अशोक गहलोत और राजस्थान भगवान भरोसे - अरविन्द सिसोदिया
अशोक गहलोत और राजस्थान भगवान भरोसे - अरविन्द सिसोदिया
हाल ही में , कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के क्रम में युवराज राहुल गांधी ने 1000 किलोमीटर की यात्रा पूरी की और इसी क्रम में कर्नाटक की बेल्लारी में एक बड़ी आम सभा को कांग्रेस के बड़े नेताओं ने संबोधित भी किया । जिसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी सम्मिलित हुए ।
इस सभा में जो दृश्य उपस्थित हुए और उसे मीडिया ने जो कवर किया, उससे यह स्पष्ट महसूस होने लगा है की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब अशोक नहीं बल्कि शोक युक्त हैं । उनका कांग्रेस हाईकमान में बहुत अच्छा सम्मान नहीं बचा है । यूं तो गहलोत उस कला को जानते हैं कि बड़े नेताओं की स्तुति से ही पद प्रतिष्ठा प्राप्त होती है और इसलिए उन्होंने पूरी ताकत कांग्रेस के नए बनने वाले अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की जी हजूरी में लगा रखी है । उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव नियमावली से हटकर भी खरगे का समर्थन किया है । बेल्लारी की सभा में भी खरगे के आगे पीछे ज्यादा रहे।
हालांकि उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगाकर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से बातचीत करने की कोशिश की किंतु मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से उन्हें मात्र 1 मिनट ही सुना गया । वे अपनी बात कह पाए या नहीं कह पाए , उन्हें जवाब तक नहीं मिला । ऐसा लग रहा है कि राजस्थान में गहलोत सरकार खतरे में है ।
राजस्थान की सरकार का सिर्फ सवा वर्ष ही बचा है । गहलोत की क्या गत होगी पता नहीं, अच्छी भी हो सकती है । बुरी भी ...जो भी होगा वह तो अब आने वाला समय ही बताएगा।
किंतु जब सब कुछ ठीक नहीं होता है तब मानसिक रूप से भी सब कुछ ठीक नहीं होता है । और उसका परिणाम कार्य व्यवस्था में शिथिल के रूप में सामनें आता है । क्यों कि पूरा मन नहीं लगता और उसके कारण जिस कार्य को पूरी परिपक्वता से किया जाना चाहिए वह पूरी परिपक्वता से नहीं हो पाता ।
राजस्थान में कांग्रेस सरकार तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में बननी थी , मगर बनीं अशोक गहलोत के नेतृत्व और तब से अब तक सब कुछ अव्यवस्थित चल रहा है । कुर्सी युद्ध खत्म होनें का नाम ही नहीं ले रहा । कुल मिलाकर के कांग्रेस में चल रहे अंतर्द्वंद का राजस्थान सरकार की जनता के प्रति जबावदेही पर कुप्रभाव पड़ रहा है ।
राजस्थान के लोग इस कांग्रेस के अंतर्द्वंद, आपसी सत्ता संघर्ष और कुर्सी की लड़ाई के बीच में भगवान भरोसे छोड़ दिए गए हैं । कानून व्यवस्था पूरी तरह ठप्प है, अपराधियों के होंसलें सातवें आसमान पर हैं। सरकार की ओर से संपादित होनें वाले सेवा कार्य पूरी तरह से गैर जिम्मेवारी ग्रस्त हैं । निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और गतिशीलता दोनों प्रश्नचिन्ह युक्त है ।
राजस्थान के जो प्रशासनिक कर्मचारियों-अधिकारी हैं वह भी कभी इधर मुंह करके देखते हैं,कभी उधर मुंह करके देखते हैं , कि कौन नेता बनेगा कल का मुख्यमंत्री। आज के मुख्यमंत्री कल रहेंगे कि नहीं ? और इस कार्यक्रम में राजस्थान में जनसेवा के सभी कार्य ठप पड़ गए हैं ।
हाल ही मेँ, अतिवृष्टि के कारण राजस्थान के किसान भयंकर रूप से नुकसान में हैं, वह मानसिक रूप से परेशान हैं और आत्महत्या के समाचार भी आ रहे हैं ।किंतु इस बीच गहलोत सरकार कहीं भी संवेदनशील नजर नहीं आ रही है । कुछ भी करती नजर नहीं आ रही है ।
वर्तमान सरकार की दिलचस्पी सिर्फ शिलान्यास और लोकार्पण के पट्ट तुरन्त चिपकाने में नजर आ रही है । यह लग रहा है कि जो पट्ट दिसंबर - जनवरी में लगने हैं उन्हें तत्काल चिपका दिये जायें । पता नहीं कल सरकार बची रहे या नहीं । इसलिए अपने नाम की पट्टीकाओं तुरंत लगा दो ।
अर्थात राजस्थान बदहाल है, बेहाल है और भगवान भरोसे है ।
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