प्याज की बंपर पैदावार, फिर कीमतें क्यों बढ़ीं?
प्याज के बढ़ते दामों के चलते यह आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गया है। ओडिशा के पुरी तट पर लोगों के इसी दर्द को सुदर्शन पटनायक ने कुछ यूं दर्शाया। पटनायक रेत पर कलाकृतियां बनाने के लिए मशहूर हैं।
प्याज की बंपर पैदावार, फिर कीमतें क्यों बढ़ीं?
प्याज: उत्पादन तो खूब बढ़ा फिर क्यों बढ़ीं कीमतें?
टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Oct 25, 2013,
सुबोध वर्मा
नई दिल्ली।। सच तो यह है कि यह बताना लगभग असंभव है कि प्याज की कीमतें आसमान क्यों छू रही हैं। पिछले 10 सालों में प्याज की पैदावार 42 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से बढ़कर 163 एलएमटी पर पहुंच चुकी है। इसके बावजूद इसकी कीमतों में ऐसी वृद्धि हैरान करती है। कुल मिलाकर देखें तो एक दशक में प्याज की पैदावार में 300 फीसदी का उछाल आया है।
इसी टाइम पीरियड की बात करें तो भारत की जनसंख्या में हर साल 1.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। तो ऐसे में यह साफ है कि यदि पूरा देश केवल प्याज ही खा रहा हो, तो भी देश में पैदा हो रहा इतना प्याज आखिर जा कहां रहा है?
नासिक के नैशनल हॉर्टिकल्चरल रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट फाउंडेशन के डेप्युटी डायरेक्टर एचआर शर्मा ने कहा कि इस साल (2013-14) प्याज का प्रॉडक्शन 10-15% बढ़ने की उम्मीद है। कृषि मंक्षात्रय के ही तहत आने वाली एक और संस्था डायरेक्टोरेट ऑफ अन्यन ऐंड गार्लिक रिसर्च डायरेक्टर जयगोपाल के मुताबिक, एक्सपोर्ट या प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज द्वारा प्याज की खपत भी कीमत बढ़ोतरी की वजह नहीं है। उन्होंने कहा, 'एक्सपोर्ट कुल उत्पादन का 10 फीसदी ही है। प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी प्याज की खपत उत्पाद का करीब 10% ही है।'
ऐसे में सवाल उठता है कि सारे प्याज कहां जा रहे हैं? सितंबर में बारिश की वजह से ढुलाई में हुई दिक्कत जैसे तात्कालिक कारणों को छोड़ दिया जाए तो प्रमुख समस्या भारत में प्याज की सप्लाई चेन को लेकर है। कॉम्पिटिशन कमिशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) की भारत के प्याज मार्केट पर रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रेडर्स और कमिशन एजेंट्स का मंडियों में कुछ इस तरह का कब्जा है कि उनके चलते किसानों से लेकर आम आदमी तक सभी पिस रहे हैं।
यह रिपोर्ट बेंगलुरु के इंस्टिट्यूट फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक चेंज ने तैयार की है। संस्था ने स्टडी में किसानों, होलसेल ट्रेडर्स, कमिशन एजेंट्स, रीटेलर्स और कंज्यूमर को शामिल किया गया है। कर्नाटक और महाराष्ट्र की करीब 11 मंडियों को केंद्र में रखा गया।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, एक किसान औसतन 1.3 एकड़ से भी कम जमीन पर प्याज की खेती कर रहा है। इनमें से ज्यादातर किसानों को प्याज की कीमतों के बारे में कोई खास जानकारी नहीं होती और वे उन्हीं कीमतों पर यकीन करते हैं जो उन्हें कमिशन एजेंट्स और ट्रेडर्स बताते हैं। ऐसे में धांधली की गुंजाइश बहुत ज्यादा होती है। सीसीआई की मेंबर गीता गौरी ने बताया कि रिपोर्ट राज्य सरकारों को भेज दी गई है।
जानकारों को लगता है कि नई मंडियां खोलने, किसानों को डायरेक्ट सेलिंग की सुविधा देने जैसे कुछ खास कदम उठाने से समस्या सुलझ सकती है।
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