मानव तन प्रदान करने वाले ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित करें - अरविन्द सिसोदिया
ईश्वर की कृतज्ञता को धन्यभाग्य ज्ञापित करो - अरविन्द सिसोदिया
ईश्वर की कृतज्ञता को आभार ज्ञापित करें - अरविन्द सिसोदिया
ईश्वर नें जब पृथ्वी पर प्रकृति रचना प्रारंभ की तो आत्मारूपी प्राणों को शरीर मिलना प्रारंभ हुये । आत्मा में समस्त क्षमतायें होती है , किंतु वह बिना शरीर के उनका प्रयोग, उपयोग नहीं कर पाता ।
When God started the creation of nature on earth, souls like souls started getting bodies. The soul has all the capabilities, but it cannot use them without the body.
आत्मा की स्थिति स्वंयभू स्वामी जैसी है। वह ड्राइवर जैसी है, संचालक जैसी । वह शरीर को ड्राइव करती है, जैसे स्कूटर चलाना, कार चलाना , घर चलाना, कार्यालय चलाना, सरकार चलाना आदि आदि विविधताओं से परिपूर्ण यह संचालन का, नेतृत्व का विषय है । ईश्वर भी सृष्टि का संचालन कर रहे हैं । उसी का लघुरूप मानव है ।
The state of the soul is like that of the self-styled godman. She is like a driver, like a conductor. She drives the body, such as driving a scooter, driving a car, running a house, running an office, running a government, etc. It is the subject of leadership, full of variations, etc. God is also governing the creation. Its short form is human.
आत्मा प्रकृति की चेतन शक्ति है जो पेड़ पौधों में, पशु पक्षियों में, मनुष्यों में है । किंतु क्षमताओं की दृष्टि से वह सर्वश्रेष्ठ मानव शरीर में है । यह शरीर सर्वाधिक सुविधाओं से , क्षमताओं से , दक्षताओं से सक्षम रहता है । ईश्वर की लगभग लघु प्रतिकृति है ।
Soul is the conscious power of nature which is in the trees, plants, animals, birds and humans. But he is in the best human body in terms of capabilities. This body is capable of most facilities, capabilities, abilities. Almost a miniature replica of God.
हम मनुष्यरूप जन्म लेते हैं तो एक अत्यंय विकसित शरीर को प्राप्त करते हैं। अर्थात अन्य शरीरों से बेहतर शरीर प्राप्त करते हैं। जैसे पेड़ पौधों का शरीर एक ही स्थान पर सारा जीवन गुजारता है , पशुओं पक्षियों का जीवन भी एक परिधि विशेष में ही जीवन जी पाते हैं । आंधी तूफान वर्षा गरमी, भूख प्यास में अनिश्चितता छेलते हैं । अपना बचाव अपनी व्यवस्था करनें में विवश रहते हैं ।
When we are born in human form, we get a highly developed body. That is, get a better body than other bodies. Just as the body of trees and plants spends all their life in one place, the life of animals and birds also lives in a particular circumference. Storms bring uncertainty in rain, heat, hunger and thirst. They are compelled to make their own arrangements.
सामान्यतः सबसे अधिक क्षमता वाला शरीर मानव को ही मिलता है । जिसे ईश्वर ही प्रदान करता है । इस पर मनुष्य का कोई नियम कानून नहीं चलता । ईश्वर के अपने नियम कायदे ही चलते हैं । न वकील न दलील न अपील ...ईश्वर के कर्म विधान से निर्धारण होता है ।
In general, the body with the highest potential is found only by the human being. Which only God provides. There is no human law on this. God's own laws follow their rules. Neither lawyer nor plea nor appeal... is determined by the law of action of God.
मनुष्य को ईश्वर मात्र शरीर ही देता है और उसमें ही मनुष्य रावण , कंस बन जाता है। यह शरीर का दुरूपयोग है ।
God gives only body to man and in him man becomes Ravana, Kansa. This is abuse of the body.
हमारा पहला कर्तव्य ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित करना, उनके प्रति कृतज्ञता पूर्वक आभार व्यक्त करना । और इससे अधिक यह भी की हमारा अगला शरीर , अगला जीवन भी मानव तन का मिले , इस हेतु परोपकार पूर्ण , परमार्थ युक्त जीवन जियें। ईश्वर के प्रति कृतज्ञतापूर्वक जीवन जिये, उसके बनाये अन्य शरीरों को भी अपनें जैसा मानें , आदर भाव रखें । तभी हमारा मानव तन पाना सार्थक है ।
Our first duty is to give thanks to God, to express gratefully to him. And more than this, our next body, the next life should also be of human body, for this live a life full of charity, full of charity. Live life with gratitude towards God, treat other bodies made by him as your own, have respect. Only then it is worthwhile to get our human body.
ईश्वर वह शक्तिशाली व्यक्तित्व है जो सम्पूर्ण सजृन का उत्पादन संचालन और संहारकर्ता है। जिसे हिन्दू धर्म बृम्हा,विष्णु , महेश के नाम से जानते है। इसी को अंग्रेजी में जी याने जनरेट,ओ याने आपरेट और डी यानें डिस्ट्राय अर्थात जीओडी गॉड बोलते हैं।
God is that mighty personality who is the creator and destroyer of all creation. Which is known by Hindu religion as Brimha, Vishnu, Mahesh. In English it is called G means Generate, O means Operate and De means Destroy means GOD God.
यह परमशक्ति जिसे परमेश्वर कहा जाता है। वह अकेला नहीं है , बल्कि उनके पास एक पूरा व्यवस्था तंत्र है, प्रशासन तंत्र है। इसीलिये हिन्दू अनेकानेक देवों को उनके कर्म अनुष्ठान के नाम से जानते हैं और उनका पूजन अर्चन करते हैं। ईश्वर बहुआयामी है।
This supreme power is called God. He is not alone, rather he has a complete system of administration, a system of administration. That is why Hindus know many gods by the name of their rituals and worship them. God is multidimensional.
ईश्वर विज्ञान का नियंता है, विज्ञान के नियमों को बनाने वाला है, उसके बनाये नियम सम्पूर्ण सृर्जन क्षेत्र अर्थात सृष्टि पर लागू होते है। जैस परमाणु में इलेक्ट्रान, न्युट्रान और प्रोट्रान सारी सृष्टि में एक जैसे ही हैं । चाहे वह हमारी आकाश गंगा में हों या उस छोर की आकाश गंगा में हो।
God is the controller of science, the creator of the laws of science, the rules made by him are applicable to the entire creation area, that is, the creation. Like electrons, neutrons and protons in an atom are the same in the whole universe. Whether it is in our galaxies or in the galaxies of that end.
God is that mighty personality who is the creator and destroyer of all creation. Which is known by Hindu religion as Brimha, Vishnu, Mahesh. In English it is called G means Generate, O means Operate and De means Destroy means GOD God.
यह परमशक्ति जिसे परमेश्वर कहा जाता है। वह अकेला नहीं है , बल्कि उनके पास एक पूरा व्यवस्था तंत्र है, प्रशासन तंत्र है। इसीलिये हिन्दू अनेकानेक देवों को उनके कर्म अनुष्ठान के नाम से जानते हैं और उनका पूजन अर्चन करते हैं। ईश्वर बहुआयामी है।
This supreme power is called God. He is not alone, rather he has a complete system of administration, a system of administration. That is why Hindus know many gods by the name of their rituals and worship them. God is multidimensional.
ईश्वर विज्ञान का नियंता है, विज्ञान के नियमों को बनाने वाला है, उसके बनाये नियम सम्पूर्ण सृर्जन क्षेत्र अर्थात सृष्टि पर लागू होते है। जैस परमाणु में इलेक्ट्रान, न्युट्रान और प्रोट्रान सारी सृष्टि में एक जैसे ही हैं । चाहे वह हमारी आकाश गंगा में हों या उस छोर की आकाश गंगा में हो।
God is the controller of science, the creator of the laws of science, the rules made by him are applicable to the entire creation area, that is, the creation. Like electrons, neutrons and protons in an atom are the same in the whole universe. Whether it is in our galaxies or in the galaxies of that end.
भक्ति : ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ही है, धन्यवाद ही है।
हिन्दू धर्म ने जब यह मर्म जान लिया कि वह मात्र एक शरीर है, वह भी ईश्वर की कृपा से ! उसका शरीर मात्र माटी का पुतला है, जो एक समय विशेष के बाद स्वतः समाप्त हो जायेगा। इसलिये हमें यह शरीर प्रदान करनें के लिये ईश्वर का धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिये। मंदिर, मठ,गिरजाघर, गुरूद्वारे सभी भक्ति,आराधना,आरती,भजन यह सभी विधियां ईश्वर के प्रति निष्ठा व्यक्त करनें एवं उन्हे धन्यवाद ज्ञापित करनें के स्थान है।
Bhakti: There is only gratitude towards God, there is only thanksgiving.
When the Hindu religion realized the meaning that it is only a body, that too by the grace of God. His body is just an effigy of the soil, which will automatically die after a particular time. That is why we should thank God for giving us this body. Temples, monasteries, churches, gurudwaras, all these methods of devotion, worship, aarti, bhajans are places for expressing allegiance to God and thanking him.
हिन्दू धर्म ने जब यह मर्म जान लिया कि वह मात्र एक शरीर है, वह भी ईश्वर की कृपा से ! उसका शरीर मात्र माटी का पुतला है, जो एक समय विशेष के बाद स्वतः समाप्त हो जायेगा। इसलिये हमें यह शरीर प्रदान करनें के लिये ईश्वर का धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिये। मंदिर, मठ,गिरजाघर, गुरूद्वारे सभी भक्ति,आराधना,आरती,भजन यह सभी विधियां ईश्वर के प्रति निष्ठा व्यक्त करनें एवं उन्हे धन्यवाद ज्ञापित करनें के स्थान है।
Bhakti: There is only gratitude towards God, there is only thanksgiving.
When the Hindu religion realized the meaning that it is only a body, that too by the grace of God. His body is just an effigy of the soil, which will automatically die after a particular time. That is why we should thank God for giving us this body. Temples, monasteries, churches, gurudwaras, all these methods of devotion, worship, aarti, bhajans are places for expressing allegiance to God and thanking him.
विज्ञान, ज्ञान और उससे जुड़े कर्तव्य ही धर्म है ...और ये सर्वत्र हैं । ईश्वर से लेकर पेड़ पौधे पशु पक्षी सहित मानव तक इनका पालन करता है । विज्ञान , ज्ञान और विवेक मिल कर धर्मपथ बनाते हैँ । विज्ञान सृष्टि का आधार है, क्रिया प्रतिक्रिया सर्वत्र हैं। पल पल विज्ञान से ही संचालित है।
Science, knowledge and the duties associated with it are religion... and they are everywhere. From God to trees, plants, animals, birds and humans follow them. Science, knowledge and conscience together make up the path of Dharma. Science is the basis of creation, action and reaction are everywhere. Moment to moment is driven by science.
विज्ञान को जानना ही ज्ञान है और उसका विवेकपूर्ण मानवता के हित में प्रयोग करना धर्म है। अर्थात मानवता के प्रति विवेकपूर्ण कर्तव्य ही धर्म है ...और ये सभी सर्वत्र हैं । ईश्वर से लेकर पेड़ पौधे पशु पक्षी सहित मानव तक इनका पालन करता है । विज्ञान , ज्ञान और विवेक मिल कर धर्मपथ बनाते हैँ ।
To know science is knowledge and to use it judiciously in the interest of humanity is religion. That is, judicious duty towards humanity is religion... and they are all everywhere. From God to trees, plants, animals, birds and humans follow them. Science, knowledge and conscience together make up the path of Dharma.
Science, knowledge and the duties associated with it are religion... and they are everywhere. From God to trees, plants, animals, birds and humans follow them. Science, knowledge and conscience together make up the path of Dharma. Science is the basis of creation, action and reaction are everywhere. Moment to moment is driven by science.
विज्ञान को जानना ही ज्ञान है और उसका विवेकपूर्ण मानवता के हित में प्रयोग करना धर्म है। अर्थात मानवता के प्रति विवेकपूर्ण कर्तव्य ही धर्म है ...और ये सभी सर्वत्र हैं । ईश्वर से लेकर पेड़ पौधे पशु पक्षी सहित मानव तक इनका पालन करता है । विज्ञान , ज्ञान और विवेक मिल कर धर्मपथ बनाते हैँ ।
To know science is knowledge and to use it judiciously in the interest of humanity is religion. That is, judicious duty towards humanity is religion... and they are all everywhere. From God to trees, plants, animals, birds and humans follow them. Science, knowledge and conscience together make up the path of Dharma.
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