कावड यात्रियों के लिये पवित्र माहोल देना सरकार की जबावदेही - अरविन्द सिसोदिया

 कावड यात्रियों के लिये पवित्र माहोल देना सरकार की जबावदेही - अरविन्द सिसोदिया 

मूलतः भारत में एक अलग मुस्लिम शासन समानांतर चलाये जानें का प्रयत्न, मुस्लिम वर्ग के लोग अपने वोट बैंक की दम पर लगातार कर रहे हैं। इस तरह की कोशिशें निरंतर अंजाम देते रहते हैं। यह स्वतंत्रता के पूर्व , स्वतंत्रता के समय और स्वतंत्रता के बाद भी लगातार हो रहा है। देश का विभाजन भी मुस्लिम मांग के बाद हुआ । देश में मुस्लिमों को ज्यादा अधिकार भी मिले हुये है। इसके पीछे वोट बैंक की राजनीति रहती है। जो अतिरिक्त महत्व देकर तुष्टिकरण को बराबर बनाये हुये है।

भारत में हिन्दू नामों से मुस्लिम प्रतिष्ठानों की भरमार लम्बे समय से है। हिन्दुओं के धर्मिक आयोजनों से जुडे उत्पादन भी बडी संख्या में मुस्लिम वर्ग के लोग करते आये हैं। किन्तु राजनैतिक लाभ के लिये हिन्दू मुस्लिम भाई चारा तोडनें का कार्य भी लगातार होता रहा है। मुस्लिम वर्ग को राजनैतिक गुलाम बना कर कुछ दल इनका निरंतर उपयोग करते रहे हैं। 

जब से मुस्लिम वर्ग नें हलाल सर्टिफाईड प्राडेक्ट की शिरूआत की है। हलाल सर्टिफाईड का दायरा निरंतर बडाया जाता रहा है। तब से गैर मुस्लिमों में इससे बचनें की चाहत हुई, यह गैर मुस्लिमों का अधिकार भी है। इसलिये यह जरूरी है कि हलाल सर्टिफिकेशन पर रोक भी हो और दुकानदार की सही से पहचान भी हो । विशेषकर जब सावन के महीनें पवित्र कावड यात्रा होती है तब तो शुद्धता की जिम्मेवारी व जबावदेही सरकार को उठानी ही होगी। 

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कावड मार्ग पर नाम लिखना आवश्यक

कांवड़ यात्रा मार्ग पर नेम प्लेट को लेकर मचा सियासी तूफान

विपक्ष ने बताया मुस्लिमों का आर्थिक बहिष्कार,सीएम योगी बोले दुकान मालिक को लिखना ही होगा नाम और पहचान

सहयोगी दल भी सरकार के निर्णय से खफा

यूपी और उत्तराखण्ड के कांवड़ यात्रा मार्ग पर मौजूद दुकानदारों को नाम लिखने के आदेश को लेकर राजनैतिक बयानबाजी तेज हो गई हैं। एक ओर जहां विपक्ष ने इसे गैर संवाधिनिक बताते हुए कहा है कि इसकी आड़ में मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार की साजिश है वहीं दूसरी ओर अपने फैसले पर अडिग सीएम योगी ने इस मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए साफ कह दिया है कि पूरे प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर दुकानदारों को नाम लिखना होगा। कांवड़ यात्रियों की आस्था की शुचिता बनाए रखने के लिए ये फैसला लिया गया है। साथ ही सीएम योगी ने ये भी आदेश दिया है कि हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचनेवालों पर भी कार्रवाई होगी। 


कांवड़ मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों पर प्रमुखता से नाम प्रदर्शित करने पर देशव्यापी बहस छिड़ चुकी है। एक तरफ नेताओं के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है, दूसरी तरफ दुकानों के बाहर नाम प्रदर्शित करने का सिलसिला जारी है। गौततलब है कि दो दिन पूर्व यह फैसला पहले मुजफ्फरनगर पुलिस ने लिया था और फिर सहारनपुर मंडल के डीआईजी ने आदेश जारी कर दिया कि शामली, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में सभी दुकानदारों को दुकान के बाहर नेम प्लेट लगानी होगी। हालांकि जब इस मामले में विवाद बढ़ गया तो मुजफ्फरनगर पुलिस ने अपना फैसला वापस ले लिया था। लेकिन अब सीएम योगी ने आदेश जारी कर दिया है।

सीएम योगी  ने फरमान जारी किया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों को अपने नाम लिखने ही होंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस व्यवस्था को पूरे प्रदेश में लागू करने की निर्देश दिए हैं। अब कावड़ यात्रा यूपी के जिस भी जिले से जाएगी या निकाले जाने की परंपरा है, उन सभी यात्रा रूट पर संचालित होने वाली दुकानों पर मलिक का नाम पहचान लिखनी होगी। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद शासन की तरफ से सभी जिलाधिकारी, पुलिस कप्तान सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश जारी करके इसका पालन करने के सख्त निर्देश दिए गए हैं।

बता दें कि सहारनपुर मंडल के तीनों जनपदों से होकर करोड़ों शिवभक्त कावड़ लेकर अपने गंतव्य को जाते हैं। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली जनपदों से हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब समेत कई राज्यों के शिवभक्त हर की पैड़ी हरिद्वार से कावड़ में गंगाजल भर कर शिवालयों की ओर जाते हैं। सहारनपुर और मुजफ्फरनगर दोनों जिले उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले से सटे हुए हैं। हरिद्वार प्रशासन ने भी दुकानदारों को नाम लिखने के निर्देश दिये हैं।

इस कदम के पीछे सरकार और प्रशासन के अपने तर्क हैं। मुजफ्फरनगर में यूपी सरकार के मंत्री कपिलदेव अग्रवाल ने कांवड़ मार्ग पर खाने-पीने की दुकानों पर लगे नेमप्लेट मामले पर कहा कि यह हर खाने-पीने की गाड़ी का मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि जो लोग हरिद्वार से जल लेकर 250-300 किलोमीटर की यात्रा करते हैं और इस रूट पर चलते हैं, उसको लेकर उनकी तरफ से ही आग्रह आ रहे है। इसको लेकर हमने जिला प्रशासन से आग्रह किया था कि ऐसे सभी लोग जो हिंदू-देवताओं के नाम पर अपना ढाबा या होटल चलाते हैं, उनमें से ज्यादातर मुस्लिम समुदाय से हैं। वहां नॉनवेज बेचा जाता है। दुकान का नाम हिंदू देवता के नाम पर है, लेकिन वहां ऐसे भोजन परोसे जाते हैं। ऐसे सभी दुकानों पर पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उनकी पहचान की जानी चाहिए।

कपिलदेव अग्रवाल ने कहा कि हमें नॉनवेज की बिक्री पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन, कांवरिए इसे नहीं खरीदेंगे। हमने केवल इतना आग्रह किया है कि हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर दुकानें खोलकर नॉनवेज न बेचा जाए। इसलिए इस प्रकार की बात कही गई है। यह सामाजिक सौहार्द्र का मामला है। लोग जहां मन करे, खाना खा सकते हैं। उन्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि वे कहां बैठे हैं।

सहारनपुर डीआईजी अजय कुमार साहनी ने बताया कि श्रावण कांवड़ यात्रा के दौरान समीपवर्ती राज्यों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश होते हुए भारी संख्या में कांवड़िये हरिद्वार से जल उठाकर मुजफ्फरनगर जनपद से होकर गुजरते हैं। श्रावण के पवित्र माह में कई लोग खासकर कांवड़िये अपने खानपान में कुछ खाद्य सामग्री से परहेज करते हैं।

भाजपा सरकार के इस फरमान ने सहयोगी दलों को भी नाराज कर दिया है। जेडीयू से लेकर आरएलडी तक की भी नकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आई हैं। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष ने भी इस निर्देश के लिए नाराजगी जाहिर की है। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन को दुकानदारों को अपनी दुकान पर अपना नाम और धर्म लिखने का निर्देश देना जाति और सम्प्रदाय को बढ़ावा देने वाला कदम है। प्रशासन इसे वापस ले। यह गैर संवैधानिक निर्णय है।

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Pawan Khera 🇮🇳

@Pawankhera

▪️कांवड़ यात्रा के रूट पर फल सब्ज़ी विक्रेताओं व रेस्टोरेंट ढाबा मालिकों को बोर्ड पर अपना नाम लिखना आवश्यक होगा। 

▪️यह मुसलमानों के आर्थिक बॉयकॉट की दिशा में उठाया कदम है या दलितों के आर्थिक बॉयकॉट का, या दोनों का, हमें नहीं मालूम। 

▪️जो लोग यह तय करना चाहते थे कि कौन क्या खाएगा, अब वो यह भी तय करेंगे कि कौन किस से क्या ख़रीदेगा? 

▪️जब इस बात का विरोध किया गया तो कहते हैं कि जब ढाबों के बोर्ड पर हलाल लिखा जाता है तब तो आप विरोध नहीं करते। 

▪️इसका जवाब यह है कि जब किसी होटल के बोर्ड पर शुद्ध शाकाहारी भी लिखा होता है तब भी हम होटल के मालिक, रसोइये, वेटर का नाम नहीं पूछते। 

▪️किसी रेहड़ी या ढाबे पर शुद्ध शाकाहारी, झटका, हलाल या कोशर लिखा होने से खाने वाले को अपनी पसंद का भोजन चुनने में सहायता मिलती है। 

लेकिन ढाबा मालिक का नाम लिखने से किसे क्या लाभ होगा? 

▪️भारत के बड़े मीट एक्सपोर्टर हिंदू हैं। क्या हिंदुओं द्वारा बेचा गया मीट दाल भात बन जाता है? ठीक वैसे ही क्या किसी अल्ताफ़ या रशीद द्वारा बेचे गए आम अमरूद गोश्त तो नहीं बन जाएँगे।



हलाल सर्टीफाईड क्या है

'हलाल सर्टिफिकेशन' को इस बात की गारंटी माना जाता है कि संबंधित प्रोडक्ट को मुस्लिमों के हिसाब से बनाया गया है। यानी उसमें किसी तरह की मिलावट नहीं है और उसमें किसी ऐसे जानवर या उसके बाय-प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं हुआ है, जिसे इस्लाम में 'हराम' माना गया है।

Explainer: हलाल सर्टिफिकेशन क्या है; मुस्लिम समुदाय के बीच क्यों हो रही इसकी चर्चा? यहां जानें पूरी जानकारी

आम तौर पर हलाल सर्टिफिकेशन वेज और नॉन-वेज दोनों तरह के प्रोडक्ट के लिए होता है। यह इस बात की गारंटी माना जाता है कि संबंधित प्रोडक्ट को मुस्लिमों के हिसाब से बनाया गया है, मतलब प्रोडक्ट में ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसे इस्लाम में हराम माना गया है।


हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर योगी सरकार सख्त

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर सीएम योगी ने बड़ा फैसला किया है और मामले की जांच यूपी एसटीएफ को सौंप दी है। इससे जुड़े मामले में हजरतगंज कोतवाली में मुकदमा भी दर्ज किया जा चुका है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि हलाल सर्टिफिकेशन है क्या और क्यों इस मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय के बीच चर्चाओं का बबंडर आया हुआ है?


यूपी में हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर क्यों हो रहा विवाद?

यूपी की योगी सरकार ने राज्य में हलाल प्रोडक्ट पर बैन लगाया है। दरअसल हलाल सर्टिफिकेशन देकर उत्पाद बेचने वाली कंपनियों पर हजरतगंज थाने में FIR दर्ज की गई थी। जिसके बाद इस मुद्दे ने तूल पकड़ा। 


दरअसल जो लोग हलाल उत्पादों पर बैन की मांग कर रहे थे, उनका आरोप था कि धर्म की आड़ लेकर एक समुदाय विशेष में अनर्गल तरीके से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। क्योंकि मुस्लिमों को ये कहा जाता था कि जिन उत्पादों में हलाल सर्टिफिकेशन ना हुआ हो, वह इस्तेमाल ना करें। ऐसे में दूसरे समुदाय के कारोबार पर असर पड़ता था और कुछ कंपनियां हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर अनुचित तरीके से आर्थिक लाभ लेने की कोशिश करती थीं। 


आरोप यह भी था कि कुछ कंपनियां अपने फायदे के लिए ग्राहकों के बीच हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर भ्रम फैला रही हैं, जिससे आपसी भाईचारे पर भी प्रभाव पड़ रहा है। 


हलाल सर्टिफिकेशन है क्या?

‘हलाल सर्टिफिकेशन’ को इस बात की गारंटी माना जाता है कि संबंधित प्रोडक्ट को मुस्लिमों के हिसाब से बनाया गया है। यानी उसमें किसी तरह की मिलावट नहीं है और उसमें किसी ऐसे जानवर या उसके बाय-प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं हुआ है, जिसे इस्लाम में ‘हराम’ माना गया है। आम तौर पर हलाल सर्टिफिकेशन वेज और नॉन-वेज दोनों तरह के प्रोडक्ट के लिए होता है।


सर्टिफिकेशन कौन करता है?

मुस्लिम आबादी वाले देशों में किसी कंपनी को खाने-पीने का सामान बेचना होता है, तो वह ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ लेती है। दुनियाभर में कई इस्लामिक देशों में सरकार द्वारा हलाल सर्टिफिकेशन किया जाता है। हालांकि भारत में FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) सभी खाद्य पदार्थों का सर्टिफिकेशन करता है लेकिन वह हलाल सर्टिफिकेशन नहीं देता है। 


फिर भी भारत में कुछ प्राइवेट कंपनियां हलाल सर्टिफिकेशन देती हैं। इन कंपनियों में हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलेमा ए हिंद और जमीयत उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट शामिल है। 


सर्टिफिकेशन का नाम हलाल ही क्यों?

Halal Certification

हलाल सर्टिफिकेशन

दरअसल हलाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है 'वैध'। इस शब्द का मुख्य रूप से इस्तेमाल इस्लाम और उसके भोजन कानून (विशेष रूप से मांस) के लिए होता है। मुस्लिम धर्म में कुछ चीजों को ना खाने के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। 

यानी इन चीजों को मुस्लिम धर्म में खाना हराम माना जाता है। जैसे मुस्लिमों को हलाल मांस खाने की इजाजत है लेकिन झटका मांस खाने की इजाजत नहीं है। 

हलाल और झटका मांस में क्या अंतर है?

हलाल मांस वह होता है, जिसमें जानवर को तेज धारदार हथियार से धीरे-धीरे काटकर मारा जाता है और फिर उसका मांस खाने के लिए उपलब्ध होता है। वहीं झटका मांस वह होता है, जिसमें एक झटके में जानवर को काट दिया जाता है।

यूपी में हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर हो रहा खेल

यूपी में कुछ कंपनियां हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर खेल कर रही थीं। ये कंपनियां कपड़ा, डेयरी, चीनी, नमकीन, मसाले, और साबुन समेत तमाम वस्तुओं को हलाल सर्टिफाइड कर रहे थे। जिसके बाद इस मामले को सीएम योगी ने खुद संज्ञान में लिया। 

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हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट्स पर यूपी में पाबंदी, योगी सरकार कड़ा आदेश

यूपी में हलाल सर्टिफिकेट वाले सामान बैन: क्या है ये, कौन और कैसे देता है Halal Certificate? जानिये

यूपी में हलाल सर्टिफिकेट वाले प्रोडक्ट बैन कर दिये गए हैं. यूपी में हलाल सर्टिफिकेट वाले प्रोडक्ट बैन कर दिये गए हैं.

उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेट (Halal Certificate) से जुड़े फूड उत्पाद पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने शनिवार को प्रतिबंध से जुड़ा आदेश जारी किया. इस आदेश के मुताबिक हलाल सर्टिफिकेट वाले खाद्य उत्पादों के निर्माण, भंडारण, वितरण एवं विक्रय पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाता है. आदेश में कहा गया है कि यदि उत्तर प्रदेश में किसी को हलाल सर्टिफिकेट वाली दवाओं, प्रसाधन सामग्रियों का विनिर्माण, भंडारण, वितरण एवं खरीद-बिक्री करते हुए पाया गया तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

आखिर क्या है हलाल सर्टिफिकेट (What is Halal Certificate), इसे कौन जारी करता है और क्यों इतना विवाद है? आइये समझते हैं…

हलाल, हराम और इस्लाम

हलाल अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है ‘जायज’ या ‘मुनासिब’. इस्लाम धर्म में खानपान के संदर्भ में दो चीजों का इस्तेमाल किया जाता है- हलाल और हराम. हलाल से मतलब ऐसे खानपान से है, जिसे इस्लामी परंपरा, विश्वास और मान्यताओं के मुताबिक तैयार किया गया है. वहीं, हराम का मतलब है ऐसा खानपान जो इस्लाम में प्रतिबंधित है. हराम के दायरे में मुख्य तौर पर दो चीजें आती हैं- पोर्क (सुअर का मांस) और शराब.

अब भारत की बात करें तो हमारे यहां मुख्य तौर हलाल का इस्तेमाल चिकन अथवा मटन को काटने की तकनीक के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है. भारत में दो तरीके से मीट प्रॉसेस होता है- हलाल और झटका. हलाल में मीट (चाहे चिकन हो या मटन) के गले की नस (कैरोटिड धमनी) पर सिर्फ एक कट लगाते, ताकि पूरा खून बाहर निकल जाए. हलाल करते वक्त जानवर को जीवित और स्वस्थ होना जरूरी है. दूसरी तरफ, झटका तकनीक में जानवर की गर्दन पर एक वार से उसकी जान ली जाती है.

तमाम हिंदू और सिख धर्म को मानने वाले झटका मीट को प्राथमिकता देते हैं. जबकि इस्लाम में झटका मीट प्रतिबंधित है.


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