अब राजनैतिक दलों को अपने प्राइवेट सिक्योरिटी इंतजाम रखने होंगे - अरविन्द सिसोदिया
अब राजनैतिक दलों को अपने प्राइवेट सिक्योरिटी इंतजाम रखने होंगे - अरविन्द सिसोदिया
ट्रंप सौभाग्यशाली थे जो बच गये
राजनीति में हिंसा के सहारे वातावरण बदलने के षड्यंतत्रों की असलियत सामने नहीं आती...
अमेरिका ने चार राष्ट्रपतियों अथवा पूर्व राष्ट्रपतियों नें हिंसा में जान गंवाई है। तो वहीं पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप सौभाग्यशाली हैँ कि वे जानलेवा हमले में बच गये! भारत में भी दो प्रधानमंत्रीयों ने बदले की हिंसा में जान गंवाई है।
ट्रंप पर हुआ हमला स्वयं पर चुनावी लाभ के लिये कर वाया गया हमला तो प्रतीत नहीं होता। क्यों कि गोली कान को छू कर निकल गईं, यह सिर को भी भेद सकती थी। मगर यह हमला ट्रंप के विरोधी दल भी नहीं करवा सकते, क्योंकि इससे उन्हें ही राजनैतिक नुकसान होता। अर्थात यह हमला गूढ रहस्य ही है, इसके खुलने की संभावना भी नगण्य है। किन्तु हमलावर के सोसल मिडिया एकाउन्ट से कुछ हद तक कुछ निकाला जा सकता है।
Trump Attack
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप पर हमले के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन नें कहा है कि , ”अमेरिका में हिंसा के लिए कोई जगह नही। ”
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने देश के नाम संबोधन में प्रतिक्रियाएं देते हुए कहा कि " हमें पता है कि एक पूर्व राष्ट्रपति पर गोली चलाई गई और एक नागरिक की मौत हो गई। आप जिसे भी चाहें उसे समर्थन करने का अधिकार है, पर हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है और हिंसा के जरिए कोई जवाब नहीं दिया जा सकता है।हम अमेरिकी में इस रास्ते पर नहीं चल सकते।"
बाइडेन ने आगे कहा कि मैं याद दिलाना चाहता हूं कि जब हम असहमत होते हैं, तो हम दुश्मन नहीं हैं, बल्कि हम पड़ोसी हैं, हम दोस्त हैं, सहकर्मी हैं, नागरिक हैं और सबसे जरूरी बात यह है कि हम अमेरिकी हैं। हमें एक साथ खड़े होना चाहिए, हमारे देश में ऐसी चीजों के लिए कोई जगह नहीं है।
निश्चित ही सत्तारूढ़ होने से वर्तमान राष्ट्रपति बाईंडेन को ज्यादा चिंता होगी है, क्योंकि इस घटना का गुनहगार कोई भी हो, नुकसान उन्हें और उनकी पार्टी को उठाना पड़ सकता है।
भारत में दो प्रधानमंत्रीयों की हत्याएँ हुईं 1984 में श्रीमती इंदिरा गाँधी की, यह हत्या आम चुनाव से पूर्व हुईं थी और इसका सहानुभूति लाभ कांग्रेस को हुआ, 414 सीटें कांग्रेस नें जीतीं और राजीव गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बनें। दूसरी घटना 1991 में आम चुनावों में पहला चरण गुजारने के बाद और दूसरे चरण से ठीक पहले हुईं, उसमें राजीव गाँधी जो तब पूर्व प्रधानमंत्री थे की हत्या हुईं। इस बार भी सहानुभूति का लाभ कांग्रेस को हुआ। वह हारी बाजी जीत गईं, सबसे बड़े दल के नाते नरसिंह राव अल्पमत सरकार के प्रधानमंत्री बनें। अर्थात राजनैतिक हमले का लाभ उस दल को ही मिलता है जिस दल के नेता पर हमला होता है। इस तरह ट्रंप को लाभ मिल सकता है।
हाल ही में विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में ठीक चुनाव के प्रारंभ पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पैर में चोट आगई, पैर पर पट्टा चढ़ा, व्हील चेयर से प्रचार हुआ, सहानुभूति लहर पर सवार ममता भारी बहूमत से चुनाव जीत गईं,फिर यही बात पुनः लोकसभा चुनावों में दोहराई गईं, ममता बनर्जी के सिर में चोट और खून की लकीर वाला फोटो प्रेस को भेजा गया। फिर से ममता बैनर्जी को लाभ हुआ। वे लोकसभा में पहले से ज्यादा सीटें जीतीं।
कुल मिला कर सहानुभूति का फायदा तो मिलता है। इसलिए पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को इसका फायदा मिल सकता है।
एक इसी तरह का उदाहरण राजस्थान के बारां जिले की अंता विधानसभा क्षेत्र का है जिसमें मतदान की पूर्व रात्री में प्रत्याशी पर गोलिवारी होनें की रिपोर्ट लिखाई जाती है सुबह के अख़बार में फ्रंटपेज़ न्यूज़ बनीन थी और उससे सहानुभूति वोट डला और वह प्रत्याशी चुनाव जीत गया। संभवतः गोलीवारी की रिपोर्ट पर भी बाद में एफ आर लग गईं।
सवाल यह जरूर उठता है की राजानैतिक दल की जीत सुनिश्चित करने के लिये यदि हमले प्रयोजित होते हैँ तो इनके पीछे वाली ताकतों को कोई भी सुरक्षा एजेंसी सामने क्यों नहीं ला पाती ।
राजनैतिक क्षेत्र में हिंसा,झूठ, छल, कपट और पाखंड की अतिवृद्धि......! सोसल मीडिया, विज्ञान और इंटरनेट युग में बहुत अधिक बड़ गईं है। जहां उनकी पहुंच बहुत आसन हो गईं है उसमें ये खतरे बहुत अधिक बड़ गये हैँ अब प्रत्येक बड़े दल को अपनी सिक्योरिटी ब्रांच बनानी होगी और उसे मज़बूत रखना होगा।
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