लोकतंत्र की स्वामी देश की जनशक्ति नें मोदीजी को ही नेतृत्व सौंपा है - अरविन्द सिसोदिया modi prtham at india


समाज ही लोकतंत्र  स्वामी - अरविन्द सिसोदिया 

किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में उस राष्ट्र के समाज की ही प्रमुख भूमिका रहती है। सामाजिक स्वीकृति के बगैर कोई भी राजनीतिक दल ना तो स्थायित्व प्राप्त कर सकता, ना ही सत्ता प्राप्त कर सकता, नहीं सत्ता में लगातार बना रह सकता ।

 जब देश आजाद हुआ था तब भारत में लोकतांत्रिक पद्धति का बहुत अधिक प्रचार प्रसार नहीं था, ना हीं लोग अपने मत के अधिकार के उपयोग का महत्व समझते थे। सबसे बड़ी बात यह है कि तब कांग्रेस को ही सब कुछ माना जाता था, अन्य दलों को सामाजिक स्वीकृति न के बराबर थी। क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन को सभी दलों ने कांग्रेस के नाम के नीचे लड़ा था, इसलिए जान विश्वास कांग्रेस में ही तब था।

इसलिए 1947 से लेकर 1977 तक, लगभग 40 वर्ष, भारत में कांग्रेस की सर्वोपरि रही, उसी का एक छत्र राज रहा, कांग्रेस के अतिरिक्त इस देश पर कोई शासन कर सकता है यह कल्पना भी तब नहीं की जा सकती थी और सच यह है कि कांग्रेस का विकल्प देने में भी कांग्रेस की ही बड़ी भूमिका बनी। 

1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर जो जनता पर व्यापक जुल्म ढाए, उनसे ही कांग्रेस के विकल्प की जरूरत जनता नें महसूस की और उसका जन्म हुआ। लाखों लोगों की नसबंदियां कर दी गई, प्रत्येक जिले के जिला कलेक्टर को और उसके नीचे के अधिकारियों को नसबंदी के टारगेट दिए गए, यदि इतनी नसबंदी नहीं होगी तो अधिकारी अपने पद पर नहीं रह सकेगा, इसकी नौकरी खत्म, इस परिस्थिति में कुंवारे लड़कों की तक नसबंदियां कर दी गई! जो मानव सभ्यता में सबसे बड़ा जुल्म सबसे बड़ा अपराध और सबसे बड़ी तानाशाही कहीं जा सकती है। इसी तरह से अतिक्रमण हटाओ के नाम पर रास्ते चौड़े किए गए और लोगों के मकान के मकान तोड़ दिए गए। तब एक प्रकार से प्रशासन की सर्वोच्च तानाशाही भारत की जनता ने देखी और सही। बिना किसी आधार के संपूर्ण लोकतंत्र को समाप्त कर दिया गया ,संपूर्ण विपक्ष को जेल बंदी बनाकर के कारागारों में ठूंस दिया। प्रेस की आजादी छीन ली, संविधान में परिवर्तन कर दिए। 

इस देश में ही नहीं संपूर्ण विश्व में भी यदि किसी लोकतांत्रिक देश की तानाशाही का इतिहास लिखा जाएगा या उसकी समीक्षा की जाएगी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का आपातकाल सर्वोच्च रहेगा और उसके द्वारा उत्पन्न जनता का निर्णय भी इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है। 

लोकतंत्र की रक्षा के लिए भारतीय समाज ने 1975 से लेकर 1977 तक खामोशी से सहन किया और इसके बाद जो निर्णय मतदान से दिया वह भी विश्व के इतिहास में एक अपने आप में कसौटी है। भारत में आपातकाल लगाने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी स्वयं अपना चुनाव हार गई। जनता ने उन्हें शासन करना तो बहुत दूर की बात है, उन्हें संसद में भेजना भी उचित नहीं समझा। यह होती है समाज की ताकत। लोकतंत्र में किसी भी दल को जीवित रहने के लिए, स्थायित्व पाने के लिए, और सत्ता पाने के लिए। समाज का आशीर्वाद एक सर्वोच्च फेक्टर है, इसे नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

वर्तमान में भारत बेहद गंभीर आंतरिक विघटनकारी स्थिति से जूझ रहा है, क्योंकि हिंदू विरोधी या भारत विरोधी विश्व के अनेकानेक संस्थान जैसे ईसाई मिशनरियां जो संपूर्ण विश्व को ईसा मसीह के नीचे लाना चाहती हैं, इसी तरह से संपूर्ण विश्व को इस्लाम के नीचे लाने वाली ताकते हैं,जो निरंतर सक्रिय रहती हैं। इसी तरह वामपंथी विचारधारा का अपना अलग विस्तारवाद है विश्व की दो बड़ी महाशक्तियाँ साम्यवादी ही हैँ। जो किसी भी तरह से लोकतंत्र को समाप्त कर विश्व में साम्यवाद स्थापित करना चाहती है। इन बड़ी बड़ी ताकतों के द्वारा खड़ी की हुई हजारों संस्थाएं, लाखों प्रकार के न्यूसेंस ग्रुप, सोशल मीडिया पर झूठ और भ्रम की भरमार करके, धन उपलब्ध करा करके विशेष जाती वर्ग और ग्रुप उत्पन्न करके, समाज में एक भारी विघटन की प्रक्रिया चला रहे तत्वों के संघर्ष चल रहा हैँ ।

हालांकि पूर्व काल में भारत के बाहर 
 विशेषकर यूरोप में इस्लाम और ईसाइयत के बीच भी भयंकर हिंसक संघर्ष हुए हैं, उन संघर्षों में दोनों समुदाय जागृत होकर एक दूसरे के विरुद्ध संघर्षरत रहे हैँ और वह परिदृश्य परोक्ष रूप से आज भी संपूर्ण विश्व में भारत के बाहर दिखता है,प्रतीत होता है। किंतु भारत के मामले ये दोनों धुर विरोधी भी एक जुट हैँ। 

भारत या हिन्दुत्व की सबसे बड़ी समस्या अहिंसा, सहनशीलता, परोपकार, दया जैसे सद्गुण हैँ, जो वर्तमान युग में सद्गुण विकृति कहलाती है। इस वक्त भारतीय समाज व्यवस्था सदगुण विकृति के दौर से भी गुजर रही है। आज भी भारतीय समाजों में व्यापक मान्यताएं और मत भिन्नताएं देखने में नजर आ रही हैं,जिनके परिणाम के रूप में हम विभिन्न प्रकार के चुनाव परिणाम को भी देखते हैं। 

हजारों प्रकार के हिंदू विरोधी अभियानों के बाद भी, झूठ नॉरेटिव खड़े करने के बाद भी , प्रलोभन की बड़ी-बड़ी गारंटीयों या घर-घर प्रलोभन पहुंचने के बाद भी, देश की जनता ने अगर किसी पर विश्वास किया है, तो चुनाव परिणाम बताते हैं कि एनडीए को भारत की जनता ने पूर्ण बहुमत और सत्ता का अधिकार दिया है। ठीक है इसमें भारतीय जनता पार्टी की कुछ सीटें कम हुई हैँ किंतु ऑल ओवर चुनाव पूर्व गठबंधन बना और उसको चुनाव में सफलता मिली, यह सत्ता संचालन का आदेश निर्देश जनता का है। किसी एक दल के रूप में भी यह माना जाए,यह देखा जाए तो अभी भारत की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही सर्वाधिक विश्वास किया है। वह कांग्रेस से ढाई गुना बड़ी ताकत के रूप में आज भी देश में स्वीकार किए गए नेता हैं। इसलिए सामाजिक स्वीकृति के दृष्टिकोण से समाज के द्वारा अपना आशीर्वाद देने के दृष्टिकोण से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही इस देश की सर्वोच्च और सर्वस्वीकार्य प्राथमिकता की स्वीकृति है।

लगातार तीसरी बार जनता में पहुंचना और जन्म विश्वास को कायम रखना, वर्तमान सोशल मीडिया युग में जहां छल कपट और पाखंड की बाढ़ सी आई हुई है, वहां अपने आप को हाँसिल किए हुए मुकाम पर क़ायम रखना बहुत मुश्किल है, पूरे विश्व में राजनेता परिवर्तन का दौर चल रहा है। इस बीच भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने आप को आगे रख करके, समाज के जन्म विश्वास को जीता है और यह सामान्य नहीं एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और इसको इसी तरह से सेलिब्रेट किया जाना चाहिए।

जनता ने निश्चित रूप से कुछ सीटें कम की है, यह जनता का संकेत भी है कि आप जन अपेक्षाओं से कहीं ना कहीं थोड़ी बहुत दूरी पर भी रहे हैं। अब यह आवश्यक है कि जन अपेक्षाओं को पुनः जांचा परखा जाए आमंत्रित किया जाए और नए सिरे से जन संतुष्टि के कार्य किया जाए। इस चुनाव की सीधी सीधी जन अपेक्षा यही है किस सरकार का समाज से पुनः संवाद हो, आवश्यकताओं को पुनः पहचाना जाए और उनका पूरा करने पर कार्य किया जा।

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