खड़गे बनना तो तय, मगर चलना अनिश्चित - अरविन्द सिसोदिया
खड़गे बनना तो तय, मगर चलना अनिश्चित - अरविन्द सिसोदिया
यूं तो कांग्रेस की स्थापना भारतवासियों को अंग्रेज भक्त बनानें के लिये , ब्रिटिश अधिकारी ए ओ ह्यूम नें की थी। किंतु यह धीरे धीरे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम की मुख्य पार्टी बन गई और 1885 से लेकर अभी तक यह भारत की महत्वपूर्ण पार्टी बनीं हुई है। 100 साल से अधिक आयु रखनें वाली यह एक मात्र सफल पार्टी भी है।
कांग्रेस के गठन के बाद से कुल 61 लोगों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है । मल्लिकार्जुन खड़गे 62 वे व्यक्ति होंगे जो कांग्रेस की कमान सँभालेंगे ।
सोनिया गांधी पार्टी की सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली अध्यक्ष हैं, जिन्होंने 1998 से 2017 और 2019 से अभी तक, बीस वर्षों से अधिक समय तक इस पद पर रहीं । अभी वे ही अध्यक्ष का कार्यभार संभाल रहीं हैं । पार्टी में अध्यक्ष हेतु चुनाव चल रहा है,अगला चुनाव 17 अक्टूबर 2022 के लिए निर्धारित है।
कांग्रेस पर नेहरू परिवार नें अपना स्वामित्व बनाये रखा है, महात्मा गांधी के द्वारा कांग्रेस की भंग करनें की सलाह भी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नें नहीं मानीं थी ।
स्वतन्त्रता के बाद नेहरू परिवार का ही कांग्रेस पर वर्चस्व रहा है , जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी , राजीव गांधी, सोनिया गांधी , राहुल गांधी इसके अध्यक्ष रहे हैं । कांग्रेस में नेहरू परिवार को नजर अंदाज करनें की कोशिशें पहले भी हुईं हैं, तब इंदिरा गांधी को मूल कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेस आई बनानी पड़ी थी । कांग्रेस से अलग हो कर नेताओं ने कई पार्टियां बनाई भी जो कुछ प्रदेशों में सत्ता में भी हैं। जनता के बीच कांग्रेस का जनाधार सोनिया जी के बाद से ही कम होना प्रारंभ हुआ, जो राहुल के कारण और अधिक कम हुआ । किंतु कांग्रेस पर नेहरू परिवार की मजबूत पकड़ बनीं हुई है । जिसके चलते राहुल गांधी की प्रधानमंत्री चेहरा बनाने में पूरी ताकत वर्तमान में लगी हुई है । इसी रणनीति का हिस्सा भारत जोडो यात्रा है, इसी रणनीति का हिस्सा दक्षिण भारत में कांग्रेस को मजबूत करनें के लिये इस यात्रा का अधिकतम समय दक्षिण को ही दिया जाना है । कांग्रेस हिन्दू वोट में सेंधमारी के लिए हिन्दू व्यक्ति को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने में लगी है । अशोक गहलोत तय भी थे, किंतु अचानक उनके विद्रोही होनें से दक्षिण से ही दलित नेता व हिन्दू चेहरा मल्लिकार्जुन खड़गे को आगे लाया गया है। दिग्विजयसिंह नें भी प्रयास किये किंतु वे हिन्दू विरोधी वक्तव्यों के कारण, कांग्रेस को फायदा नहीं दिला पाएंगे, संभवतः ऐसा मान लिया गया ।
राजीव गांधी के निधन के उपरांत जब प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस नेतृत्व का चिंतन हुआ तो बहुत वरिष्ठ एवं उम्रदराज कांग्रेसी, जिन्हें लोकसभा टिकिट देनें योग्य भी नहीं समझा गया था, अर्थात बेहद कमजोर नरसिंह राव को कांग्रेस की कमान, मात्र नेहरू परिवार में निष्ठा के कारण ही सौंपी गई । उनके सहयोग के लिये नेहरू खानदान के वफादार वरिष्ठ नेता भुवनेश चतुर्वेदी एवं मनमोहन सिंह सोनिया गांधी की इच्छा पर ही मंत्री बनाये गये थे । बाद में इसी पैटर्न पर कांग्रेस के कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया । किंतु ये नेता नरसिंह राव व सीताराम केसरी, नेहरू परिवार के कान भरने वालों को नहीं संभाल पाये और बाद में दोनों को ही नेहरू परिवार का कोप भाजन बनना पड़ा । यह अकाट्य सत्य है कि कांग्रेस अभी भी नेहरू परिवार के प्रति जनआस्था से बनी हुई है।
इससे पहले इंदिरागांधी जी के समय में भी नेहरू परिवार की संगठन को नाराजगी झेलनी पड़ी थी और राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी को हार का सामना करना पड़ा था, इंदिरा गांधी समर्थक बागी वी वी गिरी चुनाव जीते थे ।
यह सब इस कारण होता है कि नेहरू परिवार के अपने कुछ सलाहकार होते हैं । जिनकी स्थिति पारिवारिक सदस्यों जैसी है वे नेहरू परिवार की सर्वोच्चता की चिंता करते हैं, साथ ही स्वयं की भी जरासी उपेक्षा सहन नहीं कर पाते । इनकी सलाह सर्वोच्च होती है।
यदि कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे नें मनमोहन सिंह नीति अपनाई और नेहरू परिवार के हितों को कांग्रेस या अन्य सभी बातों से ऊपर रखा , तो वे सफल रहेंगे। भूल से भी यदि नेहरू परिवार एवं उनके सलाहकारों की उपेक्षा की या उनकी मनमानी में अड़ंगा डाला तो ये गैंग उन्हें भी चैन नहीं लेनेँ देगी । हो सकता है कि अपमान के रूप में उन्हें बुरा भी भुगतना पड़े ।
इससे बड़ा खतरा उन पर यह है कि राहुल गांधी का अगला क्या कदम होगा, इसे कोई नहीं बता सकता।जब वे कांग्रेस की कमान संभाल रहे थे, तब भी जी - 23 समूह उनको समझनें में विफल रहा, विरोध में कोई कसर नहीं छोड़ी , मगर जी 23 को सिर्फ अपमान ही हांसिल हुआ । इससे कांग्रेस की भी और राहुल की विफलता में वृद्धि ही हुई ।
कांग्रेस में सोनिया गांधी यूं तो इंदिरा गांधी पैटर्न पर ही चलीं मगर वे काफी समझ वाली नेता साबित होती रहीं हैं। किंतु अब सभी निर्णय तो राहुल जी को लेनेँ हैं। कब उनकी समझ में क्या आ जाये कोई नहीं बता सकता। उस पर चाटुकार एन्ड कंपनी भी बड़ी समस्या है । अध्यक्ष कुछ भी नहीं है जो है सो वह 25 सदस्यों वाली CWC है। जिसनें सीताराम केसरी को हटा दिया था ।
खड़गे जी की रक्षा ईश्वर करें, यह प्रार्थना तो की जा सकती है । मगर 2024 तक वे सीट पर रह भी पाएंगे, इसमें संदेह के कई कारण हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें