शक्ति सम्पन्नता की सतत सतर्कता ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता की सुरक्षा है - अरविन्द सिसौदियाMilitary Weapons
शक्ति सम्पन्नता की सतत सतर्कता ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता की सुरक्षा है - अरविन्द सिसौदिया
मानव जीवन बहुत जटिल एवं निरंतर संघर्षशील है क्यों कि यह बहुत सारे बंधनों में एवं व्यवस्थाओं में बंधा हुआ है। प्रकृति में मौजूद 84 लाख प्रकार के शरीर (जिन्हे 84 लाख योनियां कहा जाता है)है, इनमें मनुष्य भी एक है तथा अभी तक के ज्ञात प्राणी विज्ञान में सबसे उच्च क्षमता वाला है। किन्तु स्वतंत्रता को लेकर मानव सभ्यता के सामनें ही सर्वाधिक संघर्ष व संकट भी उपस्थित होते रहे हैं। क्यों कि वह परिवार में जन्म के साथ प्रारम्भ होकर, कुटृम्ब,जाती,बस्ती,कर्मक्षैत्र,धर्म क्षैत्र, अस्तित्व तक होते हुये जिला,प्रदेश और देश तक जाता है।
जीवन में परतंत्रता बनाम स्वतंत्रता और स्वछंदता बनाम अनुशासन का संर्घर्ष निरंतर चलता रहता है। मानव प्रकृति तो स्वछंदता की है। संस्कार, शिक्षा और स्वभाव इसे अनुशासित करते है, व्यवस्थित करते है। किन्तु ज्ञात विश्व इतिहास बताता है कि स्वतंत्रता की रक्षा निरंतर करनी होती है। चाहे वह व्यक्ति के रूप में हो या देश के रूप में हो ।
भारतीय संस्कृति के समस्त देवाधिदेवों का जीवन , बुरी ताकतों से लडनें और उन्हे पराजित करनें का संदेश देते है। महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि युद्ध भी एक पुरूषार्थ और उसमें विजय होना या बलिदान होना एक कर्त्तव्य है। रामायण काल में संतों के ऋषियों के आश्रम शास्त्र एवं शक्ति के अनुसंधान केन्द्र होते थे । श्रीराम के पुत्र लव-कुश महर्षि बाल्मीकी के आश्रम में बचपन गुजारते हें। उन्हे महर्षि शस्त्र के साथ साथ शास्त्रों की शिक्षा देते है। वे युद्ध कला में इतने निपूर्ण होते है कि श्रीराम एवं उनकी अयोध्या की सेना को बालक स्परूप में भी पराजित कर देते है। यही हिन्दूत्व अर्थात भारतीय संस्कृति की सम्पूर्णता है।
राजस्थान में हम देश धर्म की रक्षा के लिये लाखों योद्धाओं को अपने आपको बलिदान करते हुये देखते हैं। सीमा पर सैनिकों को अपने आप को युद्ध भूमि में बलिदान करते हुये देखते है। मातृशक्ति को अपनी इज्जत बचानें के लिये जौहर के अग्नि कुण्ड में कूदते हुये देखते है।
भारतीय संस्कृति 3000 सालों से अपने अस्तित्व के लिये संघर्षरत है, पाकिस्तान / बांगलादेश के रूप में 24 /25 वां विभाजन इस महान आर्यभूमि का हुआ है। वर्तमान भारत को भी विदेशी विषधर निंगल जाना चाहते है। ये विषधर देश के अन्दर भी सक्रीय हैं और बाहर से भी सक्रीय है। रूस - यूक्रेन युद्ध की विभिषिका देख रहे हैं। इससे पूर्व अफगानिस्तान पर तालिबान को कब्जा करते हुये देख चुके है। चीन बार बार ताईवान के अस्तित्व को चुनौती बना हुआ है। अपनी सामा के करीब करीब 8 देशों को वा सिरदर्द देता रहता है।
हम अपने पडौसी पाकिस्तान से 75 वर्षो से ही संघर्षरत है। आतंकवादी घटनाओं के द्वारा अतिवादी ताकते भी छल-छदम से सक्रीय है। इन परिस्थितियों में अब सर्वोच्च प्राथमिकता शक्ति सन्तुलन के लिये शस्त्रों के आधुनिकतम अनुसंधान, उत्पादन और साहसपूर्वक प्रयोगों की होगी ।
जो देश अपनी आंतरिक एवं बाहरी सुरक्षा के लिये जितना अधिक सतर्क व सक्रीय होगा उसका अस्तित्व उतना ही सुरक्षित होगा। जिस देश ने भी जरा सी चूक की उसे विश्व की ताकते श्रीलंका जैसे आंतरिक विद्रोह में धकेल देंगीं। अब राजनैतिक महत्वाकांक्षायें भी आपराधिक कृत्यों में प्रवेश कर गईं है। उनसे भी कठोरता से पेश आना पडेगा। राष्ट्र की आंतरिक एवं बाहरी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता कभी निरपेक्ष नहीं होती पर इसका गलत अर्थ लगा कर हम स्वच्छंद होते जा रहे हैं और उसका परिणाम लूट-मार, हत्या, घोटालों, त्रासदियों, अत्याचार, व्यभिचार और हिंसा की असंख्य घटनाओं के रूप में आए-दिन हमारे सामने उपस्थित होता रहता है। स्वतंत्रता भी धर्म का ही एक रूप है। सही अर्थ में स्वतंत्रता तभी आ सकती है जब हमारा आत्मबोध व्यापक बनेगा और पूरे समाज और समग्र जीवन की चिंता हमारी अपनी चिंता का हिस्सा बनेगी। वैश्वीकरण के दौर में चाह कर भी आज अकेला व्यक्ति और अकेले देश के सुखी जीवन की कल्पना संभव नहीं है।
कुल मिला कर देश के रूप शक्ति सन्तुलन हेतु आधुनिकतम शस्त्रों के संदर्भों में सतर्कता निरंतर रखनी होगी। वहीं आंतरिक स्वरूप में भी आराजकतावाद के विरूद्ध कठोरता की नीति रखनी होगी। जरा सी चूक में देश बिखर जाते है। जिन्हे शदियों तक के संघर्ष से भी नहीं जोउा जा पाता है। जो खोया उसका स्मरण करें जो है उसकी सुरक्षा करें।
जय भारत जय हिन्द ।
ये पंक्तियां तब लिखीं गई थीं, जब पाकिस्तानी सेना हमारे सैनिक का सिर काट ले गई थी।
भारत माता मुफ्त का माल नहीं है,
- अरविन्द सिसौदिया,कोटा,राजस्थान ।
भारत माता मुफ्त का माल नहीं है,
जो सिर कटवा कर चुप बैठ गये,
जिन्दा खून नहीं तुम्हारा वर्ना,
सीमा पर पहुंच गये होते।
--1--
तर्क वितर्क और कुतर्कों से कुछ नहीं होता ।
मातृभूमि की रक्षा में शीश चढ़ाने पड़ते हैं।
कायर को सिंहासन भी त्याग देता है,
सिंहासन चलाने को सिंह बनना होता है।
--2--
देश कोई यूं ही नहीं बन जाता,
उसे बनाने में सदियों तक खपना पड़ता है।
सदियों के बलिदानों को तुम भूल गये,
याद तुम्हे कुछ होता तो,
विक्रम,अशोक,चन्द्रगुप्त बन गये होते।
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