आजादी पर कुर्बान सभी शहीद को इतिहास में मिले सम्मान,तभी स्वतंत्रता पर्व सार्थक - अरविन्द सिसौदिया

 


आजादी पर कुर्बान सभी शहीद को इतिहास में मिले सम्मान,तभी स्वतंत्रता पर्व सार्थक - अरविन्द सिसौदिया
All the martyrs who sacrificed on independence should get respect in history, only then the festival of independence is meaningful - Arvind Sisodia

आजादी पर कुर्बान हुये सभी शहीद को इतिहास में सम्मान मिले, तभी स्वतंत्रता का पर्व सार्थक - अरविन्द सिसौदिया

भारत के स्वतंत्रता दिवस को देखनें समझनें का अजीब क्या नजरिया रहा इस पर बात चलेगी तो दूर तक जायेगी। जिस तरह भारत का इतिहास विकृत किया गया और देश पर हमलावर बाहरी आक्रमणकारी अकबर महान और महाराणा प्रताप चार लाईन में समेट दिये गये, उसी तरह स्वतंत्रता संग्राम का पूर्ण सच न केबल गायव किया गया बल्कि उसे भी दलगत नजरिये से प्रस्तुत किया गया । क्रांतिकारी भगत सिंह आतंकवादी थे और कांग्रेस के सभी लोग स्वतंत्रता सेनानी थे। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज को पाकिस्तान ने तो सेना में रखा किन्तु भारत में उन्हे स्थान नहीं दिया गया।

अंग्रेजों के द्वारा स्थापित दलों को स्वतंत्र भारत की बागडोर अंगेजों नें स्वयं सौंपी, वे अंग्रजों के साथ खडे अट्हास करते रहे और जो अन्य थे उन्हे अंग्रेजों का मुखविर कहा गया। सबको पता है कि किस की मुखबिरी पर चन्द्रशेखर आजाद को घेर कर शहीद किया गया। सब जानते हें कि देश पर शहीद होने वालों को बचानें के लिये एक भी उपवास नहीं किया गया एक भी आमरण अनशन नहीं किया गया।
सबसे बडी कुर्बानी आजाद हिन्द फौज के सैनिकों नें अपने बलिदान से लिखी मगर इतिहास में जिक्र तक नहीं है।

में पढ़नें का शौकीन था, एक दिन एक बुर्जुग साहित्यकार ने मुझे अनेकानेक क्रांतिकारियों पर लिखी पुस्तक देते हुये कहा उपन्यास पढ़ना छोडों , इन्हे पढ़ कर देखों ! इस देश को आगे भी बचाना है। तब मुझे उनकी बात बहतु कुछ हल्की लगी थी । मगर आज यह सही है कि हम आंतकियों को खुल कर आतंकी नहीं कह पाते !  मानवता की हत्या करनें वालों को हत्यारा नहीं कह पाते ।

अर्थात स्वतंत्रता दिवस मनानें की सार्थकता तभी है, जब सभी स्वतंत्रता
सेनानी के संर्घष को बिना भेदभाव और दलगत दृष्टि से ऊपर उठ कर लिखा जाये , उसे सभी को पढाया जाये। इतिहास में दर्ज किया जाये।

साथ ही स्वतंत्रता तभी स्वतंत्रता मानी जायेगी जब मानवता के हत्यारों को खुल कर पूरा देश हत्यारा कह पाये , अन्यथा अपरोक्ष गुलामी ढोना स्वतंत्रता नहीं होती।
 

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