गुरू पूर्णिमा - गुरु से बड़ा संसार में कोई तत्व नहीं है Guru Purima
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं। यह पूर्णिमा गुरु पूजन का पर्व है। वर्ष की अन्य सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्व सबसे अधिक है। भारतीय संस्कृति में ‘आचार्य देवो भव’ कहकर गुरु को शिष्य द्वारा असीम आदर एवं श्रद्धा का पात्र माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य के तीन प्रत्यक्ष देव हैं - 1. माता 2. पिता 3. गुरु। इन्हें ब्रह्मण, विष्णु, महेश की उपाधि दी गई है। मां जन्म देती है, जीवन की रचयिता है इसीलिए ब्रह्म हैं। पिता जीवन के पालनकर्ता हैं, इसीलिए विष्णु का रूप माने जाते हैं। गुरु माया, मोह और अंधकार का नाश करता है.इसलिए वे महेश के रूप में माने जाते हैं .
गुरु पूर्णिमा का दिवस केवल गुरु पूजा का दिवस नहीं है, बल्कि यह दिवस प्रत्येक शिष्य के अपने-अपने गुरुजनों के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति का दिवस है। प्राचीन ऋषियों ने हमारे जीवन को चार भागों में बांटा था - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुलों में जाकर विद्याध्ययन किया करते थे। उन्हें तपोमय जीवन व्यतीत करने और संयम तथा चारित्रिक दृढ़ता का उपदेश अपने गुरुजनों से प्राप्त होता था. वे अपनी पूरी श्रद्धा गुरुजनों के प्रति रखते थे, आज समय बदल गया है। आज न तो तपोवन हैं, न गुरुकुल। जीवन दिन प्रतिदिन जटिल होता जा रहा है। शिक्षा के हर क्षेत्र में व्यापारीकरण हावी हो चुका है. ज्ञान का वितरण अब धन के आधार पर होने लगा .
आज पाश्चात्य प्रभाव ज्ञान का वितरण सामान्य से लेकर आध्यात्म तक में सम्पन्नता का आधार हो चुका है . ऐसे में हमें यह जानना एक बार फिर आवश्यक हो गया है कि हर कार्य को सिखाने वाले गुरु ही हैं।यही साधना शरीर के अंदर निहित शक्तियों का परिचय कराने, शरीर में चेतन्यता प्रदान करने तथा उचित भोग और मोक्ष का रास्ता दिखलाने की विशिष्ट एवं उच्चतम क्रिया है।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
इसे में वह जीवन के अंधकार को अपनी दीक्षा रूपी रोशनी से रोशन करते हैं, अज्ञान से निवृति दिलाने में सक्षम होते हैं, दो अक्षर का यह सामान्य सा प्रतीत होने वाला शब्द अपने आप में संपूर्णता को समेटे हुए है। आजकल के व्यस्त जीवन में व्यक्ति मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है।
मूलतः यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन है। व संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है।
गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सदगुरू की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।
शास्त्र कहता हैं -
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
कबीर ने गुरू कृपा पर सटीक लिखा है -
गुरु की सेवा चाकरि करिये मन चित लाय ।
कहै कबीर निज तरन को नाहीं और उपाय ॥
सुमिरन मारग सहज का सतगुरु दिया बताय ।
स्वाँस स्वाँस सुमिरन करो एक दिन मिलिहैं आय ॥
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाड़ी कै बार ।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार ॥4॥
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,काके लागूं पायं ।
बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविन्द दिया दिखाय ॥5॥
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
सीस दिये जो गुर मिलै, तो भी सस्ता जान
महेश्वरः।शिव जी का कथन है कि त्रिलोक में जो बड़े-बड़े देव, नाग, राक्षस, किन्नर, ऋषी, मनुष्य, विद्याधर हैं, उनको गुरु प्रसाद ही प्राप्त हुआ है। गु अक्षर सत, रज, तम माया का आकार है। रू अक्षर ब्रह्मा का आकार है, जो समस्त मायाओं का नाशक है। गुरू गीता में भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा है कि हे पार्वती तुम निश्चित जानो की गुरु से बड़ा संसार में कोई तत्व नहीं है .
भारत भर में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।
आध्यात्म के क्षैत्र में विशाल आयोजन होते हैं , लगभग प्रत्येक आश्रम किसी न किसी प्रकार का आयोजन जरुर रखता है.
गुरु निंदा कभी न करें -
स्कन्ध पुराण में गुरु के अपमान से होने वाली हानी का रोचक दृष्टान्त है, जगदगुरु बृहस्पति, इंद्र के राज दरवार में पहुचें उस समय कोई नृत्य चल रहा था , दरवार में मोजूद अन्य दरवारियों ने उठ कर यथा योग्य प्रणाम जगदगुरु बृहस्पति से किया, इंद्र के द्वारा उन्हें नजर अंदाज कर दिए जाने से वे कुपित हो अंतर-ध्यान हो गये, नारद जी ने इंद्र का ध्यान आकर्षित किया कि आपने गुरुदेव को अपमानित कर दिया, तब इंद्र ने उन्हें काफी तलाशा और मनाने कि कोशिश कि मगर तब तक वे उसे श्रीहीन कर चुके थे . इसका फायदा उठा कर दैत्यराज महाराजा बली ने इंद्र पर आक्रमण कर उनसे इंद्र - लोक जीत लिया , इस पराजय के परिणाम स्वरूप समुद्र मंथन हुआ . कुल मिला कर गुरु के अपमान के कारण इंद्र को राज्य और सम्मान खोना पड़ा . भगवान शंकर यह व्यवस्था देते हैं कि गुरु की निंदा कभी न करें , अपमान तिरिस्कार भी कभी नहीं करें . गुरु के श्राप को ईश्वर भी माफ़ी में नही बदल सकता .
गुरु का सबसे अधिक महत्व आध्यात्म में है-
एक साधक को गुरु का विश्वास जीतने में दसियों वर्ष लग जाते हैं .
संत चरणदास जी महाराज की शिष्या सहजो बाई ने लिखा है -
राम तजुं पर गुरु न विसारूं,
चरण दास पर तन मन वारूँ
हरी ने जन्म दियो जग माहीं
गुरु ने आवागमन छुड़ाई.
हरी नें पाँच चोर दिए साथा ,
गुरु ने छुडाय लई अनाथा
हरी ने माया जाल में गेरी
गुरु ने काटी ममता बेडी .
गुरु-शिष्य परम्परा आध्यात्मिक प्रज्ञा का नई पीढियों तक पहुंचाने का सोपान।
जप के लिए मंत्र
ॐ गुरूभ्यो नमः।
ॐ श्री सदगुरू परमात्मने नमः।
ॐ श्री गुरवे नमः।
ॐ श्री सच्चिदानन्द गुरवे नमः।
ॐ श्री गुरु शरणं मम।
सदगुरू की महिमा अनंत,
अनंत कियो उपकार
अनंत लोचन उघडिया,
अनंत दिखावनहार
राम कृष्ण से कौन बडा,
तिन्ह ने भि गुरु किन्ह ।
तीन लोक के है धनी,
गुरु आगे आधीन
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*गुरुपुर्णिमा विशेष ब्रह्मांडीय गुरुमंडल साधना ( दुर्लभ गुरु अष्टोत्तर शत नामावली सहित )*
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यहां पर गुरुपौर्णिमा के पर्व पर करने के लिये मैं ब्रम्हांड के समस्त गुरुमंडल की एक छोटी साधना प्रस्तुत
कर रहा हूँ जो की उन लोगों को ध्यान में रखकर बनायी है जो ज्यादा समय तक साधना नहीं कर सकते या जटिल पूजन विधि नहीं कर सकते। यह पूजन किसी एक गुरु परंपरा का नही वरन समस्त गुरुपरंपरा का है इसलिए इसे कोइ भी कर सकता है .. अगर आपके कोइ गुरु नही है तो भी करे .. आपको समस्त गुरुमंडल की कृपा प्राप्त होगी ..
*1. सब पहले आपके सामने गुरुदेव जी का गुरुमंडल अंतर्गत आनेवाले किसीभी योगी या संत का कोई भी चित्र या यंत्र या मूर्ति हो। इनमेसे कुछ भी नही तो आपके रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे .*
*2. घी का दीपक या तेल का दीपक या दोनों दीपक जलाये।*
*धुप अगरबत्ती जलाये। बैठने के लिए आसन हो।*
*जाप के लिए रुद्राक्ष माला या स्फटिक माला ले*
*3. एक आचमनी पात्र , जल पात्र रखे। हल्दी,कुंकुम ,चन्दन,अष्टगंध और अक्षत पुष्प ,नैवेद्य के लिए मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु ,फल भी एकत्रित करे।*
*अगर यह सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे*
*सबसे पहले गुरु ,गणेश इन्हे वंदन करे*
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
ॐ श्री गणेशाय नम:
ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललितायै नम:
ॐ श्री गुरुमंडलाय नम:
फिर आचमन करे
ऐं आत्मतत्वाय स्वाहा
ऐं विद्या तत्वाय स्वाहा
ऐं शिव तत्वाय स्वाहा
ऐं सर्व तत्वाय स्वाहा
फिर गुरु स्मरण करे और पुजन के लिये पुष्प अक्षत अर्पण करे
ॐ श्री गुरुभ्यो नम:
ॐ श्री परम गुरुभ्यो नम:
ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
अब आसन पर पुष्प अक्षत अर्पण करे
*ॐ पृथ्वी देव्यै नमः*
चारो तरफ दिशा बंधन हेतु अक्षत फेके
और अपनी शिखा पर दाहिना हाथ रखे
फिर दीपक को प्रणाम करे
दीप देवताभ्यो नमः
कलश में जल डाले और उसमे चन्दन या सुगन्धित द्रव्य डाले
कलश देवताभ्यो नमः
अब अपने आप को तिलक करे
गणेश जी के लिये पुष्प अक्षत अर्पण करे
वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटी समप्रभ
निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा
अब आप हाथ मे जल ,अक्षत ,पुष्प लेकर तिथी वार नक्षत्र आदि का स्मरण कर संकल्प करे की आप आज गुरुपौर्णिमा के पावन पर्व पर अपने सदगुरुदेव एवं संपूर्ण गुरुमंडल की कृपा प्राप्ति हेतु गुरुपूजन संपन्न कर रहे है और उनकी कृपा प्राप्त हो और आपकी आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नती हो और आपकी जो भी समस्या है उसका निवारण हो ..
*गुरुस्मरण कर सर्वप्रथम उनका आवाहन करे*
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:
ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं
मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा
गुरुकृपा हि केवलं गुरुकृपा हि केवलं
गुरुकृपा हि केवलं गुरुकृपा हि केवलं
*श्री सदगुरु चरण कमलेभो नम: प्रार्थना पुष्पं समर्पयामि*
*श्री सदगुरु मम ह्रदये आवाहयामि स्थापयामि नम:*
सदगुरुदेव का अब पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करे .. यहाँ पर पंचोपचार पूजन प्रस्तुत किया है ..
ॐ गुं गुरुभ्यो नम: गंधं समर्पयामि
ॐ गुं गुरुभ्यो नम: पुष्पम समर्पयामि
ॐ गुं गुरुभ्यो नम: धूपं समर्पयामि
ॐ गुं गुरुभ्यो नम: दीपं समर्पयामि
ॐ गुं गुरुभ्यो नम: नैवेद्यम समर्पयामि
*अब गुरु पंक्ति का पूजन करे*
ॐ गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम:
*अब गुरु अष्टोत्तर शत नामावली से एकेक नाम का उच्चारण करते हुये पुष्प अक्षत अर्पण करते जाये ..*
*श्री सदगुरु अष्टोत्तरशत नामावली*
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1) ॐ सदगुरवे नम:
2) ॐ अज्ञान नाशकाय नम:
3) ॐ अदंभिने नम:
4) ॐ अद्वैतप्रकाशकाय नम:
5) ॐ अनपेक्षाय नम:
06) ॐ अनसूयवे नम:
07) ॐ अनुपमाय नम:
08) ॐ अभयप्रदात्रे नम:
09) ॐ अमानिने नम:
10) ॐ अहिंसामूर्तये नम:
11) ॐ अहैतुकस्दयासिंधवे नम:
12) ॐ अहंकारनाशकाय नम:
13) ॐ अहंकारवर्जिताय नम:
14) ॐ आचार्येंद्राय नम:
15) ॐ आत्मसंतुष्टाय नम:
16) ॐ आनंदमूर्तये नम:
17) ॐ आर्जवयुक्ताय नम:
18) ॐ उचितवाचे नम:
19) ॐ उत्साहिने नम:
20) ॐ उदासीनाय नम:
21) ॐ उपरताय नम:
22) ॐ ऐश्वर्ययुक्ताय नम:
23) ॐ कृतकृत्याय नम:
24) ॐ क्षमावते नम:
25) ॐ गुणातीताय नम:
26) ॐ चारुवाग्विलासाय नम:
27) ॐ चारुहासाय नम:
28) ॐ छिन्नसंशयाय नम:
29) ॐ ज्ञानदात्रे नम:
30) ॐ ज्ञानयज्ञतत्पराय नम:
31) ॐ तत्त्वदर्शिने नम:
32) ॐ तपस्विने नम:
33) ॐ तापहराय नम:
34) ॐ तुल्यनिंदास्तुतये नम:
35) ॐ तुल्यप्रियाप्रियाय नम:
36) ॐ तुल्यमानापमानाय नम:
37) ॐ तेजस्विने नम:
38) ॐ त्यक्तसर्वपरिग्रहाय नम:
39) ॐ त्यागिने नम:
40) ॐ दक्षाय नम:
41) ॐ दांताय नम:
42) ॐ दृढव्रताय नम:
43) ॐ दोषवर्जिताय नम:
44) ॐ द्वंद्वातीताय नम:
45) ॐ धीमते नम:
46) ॐ धीराय नम:
47) ॐ नित्यसंतुष्टाय नम:
48) ॐ निरहंकाराय नम:
49) ॐ निराश्रयाय नम:
50) ॐ निर्भयाय नम:
51) ॐ निर्मदाय नम:
52) ॐ निर्ममाय नम:
53) ॐ निर्मलाय नम:
54) ॐ निर्मोहाय नम:
55) ॐ निर्योगक्षेमाय नम:
56) ॐ निर्लोभाय नम:
57) ॐ निष्कामाय नम:
58) ॐ निष्क्रोधाय नम:
59) ॐ नि:संगाय नम:
60) ॐ परमसुखदाय नम:
61) ॐ पंडिताय नम:
62) ॐ पूर्णाय नम:
63) ॐ प्रमाण प्रवर्तकाय नम:
64) ॐ प्रियभाषिणे नम:
65) ॐ ब्रह्मकर्मसमाधये नम:
66) ॐ ब्रह्मात्मनिष्ठाय नम:
67) ॐ ब्रह्मात्मविदे नम:
68) ॐ भक्ताय नम:
69) ॐ भवरोगहराय नम:
70) ॐ भुक्तिमुक्तिप्रदात्रे नम:
71) ॐ मंगलकर्त्रे नम:
72) ॐ मधुरभाषिणे नम:
73) ॐ महात्मने नम:
74) ॐ महावाक्योपदेशकर्त्रे नम:
75) ॐ मितभाषिणे नम:
76) ॐ मुक्ताय नम:
77) ॐ मौनिने नम:
78) ॐ यतचित्ताय नम:
79) ॐ यतये नम:
80) ॐ यद इच्छा लाभ संतुष्टाय नम:
81) ॐ युक्ताय नम:
82) ॐ रागद्वेषवर्जिताय नम:
83) ॐ विदिताखिलशास्त्राय नम:
84) ॐ विद्याविनयसंपन्नाय नम:
85) ॐ विमत्सराय नम:
86) ॐ विवेकिने नम:
87) ॐ विशालहृदयाय नम:
88) ॐ व्यवसायिने नम:
89) ॐ शरणागतवत्सलाय नम:
90) ॐ शांताय नम:
91) ॐ शुद्धमानसाय नम:
92) ॐ शिष्यप्रियाय नम:
93) ॐ श्रद्धावते नम:
94) ॐ श्रोत्रियाय नम:
95) ॐ सत्यवाचे नम:
96) ॐ सदामुदितवदनाय नम:
97) ॐ समचित्ताय नम:
98) ॐ समाधिकस्वर्जिताय नम:
99) ॐ समाहितचित्ताय नम:
100) ॐ सर्वभूतहिताय नम:
101) ॐ सिद्धाय नम:
102) ॐ सुलभाय नम:
103) ॐ सुशीलाय नम:
104) ॐ सुह्रदये नम:
105) ॐ सूक्ष्मबुद्धये नम:
106) ॐ संकल्पवर्जिताय नम:
107) ॐ संप्रदायविदे नम:
108) ॐ स्वतंत्राय नम:
*!! इति श्री सदगुरु अष्टोत्तरशत नामावली !!*
*अब एक आचमनी जल लेकर निम्न मंत्र पढकर अर्पण करे*
*अनेन श्री गुरु अष्टोत्तर शत नामावली द्वारा पूजनेन श्री गुरुदेव सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयतां न मम ..*
*जिन्हे गुरुमंडल का पूजन न करना हो वे सिधे पूजन के अंत मे जाकर अर्घ्य प्रदान करे और मंत्र जाप करे ..*
*जिंन्हे गुरुमंडल का पूजन करना हो वे आगे का पूजन continue रखे .. वैसे सभी साधकों से निवेदन है वे यह पूजन अवश्य करे इस पूजन से समस्त गुरुओं का पूजन हो जाता है और गुरुपुर्णिमा के अवसर पर इस पूजन को करने से सभी गुरुओं की कृपा प्राप्त होती है ..*
*अब पहले हाथ मे पुष्प लेकर समस्त गुरुमंडल का ध्यान करे*
*नारायण समारंभा शंकराचार्य मध्यमाम*
*अस्मदाचार्य पर्यंतां वंदे गुरुपरंपराम !!*
*श्रीनाथादि गुरुत्रयं गणपतिं पीठत्रयं* भैरवं*
*सिद्धौघ बटुकत्रयं पदयुगं दूतीक्रमं मंडलं !!*
*वीरांद्वष्ट चतुष्कषष्ठीनवकं वीरावलीपंचकं*
*श्रीमन्मालिनी मंत्रराजसहितं वंदे गुरोर्मंडलं !!*
*गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:*
*गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: !!*
*अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं*
*तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: !!*
*अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया*
*चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: !!*
*वंदे गुरुपदद्वंदवांग्मनस गोचरं*
*रक्त शुक्ल प्रभामिश्रमतर्क्यं मह : !!*
*नमोस्तु गुरवे तस्मै स्वेष्ट देविस्वरुपिणे*
*यस्य वाकममृतं हंति विषं संसारसंज्ञकम !!*
*समस्त गुरुमंडल आवाहयामि मम पूजा स्थाने स्थापयामि नम:*
समस्त गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: पंचोपचार पूजनं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: गंध समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: पुष्प समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: धूपं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: दीपं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: नैवेद्यं समर्पयामि
अब गुरुमंडल का पूजन शुरु करे ..
गुरुमंडल अंतर्गत एकेक गुरु का नाम लेकर पूजयामि कहकर पुष्पअक्षत अर्पण करे और तर्पयामि कहकर एक आचमनी जल अर्पण करे ..
सबसे पहले श्री व्यास जी स्मरण करे
वेदव्यासं श्यामरुपं सत्यसंघं परायणम
शांतेंद्रियं जित्क्रोधं सशिष्यं प्रणमाम्यहम् !!
*व्यास पंचकं*
ॐ श्री व्यासाय नम: ! वेदव्यासं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!
ॐ वैशंपायनाय नम: ! वैशंपायनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!
ॐ सुमंताय नम: ! सुमंतं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!
ॐ जैमिनये नम: ! जैमिनिं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!
ॐ पैलाय नम: ! पैलं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
*!! इति व्यासपंचकं पूजनम !!*
*अब श्री शंकराचार्य जी का स्मरण करे*
सर्वशास्त्रार्थतत्वज्ञम परमानंदविग्रहं
ब्रम्हण्यं शंकराचार्यं प्रणमामि विवेकिनम
परात्परतरं शांतं योगींद्रं योगसेविनं
शांतेंद्रियं जितक्रोधं सशिष्यं प्रणमाम्यहम् !!
*शंकराचार्य पंचकं*
*ॐ शंकराचार्याय नम: ! शंकराचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:*
ॐ विश्वरुपाचार्याय नम:! विश्वरुपाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ पद्मपादाचार्याय नम:! पद्मपादाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ गौडपादाचार्याय नम: ! गौडपादाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ हस्तामलकाचार्याय नम: ! हस्तमलकाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ त्रोटकाचार्याय नम: ! त्रोटकाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
*!! इति शंकराचार्यं पूजनं !!*
दिगंबरं कुमारं च विधिमानससनंदनं !
सनकं परंवैराग्यं मुनिमावाहयाम्यहम !!
ॐ सनकाय नम: सनकं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ सनंदनाय नम: सनंदनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ सनतनाय नम: सनंदनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ सनत्कुमाराय नम: सनत्कुमारम आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ सनत्सुजाताय नम: सनत्सुजातं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
*!! इति सनकादि पूजनं !!*
ॐ दत्तात्रेयाय नम: दत्तात्रेयं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ जीवन्मुक्ताय नम: जीवन्मुक्तं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ विधातृतनयाय नम: विधातृतनयं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ नारदाय नम: नारदं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ वामदेवाय नम: वामदेवं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ कपिलाय नम: कपिलं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ब्रम्हानंद परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वंदातितं गगनसदृश्यम एकमस्यादि लक्ष्यं
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधिसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि
ॐ स्वगुरवे नम :
स्वगुरु ( अपने गुरु का नाम यहां पर ले )
स्वगुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:
ॐ परम गुरवे नम:
परमगुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ परात्पर गुरवे नम:*
परात्पर गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ परमेष्ठी गुरवे नम:*
परमेष्ठी गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ पर गुरवे नम:*
पर गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ सदाशिवाय नम:*
सदाशिव आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ ईश्वराय नम:*
ईश्वर आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ विष्णवे नम:*
विष्णु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ ब्रम्हाचार्याय नम:*
ब्रम्हाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ नकुलाचार्याय नम:*
नकुलाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ गौरिशाचार्याय नम:*
गौरीशाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ अर्चिषाचार्याय नम:*
अर्चिषाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ मैत्रेयाचार्याय नम:*
मैत्रेयाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ कपिलाचार्याय नम:*
कपिलाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ सिद्धशांतनाचार्याय नम:*
सिद्धशांतनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ अगस्ताचार्याय नम:*
अगस्ताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ पिंगाक्षाचार्याय नम:*
पिंगाक्षाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ मनुगणाचार्याय नम:*
मनुगणाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ पुष्पदंताचार्याय नम:*
पुष्पदंताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ शांतनाचार्याय नम:*
शांतनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ विद्याचार्याय नम:*
विद्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ पंचधाचार्याय नम:*
पंचधाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ व्रताचार्याय नम:*
व्रताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ दुर्वासाचार्याय नम:*
दुर्वासाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ कौंडिन्याचार्याय नम:*
कौंडिन्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ कौशिकाचार्याय नम:*
कौशिकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ भैरवाष्टकाचार्याय नम:*
भैरवाष्टकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ एकाक्षराचार्याय नम:*
एकाक्षराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ विश्वनाथाचार्याय नम:*
विश्वनाथाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ सोमेश्वराचार्याय नम:*
सोमेश्वराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ वसिष्ठाचार्याय नम:*
वसिष्ठाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ वाल्मिक्याचार्याय नम:*
वाल्मिक्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ अत्र्याचार्याय नम:*
अत्र्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ गर्गाचार्याय नम:*
गर्गाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ पराशराचार्याय नम:*
पराशराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ वेदव्यासाचार्याय नम:*
वेदव्यासाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ शुक्राचार्याय नम:*
शुक्राचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ गौडपादाचार्याय नम:*
गौडपादाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ गोविंदपादाचार्याय नम:*
गोविंदपादाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ शंकराचार्याय नम:*
शंकराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ ऱामानंदाचार्याय नम:*
रामानंदाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ रामानुजाचार्याय नम:*
रामानुजाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ हयग्रीवाचार्याय नम:*
हयग्रीवाचार्याय आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ सच्चिदानंदाचार्याय नम:*
सच्चिदानंदाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ दामोदराचार्याय नम:*
दामोदराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ वैष्णवाचार्याय नम:*
वैष्णवाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ सुश्रुताचार्याय नम:*
सुश्रुताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ चरकाचार्याय नम:-*
चरकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ वाग्भटाचार्याय नम:*
वाग्भटाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ नागार्जुनाचार्याय नम:*
नागार्जुनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ नित्यनाथाचार्याय नम:*
नित्यनाथाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ धंन्वंतराचार्याय नम:*
धंन्वंतराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ द्राविणाचार्याय नम:*
द्राविणाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
*ॐ विवर्णाचार्याय नम:*
विवर्णाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:
तद्वामत: समस्तविद्यासंप्रदायप्रवर्तकाचार्येभ्यो नम:
समस्तविद्यासंप्रदायप्रवर्तकाचार्यान आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम':
अब एक आचमनी जल अर्पण करे
अनेन पूजनेन स्वगुरु सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयतां मम !!
अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे ..
ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्
ॐ परमहंसाय विद्महे महातत्त्वाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात्
ॐ गुरुदेवाय विद्महे परमब्रम्हाय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्
अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे
जिन्होने किसी गुरु से गुरु दिक्षा ना ली हो वे " ऐं " इस एकाक्षर गुरु मंत्र बीज मंत्र का जाप करे .. " ऐं " यह बीज ब्रह्माण्ड के सभी गुरुमंडल का बीज मंत्र है .. इस एकाक्षर मंत्र का यथाशक्ती स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला से जाप करे ..
और निम्न गुरु मंत्र का भी यथाशक्ती जाप करे .. यह ब्रम्हाण्ड के शक्तिशाली गुरुपरंपरा का गुरुमंत्र है .. इसका नित्य जाप करने से सभी गुरुमंडल के गुरुओं की कृपा प्राप्त होती है ..
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:
अब जप गुरुदेव को अर्पण करे
ॐ गुह्याति गुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत कृतं जपं
सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!
अब एक आचमनी जल अर्पण करे
*अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयंताम !!*
*जानिए गुरु पूर्णिमा विशेष*
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*इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 13 जुलाई 2022, दिन बुधवार को मनाई जाएगी। यह दिन गुरुओं के पूजन तथा सम्मान का दिन माना जाता है*
*गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:*
*गुरु पूर्णिमा के उपाय*
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*गुरु पूर्णिमा के दिन पर पीपल के पेड़ की जड़ों में मीठा जल चढ़ाने मात्र से माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है*
*किसी भी कार्य में सफलता का संदेह हो तो इस दिन भगवान श्री कृष्ण के सामने गाय के शुद्ध घी का दीया जलाकर सच्चे मन से अपनी बात कह देने से बिगड़े हुए काम बन जाते हैं*
*छात्रों को अगर शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई महसूस हो रही हो तो गुरु पूर्णिमा के दिन गीता का पाठ या गीता अध्याय के किसी भी पाठ को अवश्य पढ़ना चाहिए*
*ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करियर में तरक्की के लिए गुरु पूर्णिमा के दिन जरूरतमंद व्यक्ति को पीली चीजें- जैसे चना दाल, बेसन, पीले वस्त्र और पीली मिठाई, गुड़ चीजों का दान करना चाहिए*
*।। जय सियाराम जी।।*
*।। ॐ नमः शिवाय।।*
बहुत अच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंध्यन मूलं गुरोर्मूर्ति,
पूजा मूलं गुरोः पदं
मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं
मोक्ष मूलं गुरोः कृपा।