नितीश संयुक्त विपक्ष के सर्वसम्मत प्रधानमंत्री प्रत्याशी पद से हिट विकेट आऊट - अरविन्द सिसोदिया PM nitish


नितीश संयुक्त विपक्ष के सर्वसम्मत प्रधानमंत्री प्रत्याशी पद से  हिट विकेट आऊट - अरविन्द सिसोदिया
 
नितीश कुमार नें तेजस्वी की रोजाअफ्तार पार्टी ज्वॉइन के हाथ बढ़ाया और मुहर्रम पर मिलकर बिहार में पलटू सरकार बनाली, मगर यह सब सोचा समझा प्लान था, बिहार के मुस्लिम वोट बैंक को अपना बनाने का, यह दूसरी बात है कि मुसलमान के लिए लालू फस्ट एन्ड लालू मस्ट ही रहनें वाला है, नितीश कुछ भी करते रहें । खैर बात चली सो बात निकली ..!

प्रश्न यह उठ रहा है , क्या नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने के चक्कर में विकेट से आगे आकर खेल लिए और खुद उस पर गिर के हिट विकेट हो गए हैं । 

क्योंकि जैसे ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन छोड़कर लालू प्रसाद यादव की पार्टी का दामन थामा और गठबंधन के मुख्यमंत्री बनकर बिहार की गद्दी दोबारा संभाली, उसके बाद जितना स्वागत विपक्ष की अन्य पार्टियों के द्वारा उनका होना चाहिए था उतना तो बहुत दूर की बात रही !  सच बात तो यह है कि भारत के महत्वपूर्ण दलों ने उनके इस परिवर्तन को, उनके इस दोगलेपन को, उनकी इस धोखाधड़ी को और उनकी इस तथाकथित धर्मनिरपेक्षता को !! ना तो कोई भाव दिया, ना उसका कोई स्वागत किया, ना किसी नें उनको गले लगाने जैसी बात कही।

प्रधानमंत्री चुनाव 2024 में हैं और संभवतः ज्यादा जल्दबाजी नितिश नें करली, अभी 2022 ही है, 2024 तक गंगा जमुना में बहुत पानी बह जाना है ।अभी उनकी उपेक्षा के जो हालात हैं उनसे तो उन्हें बिहार के बाहर कोई गले लगाता नजर नहीं आ रहा है । कौन गले लगा रहा है यह बात समझ से परे हो गई है और बिहार में कुल मिलाकर के 40 लोकसभा सीटें भारत की संसद में 543 लोकसभा सीटें इन परिस्थितियों में 40 सीटों पर चुनाव लड़ कर के और उसके द्वारा भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी हत्या ने की बात ना केवल मुंगेरीलाल के हसीन सपने जैसी है बल्कि एक आत्मघाती और शुद्ध हिंदी में कहा जाए तो सीधा-सीधा बड़ी मूर्खतापूर्ण बात है जब हम देखते हैं कि नीतीश कुमार अपना चोला बदल कर के लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनते हैं तो भारत की सबसे बड़ी पार्टी जो लोकसभा में है कांग्रेस उनके युवराज राहुल गांधी की तरफ से कोई स्वागत नहीं होता है भारत की एक दूसरी वाली मुख्य पार्टी टीएमसी बंगाल जिसकी सर्वे सर्वा ममता बनर्जी हैं उन्होंने भी इस के मुख्यमंत्री पद को कोई भाव नहीं दिया यहां तक कि एक सामान्य बधाई भी उनकी तरफ से नहीं आई इसी तरह आजकल बिजली की मुफ्त खोरी दिखा रहे और वोट ठगने की चक्कर में लगे हुए अरविंद केजरीवाल जो अपने को तथाकथित अगला मोड़ धानमंत्री घोषित करते रहते हैं उन्होंने अभी नीतीश कुमार के इस नए चोले को सलाम नहीं किया और ना ही उन्हें हार्दिक बधाई ऐसे 2 शब्द लिखे गहराई से देखा जाए तो और भी बहुत सारे प्रांतों से सीएम नीतीश कुमार की उपेक्षा ही आई है अब ऐसे में यह कैसे मान लिया जाए संयुक्त विपक्ष के सर्व सम्मत प्रधानमंत्री प्रत्याशी हो सकते और जब प्रत्याशी नहीं हो सकते तो उन्होंने यह सब जो किया उसका कोई अर्थ नहीं रह जाता लालू प्रसाद यादव के रिश्तेदार भी हैं जाति वाहिनी मुलायम सिंह यादव उनके बेटे अखिलेश ने नीतीश को सीएम बनने पर बधाई दी मगर पीएम को लेकर के 2 लंबी सांस की बल्कि एक तरह से उन्होंने अपने शब्दों को व्यक्त किया उससे पीएम के योग्य नहीं मानते ऐसा लगभग उन्होंने कह दिया भगवान जाने नीतीश कुमार के लिए प्रधानमंत्री कृपया करके कौन सा देवता आ रहा है जिसको लेकर के उन्होंने यह सब किया राजनीति में एक निष्ठा और प्रतिष्ठा दोनों का बड़ा महत्व होता है नीतीश कुमार ने सारी उम्र में एक और प्रतिष्ठा दोनों को ही ताक पर रखकर काम किया और पूर्व जन्म के किसी अच्छे कर्मों के कारण वह लगातार सीएम बनते रहे मगर यह कहां तक चलेगी लगता है पाप का घड़ा भर गया था और भगवान ने मति भ्रष्ट कर दी समय से पहले प्रधानमंत्री का दांव खेल लिया और स्वयं हिट विकेट हो गए अभी हाल ही में एक चैनल ने बिहार में सर्वे किया और लोकप्रियता का पैमाना नापा उसमें एक बड़ी अजीब सी बात आई कि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी के पक्ष में 40% से भी ऊपर मत गए हैं वहीं नीतीश कुमार उनसे लगभग आधे पर ही सिमट गए हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि बिहार की जनता ने भी उन्हें स्वीकार नहीं किया है बिहार की जनता को भी यह नौटंकी पसंद नहीं आई है कुल निकाल के जोलर बोलो अभी निकलता है तो यही निकलता है कि नीतीश कुमार बिहार में अस्वीकार हुए और प्रधानमंत्री प्रत्याशी पर हिट विकेट हो गए अब राजनीति से आउट कर कुछ दिनों बाद अपने किसी एक अनजान दुनिया में सिमटे हुए नजर आएंगे यह एक बहुत स्पष्ट परिदृश्य दिख रहा है

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