अपराधिक हिंसा के संरक्षणकर्ता नेता व दल के राजनैतिक अधिकार समाप्त हों - अरविन्द सिसोदिया
अपराध का संरक्षण करने वाले दल और नेताओं के राजनैतिक अधिकार समाप्त हों - अरविन्द सिसोदिया
पहले ही अपराध में दंड मिले, तो अपराधवृति पर ब्रेक लगे - अरविन्द सिसोदिया
मेरा व्यक्तिगत मानना है कि अपराधी को पहले - दूसरे अपराध में ही जल्दी दंड मिल जाये तो ब्रेक लग जाता है। किन्तु लचर जाँच प्रक्रिया,जमानत आसानी से मिलना और वर्षों तक मुकदमेँ बाजी तथा ज्यादातर गवाह और सबूत कमजोर होने से,अपराधी बरी हो जाते हैं। इससे अपराधी को अपराधकरना एक आसान रास्ता लगता है और फिर वह धीरे धीरे बड़ा माफिया बन जाता है। इसका एक बड़ा कारण तो पुलिस व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार ही है। जैसे ही एक अपराधी नामवर बनता है, उसे अकूत संपत्ती बनाने की लालसा वाले राजनेता अपने सुरक्षा एजेंट की तरह रख लेते है। यही राजनैतिक संरक्षण समाज को माफियागिरी बन कर डसता है।
आज किस ज्युडिशियल सिस्टम की बात कर रहे हैं ? वही ज्युडिशियल सिस्टम है , जिसमें ज्यादातर अपराधी बरी हो जाते हैं। अदालतें अपराधियों को बरी तो करती रहीं हैं , मगर जाँच एजेंसी से यह नहीं पूछते कि अपराध के लिये जिम्मेवार अपराधी कौन है? एक व्यक्ती की हत्या हुई तो हत्यारा कौन है। सच यह है की अपराध के विरुद्ध न्यायपालिका को सख्त होना चाहिए, किन्तु वह मात्र पुलिस और कार्यपालिका के विरुद्ध सख्त नजर आती है।
जब भारत में न्यायपालिका, लोकतंत्र, विधायिका ओर कार्यपालिका सहित तमाम मीडिया ओर विश्वव्यवस्था...., अपराध ओर हिंसा से पराजित हो गईं तब ईश्वरीय व्यवस्था नें गुजरात में नरेन्द्र मोदी जी को और उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी को भेजा। इन्होंने राजनैतिक पद की प्रभुता से हिंसा और भय के संविधान व लोकतंत्र विरोधी साम्राज्य को समाप्त किया। इसीलिए भारत की जनता नें इन्हे सिर आँखों पर बिठाया हुआ है।
गुजरात में रामभक्तों को सावरमती एक्सप्रेस में गोधरा स्टेशन पर एक वर्ग विशेष के कांग्रेस पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं नें जिन्दा जला दिया। 50 से ज्यादा रामभक्त मोके पर ही कालकलवित हुए, क्रिया की प्रतिक्रिया में गुजरात जल उठा। गुजरात में भड़की हिंसा के लिए कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोग जिम्मेवार थे। किन्तु कांग्रेस के नेताओं नें इसे मुख्यमंत्री मोदी जी के माथे मड़ने की तमाम कोशिशेँ की, जिन्हे न्यायपालिका ने असत्य पाया। कुल मिला कर हिंसक तत्वों को राजनैतिक संरक्षण नहीं मिलना चाहिए, किन्तु मिलता था।
उत्तरप्रदेश में भी योगीजी के राज से पहले यही हाल था। इलाहाबाद कोर्ट के जज माफिया डान अतीक अहमद के आते ही कुर्सी छोड़कर हट जाते थे। आज उसी यूपी में कानून का राज चल रहा है। तो विपक्ष को माफियाओं के हितों की चिंता हो रही है।
याद रहे कि अदालत को भी अपनी सुरक्षा की आवश्यकता रहती है। जब अदालतें सुरक्षित रहेंगी , तभी अदालतों में फैसले भी निर्भयता से न्यायपूर्ण हो पाएंगे।
वहीं अदालतें भी पुलिस के द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे साक्षीयों पर निर्भर करती है। जिसमें पुलिस कमजोर इसलिए साबित होती है कि साक्षीयों को बयान बदलने का मौका मिल जाता है अथवा संरक्षण के अभव में गवाह मुकर जाते हैं। इससे अधिकांश अपराधी दंड से बच जाते हैं। इसलिए दोष को दूर किया जाना चाहिए।
पुलिस के अधिवक्ता भी कमजोर साबित होते हैं, राज्य सरकार के दल की अनुशंसा पर दलगत हित से नियुक्त होते हैं और उनका नेचर भी दलगत ही रहता है। योग्यता से समझौता कर दल के कार्यकर्ताओं की अधिकांश नियुक्तियां होती हैं। जो न्याय करवानें में अधिकांशतः विफल रहती हैं।
योगीजी के राज में, जनता की आवाज रूपी जन अदालत में जनता भी खुश है और अदालत भी निर्भय है ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट भारत में तमाम ऐतिहासिक फैसलों के लिए जाना जाता है। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही 2012 में माफिया अतीक अहमद की जमानत याचिका पर सुनवाई करने और उसे जमानत देने के मामले से एक-एक कर 10 जजों ने स्वयं को मामले पर सुनवाई से अलग कर लिया था। इतना भय, इतना खौफ था तब, और 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत भी दी।
उत्तरप्रदेश के लोगों को 12 मार्च 2007 तो याद करते है ? योगी आदित्यनाथ जी लोकसभा में रो रहे थे, माफिताओं के हित चिंतक, भाजपा के विरोधी दल हंस रहे थे। ध्यान रखिए कि संसद में 2007 से पहले भी जनता के लिए कोई नहीं रोया था, न ही 2007 के बाद आज तक भी ।
क्योंकि योगी से पहले कोई योगी नहीं हुआ, योगी के बाद आज तक कोई मुकाबले में नहीं है। यह 2007 का 12 मार्च योगी के लिए अपनी बेबसी का सबसे निचला स्तर था। जिसनें एक मज़बूत और दृड निश्चियी योगीजी का निर्माण किया।
जब अपराधी तत्व प्रदेश की कानून व्यवस्था को मिट्टी में मिलाने आतुर हों। न्यायपालिका फेल हो रही हो। लोकतंत्र भय के सामनें पराजित हो रहा हो, तो मोदीजी का गुजरात मॉडल और योगीजी का उत्तरप्रदेश मॉडल समय की आवश्यकता है। कानून का राज स्थापित करने का कार्यपालिका को सर्वोच्च अधिकार संविधान प्रदान करता है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है की जो भी राजनैतिक दल या दल का नेता अपराधियों का साथ दे, उसके राजनैतिक अधिकार व मान्यता समाप्त कर देना चाहिए। न्यायपालिका और निर्वाचन आयोग को इस हेतु आगे आना चाहिए क्योंकि राजनैतिक दल स्वयं ऐसा नहीं करेंगे।
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