राजनैतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने के बजाए सभी दलों को देश को मजबूती देंने आगे आना चाहिए - अरविन्द सिसोदिया

 

राजनैतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने के बजाए सभी दलों को देश को मजबूती देंने आगे आना चाहिए - अरविन्द सिसोदिया

Instead of baking loaves of political interest, all parties should come forward to strengthen the country - Arvind Sisodia

राजनैतिक दलों की नैतिकता पर बड़ा सवाल , देश को क्षति पहुचानें वालों पर हो बड़ी और कड़ी कार्यवाहियां - अरविन्द सिसोदिया


प्रथम कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करके, जबसे नरेंद्र मोदी-2 सरकार नें देश देशहित के काम तेजी से सम्पन्न करनें प्रारंभ किये,तब से ही एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत मोदी सरकार को काम करने से रोकनें का भी अभियान चल रहा है। केंद्र सरकार के निर्णय के विरुद्ध झूठ फैलाना, फिर उसका विरोध खड़ा करवाना, विरोध को टूलकिट के माध्यम से   ताकत देना  ओर फिर समर्थन के नाम पर खुद कूद पड़ना ।
जब शाहीन बाग आंदोलन खड़े किए जा रहे थे, तब एक कौम विशेष को उकसाने में पूरी ताकत लगाई गई, उन्हें केंद्र सरकार के साथ साथ देश,संबिधान और कानून व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा किया गया । तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं कहा था कि यह एक प्रयोग है । इस आंदोलन के पीछे कांग्रेस थी किंतु दिल्ली में आम आदमी पार्टी नें इसे हड़प लिया था। शाहीन बागों के आंदोलनों में धन व्यवस्था, भोजन व्यवस्था और बोलनें के लिए भड़काऊ भाषण व्यवस्था तक का इंतजाम बाहरी लोग कर रहे थे।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी के बयान,प्रतिक्रिया और बॉडी लैंग्वेज बहुत ही नकारात्मक है । वे निरन्तर प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं । आप जिस देश के नागरिक हैं उसी देश के संविधान व्यवस्था की संस्थाओं के प्रमुखों को कैसे गरिया सकते हैं। संविधानिक संस्थाओं का सम्मान आपकी भी जिम्मेवारी है । इन पर कोई यूँ ही थोड़े बैठ जाता है । एक तय प्रक्रिया से देश के सैंकड़ों करोड़ लोग तय कर रहे हैं। प्रधानमंत्री को अपशब्द देश को अपशब्द होता है । देश के मानबिन्दुओं को अपघटित करनें का अधिकार किसनें दे दिया। किसी भी देश की स्वतंत्रता 24 घण्टे सरकार को गाली देने के लिए विपक्ष का निर्माण नहीं करता। बल्कि देश हित की तमाम बातों को सदन में उठानें की व्यवस्था प्रदान करती है।
देश के सैंकड़ों करोड़ लोगों की चुनी हुई संसदीय व्यवस्था को आराजकता के द्वारा नुकसान पहुचाना गैर जिम्मेवारी ही नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति अपराध है। जो समय नष्ट होता है उसे सदियों तक भुगतना पड़ता है। इस्लामिक आक्रमणों के प्रारंभिक दौर में ही भारतीय राजनेता एकजुट होते तो न गुलाम होते, न धर्मपरिवर्तन होता, न पाकिस्तान होता और न ही साम्प्रदायिकता की समस्या होती । आजादी के तत्काल पश्चात हमनें देश को सुदृढ़ बनानें की सोची होती, शांति,अहिंसा में न उलझे होते, साम्यवादी प्रेम में चीन के हाथों तिब्बत न गंवाया होता और चीन को आगे न बढ़ाया होता, तो भारत ही विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति होता । मगर समय बर्बाद कर दिया भुगत देश रहा है। विपक्ष को समय बर्बाद करनें से बाज आना चाहिए।
कथित किसान आंदोलन भी मोदी सरकार को अराजकता के द्वारा परेशान करनें का षडयंत्र था । विदेशी ताकते इसमें टूलकिट द्वारा पूरा संचालन कर रहीं थी । पंजाब और उत्तरप्रदेश की राजनैतिक सत्ता हड़पनें के लिये खड़ा किया गया आपराधिक षडयंत्र ...! जिसमें  बैकअप की मुख्य भूमिका में कांग्रेस थी। मगर  इस आंदोलन को खलिस्तानी ताकतों एवं कनाड़ा के संबल से आप पार्टी नें कब्जा कर लिया, इस आन्दोलन का लगभग पूरा खर्च आप पार्टी ने उठाया, दिल्ली सरकार के द्वारा तमाम इंतजाम करवाये गए ।
भारत सरकार में एक मोदी क्या क्या करे, उनके कुछ मंत्री बहुत अच्छा काम भी कर रहे हैं। किंतु जितना प्रचार प्रसार और बातों को तथ्यात्मक तरीके से लोक शिक्षण की जरूरत है, उतना नहीं हो पा रहा । देश को लगतार बताना होगा कि सरकार और सरकार की अन्य संस्थाएं क्या कर रहीं हैं, जो किया जा रहा है उसका यह कारण है। 
केंद्र सरकार के खिलाफ तरह तरह से षडयंत्र चलाये गए, लालकिले पर झंडा फहराना, यूपी में जबरिया हिंसा फैलानें की कोशिस षडयंत्र ही थे। भाजपा के नेताओं पर सीधे हमले। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को स्वयं कृषि कानून वापस लेनेँ पड़े । 
किसान आंदोलन का फायदा कांग्रेस ने  कैप्टन अमिरन्द्र सिंह  को  साइड लाइन करनें की मूर्खता से खो दिया । आप पार्टी को इसका 4 गुणा फायदा मिला। इस आन्दोनल नें यूपी में भी नुकसान पहुंचाया , मगर योगी अपनी सूझबूझ से सरकार बचा ले गए ।
राजनीति में आपराधिक षड्यंत्र और महंगे चुनाव प्रबंधन के लिए भ्रष्टाचार भी अनिवार्य अंग जैसा हो गया है ।
वंशवादी, व्यक्तिवादी बड़े - छोटे दलों की मुख्य समस्या तयसुदा भ्रष्टाचार का मुहँ लगा होना, देश की स्वतन्त्रता के साथ ही कांग्रेस का व्यवहार देश के स्वामी की तरह हो गया , देश हित, संबिधान, न्यायपूर्ण व्यवस्थापिक सब छोटे हो गए या हंसिये पर डाल दिये गए, एक कांग्रेसी नेता का टेलीफोन अफसर के लिए ईश्वरीय आदेश होता रहा । तमाम सरकारी ठेकेदारी,सप्लाई , सत्ता से होनें वाले आर्थिक फायदों पर कांग्रेस का अधिपत्य रहा, स्वतन्त्रता सेनानियों को घर बैठ अच्छी पेंशन दी जाती रही। कांग्रेस के अधिकतम कार्यकर्ता परिवारों को नोकरी देनें बड़े बड़े सार्वजनिक उपक्रम खोले गए, जो ज्यादातर घाटे में चले, सरकार के लिए सफेद हाथी साबित हुये । जिन्हें देश अभी तक भी भुगत रहा है। जिस तरह सरकारी कार्यालयों में बिल भुगतान पर अफसरों का परसेंट लगता है। उसी तरह सत्तारूढ़ दल के लोग मलाई खाते रहे । अनुमति के बदले, नीतियों के बदले मोटी रकम लेनेँ का रिवाज रहा । इसे राजनैतिक शिष्टाचार माना जाता था। इस पर 1989 तक कोई बडी विरोध की आवाज भी नहीं उठी।

 
1977 के चुनाव से पहले तक भारत में विपक्ष बहुत कमजोर था, 1967 के चुनाव में विपक्ष नें जो हांसिल किया , उसका प्रभाव कांग्रेस नें केंद्र की सत्ता के प्रभाव से समाप्त कर दिया था । नतीजा यह रहा कि 18 माह तक विपक्ष को बिना किसी अपराध के जेल में तक डाले रखा । अर्थात राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई बड़ी आवाज नहीं उठती थी,उसे तवज्जो भी नहीं मिलती थी, जनता में भी कोई खास प्रभाव नहीं होता था । बोफोर्स घोटाला टर्निंग प्वाइंट था, जिस पर सरकार बदल गई ।
मगर आगे भी राजनैतिक भ्रष्टाचार लगातार जारी रहा और मनमोहनसिंह जी के कार्यकाल में यह चरम पर था। विदेशों में राजनैतिक लोगों का धन जमा होनें की खबरों का इतना हल्ला हुआ कि सोनिया गांधी को विश्व की पांचवी सबसे धनी महिला कहा जानें लगा । इससे इतनें होंसले बड़े की कई दलों की मिलीजुली सरकारों में कमाऊ डिपार्टमेंट की शर्त रखी जानें लगी।
राजनीतिक शिष्टाचार बनें भ्रष्टाचार अब दलों के सिरदर्द साबित होना प्रारंभ हो गए हैं। कांग्रेस, तृण मूल कांग्रेस, आप इन्ही भ्रष्टाचार के कारण ई डी के राडार पर आ गए ।

मोदी राज नीट एंड क्लीन है ...

 मोदी जी ने जब अपना चुनाव अभियान प्रारंभ किया था तब ही कह दिया था । " न खाऊंगा न खानें दूंगा " आज यह सरकार वह सब कर रही है, जिससे राजनैतिक भ्रष्टाचार रुके । ज्यों ज्यों राजनैतिक भ्रष्टाचार उजागर होता है तो अनर्गल प्रलाप प्रारंभ हो जाता है । 


यह एक सीमा तक , आपके सही जबाव तक तो ठीक है ।मगर उसको जायज,या हक करार देने के लिए , अराजकतापूर्ण दवाब डालना गलत है । इस तरह के कृत्यों को अपराध करार देना चाहिए ।
देश बहुत गंभीर दौर से गुजर रहा है, तीसरा विश्व युद्ध सामनें खड़ा है । कोरोना से गड़बड़ हुई विश्व अर्थव्यवस्था पटरी पर आनें में कई दशक लगेंगे। इससे मंहगाई, बेरोजगारी और उत्पादन प्रभावित हो रहे हैं । जिनके बीच राजनैतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने के बजाए सभी दलों को देश को मजबूती देंने आगे आना चाहिए ।

 

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