जनसंख्या विस्फोट : जायज है संघ प्रमुख की चिंताPopulation Explosion Challenges

जनसंख्या विस्फोट : जायज है संघ प्रमुख की चिंता



जायज है संघ प्रमुख की चिंता
मोहन भागवत का कहना है कि हमें विचार करना होगा कि भारत 50 वर्षों के बाद कितने लोगों को भोजन उपलब्‍ध करा सकता है। इसलिए जनसंख्या की एक समग्र नीति बनाई जानी चाहिए जो सब पर समान रूप से लागू हो। भागवत ने कहा कि जनसंख्या असंतुलन भौगोलिक सीमाओं में बदलाव की वजह बनती है। वहीं, विश्‍लेषकों का कहना है कि यदि जनसंख्‍या विस्‍फोट पर काबू नहीं पाया गया तो खाद्यान्‍न की कमी एक बड़ी समस्‍या बन सकती है। इतनी बड़ी जनसंख्‍या को दो वक्‍त का भोजन मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगी।
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क्‍या रहा है सुप्रीम कोर्ट का रुख..?
सुप्रीम कोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाए जाने और दो बच्चों की नीति लागू करने की मांग वाली याचिका दाखिल गई थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अनिच्छा जताई थी। याचिका में दलील दी गई थी कि देश में जनसंख्या विस्फोट कई समस्‍याओं की जड़ है, लेकिन सर्वोच्‍च अदालत का कहना था कि कोई भी समाज शून्य समस्या वाला नहीं हो सकता है। सरकार को इस मसले पर नीतिगत निर्णय लेना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने 11 अक्टूबर तक के लिए सुनवाई टाल दी थी।
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संयुक्‍त राष्‍ट्र भी कर चुका है आगाह
हाल ही में संयुक्‍त राष्‍ट्र की रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि साल 2023 तक भारत जनसंख्‍या के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। इस पर विशेषज्ञों ने कहा था कि बढ़ती आबादी का बोझ ग्राउंड वाटर कैपेसिटी पर पड़ेगा। वहीं यूनिसेफ का कहना है कि दुनिया के करीब दो अरब लोग उन मुल्‍कों में रह रहे हैं, जहां पर जरूरत की पूर्ति के अनुरूप पानी नहीं है। यदि जनसंख्‍या पर काबू नहीं पाया गया तो दो दशकों में दुनिया में चार में से एक बच्‍चा गंभीर जल संकट का सामना करेगा।
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Population Explosion Challenges The Future
संपादकीय: भविष्य को चुनौती देता जनसंख्या विस्फोट, 'आबादी युद्ध' में चीन को परास्त कर देगा भारत
वीर सिंह Published by: वीर सिंह Updated Sun, 11 Jul 2021

हमारे समय की सबसे विकट समस्या है जनसंख्या विस्फोट। जनसांख्यिकी के अनुसार, मार्च, 2020 तक विश्व की जनसंख्या सात अरब, अस्सी करोड़ हो चुकी है। दुनिया की आबादी को एक अरब तक पहुंचने में बीस लाख वर्ष का समय लगा, परंतु इसे सात अरब तक पहुंचने में केवल 200 साल लगे। पिछले 770 साल में विश्व की जनसंख्या 37 करोड़ से बढ़कर आठ अरब के आसपास जा पहुंची है।अभी 1,44,42,16,107 की जनसंख्या के साथ चीन दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाला देश है। दूसरे स्थान पर भारत है, जिसकी कुल जनसंख्या एक जुलाई को अनुमानतः 1,39,19,42,558 हो गई है।


वर्ष 2030 तक भारत एक अरब, 52 करोड़, 80 लाख की आबादी के साथ चीन को पछाड़कर पहले नंबर पर आ जाएगा। चीन का भौगोलिक क्षेत्रफल भारत से तीन गुना अधिक है, फिर भी भारत चीन को 'आबादी युद्ध' में परास्त करने जा रहा है। दशकों तक एक संतान की नीति प्रभावशाली तरीके से लागू करते हुए चीन ने अपना आबादी संतुलन स्थापित करने के बाद अब तीन बच्चों की नीति लागू कर दी है। एशिया में चीन की जनसंख्या नीति सबसे प्रभावशाली रही है। इस सफलता के मूल में है चीन में समान नागरिकता कानून, जहां देश को धर्म-मजहब से ऊपर रखा गया है। भारत में नागरिकों के अधिकार धर्म के आधार पर बंटे हैं, जिस कारण जनसंख्या बढ़ाने की होड़-सी लगी है।


जनसंख्या वृद्धि दर के आधार पर दुनिया के देशों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-धनात्मक वृद्धि दर वाले देश, शून्य वृद्धि दर वाले देश और ऋणामक वृद्धि दर वाले देश। दुनिया के 65 फीसदी देशों की जनसंख्या दर धनात्मक है, जिनमें 4.7 फीसदी की वृद्धि दर के साथ ओमान पहले स्थान पर और 4.6, 4.5 और 3.8 फीसदी वृद्धि दर के साथ बहरीन, नॉरू और नाइजर क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं। तेजी से आबादी बढ़ा रहे देशों में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, इराक, कतर, अफगानिस्तान, कुवैत, लेबनान, जॉर्डन, फलस्तीन आदि हैं। शून्य अथवा स्थिर जनसंख्या वाले देशों में प्रमुख हैं श्रीलंका, म्यांमार, चीन, थाईलैंड, ब्रिटेन, डेनमार्क, आयरलैंड और क्यूबा। घटती जनसंख्या वाले देश दुनिया में केवल 11 प्रतिशत हैं, जिनमें प्रमुख हैं-पुएर्तो रीको, लिथुवानिया, लातविया, बुल्गारिया, यूनान, पोलैंड, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, माल्डोवा, जापान आदि। हम देख सकते हैं कि किस तरह गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार (और यहां तक कि आतंकवाद) जैसी समस्याएं बढ़ती जनसंख्या वाले देश का पीछा कर रहे हैं, जबकि सामाजिक-आर्थिक प्रगति और खुशहाली उन देश की झोली में जा रही है, जो अपनी जनसंख्या को स्थिर बनाए हुए है या उसे घटाने की राह पर है।

देश के लिए सबसे कीमती क्या हो सकता है, जिसकी रक्षा करना सरकार का सर्वोपरि कर्तव्य है? निश्चित रूप से भावी पीढ़ियों का भविष्य। लेकिन भावी पीढ़ियों का भविष्य तो वर्तमान जनसंख्या विस्फोट और असमान नागरिक संहिता ने धूमिल करके रख दिया है। जिस देश की सरकारों के एजेंडे पर जनसंख्या नियंत्रण दूर-दूर तक न हो, जिस देश की सरकारें मजहब को देश के भविष्य से अधिक महत्व देती हो, जहां समान नागरिक संहिता न हो, जिस देश का संविधान मजहब के अनुसार नागरिक अधिकार निर्धारित करता हो, जहां की राजनीतिक पार्टियां धर्म-पंथ को राष्ट्रीयता से ऊपर रखती हो, जिस देश में लोकतंत्र का अर्थ कुछ भी करने की स्वतंत्रता हो, उस देश का भविष्य कैसा होगा, सोचा जा सकता है।

किसी भी देश के सुरक्षित और प्रसन्नता से भरे भविष्य के लिए सबसे अधिक आवश्यक है पारिस्थितिक आवास। पारिस्थितिक आवास की अवधारणा में उन प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यक मात्रा में उपलब्धता निहित है, जो देश की प्रगति के लिए अनिवार्य है, पर जिसका अक्षय विकास पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े। दुनिया में हर व्यक्ति को उसके हिस्से का पारिस्थितिक आवास चाहिए, जिसमें वह स्वस्थ-प्रसन्न रह सके, अपनी क्षमता का पूर्ण विकास कर सके और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित रख सके। पर जनसंख्या विस्फोट वर्तमान के पारिस्थितिक आवास को तो चौपट कर ही रहा है, भविष्य को भी एक अनंत अंधकार में ले जा रहा है। जनसंख्या का विस्तार हमारे पर्यावरण की गुणवत्ता को भी चौपट कर रहा है। पर्यावरण प्रदूषण, रेगिस्तानीतकण, सार्वभौमिक गर्माहट, जलवायु परिवर्तन और जीव-जातियों के विलुप्तिकरण का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट ही है।

देश को एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य देना और ऐसे विधि-विधान स्थापित करना, जिससे आशा और शांति से परिपूर्ण तथा अभिनव सृजनशीलता से प्रेरित वातावरण तैयार हो सके, देश के संविधान का धर्म है। उन मूल्यों को कायम करना, जिनसे ऐसे भविष्य का सृजन सुनिश्चित होता हो, किसी भी शासन-प्रशासन का नैतिक कर्तव्य है। जरूरी है कि एक प्रभावशाली जनसंख्या नियंत्रण कानून अति शीघ्र बने। इसको सफल बनाने के लिए आवश्यक समान नागरिक संहिता को संविधान में पिरोना देश, काल और समाज की सर्वोपरि मांग है।

-पूर्व प्रोफेसर, जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय।

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