रियल स्टेट में की जा रही राष्ट्रीय लूट को नियंत्रित किया जाये - अरविन्द सिसौदिया

 रियल स्टेट में की जा रही राष्ट्रीय लूट को नियंत्रित किया जाये - अरविन्द सिसौदिया
रियल स्टेट में की जा रही राष्ट्रीय लूट को नियंत्रित किया जाये - अरविन्द सिसौदिया
भारत में रियल स्टेट कारोबार अर्थात बहुमंजिला इमारतों को बनानें और बेचनें का धंधा ।इस धंधे में एक मंजिल अधिक ऊंचाई जाते ही एक क्षैत्रफल विशेष मिल जाता है, दस मंजिल अतिरिक्त बनाते ही 10 क्षैत्रफल मिल जाते हैं। यही असली भ्रष्टाचार है जिसे कोई समझ ही नहीं पाता।

विशेष कथन - किसी भी भूखण्ड पर कितनी ऊंचाई तक निर्माण का अधिकार भू स्वामी को होगा, इसका स्पष्ट नियम होना चाहिये। इसी तरह किसी भू खण्ड पर कितना नीचे तक भूस्वामी को अधिकार होगा इसका निर्णय होना चाहिये। क्यों कि जमीन के नीचे खान मालिकों ने धरती खोखली कर दी तो जमीन के ऊपर रियल स्टेट वालों ने आसमान लांख लिया । पर्यावरण एवं सामान्य व्यवस्थाओं की दृष्टि से दोनो क्षैत्रों ने ही अति कर रखी है। इसलिये केन्द्र सरकार को अविलम्ब इस राष्ट्रीय लूट को रोकनें के लिये नियमबद्धता करनी चाहिये। जो अति कर चुके उनसे वसूली करनी चाहिये। क्यों कि यह राष्ट्रीय क्षति है। राष्ट्रीय सम्पत्ती की लूट है।

भारत में जब से बोफोर्स घोटाला हुआ तब से राजनैतिक क्षैत्र का मकसद ही भ्रष्ट्राचार हो गया है। क्यों कि इससे पहले भारतीय राजनीति पर इटालियन व्यवसायी क्रवात्रोची की छाया नहीं पढ़ी थी। जनप्रतिनिधियों के वेतन भत्तों से लेकर तमाम बडे आर्थिक निर्णयों में अब यह देखा जानें लगा कि “ मेरा क्या “ और राजनेताओं व अधिकारियों को खुश करने या खुश रखनें के लिये राजासत्ताओं का भयंकरतम दुरउपयोग हुआ। नियंत्रण के बजायें सुविधायें दी जानें लगीं। इसी तरह की सुविधाओं को देकर मोटा माल कमानें का क्षैत्र बहुमंजिला इमारतों के निर्माण का रहा । एक आवासीय भूखण्ड को ग्राउण्ड सहित 9 मंजिला इमारत बनानें की इजाजत हो और वह 40 मंजिला इमारत बनानें की अनुमति तक पहुंच जाये तो समझलों कितना भ्रष्ट्राचार राजनैतिक क्षैत्र ने एवं अधिकारियों ने किया होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने जिस दृडता का परिचय दिया, वह स्वागत योग्य है। में सबको खरीद सकता हूं इस तरह की मनोवृति पर कहीं तो लगाम लगी।
 

भारत में प्रशासनिक भ्रष्टता के साथ साथ राजनैतिक भ्रष्टता का ही यह कमाल था कि जिस प्लाट को 9 मंजिल इमारत बनानें को अधिकार दिया गया था उसे माल खा खा कर 40 मंजिल इमारत बनानें तक का अधिकार दे दिया गया। सवाल यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद दोनों टावरों को गिरा कर जमीन में मिला दिया गया है । किन्तु इससे नेशनल लासेज जो हुआ है। राष्ट्रीय क्षती की भरपाई कौन करेगा ?

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32 मंजिल की इमारत खड़ी कैसे हो गई?

कहानी 23 नंवबर 2004 से शुरू होती है। जब नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया। आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल तक मकान बनाने की अनुमति मिली। दो साल बाद 29 दिसंबर 2006 को अनुमति में संशोधन कर दिया गया। नोएडा अथॉरिटी ने संसोधन करके सुपरटेक को नौ की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दे दी। इसके बाद अथॉरिटी ने टावर बनने की संख्या में भी इजाफा कर दिया। पहले 14 टावर बनने थे, जिन्हें बढ़ाकर पहले 15 फिर इन्हें 16 कर दिया गया। 2009 में इसमें फिर से इजाफा किया गया। 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया।

दो मार्च 2012 को टावर 16 और 17 के लिए एफआर में फिर बदलाव किया। इस संशोधन के बाद इन दोनों टावर को 40 मंजिल तक करने की अनुमति मिल गई। इसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। दोनों टावर के बीच की दूरी महज नौ मीटर रखी गई। जबकि, नियम के मुताबिक दो टावरों के बीच की ये दूरी कम से कम 16 मीटर होनी चाहिए।

अनुमति मिलने के बाद सुपरटेक समूह ने एक टावर में 32 मंजिल तक जबकि, दूसरे में 29 मंजिल तक का निर्माण भी पूरा कर दिया। इसके बाद मामला कोर्ट पहुंचा और ऐसा पहुंचा कि टावर बनाने में हुए भ्रष्टाचार की परतें एक के बाद एक खुलती गईं। अब दोनों टावर गिरा दिए गए।
 
इसे गिराने में आठ साल क्यों लग गए?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुपरटेक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट में सात साल चली लड़ाई के बाद 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के अंदर ट्विन टावर को गिराने का आदेश दिया। इसके बाद इस तारीख को आगे बढ़ाकर 22 मई 2022 कर दिया गया। हालांकि, समय सीमा में तैयारी पूरी नहीं हो पाने के कारण तारीख को फिर बढ़ा दी गई थी। आज आखिरकार इसे गिरा दिया गया।  

कैसे दिवालिया हुई सुपरटेक?
ट्विन टावर गिराने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से आरके अरोड़ा की स्थिति खराब होने लगी। करीब 200 करोड़ से ज्यादा की लागत से इसे बनाया गया था। इनमें 711 फ्लैटों की बुकिंग भी हो चुकी थी। इसके लिए कंपनी ने लोगों से पैसे भी ले लिए थे। लेकिन जब इसे गिराने का आदेश दिया गया तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बुकिंग अमाउंट और 12 प्रतिशत ब्याज की रकम मिलाकर 652 निवेशकों के दावे सेटल कर दिए गए। इनमें 300 से अधिक ने रिफंड का विकल्प अपनाया, जबकि बाकी ने मार्केट या बुकिंग वैल्यू और ब्याज की रकम जोड़कर जो राशि बनी उसके अनुसार दूसरी परियोजनाओं में प्रॉपर्टी ले ली। प्रॉपर्टी की कीमत कम या ज्यादा होने पर पैसा रिफंड किया या अतिरिक्त रकम जमा कराई गई।

ट्विन टावर के 59 निवेशकों को अभी तक रिफंड नहीं मिला है। 25 मार्च को सुपरटेक के इंसोल्वेंसी में जाने से रिफंड की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। 14 करोड़  रुपये से अधिक का रिफंड दिया जाना बाकी है। इंसोल्वेंसी में जाने के बाद मई में कोर्ट को बताया गया कि सुपरटेक के पास रिफंड का पैसा नहीं है।

इसके चलते कंपनी को भारी नुकसान हुआ। इसी साल मार्च में सुपरटेक कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया गया। सुपरटेक नाम से कई कंपनी हैं जो आरके अरोड़ा की ही हैं लेकिन यहां जो कंपनी दिवालिया हुई है वह रियल एस्टेट में काम करने वाली सुपरटेक है जिसने ट्विन टावरों का निर्माण किया है। सुपरटेक ने यूनियन बैंक से करीब 432 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है। कर्ज नहीं चुकाने पर बैंक ने कंपनी के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसके बाद एनसीएलटी ने बैंक की याचिका स्वीकार कर इन्सॉल्वेंसी की प्रक्रिया का आदेश दिया था।

सुपरटेक ने क्या कहा?
ट्विन टावर गिराए जाने के मामले में सुपरटेक का बयान आया है। बयान में कहा गया है कि प्राधिकरण को पूरा भुगतान करने के बाद हमने टावर का निर्माण किया था। हालांकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तकनीकी आधार पर निर्माण को संतोषजनक नहीं पाया है और दोनों टावरों को ध्वस्त करने के आदेश जारी किए। हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान करते हैं और उसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने एक विश्व प्रसिद्ध कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग को ध्वस्त का काम सौंपा है, जिनके पास ऊंची इमारतों को सुरक्षित रूप से गिराने में विशेषज्ञता है। हमने करीब 70,000 से अधिक लोगों फ्लैट्स तैयार करके दे दिए हैं। बाकि लोगों को भी निर्धारित समय में दे दिए जाएंगे।


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