandrachud) की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ मामले में सुनवाई करेगी. इस याचिका में भविष्य के लिए दिशानिर्देश जारी करने की भी मांग की गई है.

दरअसल, विपक्षीय पार्टियां पिछले काफी समय से केंद्रीय जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए विरोध जता रही हैं. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), द्रविड़ मुनेत्र कषगम, राष्ट्रीय जनता दल, भारत राष्ट्र समिति, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जनता दल (यूनाइटेड), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस याचिका दायर करने वाले दलों में शामिल हैं.


विपक्षी दलों ने लगाए ये गंभीर आरोप...
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से बड़े पैमाने पर जांच एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है. इनका ये भी कहना है कि जांच एजेंसियों के गलत इस्तेमाल से लोकतंत्र खतरे में आ गया है. विपक्ष के कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को भी कुछ समय पहले चिट्ठी लिखकर सीबीआई (CBI) और ईडी (ED) का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. इस चिट्ठी में ये भी लिखा था कि जो नेता भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो जाते हैं उनके खिलाफ जांच या तो धीमी हो जाती है या खत्म हो जाती है.  

विपक्षी दलों ने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि जांच एजेंसियां बीजेपी विरोधी पार्टियों के खिलाफ ही कार्रवाई कर रही हैं. वहीं, इन आरोपों को बीजेपी ने खारिज करते हुए कहा कि जांच एजेंसियां बिना किसी दबाव के स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं.

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भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री गौरव भाटिया की प्रेस वार्ता के मुख्य बिंदु

भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच को रोकने के लिए 14 विपक्षी राजनीतिक दल सर्वोच्च न्यायालय गए थे। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने इन 14 दलों की याचिका को खारिज करते हुए जो टिप्पणी की, वह देश के हर नागरिक के लिए गर्व की बात है।
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मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर आप नेता भी हैं तो आपको कोई अधिकार नहीं है कि आपके लिए अलग कानून हो क्योंकि कानून सबके लिए बराबर है और कानून की नजर में हर व्यक्ति बराबर है। इसलिए हम आपकी याचिका को स्वीकार नहीं करेंगे।
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दूसरी बात अदालत ने यह भी कहा कि क्या हम इस तरह के कोई दिशानिर्देश दे सकते हैं जो कि अपने-आप में एक नई श्रेणी बना देगी कि आम जनता के लिए अलग कानून हो और नेताओं के लिए अलग कानून।
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आज सर्वोच्च न्यायालय ने 14 विपक्षी दलों की याचिका को खारिज किया किया तो यह बात स्पष्ट हो गई कि जो बात ये 14 विपक्षी दल (जो प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली पार्टियां हैं) कर रहे हैं, इसमें कोई सच्चाई नहीं है और जांच एजेंसियां ईमानदारी से अपना काम कर रही है।
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आज सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के ईमानदार काम पर मुहर लगी है। 14 विपक्षी पार्टियों पर सुप्रीम कोर्ट का झटका इतना करारा था कि इन्हें अपनी याचिका वापिस लेनी पड़ी।
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अगर किसी भ्रष्टाचारी को यह लगता है कि वह भ्रष्टाचार करके बच जाएगा तो यह उसकी ग़लतफ़हमी है। क़ानून लंबा हाथ उसके गिरेबान तक जरूर पहुंचेगा। ये श्री नरेन्द्र मोदी सरकार है - भ्रष्टाचार करोगे तो जेल भी जाना होगा और जनता से लूटा हुआ पैसा लौटाना भी पड़ेगा।
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बाहर तो आप बिना तथ्यों के चिल्ला सकते हैं, झूठ बोल सकते हैं लेकिन न्यायालय के अंदर जब इनकी दलील नहीं बची तो इन्हें याचिका को वापिस लेना पड़ा। आज सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि न्याय, ईमानदारी, सच्चाई और कानून वह किस तरफ है।
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इस देश में लोकतंत्र इतना मजबूत है कि जहाँ एक तरफ भ्रष्टाचारी हैं जिनके शब्दों का न तो वजन है और न कोई मूल्य तो दूसरी तरफ हमारी सर्वोच्च अदालत का पवित्र फैसला है। एक तरह भ्रष्टाचारी हैं तो दूसरी ओर जनता है। एक तरफ भ्रष्टाचारी नेता हैं तो दूसरी ओर ईमानदार प्रधानमंत्री और ईमानदार जांच एजेंसियां।
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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्पष्ट कहा है कि अब देश में वीवीआईपी कल्चर नहीं चलेगा क्योंकि देश के सभी नागरिक बराबर हैं। लेकिन, भ्रष्टाचारियों के मन में ये भाव है कि वे क़ानून, संविधान, जनता, लोकतंत्र और यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर हैं।
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आज देश का हर नागरिक इन 14 दलों से ये सवाल पूछ रहा है कि गली-मोहल्ले में शोर मचाते हो, झूठ बोलते हो लेकिन जब न्याय के मंदिर के सामने अपनी दलील रखने की बारी आई तो याचिका वापिस क्यों लेनी पड़ी?
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इन 14 विपक्षी राजनीतिक दलों में भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस पार्टी शामिल थी जिसके शीर्ष नेता राहुल गाँधी, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी और रॉबर्ट वाड्रा बेल पर बाहर हैं। जमीन दो, नौकरी लो का नारा देने वाली और जानवरों का चारा तक खा जाने वाली लालू प्रसाद यादव की आरजेडी इसमें शामिल थी। गुलाबी गड्डियों में जिनके मंत्री पाए जाते हैं, ऐसी तृणमूल कांग्रेस जिसका नेतृत्व ममता बनर्जी जी करती हैं, वे भी इसमें शामिल थी। इस मुहिम में कट्टर बेईमान पार्टी आम आदमी पार्टी शामिल थी जो कट्टर ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांटा करते थे।
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सत्य में बहुत ताकत होती है। आप संख्या में तो 14 हो सकते हैं लेकिन आपके पास सच्चाई और ईमानदारी की ताकत नहीं है। आपके पास ये भी ताकत नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जो मुहिम हमारे ईमानदार प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने शुरू की है, उसे रोक सको।
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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री गौरव भाटिया ने आज बुधवार को पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया और भ्रष्टाचार में शामिल पार्टियों द्वारा ईडी और सीबीआई की जांच से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हुए भ्रष्टाचारी विपक्षी पार्टियों पर जम कर निशाना साधा। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने ED-CBI के दुरुपयोग से जुड़ी कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि आपके लिए अलग कानून नहीं हो सकता क्योंकि कानून सबके लिए बराबर है।

श्री भाटिया ने कहा कि एक विषय जो बहुत ही महत्वपूर्ण है पूरे देश के लिए, देश के सभी नागरिकों के लिए, उस पर आज चर्चा करना बहुत जरूरी है। पिछले 9 वर्षों में आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी देश की सेवा में अहर्निश समर्पित भाव से काम कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की नीति है ‘Zero tolerance for Corruption’. हमने देखा है कि किस तरह से जांच एजेंसियां निष्पक्ष तरीके से भ्रष्टाचार पर कार्रवाई कर रही है, भ्रष्टाचारियों को पकड़ रही है। विपक्ष में बैठे ये भ्रष्टाचारी नेता अपने खिलाफ मुकद्दमा रद्द कराने अदालत नहीं जाते क्योंकि इन्हें डर है कि अदालत में जब तथ्य सामने आएंगे तो इनकी किरकरी होगी और मुकद्दमा रद्द नहीं होगा। इसलिए अब विपक्षी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच को रोकने के लिए अदालत जा पहुंचे।

राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच को रोकने के लिए 14 विपक्षी राजनीतिक दल सर्वोच्च न्यायालय गए थे। इसमें भ्रष्टाचार की जननी के रूप में प्रतिष्ठित कांग्रेस पार्टी शामिल थी जिसके शीर्ष नेता राहुल गाँधी, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी और रॉबर्ट वाड्रा बेल पर बाहर हैं। जमीन दो, नौकरी लो का नारा देने वाली और जानवरों का चारा तक खा जाने वाली लालू प्रसाद यादव की आरजेडी इसमें शामिल थी। गुलाबी गड्डियों में जिनके मंत्री पाए जाते हैं, ऐसी तृणमूल कांग्रेस जिसका नेतृत्व ममता बनर्जी जी करती हैं। यह भी इसमें शामिल थी। इस मुहिम में कट्टर बेईमान पार्टी आम आदमी पार्टी शामिल थी जो कट्टर ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांटा करते थे। इनके उप-मुख्यमंत्री कट्टर भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हैं, उन्हें बेल नहीं मिल रही। इनके एक और मंत्री लगभग 10 महीनों से जेल में बंद हैं। उन्हें भी अदालत बेल नहीं दे रही। बीआरएस जिसके भ्रष्टाचार के किस्से जगजाहिर हैं, यह भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच को रोकने की मुहिम में अदालत गई। हम सब जानते हैं कि के. कविता से भ्रष्टाचार के मामले में पूछताछ हो रही है जिससे वे घबराये हुए हैं। साथ ही, इसमें एनसीपी, डीएमके, उद्धव ठाकरे की पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जदयू, सपा, सीपीआई और सीपीआई (एम) भी शामिल थी।

विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए श्री भाटिया ने कहा कि ये सभी 14 दल सर्वोच्च न्यायालय इसलिए गए थे कि इनके नेताओं के खिलाफ ईडी, सीबीआई जांच को रोक दिया जाए ताकि इनके नेताओं के भ्रष्टाचार की जांच न होने पाए। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने इन 14 दलों की याचिका को खारिज करते हुए जो टिप्पणी की, वह देश के हर नागरिक के लिए गर्व की बात है। सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ  न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा भी शामिल थे।

राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि इस देश में लोकतंत्र इतना मजबूत है कि जहाँ एक तरफ भ्रष्टाचारी हैं जिनके शब्दों का न तो वजन है और न कोई मूल्य तो दूसरी तरफ हमारी सर्वोच्च अदालत का पवित्र फैसला है। एक तरह भ्रष्टाचारी हैं तो दूसरी ओर जनता है। एक तरफ भ्रष्टाचारी नेता हैं तो दूसरी ओर ईमानदार प्रधानमंत्री और ईमानदार जांच एजेंसियां।
श्री भाटिया ने कहा कि मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर आप नेता भी हैं तो आपको कोई अधिकार नहीं है कि आपके लिए अलग कानून हो क्योंकि कानून सबके लिए बराबर है और कानून की नजर में हर व्यक्ति बराबर है। इसलिए हम आपकी याचिका को स्वीकार नहीं करेंगे। दूसरी बात अदालत ने यह भी कहा कि क्या हम इस तरह के कोई दिशानिर्देश दे सकते हैं जो कि अपने-आप में एक नई केटेगरी बना देगी कि आम जनता के लिए अलग कानून हो और नेताओं के लिए अलग कानून।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि आप सब जानते हैं कि जब देश में कांग्रेस की यूपीए सरकार थी तो सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के लिए ‘पिंजरे का तोता’ शब्द का प्रयोग किया था। आज सर्वोच्च न्यायालय ने 14 विपक्षी दलों की याचिका को खारिज किया किया तो यह बात स्पष्ट हो गई कि जो बात ये 14 विपक्षी दल (जो प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली पार्टियां हैं) कर रहे हैं, इसमें कोई सच्चाई नहीं है बल्कि ईडी, सीबीआई या अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियां अपना काम न्यायसंगत तरीके से, कानूनी तरीके से, संविधान के तहत कर रही है।

श्री भाटिया ने कहा कि हमारे सबके आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्पष्ट कहा है कि अब देश में वीवीआईपी कल्चर नहीं चलेगा क्योंकि देश के सभी नागरिक बराबर हैं। लेकिन, भ्रष्टाचारियों के मन में ये भाव है कि वे क़ानून, संविधान, जनता, लोकतंत्र और यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर हैं। आज सर्वोच्च न्यायालय ने इन्हें बता दिया कि आप भी आम जनता की तरह हैं। आपके लिए कोई स्पेशल क़ानून नहीं हो सकता। आज यह स्पष्ट हो गया है कि अगर किसी भ्रष्टाचारी को यह लगता है कि वह भ्रष्टाचार करके बच जाएगा तो यह उसकी ग़लतफ़हमी है। क़ानून लंबा हाथ उसके गिरेबान तक जरूर पहुंचेगा। ये श्री नरेन्द्र मोदी सरकार है - भ्रष्टाचार करोगे तो जेल भी जाना होगा और जनता से लूटा हुआ पैसा लौटाना भी पड़ेगा।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि आज सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के काम पर एक तरह से मुहर लगी है। 14 विपक्षी पार्टियों पर सुप्रीम कोर्ट का झटका इतना करारा था कि इन्हें अपनी याचिका वापिस लेनी पड़ी। कांग्रेस और 13 दलों की अगुआई कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील डॉ अभिषेक मनु सिंघवी कर रहे थे। बाहर तो आप बिना तथ्यों के चिल्ला सकते हैं, झूठ बोल सकते हैं लेकिन न्यायालय के अंदर जब इनकी दलील नहीं बची तो इन्हें याचिका को वापिस लेना पड़ा।

श्री भाटिया ने कहा कि यह सवाल आज देश का हर नागरिक इन 14 दलों से पूछ रहा है कि गली-मोहल्ले में शोर मचाते हो, झूठ बोलते हो लेकिन जब न्याय के मंदिर के सामने अपनी दलील रखने की बारी आई तो आपको याचिका वापिस क्यों लेनी पड़ी? इस सवाल का उत्तर चाहे तो कांग्रेस पार्टी, चाहे तो पापी आम आदमी पार्टी या चाहे इस याचिका में शामिल बाकी भ्रष्टाचारी दलों को जरूर देना चाहिए। सत्य में बहुत ताकत होती है। आप संख्या में तो 14 हो सकते हैं लेकिन आपके पास सच्चाई और ईमानदारी की ताकत नहीं है। आपके पास ये भी ताकत नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जो मुहिम हमारे ईमानदार प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने शुरू की है, उसे रोक सको। भारत की जांच एजेंसियां कानूनी तरीके से, ईमानदारी से अपना काम कर रही है। आज सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि न्याय, ईमानदारी, सच्चाई और कानून वह किस तरफ है।
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