मृत्यु और उसके बाद का अनुभव
'मौत' के बाद जिंदा लौटे, जानिए कैसा था उनका अनुभव
Sun, 28 Jun 2015
समय-समय पर ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं कि मरने के कुछ समय बाद व्यक्ति फिर से जिंदा हो गया। ऐसे ही मृत्यु के किनारे को छूकर लौटने वाले अनेकों व्यक्तियों ने जो कुछ देखा महसूस किया और बताया, उन विवरणों पर वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है।
1970 में अमेरिका में इस तरह के अध्ययन के लिए 'साइन्टिफिक स्टडी ऑफ नियर डेथ फिनोमेना " नाम से एक संस्था। ब. रेमण्ड ए. मूडी नामक विख्यात मनःचिकित्सक की टीम ने प्रतिवर्ष 100 से ज्यादा ऐसे लोगों पर अध्ययन किया।
सैकड़ों परीक्षणों के बाद डा.रेमंड ने देखा कि कुछ समानताएं सब में होती हैं। जो भी व्यक्ति मृत्यु के निकट पहुँच गये, उन्होंने सबसे पहले शरीर को छोड़ने के बाद दूर से उसे देखा।
अनेक मृतक संबंधी भी मिलते हैं। घने अंधकार भरे मार्ग से प्रकाश की ओर गमन का अनुभव होता है। प्रकाश की ओर जाते ही शान्ति और आनन्द की अनुभूति होती है।
अंधेरे से उजाले की ओर चली जाती है आत्मा
ऐसे 100 व्यक्ति जिन्हें डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था और वे फिर पुनः जीवित हो गए थे उनके अनुभवों को डा. रेमण्ड मूडी ने "लाइफ आफ्टर डेथ" शीर्षक से एक पुस्तक रूप में संकलित किया। कुछ अनुभव लगभग एक जैसे थे। जैसे-मृत्यु के समय अत्यधिक पीड़ा होना और डॉक्टर द्वारा मृत घोषित कर देना। अन्धकार पूर्ण मार्ग से गुजरकर प्रकाशित स्थान में पहुँचना।
शरीर छोड़ कर जा चुके और फिर लौट आए 67 लोगों का अनुभव था कि उन्हें शरीर का अपने से अलग अनुभव हुआ। दृष्टा की तरह ने अपने शरीर को देखते रहे। शरीर से लगाव तुरंत दूर नहीं हुआ, बोध या चेतना कुछ समय उसी के इर्द-गिर्द घूमती है।
दीवार खिड़की आदि उसके लिए बाधक नहीं रहते अब वह और अधिक शक्ति महसूस करता है। डॉक्टर व संबंधी गणों को शरीर के इर्द-गिर्द खड़े देखता, उनके प्रत्येक प्रयास को देखता है। मृत मित्र संबंधियों की आत्माएं भी मिलती हैं।
मर कर जी उठे लोगों से मुलाकात
अटलांटा की एमरी यूनीवर्सिटी में मनश्चिकित्सा पढ़ा रही डा. एलिजाबेथ कबलररोस ने भी रेमण्ड की तरह कुछ प्रयोग किए। उनके एक सहयोगी और इसी विश्वविद्यालय में कार्डियोलोजी के प्रोफेसर डा. माइकेल सेबोम का कहना था कि 'रेमण्ड मूडी की पुस्तक में दी घटनाओं पर सहसा विश्वास नहीं हुआ। लेकिन शोध में मेरी भी रुचि जागी।'
उनकी सहायिका सारा क्रुजिगर के साथ मिलकर उन्होंने 120 नियर डेथ एक्सपीरेन्स के उदाहरणों पर अध्ययन किया। उनमें से 40 प्रतिशत व्यक्तियों ने डा. मूडी की रिपोर्ट के जुटाए ब्यौरों की पुष्टि की। इसी प्रकार 'यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टीकट' के प्रोफेसर डा. केनेथरिंग ने भी मर कर जी उठे 102 लोगों से भेंट की।
'सेन्टल्युक हॉस्पीटल' के हृदय विशेषज्ञ डा. फ्रेड शूनर ने ऐसे ही 2300 व्यक्तियों की जांच की। इस तरह की शोध रिपोर्टों से बौद्धिक और वैज्ञानिक जगत मे कौतूहल जागा। निष्कर्षों के अनुसार मनुष्य की इच्छा, आकाँक्षा, स्वर्ग की सुखद कल्पना नर्क के प्रति भय भावना इत्यादि के अनुसार ही मनुष्य को ये अनुभव होते हैं।
मरकर जिंदा होने वालों के बारे में क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक
इन अनुभवों के आधार पर डा. रसेल नोइस ने मनोविज्ञान की नवीनतम शाखा में 'डिपर्सनोलाइजेशन' की परिकल्पना दी। उसके अनुसार दुःखदायी अनुभवों से बचने के लिए मन 'इगोडिफेंसिव मेकेनिज्म' के माध्यम से सुख की कल्पना करता है।
डा. रसेल, डा. कार्लिस ओसिस और इरलेण्डर हाल्डसन आदि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार भिन्न देशों और पर विश्वास पंरपराओं की मान्यताएंअलग होने के बावजूद उनमें बहुत कुछ समानता होती है।
केनेथरिंग की राय इन निष्कर्षों पर नई रोशनी डालती है। 'लाइफ ऐट डेथ' तथा 'ए साइन्टिफिक इन्वेस्टीगेशन ऑफ नियर डेथ एक्सपीरेन्स' शीर्षक से अध्ययन रिपोर्टों में उन्होंने कहा है कि शारीरिक मृत्यु के बाद भी हम निश्चित रूप से 'कान्शस एक्जिस्टेन्स' जारी रख सकते हैं।
यह बात मैं अपने निजी अनुभव एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार बता सकता हूँ कि मृत्यु के निकट जाने से हम उच्चतर अस्तित्व से परिचित होते हैं। जिसे हम मृत्यु कहते हैं उसके बाद हम उस उच्चतर अस्तित्व का यथेष्ट उपभोग कर सकते हैं।"
आइये अब मिलिए उनसे जो मौत को मात देकर फिर जीवित हो गए
गलत आदमी को ले जाने के कारण यमदूत को पड़ी डॉट
एक घटना मुरैना मध्य प्रदेश की है। यहां के एक व्यवसायी थे विश्वंभरनाथ बजाज। इनकी उम्र 75 वर्ष थी। विश्वंभरनाथ काफी समय से बीमार चल रहे थे। एक दिन अचानक ही इनकी सांसें थम गई और लोगों ने समझ की इनकी मृत्यु हो चुकी है। आनन-फानन में लोग मृतक संस्कार में लग गए।
लेकिन इसी बीच विश्वंभरनाथ जी के शरीर हलचल होने लगी और वह उठकर बैठ गए। लोग बड़े हैरानी से उनकी ओर देख रहे थे। लोगों की हैरानी दूर करते हुए विश्वंभरनाथ ने जो कहा उस सुनकर लोगों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। विश्वंभरनाथ ने बताया कि उन्हें कुछ लोग उठाकर आकाश में एक दिव्य पुरुष के पास ले गए।
वह पुरुष वृषभ पर बैठा था। उन्होंने मुझे ले जाने वाले को डांटते हुए कहा कि इसे क्यों ले आए। इन्हें तुरंत पृथ्वी पर छोड़ आओ। इसके शहर में एक अन्य व्यक्ति है जिसे लाने के लिए मैने कहा है उसे लेकर आओ। इस घटना के बाद अगले दिन पता चला कि जिस समय विश्वंभरनाथ के प्राण लौटे थे ठीक उसी समय श्रीग्यासीराम नाम के एक अन्य व्यवसायी की हृदयगति रुक जाने से मृत्यु हो गयी थी।
परलोक में इन्हें मिले हनुमान
यह घटना गढ़वाल जिले के रानाघाट के पास छुंडी गांव की है। यहां के निवासी रुद्रदत्त का शरीर एक दिन अचानक शांत हो। शरीर में जीवन के चिन्ह खत्म हो चुके थे।
सगे-संबंधी इनकी मृत्यु पर विलाप करने लगे। दूसरी ओर मृतक संस्कार की भी तैयारी होने लगी। इसी बीच रुद्रदत्त के शरीर में हलचल होने लगी।
रुद्रदत्त के प्राण वापस लौटने के बाद उसने परलोक के अनुभव लोगों को बताए और कहा कि उसे हनुमान जी का मंदिर बनवाने का आदेश मिला।
रुद्रदत्त जो काफी समय से बीमार चल रहा था वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया। परलोक में मिले आदेश के अनुसार हनुमान जी के मंदिर का निर्माण करवाया।
अंतिम संस्कार से पहले वह उठकर बैठ गया
यह घटना अमरीका के मिसीसिपी का है। 78 वर्षीय विलियम्स को लेक्जिंगटन में उनके घर में ही नब्ज़ नहीं चलने पर मृत घोषित किया गया।
होम्स काउंटी के शव जांच विशेषज्ञ डेक्सटर हावर्ड ने बताया कि उन्होंने सामान्य तरीके से ही विलियम्स की जांच की थी। उन्हें विलियम्स जीवित होने का कोई संकेत नहीं मिला।
वॉल्टर विलियम्स नामक शख्स के शव को जब अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। विलियम्स को पॉर्टर ऐंड संस फ्यूनरल होम ले जाया गया। जब उनके शरीर पर लेप लगाने की तैयारी हो रही थी ठीक उसी वक्त उनके शरीर में हरकत होने लगी।
विलियम्स उठकर बैठ गए। यह अब कब तक जीवित रहेंग और इनके मृत्यु के समय के अनुभव कैसे था विलियम्स ने इस पर कुछ नहीं कहा।
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मृत्यु के बाद 13 दिनों तक क्यों अपने घर में रहती है आत्मा, जानना चाहते हैं आप?
Sunday, Jun 19, 2022
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जिस तरह जीवन एक सत्य है, ठीक प्रत्येक व्यक्ति को ये भी भली-भांति पता है कि मृत्यु भी एक ऐसा सत्य है, जिसे कोई जितना मर्जी झुठला दें, परंतु इसे बदला नहीं जा सकता। कहने का अर्थ है कि जिस ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है उसे एक न एक दिन अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है। इस बारे में हम में से बहुत से लोगों ने कई बार अपने बड़े बुजुर्गों से कहते सुना होगा कि कि मृत्यु के बाद मनुष्य शरीर की आत्मा 13 दिनों तक अपने घर में रहती है। मगर ऐसा क्यों, इस बारे में क्या किसी ने सोचा है? अगर नहीं तो चलिए आज आपको इससे संबंधित जानकारी बताते हैं और जानते हैं कि आखिर क्यों मृतक शरीर की आत्मा 13 दिनों तक अपने घर में भटकती रहती साथ ही साथ ये बी बताएंगे कि 13 दिनों तक मृतक के नाम का पिंडदान क्यों किया जाता है।
बता दें कि गरुड़ पुराण में इस बारे में विस्तार से बताया गया है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो यमराज के यमदूत उसे अपने साथ यमलोक ले जाते हैं। यहां उसके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब होता है और फिर 24 घंटे के अंदर यमदूत उस प्राणी की आत्मा को वापिस घर छोड़ जाते हैं। यमदूत के द्वारा आत्मा को वापिस छोड़ जाने के बाद मृतक की आत्मा अपने परिजनों के बीच भटकती रहती है और अपने परिजनों को पुकारती रहती है लेकिन उसकी आवाज को कोई नहीं सुन पाता। यह देखकर मृत व्यक्ति की आत्मा बेचैन हो जाती है और जोर जोर से चिलाने लगती है। इसके बाद आत्मा अपने शरीर के अंदर प्रवेश करने की कोशिश करती है लेकिन यमदूत के पास बंदिश होने के कारण वह मृत शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती। इसके अलावा गरुड़ पुराण की मानें तो जब यमदूत आत्मा को उसके परिजनों के पास छोड़ जाती है तो उस समय उस आत्मा में इतना बल नहीं होता कि वो यमलोक की यात्रा तय कर पाए। गरुड़ पुराण के अनुसार किसी भी मनुष्य के मृत्यु के बाद जो 10 दिनों तक मकिया जाता है उससे मृतक आत्मा के विभिन्न अंगों की रचना होती है और जो ग्यारहवें और बारहवें दिन पिंडदान किया जाता है उससे मृतक आत्मा रूपी शरीर का मास और त्वचा का निर्माण होता है और जब 13वें दिन 13वीं की जाती है तो उस दिन मृतक के नाम का पिंडदान किया जाता है। उसी से ही वो यमलोक तक की यात्रा तय करते हैं। अर्थात मृत्यु के बाद मृतक के नाम का जो पिंडदान किया जाता है। उसी से ही आत्मा को मृत लोक से यमलोक तक यात्रा करने का बल मिलता है। इसलिए ही गुरुड़ पुराण में बताया गया है जब किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्मा 13 दिनों तक अपने परिजनों के पास घर में भटकती रहती है और उसके बाद आत्मा मृत लोक से यमलोक की ओर निकल पड़ती है जिसे पूरा करने के लिए उसे 12 महीने यानि कि 1 साल का वक्त लगता है इतना ही नहीं मान्यता के अनुसार 13 दिनों तक मृतक के नाम का किया गया पिंडदान उसके 1 वर्ष के भोजन के समान होता है।
पिंडदान न किया जाए तो क्या होगा-
इसके अलावा बता दें अक्सर लोगों के मन में ये सवाल भी ज़रूर आता है कि अगर किसी मृत व्यक्ति के नाम का पिंडदान नहीं किया गया तो क्या होता है तो दोस्तों आपको बता दें कि इसका भी वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है। जी हां, जिस मृतक व्यक्ति का पिंडदान नहीं किया जाता। यमदूत उसे 13वें दिन जबरदस्ती घसीते हुए यमलोक की ओर ले जाते हैं और मृतक व्यक्ति की आत्मा को इस दौरान काफी कष्ट उठाना पड़ता है इसलिए हिंदू धर्म में मनुष्य की मृत्यु के बाद 13 दिनों तक पिंडदान करना आवश्यक माना गया है। इसके अलावा आपको बता दें कि 13वें दिन परिजनों के द्वारा मृतक व्यक्ति के नाम का जो भोज करवाया जाता है। अगर वह कर्ज लेकर किया जाए तो मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति नहीं मिलती। इतना ही नहीं गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया कि जो व्यक्ति जीवित रहते हुए अच्छे कर्म करता है.. मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को यात्रा के दौरान यमदूत कोई कष्ट नहीं देते और जो व्यक्ति बुरे कर्म करते हैं। उसकी आत्मा को यमदूत यात्रा के दौरान कई यातनाएं देता है और आत्मा को कई कष्ट भोगने पड़ते हैं।
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