राजमाता से लोकमाता : आदरणीय विजयाराजे सिंधिया
*** आदरणीय राजमाता सिंधिया की जयंती ***
करबा चौथ
**** 12 अक्टूबर 1919 *****
**** 25 जनवरी, 2001 पुण्य तिथि *****
**** 12 अक्टूबर 1919 *****
**** 25 जनवरी, 2001 पुण्य तिथि *****
सम्मानीया ग्वालियर राजघराने की बहू और फिर देश की लोकप्रिय नेत्रियों में शुमार प्रखर राष्टवादी एवं धर्मनिष्ठ माननीया विजयाराजे जी सिंधिया यानी राजमाता का जन्म करवा चौथ (तिथि के अनुसार) 1919 ई. में, सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। सम्मानीया विजयाराजे सिंधिया के पिता श्री महेन्द्रसिंह जी ठाकुर जालौन जिला के डिप्टी कलेक्टर थे, उनका विवाह के पूर्व का नाम "लेखा दिव्येश्वरी" था। उनका विवाह 21 फरवरी 1941 ई में ग्वालियर के महाराजा सम्मानीय जीवाजी राव जी सिंधिया से हुआ था। और 25 जनवरी, 2001 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया।| राजमाता साहिबा के पांच संताने हुई, जिसमें प्रथम सम्मानीया पदमावती राजे सिंधिया, द्वितीय सम्मानीया ऊषा राजे सिंधिया, तृतीय सम्मानीय माधवराव सिंधिया, चतुर्थ सम्मानीया वसुंधरा राजे सिंधिया, पंचम सम्मानीया यशोधरा राजे सिंधिया ! राजमाता जी का आदर्श जीवन, सिद्धान्त और लोकसेवा भाव लाखों लोगों को प्रेरित करता रहा है।
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जब राजमाता जी ने अध्यक्ष पद अस्वीकार कर दिया
पहली बार पार्टी अध्यक्ष बनना - लाल कृष्ण आडवाणी
मुझे पार्टी अध्यक्ष बनने में बहुत ही संकोच हो रहा था। पार्टी अध्यक्ष बनने का दायित्व मेरे ऊपर कैसे आया, यह एक रोचक कहानी है, जो यहाँ उल्लेख करने योग्य है। मैंने पिछले अध्याय में उल्लेख किया कि फरवरी 1968 में पं. दीनदयाल उपाध्याय की दु:खद मृत्यु के पश्चात् अटलजी पार्टी अध्यक्ष बने थे, वे सन् 1971 के चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहे थे। 1972 के प्रारंभ में अटलजी ने मुझसे कहा, 'अब आप पार्टी के अध्यक्ष बन जाइए।' इसका कारण पूछने पर उन्होंने कहा, 'मैं इस पद पर अपना चार वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुका हूँ। अब समय है कि कोई नया व्यक्ति दायित्व स्वीकार करे।'
मैंने उनसे कहा, 'अटलजी, मैं किसी जनसभा में भाषण भी नहीं दे सकता हूँ। फिर मैं पार्टी अध्यक्ष कैसे हो सकता हूँ?' उन दिनों मैं जनता के बीच बोलने में भी पटु नहीं था और मुझे बोलने में संकोच भी होता था। मैं यह जरूर स्वीकार करता हूँ कि मेरे अंदर इस ग्रंथि के पनपने का एक बहुत बड़ा कारण अटलजी के साथ मेरा निकट संपर्क था, जो अपनी जादुई भाषण कला से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे।
अटलजी ने जोर देकर कहा, 'लेकिन अब तो आप संसद् में बोलने लगे हैं। फिर यह संकोच कैसा?'
मैंने उनसे कहा, 'संसद् में बोलना एक बात है और हजारों लोगों के सामने भाषण देना अलग बात है। इसके अतिरिक्त पार्टी में कई वरिष्ठ नेता हैं। उनमें से किसी को पार्टी अध्यक्ष बनाया जा सकता है।'
अटलजी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, 'किंतु दीनदयालजी भी वक्ता नहीं थे, लेकिन लोग उन्हें बहुत ही ध्यान से सुनते थे; क्योंकि उनके शब्दों में गहन चिंतन मौजूद रहता था। इसलिए पार्टी को नेतृत्व प्रदान करने के लिए बहुत बड़ा वक्ता होना आवश्यक नहीं है।'
मैं इस बात से प्रभावित नहीं हुआ। मैंने कहा, 'नहीं-नहीं, मैं पार्टी अध्यक्ष नहीं बन सकता। कृपया किसी अन्य व्यक्ति को ढूँढ़िए।'
उन्होंने कहा, 'दूसरा व्यक्ति कौन हो सकता है?'
मैंने कहा, 'राजमाता क्यों नहीं?'
विजयाराजे सिंधिया को ग्वालियर की राजमाता* के रूप में जाना जाता था। भारत के विशालतम और संपन्नतम राजेरजवाड़ों में से ग्वालियर एक था। उस रियासत के महाराजा के साथ उनका विवाह हुआ था। अपने पति की मृत्यु के बाद सन् 1962 में कांग्रेस के टिकट पर वे संसद् सदस्य बनीं। पाँच साल के बाद अपने सैध्दांतिक मूल्यों के दिशा-निर्देश पर वे कांग्रेस छोड़कर जनसंघ में शामिल हो गईं। एक राजपरिवार से रहते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबध्दता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गईं। शीघ्र ही वे पार्टी में शक्ति स्तंभ के रूप में सामने आईं।
अटलजी मेरे सुझाव से सहमत हो गए और हम दोनों राजमाता को जनसंघ अध्यक्ष बनने के लिए मनाने के उद्देश्य से ग्वालियर गए। वास्तव में उन्हें काफी मनाना पड़ा, किंतु अंतत: वे मान गईं। हमें राहत और प्रसन्नता मिली। स्वीकृति के लिए हमने उन्हें धन्यवाद दिया। फिर तुरंत उन्होंने कहा, 'किंतु कृपया प्रतीक्षा करें। अपनी अंतिम स्वीकृति के लिए आपको मुझे एक दिन का और समय देना होगा। जैसाकि आप जानते हैं, मैं अपने जीवन में कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय दतिया में रहनेवाले अपने श्रीगुरुजी की अनुमति और आशीर्वाद के बिना नहीं लेती हूँ।' उसी दिन वे मध्य प्रदेश के उस छोटे से नगर दतिया गईं। किंतु दूसरे दिन वापस लौटकर उन्होंने अप्रिय समाचार सुनाया'मेरे श्रीगुरुजी ने इसकी अनुमति नहीं दी।'
'अब हमें क्या करना चाहिए?' अटलजी ने पूछा।
मैंने कहा, 'हम लोग महावीरजी को क्यों नहीं मनाते हैं?' प्रसिध्द स्वतंत्रता सेनानी भाई परमानंद* के पुत्र डॉ. भाई महावीर जनसंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और उस समय राज्यसभा के सदस्य थे।
अटलजी इससे सहमत हो गए और हम दोनों जगन्नाथ राव जोशी के साथ महावीरजी से मिलने उनके पंत मार्ग, नई दिल्ली स्थित निवास पर गए। बिना किसी अधिक मान-मनौवल के वे सहमत हो गए। हम अपने मिशन की सफलता पर राहत महसूस करने लगे कि उन्होंने कहा, 'कृपया एक क्षण प्रतीक्षा करें। इस संबंध में मैं अपनी पत्नी से सलाह करना चाहूँगा।'वे घर के अंदर गए और कुछ समय बाद बुरी खबर के साथ वापस लौटे'मेरी पत्नी इससे सहमत नहीं हैं।'
जब हम उनके घर से बाहर निकले तो अटलजी ने मुझसे कहा, 'अब और असफल प्रयास नहीं। अब आपके पास विकल्प नहीं है, बल्कि मैं जो कहता हूँ उसपर 'हाँ' कहना है।' इस प्रकार औपचारिक रूप से मुझे दिसंबर 1972 में भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। उसके तुरंत बाद मैंने कानपुर में पार्टी के अठारहवें वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की।
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भोपाल| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि विजयराजे सिंधिया (राजमाता सिंधिया) सिद्धांतों के प्रति समर्पित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से ओतप्रोत विदुषी जननायक थीं। उन्होंने महलों के वैभव को छोड़कर जनता के न्याय के लिए संघर्ष का मार्ग स्वीकार किया और सड़कों पर उतरकर राजमाता से लोकमाता बन गईं। प्रदेश कार्यालय में विजयराजे सिंधिया की 95वीं जयंती को मंगलवार को मातृशक्ति दिवस के रूप मनाया गया। इस मौके पर तोमर ने कहा कि राजमाता ने जीवन पर्यन्त आम आदमी की तरह जीवन जिया, सेवा की उनमें ललक थी। सादगी और सरलता उनका स्वभाव था। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक राजमाता महिला मोर्चा के माध्यम से महिलाओं से जुड़ी रहीं और उनके बीच में पहुंचकर महिलाओं को सदैव प्रेरित करती रहीं। राजमाता हमेशा सेवा के लिए समर्पित रहीं। उन्हें पद और सत्ता ने कभी आकर्षित नहीं किया। उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया।
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वर्ष | पद |
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1957 | लोकसभा (दूसरी) के लिए निर्वाचित |
1962 | लोकसभा (तीसरी) के लिए पुन: निर्वाचित |
1967 | मध्य प्रदेश विधान सभा के लिए निर्वाचित |
1971 | लोकसभा (पाँचवी) के लिए तीसरी बार निर्वाचित |
1978 | राज्यसभा के लिए निर्वाचित |
1989 | लोकसभा (नौंवी) के लिए चौथी बार निर्वाचित |
1990 | सदस्य, मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति |
1991 | लोकसभा (दसवीं) के लिए पाँचवी बार निर्वाचित |
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