वैश्विक भूख सूचकांक भारत के साथ षड्यंत्र
वैश्विक भूख सूचकांक षड्यंत्र
हाल ही में वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index) से जुड़ी एक रिपोर्ट सामने आने के बाद से जमकर बवाल मचा हुआ है। दरअसल इस वैश्विक सूचकांक में भारत को 121 देशों के बीच 107वें पायदान पर रखा गया है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद से ही विपक्षी दल समेत तमाम वामपंथी समूह एक सुर में मोदी सरकार को कोस रहे हैं।
राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि 'भूख और कुपोषण में भारत 121 देशों में 197वें स्थान पर है। अब प्रधानमंत्री और उनके मंत्री कहेंगे कि भारत में भुखमरी नहीं बढ़ रही, बल्कि दूसरे देशों में लोगों को भूख ही नहीं लग रही।'
कुछ इसी तरह से अन्य कांग्रेसी नेताओं समेत तमाम तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवियों ने भी इसी तरह से उपहास उड़ाने का कार्य किया है। लेकिन इस रिपोर्ट के पीछे की सच्चाई जानना आवश्यक है, क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र या किसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की रिपोर्ट नहीं बल्कि दो विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट है, जिसमें से एक एनजीओ तो ऐसा है जिसकी शुरुआत ही अफ्रीकी देशों में मिशनरी समूह की सहायता से हुई थी।
आखिर क्या है वर्तमान रिपोर्ट में
वैश्विक भूख सूचकांक में भारत को वर्ष 2022 के लिए 107वें स्थान पर रखा गया है। यह रैंक पिछले वर्ष की तुलना में 6 स्थान नीचे है। रिपोर्ट जारी करने वाली संस्था से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष के लिए 136 देशों से आंकड़े जुटाए गए थे लेकिन 15 देशों से समुचित जानकारी ना मिल पाने के बाद 121 देशों की सूची जारी की गई।
इस रिपोर्ट की सबसे हास्यास्पद बात यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में भारत का स्थान सिर्फ अफगानिस्तान से ऊपर है, वो भी केवल 2 रैंक। इस रिपोर्ट में भारत की स्थिति बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका जैसे देशों से भी बदतर बताई गई है।
भारत को रिपोर्ट के अनुसार 29.1 अंक दिए गए हैं, जिसकी व्याख्या करते हुए कहा गया है कि भारत में भूख की स्थिति गंभीर है। इस रिपोर्ट के सतही आंकलन को इसी से समझा जा सकता है कि इसमें भारत को अफगानिस्तान, जांबिया, सिएरा लियोन, लाइबेरिया, हैती और कांगो गणतंत्र जैसे देशों की कतार में खड़ा किया गया है।
अफगानिस्तान जहां तालिबान का क्रूर शासन है, पाकिस्तान जो पूरी तरह से कंगाल हो चुका है और वैश्विक सहायता से चल रहा है, श्रीलंका जहां आर्थिक आपातकाल लगाया गया, बांग्लादेश जहां महंगाई चरम पर है और नेपाल जहां की अर्थव्यवस्था भारत पर भी निर्भर करती है, ऐसे देशों की स्थिति को भारत से बेहतर या आस-पास बताने वाली इस रिपोर्ट को किसी भी प्रकार से वास्तविक मानना असंभव है।
दिलचस्प बात यह भी है कि दुनिया के कई बड़े-छोटे देश इस सूचकांक से स्वयं को दूर रखते हैं जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और नेपाल जैसे देश शामिल है। यह बताता है कि विकसित देशों के बीच भी इस सूचकांक को लेकर कोई खास विश्वसनीयता नहीं है।
कौन हैं रिपोर्ट जारी करने वाली संस्थाएं
वर्तमान में जारी वैश्विक भूख सूचकांक को दो यूरोपीय एनजीओ ने जारी किया है, जिनमें से एक है आयरलैंड का एनजीओ कंसर्न वर्ल्डवाइड और दूसरा है वेल्ट हंगर हिल्फे (जर्मनी भाषा) जो जर्मनी का एनजीओ है। यह दोनों संस्था कथित रूप से दुनियाभर में भुखमरी से लड़ने का कार्य करने का दावा करती है।
दोनों संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट के लिए 4 पैमाने स्थापित किए हैं जो कुछ इस प्रकार हैं - कुल जनसंख्या में कुपोषित आबादी, 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में समुचित शारीरिक विकास, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर। इन पैमानों के आधार पर 1 से लेकर 100 अंक दिए जाते हैं, जिसमें अधिक अंकों का अर्थ है अधिक समस्या या अधिक बुरी स्थिति।
अब बात करते हैं इन दोनों एनजीओ की। कंसर्न वर्ल्डवाइड नामक एनजीओ का गठन आयरलैंड में वर्ष 1968 में दो भाइयों से साथ-साथ एक छोटे से समूह के द्वारा अपने घर में किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य मिशनरी संस्थाओं को सहायता दिलाना था जो कथित रूप से अफ्रीकी देशों में भूखमरी से परेशान देशों की मदद कर रहे हैं।
दरअसल यह वही मिशनरी संस्थाएं थीं जो अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य, चिकित्सा एवं भोजन के प्रलोभन के सहारे मतांतरण की गतिविधियों को अंजाम देते थे। जिन्होंने कैथोलिक समूहों के लिए सहायता एकत्रित करने का कार्य किया था। कंसर्न वर्ल्डवाइड का प्रमुख लक्ष्य अफ्रीका ही था और इसी कारण पूर्व में यह अफ्रीका कंसर्न के नाम से जाना जाता था।
दूसरी संस्था वेल्ट हंगर हिल्फे अर्थात वर्ल्ड हंगर ऐड, जर्मन की एक गैर सरकारी संस्था है जो स्वयं को पूर्ण रूप से गैर राजनीतिक एवं गैर धार्मिक कहती है लेकिन इसकी भी सच्चाई यह है कि तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी के नेता ने राष्ट्रपति रहते हुए हेनरिक ल्युबेक ने ही इसका गठन किया था। इसके अलावा इस संगठन के चेयरपर्सन के रूप में अधिकांश जर्मन राजनेताओं ने ही कुर्सी संभाली है।
इन दोनों संस्थाओं के राजनीतिक एवं धार्मिक संबंध काफी गहरे हैं, और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इनके द्वारा जारी किए जाने वाली रिपोर्ट भी इनसे जुड़ी संस्थाओं से प्रभावित होते हैं।
एक तरफ जहां एक संस्था का संबंध धार्मिक रूप से ईसाई समूह से है तो वहीं दूसरी ओर एक संस्था में जर्मनी के प्रभावशील राजनेताओं का प्रभाव है, ऐसे में इन संस्थाओं की रिपोर्ट को किसी भी प्रकार से निष्पक्ष नहीं माना जा सकता है।
भारत के चर्च से कनेक्शन
हाल ही में चर्च से जुड़े एक भ्रष्टाचार को लेकर देशभर में काफी चर्चा हुई है, जिसमें ईसाई बिशप पीसी सिंह को गिरफ्तार किया गया है। अब जब इस वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट सामने आई है तब यह जानकारी भी आई है कि पीसी सिंह ने रिपोर्ट जारी करने वाली ईसाई संस्था से संबंध स्थापित किए थे और रिपोर्ट जारी होने से करीब एक माह पूर्व संस्था के लोगों से जर्मनी में मुलाकात भी की थी, हालांकि इसकी अभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
ऐसी जानकारी मिली है कि ऐसे सूचकांक में भारत की बदतर स्थिति दिखाने से ही भारतीय ईसाई संस्थाओं को वैश्विक समूहों से अरबों रुपये का अनुदान प्राप्त होता है। भूख एवं कुपोषण को ही आधार बनाकर वैश्विक संस्थाओ से भारत में पैसे भेजे जाते हैं, जिनका उपयोग अधिकांश मतांतरण जैसी गतिविधियों में किया जाता है।
भारत सरकार ने रिपोर्ट पर क्या कहा
वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट पर भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। सरकार ने स्पष्ट कहा है कि यह रिपोर्ट भारत की छवि खराब करने का माध्यम है। इसके अलावा सरकार ने रिपोर्ट के लिए अपनाई गई प्रणाली को 'गलत तरीका' बताया है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा है कि 'भारत की छवि लगातार खराब किए जाने की कोशिश एक बार फिर नज़र आई है कि वो एक राष्ट्र के रूप में वो अपनी जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा और पोषण की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता है।' सरकार ने कहा है कि ये सूचकांक भूख मापने का गलत तरीका है, जो पूरी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व भी नहीं करते हैं।
दरसअल रिपोर्ट के लिए संस्था ने भारत से केवल 3000 लोगों का सैंपल लिया है, जो कि 130 करोड़ की आबादी के हिसाब से नगण्य है और इतने छोटे सैंपल साइज से भारत जैसे देश में भूख की स्थिति का आंकलन करना हास्यास्पद है।
यह पूरी रिपोर्ट दर्शाती है कि ऐसी संस्थाएं भारत को नीचा दिखाने के लिए और भारत की छवि धूमिल करने के लिए लगातार लगी हुई हैं, जिनमें उनका सहयोग भारत से जुड़े लोगों के द्वारा भी किया जा रहा है।
जय जय भारत -
साभार
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