रविवार प्रत्यक्ष देव सूर्य नारायण का दिन

 रविवार को सूर्य देव की इस विधि से करें पूजा, मिलेगी मन'चाही सफलता - Ek  Bihari Sab Par Bhari

 


रविवार का दिन भगवान सूर्य देव का दिन है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, सूर्य देवता की पूजा करने से जीवन में यश, वैभव, मान- सम्मान  में समृद्धि होती है। रविवार के दिन का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन को सप्ताह के सभी दिनों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।

तैतीस कोटि देवता मतलब स्तरवान तैतीस देवता
पौराणिक सन्दर्भ में सूर्यदेव की उत्पत्ति के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। पुराणों अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है। अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है। 33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं - विवस्वान् (सूर्य), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। 12 आदित्यों के अलावा 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विनकुमार मिलाकर 33 देवताओं का एक वर्ग है। ब्रह्माजी के पुत्र मरिचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप से विवस्वान (सूर्य) और विवस्वान के पुत्र वैवस्त मनु थे। विवस्वान को ही सूर्य कहा जाता है।

हमारे सौर मण्डल में जिसे सौर परिवार कहा जाता है जिसके चारों ओर पृथ्वी सहित ग्रह चक्कर लगा रहे है वह सूर्य ही है। हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले ग्रहों के मुखिया के तौर पर हम सूर्य नारायण को मान सकते है। सूर्य की परिक्रमा करते हुये पृथ्वी जिन जिन तारा मण्डलों के क्षैत्र से गुजरती है। उन्हे नक्षत्र कहा जाता है। हमारे ज्योतिष में सब कुछ सत्य एवं वैज्ञानिक स्वरूप में विराजमान है। हम सभी सौर परिवार की पृथ्वी के प्राणी है। हमारा जीवन सूर्य से प्राप्त प्रकाश एवं ऊर्जा से संचालित होता है। इसलिये सूर्य देव प्रत्यक्ष देव है एवं हम उनके कृतज्ञ है। 

भगवान सूर्य के परिवार की विस्तृत कथा भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा साम्बपुराण में वर्णित है। सभी सूर्यवंशी उन्हीं की संतानें हैं।

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सृष्टि में भर दिया उजाला जय सूर्य देव भगवान
सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे। सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है।

ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं।

अत: कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

प्रतिदिन सूर्य देव की पूजा करने से मन में आस्था और विश्वास पैदा होता है। सूर्य देव की पूजा करने वाला व्यक्ति अपनी सभी आने वाली कठिनाइयों का सामना डटकर कर सकता है। सूर्य की पूजा व्यक्ति को बलवान बनाती है। भगवान सूर्य की पूजा व्यक्ति को परोपकारी बनाती है। सूर्य पूजा व्यक्ति के मन से अहंकार क्रोध इच्छा कपट और बुरे विचारों को दूर करती है। रविवार के दिन भगवान सूर्य की पूजा करने से बुद्धिमान और मधुर वाणी का वरदान प्राप्त होता है।

सूर्य भगवान की पूजा करने से कोमल और पवित्र आचरण प्रदान होता है । सूर्य को सुबह उठकर जल देने के समय ओम सूर्याय नमः का जाप करें तो सूर्य देव बहुत प्रसन्न होते हैं।

सूर्य मंत्र स्तुति:

नमामि देवदेवशं भूतभावनमव्ययम्। दिवाकरं रविं भानुं मार्तण्डं भास्करं भगम्।।
इन्द्रं विष्णुं हरिं हंसमर्कं लोकगुरुं विभुम्। त्रिनेत्रं त्र्यक्षरं त्र्यङ्गं त्रिमूर्तिं त्रिगतिं शुभम्।।

कथाओं में कहा गया है था भगवान सूर्य का उपासक कठिन से कठिन कार्य में सफलता प्राप्त करता और उसके आत्मबल में भी वृद्धि होती है।

रविवार व्रत व पूजा की विधि :
- पौराणिक ग्रंथों में रविवार के व्रत को समस्त पापों का नाश करने वाला माना गया है। अच्छे स्वास्थ्य व घर में समृद्धि की
- कामना के लिए भी रविवार का व्रत किया जाता है। इस व्रत के दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है।
- पूजा के बाद भगवान सूर्यदेव को याद करते हुए ही तेल रहित भोजन करना चाहिए।
- एक वर्ष तक नियमित रूप से उपवास रखने के पश्चात व्रत का उद्यापन करना चाहिए। 
- मान्यता है कि इस उपवास को करने से उपासक जीवन पर्यंत तमाम सुखों को भोगता है व मृत्यु पश्चात सूर्यलोक में गमन कर मोक्ष को प्राप्त करता है।

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