करवा चौथ : सुहागिन महिलाओं का प्रिय पर्व - नीना शर्मा
- नीना शर्मा
आज
बहूत सखियों ने पुछा की ठीक विधि क्या है ? इस पर ये कहना छौंगी की सभी के
घरो की अपनी परंपरा होती है उसके ही तौर तरीके से ही करनी चहिये मेरे एक
प्रिये दोस्त ने कहा की इस व्रत का कुछ महात्म्य है या यूँ ही लेडीज को भाव दे कर उल्लू बनाया मर्द क्यों नही करते..? ये भी सही है कई पति
भी रखते हैं उलू बनाने की बात कुछ भी नहीं ये हिन्दू धर्म में ये भी एक
व्रत है मेरे विचार से पति का ध्यान अपनी तरफ करने के लिए भी हो सकता है कभी कभी भटक जाते हैं
खैर हिन्दू धर्म में इसका क्या महत्व है ये लिख रही हूँ ......विधि-विधान
से करें करवा चौथ-सौभाग्यदायक व्रत है करवा चौथ--पति की दीर्घायु के लिए
सुहागिन महिलाओं का प्रिय पर्व करवा चौथ का व्रत में महिलाएँ आज दिन भर
निर्जल रहकर विधि-विधान से करेंगी। विधि-विधान से किया गया व्रत बहुत ही
फलदाई होता है। इसमें व्रत की कथा सुनने का भी बहुत महत्व है।
व्रत का विधि-विधान :- करवा चौथ के व्रत के दिन शाम को लकड़ी के पटिए पर लाल वस्त्र बिछाएँ। इसके बाद पटिए पर भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करें। वहीं एक लोटे पर श्रीफल रखकर उसे कलावे से बाँधकर वरुण देवता की स्थापना करें। तत्पश्चात मिट्टी के करवे में गेहूँ, शक्कर व नकद रुपया रखकर कलावा बाँधे।
इसके बाद धूप, दीप, अक्षत व पुष्प चढ़ाकर भगवान का पूजन करें। पूजन के समय करवे पर 13 बार टीका कर उसे सात बार पटिए के चारों ओर घुमाएँ। हाथ में गेहूँ के 13 दाने लेकर करवा चौथ की कथा का श्रवण करें। पूजन के दौरान ही सुहाग का सारा सामान चूड़ी, बिछिया, सिंदूर, मेंहदी, महावर आदि करवा माता पर चढ़ाकर अपनी सास या ननद को दें। फिर चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से पहला निवाला खाकर व्रत खोलें।व्रत की पौराणिक कथा :- यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात बेटे व वीरावती नाम की एक कन्या थी। वीरावती ने पहली बार मायके में करवा चौथ का व्रत रखा। निर्जला व्रत होने के कारण वीरावती भूख के मारे परेशान हो रही थी तो उसके भाइयों से रहा न गया। उन्होंने नगर के बाहर वट के वृक्ष पर एक लालटेन जला दी व अपनी बहन को चंदा मामा को अर्घ्य देने के लिए कहा।
वीरावती जैसे ही अर्घ्य देकर भोजन करने के लिए बैठी तो पहले कौर में बाल निकला, दूसरे कौर में छींक आई। वहीं तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया। वीरावती जैसे ही ससुराल पहुँची तो वहाँ पर उसका पति मृत्यु हो चुकी थी। पति को देखकर वीरावती विलाप करने लगी। तभी इंद्राणी आईं और वीरावती को बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत करने को कहा।
वीरावती ने पूर्ण श्रद्धाभक्ति से बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके प्रताप से उसके पति को पुन: जीवन मिल गया। अतः पति की दीर्घायु के लिए ही महिलाएँ पुरातनकाल से करवा चौथ का व्रत करती चली आ रही हैं।शास्त्रों में है वर्णित :- शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के समान फलदायक व सौभाग्यदायक व्रत कोई दूसरा नहीं है। यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा 12 वर्ष व 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। व्रत की अवधि पूरी होने के पश्चात महिलाएँ इसका उद्यापन करती हैं। जो स्त्रियाँ इसे आजीवन रखना चाहें, वे जीवन भर इस व्रत को रख सकती हैं। व्रत का यह विधान काफी प्राचीन है।
द्रौपदी और पार्वती ने भी किया व्रत:- कहा जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत किया था। जब अर्जुन नीलगिरि पर्वत पर तप करने गए थे, तब द्रौपदी बेहद परेशान हो गई थीं। भगवान श्रीकृष्ण की सलाह से द्रौपदी ने यह व्रत कर चंद्र को अर्घ्य दिया था। वहीं माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया था।
करवा चौथ की पौराणिक कथाएं---करवा चौथ की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा। तब चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा।
तब कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवा चौथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सबकुछ ठीक हो जाएगा।
कृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रोपदी ने वैसा ही करवा चौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं।
जब मां पार्वती द्वारा भगवान शिव से पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना की विधि पूछी तब शिव ने 'करवा चौथ व्रत’ रखने की कथा सुनाई थी। करवा चौथ का व्रत करने के लिए श्रीकृष्ण ने दौपदी को निम्न कथा का उल्लेख किया था।
पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भी कहा की मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।
करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूँगी।
करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
करवा चौथ व्रत की पूजन विधि
करवा चौथ का व्रत कैसे करें----
हिंदू सनातन पद्धति में करवा चौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत का पारायण करती हैं।
सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यदि दो दिन की चंद्रोदय व्यापिनी हो या दोनों ही दिन, न हो तो 'मातृविद्धा प्रशस्यते' के अनुसार पूर्वविद्धा लेना चाहिए।
स्त्रियां इस व्रत को पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है। सार तो सभी का एक होता है पति की दीर्घायु।
करवा चौथ व्रत विधि :-
* करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
* व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
* पूरे दिन निर्जला रहें।
* दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
* आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
* पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
* गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
* जल से भरा हुआ लोटा रखें।
* वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
* रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
* गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'
* करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
* कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
* तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
* रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
* इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
रिश्ते को नई ऊर्जा देगा करवा का चांद---त्योहार, पर्व, व्रत और पूजा-पाठ... आस्था और भावना से जुड़े ये सारे निमित्त असल में तब खुद-ब-खुद होते चले जाते हैं, जब आप किसी से दिल से जुड़े होते हैं। फिर अगर ये सब उसके लिए हों, जिसके साथ आपने अपनी खुशियां तो सही खुद का भी साझा किया हो, तो इन सबका महत्व और भी बढ़ जाता है।
चांद की रोशनी जब छत पर आएगी तो साथ भीगने में मजा आएगा...। वैसे भी रोज तो हम कहां ऐसा कर पाते हैं...। रोज तो उस रोशनी को ही कहां देख पाते हैं... कुछ दिन स्याह बादलों का दुपट्टा उसे छुपाकर रखता है तो कुछ दिन तुम्हारी-मेरी जिंदगी का गणित हमें उलझाए रखता है...।
वैसे रोशनी के उस समंदर में भीगने के लिए सालभर का ये इंतजार खलता नहीं... भीगने के बाद फिर साल भर के लिए दिल में कैद रह जाती है वो रोशनी और उसकी छुअन से मन में कई-कई जुगनू पैदा हो जाते हैं, जिनकी चमक तुम्हारे और मेरे बीच बनी रहती है...।
इस बार फिर जब आएगा चांद, साथ लेकर वो रोशनी तो हम-तुम फिर से खड़े होंगे... प्रतीक्षारत उस रोशनी में भीगने को आतुर...। रोशनी जो मेरे-तुम्हारे रिश्ते को नई ऊर्जा दे जाती है।
करवा चौथ ऐसा ही एक पर्व है। यहां दिन भर भूखे रहकर उपवास करने तथा शाम को पति के हाथों जल पीकर उपवास खोलने से लेकर छलनी से चांद देखने, सजने-संवरने तथा हंसी-ठिठोली करने के पीछे तमाम आस्थाओं और भावनाओं के साथ ही खुद के लिए कुछ समय निकालने का मकसद भी रहता है।
दाम्पत्य से जुड़े मन के गहरे तार और एक-दूसरे के लिए दिल में गहरे प्रेम को भी अलग शब्दों में परिभाषित कर जाते हैं ऐसे अवसर। कहीं पतियों के मन में भी इस बात का अहसास रहता है कि हमारी लंबी उम्र और सफलता के लिए पत्नियों ने व्रत रखा है। कुछ पुरुष अपनी इस भावना को प्रदर्शित कर देते हैं और कुछ मन में ही रखते हैं, लेकिन यह भावना उनके मन में प्रेम के प्रवाह को बनाए रखती है।
बदलते समय के साथ आज परंपराओं और त्योहारों के स्वरूप में भी परिवर्तन आया है। अब करवा चौथ भावना के अलावा रचनात्मकता, कुछ-कुछ प्रदर्शन और आधुनिकता का भी पर्याय बन चुका है।इसका कुछ असर फिल्मो से और टीवी से भी पड़ता है आज कल के बचे उन्ही तरीको से अपना करवाचौथ मनाते हैं मेनिक्युर ,पेदिक्युर ,फेशियल मेहंदी लगाती हैं पुरे दिन अपने को सजाने में लगाती हैं और जिनको समय नहीं मिलता वो भी मेहंदी लगवाने की कोशिश जरुर करती हैं
व्रत का विधि-विधान :- करवा चौथ के व्रत के दिन शाम को लकड़ी के पटिए पर लाल वस्त्र बिछाएँ। इसके बाद पटिए पर भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करें। वहीं एक लोटे पर श्रीफल रखकर उसे कलावे से बाँधकर वरुण देवता की स्थापना करें। तत्पश्चात मिट्टी के करवे में गेहूँ, शक्कर व नकद रुपया रखकर कलावा बाँधे।
इसके बाद धूप, दीप, अक्षत व पुष्प चढ़ाकर भगवान का पूजन करें। पूजन के समय करवे पर 13 बार टीका कर उसे सात बार पटिए के चारों ओर घुमाएँ। हाथ में गेहूँ के 13 दाने लेकर करवा चौथ की कथा का श्रवण करें। पूजन के दौरान ही सुहाग का सारा सामान चूड़ी, बिछिया, सिंदूर, मेंहदी, महावर आदि करवा माता पर चढ़ाकर अपनी सास या ननद को दें। फिर चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से पहला निवाला खाकर व्रत खोलें।व्रत की पौराणिक कथा :- यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात बेटे व वीरावती नाम की एक कन्या थी। वीरावती ने पहली बार मायके में करवा चौथ का व्रत रखा। निर्जला व्रत होने के कारण वीरावती भूख के मारे परेशान हो रही थी तो उसके भाइयों से रहा न गया। उन्होंने नगर के बाहर वट के वृक्ष पर एक लालटेन जला दी व अपनी बहन को चंदा मामा को अर्घ्य देने के लिए कहा।
वीरावती जैसे ही अर्घ्य देकर भोजन करने के लिए बैठी तो पहले कौर में बाल निकला, दूसरे कौर में छींक आई। वहीं तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया। वीरावती जैसे ही ससुराल पहुँची तो वहाँ पर उसका पति मृत्यु हो चुकी थी। पति को देखकर वीरावती विलाप करने लगी। तभी इंद्राणी आईं और वीरावती को बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत करने को कहा।
वीरावती ने पूर्ण श्रद्धाभक्ति से बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके प्रताप से उसके पति को पुन: जीवन मिल गया। अतः पति की दीर्घायु के लिए ही महिलाएँ पुरातनकाल से करवा चौथ का व्रत करती चली आ रही हैं।शास्त्रों में है वर्णित :- शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के समान फलदायक व सौभाग्यदायक व्रत कोई दूसरा नहीं है। यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा 12 वर्ष व 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। व्रत की अवधि पूरी होने के पश्चात महिलाएँ इसका उद्यापन करती हैं। जो स्त्रियाँ इसे आजीवन रखना चाहें, वे जीवन भर इस व्रत को रख सकती हैं। व्रत का यह विधान काफी प्राचीन है।
द्रौपदी और पार्वती ने भी किया व्रत:- कहा जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत किया था। जब अर्जुन नीलगिरि पर्वत पर तप करने गए थे, तब द्रौपदी बेहद परेशान हो गई थीं। भगवान श्रीकृष्ण की सलाह से द्रौपदी ने यह व्रत कर चंद्र को अर्घ्य दिया था। वहीं माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया था।
करवा चौथ की पौराणिक कथाएं---करवा चौथ की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा। तब चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा।
तब कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवा चौथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सबकुछ ठीक हो जाएगा।
कृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रोपदी ने वैसा ही करवा चौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं।
जब मां पार्वती द्वारा भगवान शिव से पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना की विधि पूछी तब शिव ने 'करवा चौथ व्रत’ रखने की कथा सुनाई थी। करवा चौथ का व्रत करने के लिए श्रीकृष्ण ने दौपदी को निम्न कथा का उल्लेख किया था।
पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भी कहा की मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।
करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूँगी।
करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
करवा चौथ व्रत की पूजन विधि
करवा चौथ का व्रत कैसे करें----
हिंदू सनातन पद्धति में करवा चौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत का पारायण करती हैं।
सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यदि दो दिन की चंद्रोदय व्यापिनी हो या दोनों ही दिन, न हो तो 'मातृविद्धा प्रशस्यते' के अनुसार पूर्वविद्धा लेना चाहिए।
स्त्रियां इस व्रत को पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है। सार तो सभी का एक होता है पति की दीर्घायु।
करवा चौथ व्रत विधि :-
* करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
* व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
* पूरे दिन निर्जला रहें।
* दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
* आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
* पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
* गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
* जल से भरा हुआ लोटा रखें।
* वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
* रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
* गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'
* करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
* कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
* तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
* रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
* इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
रिश्ते को नई ऊर्जा देगा करवा का चांद---त्योहार, पर्व, व्रत और पूजा-पाठ... आस्था और भावना से जुड़े ये सारे निमित्त असल में तब खुद-ब-खुद होते चले जाते हैं, जब आप किसी से दिल से जुड़े होते हैं। फिर अगर ये सब उसके लिए हों, जिसके साथ आपने अपनी खुशियां तो सही खुद का भी साझा किया हो, तो इन सबका महत्व और भी बढ़ जाता है।
चांद की रोशनी जब छत पर आएगी तो साथ भीगने में मजा आएगा...। वैसे भी रोज तो हम कहां ऐसा कर पाते हैं...। रोज तो उस रोशनी को ही कहां देख पाते हैं... कुछ दिन स्याह बादलों का दुपट्टा उसे छुपाकर रखता है तो कुछ दिन तुम्हारी-मेरी जिंदगी का गणित हमें उलझाए रखता है...।
वैसे रोशनी के उस समंदर में भीगने के लिए सालभर का ये इंतजार खलता नहीं... भीगने के बाद फिर साल भर के लिए दिल में कैद रह जाती है वो रोशनी और उसकी छुअन से मन में कई-कई जुगनू पैदा हो जाते हैं, जिनकी चमक तुम्हारे और मेरे बीच बनी रहती है...।
इस बार फिर जब आएगा चांद, साथ लेकर वो रोशनी तो हम-तुम फिर से खड़े होंगे... प्रतीक्षारत उस रोशनी में भीगने को आतुर...। रोशनी जो मेरे-तुम्हारे रिश्ते को नई ऊर्जा दे जाती है।
करवा चौथ ऐसा ही एक पर्व है। यहां दिन भर भूखे रहकर उपवास करने तथा शाम को पति के हाथों जल पीकर उपवास खोलने से लेकर छलनी से चांद देखने, सजने-संवरने तथा हंसी-ठिठोली करने के पीछे तमाम आस्थाओं और भावनाओं के साथ ही खुद के लिए कुछ समय निकालने का मकसद भी रहता है।
दाम्पत्य से जुड़े मन के गहरे तार और एक-दूसरे के लिए दिल में गहरे प्रेम को भी अलग शब्दों में परिभाषित कर जाते हैं ऐसे अवसर। कहीं पतियों के मन में भी इस बात का अहसास रहता है कि हमारी लंबी उम्र और सफलता के लिए पत्नियों ने व्रत रखा है। कुछ पुरुष अपनी इस भावना को प्रदर्शित कर देते हैं और कुछ मन में ही रखते हैं, लेकिन यह भावना उनके मन में प्रेम के प्रवाह को बनाए रखती है।
बदलते समय के साथ आज परंपराओं और त्योहारों के स्वरूप में भी परिवर्तन आया है। अब करवा चौथ भावना के अलावा रचनात्मकता, कुछ-कुछ प्रदर्शन और आधुनिकता का भी पर्याय बन चुका है।इसका कुछ असर फिल्मो से और टीवी से भी पड़ता है आज कल के बचे उन्ही तरीको से अपना करवाचौथ मनाते हैं मेनिक्युर ,पेदिक्युर ,फेशियल मेहंदी लगाती हैं पुरे दिन अपने को सजाने में लगाती हैं और जिनको समय नहीं मिलता वो भी मेहंदी लगवाने की कोशिश जरुर करती हैं
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