संविधान अपवित्रता फैलाने वालों का संरक्षण नहीं करता - अरविन्द सिसोदिया snvidhan apvitrta

सुप्रीम कोर्ट एक तरफ इलेक्ट्रॉल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान उजागर करवाता है । जबकी इनकी पहचान उजागर होनें से बॉन्ड खरीदने वालों  पर राजनीतिक आक्रमण हो सकते हैं और बदले की भावना से प्रेरित हानि पहुचाने का खतरा भी  उत्तपन्न होता है । किन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने यह असंवैधानिक निर्णय लिया । वहीं दूसरी तरह कबाड़ यात्रा के दौरान यूपी सरकार के खानपान की वस्तुओं को बेचने वालों को नाम उजागर करने  के आदेश पर अन्ततिम रोक लगा दी । यह आदेश भी संविधान विरोधी है ।

क्योंकि भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी स्वतंत्रता का अधिकार देता है । इस पर कोई भी सरकार और सर्वोच्च न्यायालय बाधा उतपन्न नहीं कर सकता ।

में किस कंपनी की दवा खरीदूं यह मेरी निजी स्वतन्त्रता है । इसी तरह में किस दुकान से सामान खरीदूं यह भी मेरी निजी स्वतन्त्रता है । इसमें कोई भी बाधा कैसे उतपन्न कर सकता है ।

सवाल यह है कि ढावे या दुकान के मालिक का नाम लिखने का , तो यह अनिवार्य होना चाहिए और कई दशकों के यह देखने में भी आरहा था कि फर्म के बोर्ड पर ऊपर नाम और नीचे एक पट्टी के रूप में  प्रोपराइटर का नाम लिखा ही जाता था ।

यूँ भी यह दवाब कोई भी कानून नहीं बना सकता कि फलां व्यक्ति फलां जाती या फलां धर्म पन्थ के व्यक्ति से आप माल खरीदो ही ।

जब पूरे देश में एक वर्ग विशेष के द्वारा अपवित्रता का माहौल दूसरे वर्ग विशेष के लोगों के प्रति शत्रुतापूर्व पहुंचाया जा रहा है । तो इस अपवित्रता को कठोरता से रोकने की बात न्यायालय करे, सरकार करे या राजनैतिक क्षेत्र करे यह तो समझमें आता है । किंतु यह कतई समझमें नहीं आता कि कोई अपवित्रता का संरक्षण करे । 

मैंने भी संविधान सभा की बहस को पढ़ा है मुझे तो कहीं भी यह नही लगता कि संविधान अपवित्रता फैलाने वालों का संरक्षण करता हो । 

राजनैतिक स्वार्थ के लिए , वोट बैंक साधने के लिए अपराध का संरक्षण कोई भी संस्था करे , चाहे वे दल हों सरकारें हों या न्यायालय ! यह देश के लोकतंत्र और उसकी संप्रभुता के लिए खतरा ही पैदा करना ही होगा ।

जब कोई आतंकवादी बरी किया जाता है तब अदालतें जांच अधिकारी को तलब कर यह भी तो पूछें कि इस घटना का जिम्मेदार कौन है ? अपराधी को बरी करना बहुत आसान है । किंतु यह प्रश्न तो तब भी है कि अपराध का कर्ता कौन है ? उसे दंड देने कर्तव्य है डियूटी है । 

भारत ही नहीं पूरे विश्व में जिस तरह अराजकतावाद नें सिर उठा रखा है , उसमें सबसे ज्यादा जिम्मेवारी अदालतों पर आगई है कि वे देश और न्याय की रक्षा करें ।

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