जिम्मेवारी स्वीकारें मनमोहन जी - सोनिया जी


- अरविन्द सीसोदिया

भारत के प्रधान मंत्री को जब छाया प्रधानमंत्री कहा जाये तो शाब्दिक गलती होगी मगर अप्रत्यक्ष सच यही है .., दूसरी  बात जो हिम्मत एक प्रधान मंत्री में होनी चाहिए वह भी नहीं है , घोटाले ही नहीं अन्य विदेश और स्वाभिमान से जुड़े मामले हैं जिनमें एक प्रधान मंत्री के तौर पर उनकी प्रखरता नहीं दिखी ...? यूं तो कांग्रेस का नाम भ्रष्टाचार हो जाये तो भी किसी को आपत्ती नहीं होनी चाहिए  ..! पूर्व प्रधान मंत्री नरसिंह राव को एक अदालत नें तो सांसद खरीद मामले में दोषी माना ही था.! यह इतिहास की पहली घटना थी ., तब भी खूब घोटाले हुए ..., तब भी वित्त मंत्री माननीय मनमोहन सिंह ही थे ...! अबतो वे प्रधान मंत्री हैं ..! न्यायालय ने तो मात्र एक प्रश्न उठाया है .., सच यह है की यहाँ तो प्रश्नों की बड़ी भरी श्रंखला है...????? मगर क्या जबाव देन ..??? उनकी योग्यता तो सोनिया जी के प्रती विश्वास है ...!! 

 वे बहुत बड़े अर्थ शास्त्री हैं .., सब को मालूम नहीं है सो में उनकी योग्यताओं का विवरण भी दे रहा हूँ ...!! 

मगर यह भी सच है कि वे एक वार लोक सभा का चुनाव लड़ चुके हैं और दिल्ली से ही हार का स्वाद चख चुके हैं .., इससे पहले भी नरसिंह राव को भी राजीव जी ने टिकिट नहीं दिया था और वे वापस हैदरावाद जा रहे थे .., कुछ सामान तो भेट भी दिया था ...! मगर उन्हें भी इसी कारण प्रधान मंत्री बनाया गया कि वे भविष्य में चुनौती न बन सकें ..! 

घोटालों की राजमाता कौन है यह तो आप सभी जानते हैं ...! बिचारे मनमोहन की क्या दोष दें ...??

मनमोहन जी को तो यह विचार करना चाहिए की सब कुछ उनके माथे है....!! इतिहास में परदे के पीछे के लोग लुप्त हो जाते हैं .., यूं भी कम निकाल जानें के बाद .., नटवर सिंह और विन्सेंट जार्ज कहाँ गये यह तो आपको भी पता होगा...!!!

इन घोटालों के लिए .., जो इतनी बड़ी बड़ी रकमों से जुड़े  हैं जिन्हें कोई गिन नहीं सकता.., जैसे आई पी एल .., टू गई स्पेक्ट्रम , कामनवेल्थ ...! इनको होनें में वर्षों लगे ..! ये न तो प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह  से छुपे थे और न ही यू पी ए की अध्यक्षा सोनिया गांधी से ...!! इन दोनों की इनकी जिम्मेवारी स्वीकारनी चाहिए ..!! राष्ट्रहित में इन्हें पदों से इस्तीफा भी देना चाहिए ..!! पदों पर रहते तो सही जांच संभव नहीं है ..!! अर्थात  जिम्मेवारी स्वीकारें मनमोहन जी  - सोनिया जी             

    दूरसंचार घोटाले पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चुप्पी पर भी सवाल उठाए हैं और पूछा है कि क्या कोई ज़िम्मेदार अधिकारी किसी शिकायत पर इस तरह से चुप रह सकता है. यह सवाल इस्तीफ़ा दे चुके केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए राजा के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की अनुमति देने में हुए विलंब को लेकर उठाया है. जनता पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय क़ानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने दो साल पहले प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ए राजा के ख़िलाफ़ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की अनुमति माँगी थी. नियमानुसार किसी सरकारी पद आसीन व्यक्ति के ख़िलाफ़ इस तरह की कार्रवाई के लिए अनुमति चाहिए होती है. 

        लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मामले पर चुप रहे. अब सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी को इस बात की अनुमति दे दी है कि वे चाहें तो ए राजा के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर सकते हैं. चूंकि अब ए राजा संचार मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं इसलिए अब उन पर आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए किसी की अनुमति की ज़रुरत भी नहीं है.           सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल मंगलवार को उठाया, जिस दिन संसद में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट संसद में पेश की गई. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मोबाइल फ़ोन के लिए टू-जी स्पैक्ट्रम आवंटन के मामले में नियमों की अनदेखी की गई, अयोग्य कंपनियों को लाइसेंस दिए गए और जिन दरों पर लाइसेंस दिए गए उससे सरकार को 1.70 लाख करोड़ रुपयों तक का घाटा हुआ.

     न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली के पीठ ने सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चुप्पी पर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा, "क्या कोई ऐसा अधिकारी जिस पर कार्रवाई करने की अनुमति देने का अधिकार है, इतने समय तक चुप रह सकता है?"

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मनमोहन की चुप्पी पर अदालत का सवाल

Courtesy: BBCHindi.com


     मनमोहन सिंह इतने योग्य हैं की उनसे इस तरह कि चूकें संभव नहीं हैं..., वे जिस दबाव में यह सव स्वीकार कर रहें हैं.. उस पर वार करना होगा ..!! 

डा. सिंह के महत्वपूर्ण पड़ाव

  • १९५७ से १९६५ - चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक
  • १९६९-१९७१ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर
  • १९७६ - दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफ़ेसर
  • १९८२ से १९८५ - भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर
  • १९८५ से १९८७ - योजना आयोग के उपाध्यक्ष
  • १९८७ - पद्मविभूषण
  • १९९० से १९९१ - भारतीय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार
  • १९९१ - नरसिंहराव के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार में वित्त मंत्री
  • १९९१ - असम से राज्यसभा के सदस्य
  • १९९५ - दूसरी बार राज्यसभा सदस्य
  • १९९६ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर
  • १९९९ - दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए.
  • २००१ - तीसरी बार राज्य सभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
  • २००४ - भारत के प्रधानमन्त्री
- उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक के लिए भी काम किया है.
- डा. सिंह ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है । 
 - १९९८ तथा २००४ में संसद में विपक्ष के नेता रह चुके हैं।
- UNCTAD सचिवालय में सलाहकार भी रहे 
- १९८७ तथा १९९० में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। 
- १९७१ में डा. सिंह भारत के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। 
- इसके तुरंत बाद १९७२ में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया 

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