श्री गणपतिजी की कथा
- अरविन्द सीसौदिया
9414180151
भारतीय संस्कृति में निहित भक्ति एवं शक्ति का पर्व अनन्त चतुर्दशी महोत्सव, मूलतः दो प्रमुख पर्वों के मध्य मनाया जाता है। यह गणेश जी के जन्मोत्सव ‘गणेश चतुर्थी‘‘ से प्रारंभ हो कर ‘‘श्री अनन्त चतुर्दशी‘‘ तक के 10-11 दिन की अवधि में मनाया जाता है। इस दौरान गणेश चतुर्थी को घरों में गणेश जी की प्रतिमाओं तथा मोहल्लों में झांकियो की स्थापना होती है। नित्य प्रातः सायं पूजा अर्चना एवं आरती होती है, भक्ति संध्याएं आयोजित की जाती हैं तथा श्री अनन्त चतुर्दशी के दिन इन गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। अनेकानेक स्थानों पर यह विसर्जन शोभा यात्रा के रूप में सम्पन्न होता है।
श्री गणेश जन्मोत्सव
ऐसा माना जाता है कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (चौथ) को आदि शक्ति, पंच देवों में प्रथम पूज्य, गणपति का जन्म शिव-पार्वती की द्वितीय संतान के रूप में हुआ तथा इसी कारण यह दिन धार्मिक रूप से ‘‘गणेश चतुर्थी व्रत‘‘ के रूप में सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। लोक मान्यता यह भी है कि गणेश जी के जन्म के 10 दिन तक उत्सवों का आयोजन हुआ था और इसी कारण प्रतिवर्ष इस अवधि में आमजन के द्वारा श्रद्धा एवं आस्था से पूजा अर्चना की जाती है। जन मान्यता यह भी कि इस दौरान जो गणेश स्तुति करते हैं, उन पर गणपति की विषेश कृपा होती है।
सर्व देवाध्यक्ष श्री गणेश
प्रचलित आख्यान एवं धार्मिक मान्यता यह है कि आदि महाशक्ति माता पार्वती ने अपने अंतःपुर (आवास) कैलाश पर्वत पर पुत्र गणेश को द्वारपाल नियुक्त किया और किसी को भी प्रवेश नहीं देने की आज्ञा देकर, वे स्नान करने चली गई थी। इसी दौरान भगवान शिव शंकर द्वार पर आ पहुंचे, श्री गणेश ने उन्हें समझाया कि माता अभी स्नान पर बैठी हैं। उनकी आज्ञा है कि किसी को भी प्रवेश नहीं दिया जाये, अतः आप कुछ समय पश्चात पधारें।
शिव जी के अनेकानेक बार समझाने पर भी गणेश जी ने प्रवेश की अनुमति नहीं दी। फिर गणों और देवों के द्वारा गणेश जी को हटाने का प्रयत्न किया गया, जिसमें वे सफल नहीं हुए और अन्त में शंकर भगवान ने त्रिशुल से गणेश जी का सिर काट कर उनका वध कर दिया।
ज्यों ही यह बात आदि महाशक्ति पार्वती को ज्ञात हुई तो वे शोक ग्रस्त होकर क्रोधित हो उठी। उन्होंने अपनी शक्तियों को प्रलय मचाने का आदेश दे दिया। ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया, कोई भी देव शक्ति इस उत्पाद को रोक नहीं सकी और अन्त में महर्षि नारद जी की सलाह पर माता पार्वती की शरण में पहुंच कर देव शक्तियों ने अनुनय विनय स्तुतियां की, तब माता पार्वती ने देव शक्तियों को आज्ञा दी कि 1. श्री गणेश को पुनः जीवित किया जाये, 2. सभी देवीय शक्तियां गणेश से पराजित हुई है इसलिये देवगण उन्हें अपना अध्यक्ष माने एवं प्रथम पूजन का अधिकार दें, और 3. समस्त पूजाओं, अनुष्ठानों एवं मंगल आयोजनों में जब तक गणेश की पूजा न हो जाये तब तक वे फलीभूत न हों।
उपरोक्त तीनों मांगों को देवों ने स्वीकार किया भगवान विष्णु जी ने गणेश जी को नया मस्तक प्रदान किया। भगवान शिव जी ने उनमें प्राणों का संचार कर पुनः जीवित किया एवं भगवान ब्रह्मा जी ने उन्हें सभी देवों का अध्यक्ष (देवों का भी देव, देवा ओ देवा) तथा प्रथम पूज्य घोषित किया। (शिवपुराण से)
- भारतीय धर्म और संस्कृति में भगवान गणेशजी सर्वप्रथम पूजनीय और प्रार्थनीय हैं। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता।
- कोई उनकी पूजा के बगैर कार्य शुरू कर देता है तो किसी न किसी प्रकार के विघ्न आते ही हैं। सभी धर्मों में गणेश की किसी न किसी रूप में पूजा या उनका आह्वान किया ही जाता है।
* गणेश देव : वे अग्रपूज्य, गणों के ईश गणपति, स्वस्तिक रूप तथा प्रणव स्वरूप हैं। उनके स्मरण मात्र से ही संकट दूर होकर शांति और समृद्धि आ जाती है।
* माता-पिता : शिव और पार्वती।
* भाई-बहन : कार्तिकेय और अशोक सुंदरी।
*पत्नी : प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि और सिद्धि।
*पुत्र : सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है।
*प्राचीन प्रमाण : दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ ऋग्वेद में भी भगवान गणेशजी का जिक्र है। ऋग्वेद में 'गणपति' शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है।
*गणेश ग्रंथ : गणेश पुराण, गणेश चालीसा, गणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनामावली, गणेशजी की आरती, संकटनाशन गणेश स्तोत्र।
*गणेश संप्रदाय : गणेश की उपासना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतेय कहलाते हैं।
*गणेशजी के 12 नाम : सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब, गजानन।
*अन्य नाम : अरुणवर्ण, एकदन्त, गजमुख, लम्बोदर, अरण-वस्त्र, त्रिपुण्ड्र-तिलक, मूषकवाहन।
*गणेश का स्वरूप : वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं।
*प्रिय भोग : मोदक, लड्डू
*प्रिय पुष्प : लाल रंग के
*प्रिय वस्तु : दुर्वा (दूब), शमी-पत्र
*अधिपति : जल तत्व के
*प्रमुख अस्त्र : पाश, अंकुश
*वाहन : मूषक
*गणेशजी का दिन : बुधवार।
*गणेशजी की तिथि : चतुर्थी।
*ग्रहाधिपति : केतु और बुध
*गणेश पूजा-आरती : केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती की जाती है। उनको मोदक का लड्डू अर्पित किया जाता है। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
गणेशोत्सव
भगवान श्री गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान
रूप से व्याप्त है, महाराष्ट्र में मंगलकारी देवता के रूप में ‘‘मंगल
मूर्ति‘‘ के नाम से पूज्य हैै। महाराष्ट्र में अष्टगणपति के आठ तीर्थ स्थान
प्रसिद्ध हैं जहॉ की परिक्रमा करना प्रत्येक महाराष्ट्रीयन हिन्दू अपना
पवित्र कर्म मानता है। दक्षिण भारत में भी इनकी विषेश लोकप्रियता ‘कला
शिरोमणि‘ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य
मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं।
गणेष हिन्दुओं के आदि
आराध्य देव हैं। हिन्दू धर्म में गणेश को एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त है, कोई
भी धार्मिक उत्सव हो यज्ञ पूजन इत्यादि सत्कर्म हों या फिर विवाहोत्सव हो,
जन्मोत्सव हो अथवा व्यापार या किसी अन्य कार्य का शुभारंभ हो उसे
निर्विघ्न सम्पन्न करने के लिये “शुभ” के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले
की जाती है।
महाराष्ट्र में तो सात वाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य
आदि राजवंशों ने गणेशोत्सव की प्रथा को विशेष रूप से प्रचलित करवाया।
महाराज छत्रपति शिवाजी के शासन काल में गणेश उत्सवों तथा गणेश उपासना का
विशेष विकास हुआ।
गणेश महिमा
गणेश जी पंचदेवों में
प्रथम पूज्य हैं, गुरू पूजा से भी पूर्व आराधना योग्य हैं। सभी मतों व
पंथों में मौखिक व आध्यात्मिक कर्मों में प्रथम पूज्य के रूप में लोकमान्य
हैं। सर्वाधिक लोकप्रिय देवताओं में एक गणेश या गणपति को बुद्धि का प्रतीक
और सौभाग्य लाने वाला माना जाता है। उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि और सिद्धि
उनके दांये - बांये विराजती हैं, उनके पुत्र शुभ और लाभ हैं। इसलिये ये
सुख, समृद्धि और वैभव के देव माने गये हैं, इसी कारण ये मंगल करने वाले और
अमंगल हरने वाले, प्रभावशाली देव के रूप में पूज्य हैं।
कहा
जाता है कि उनका हाथीनुमा मस्तिष्क विराट ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक हैं,
नटखट आंखे, लम्बे कानों से संसार में घटित हो रहा कुछ भी उनसे बचता नहीं है
उनकी नाक रूपी लम्बी संूड अनहोनी को सूंघ लेती है। उनका लम्बा उदर हर
प्रकार की बुराई को पचाने की क्षमता रखता है। उनका वाहन चूहा हमें यह बताता
है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति जीवन में छोटी से छोटी चीजों को भी बराबर
महत्व देकर अपने कार्य को सिद्ध कर सकता है।
एक मान्यता यह भी
प्रचलित है कि कुकर्मों में रत बुद्धि जो चुहे की भांति व्यक्ति व समाज को
कुतरती हुई सद्कार्यों में बाधा डालती है। वह केवल गणेश जैसे विराट बुद्धि
बल के आरोही के ही बस में आ सकती है।
गणेश चतुर्थी के दिन
गणपति के विग्रह की स्थापना शुद्धि व बुद्धि की साधना का प्रारंभ है। यह भी
मान्यता है कि दांई तरफ झुकी हुई सूंड समृद्धि एवं रिद्धि सिद्धि की
दात्री है। वहीं बायीं तरफ झुकी सूंड ऐष्वर्य व शत्रु विजय देने वाली है।
गणपति जी को सिखाने वाला देवता भी माना जाता है। उन्हें विघ्नहर्ता कह
कर पुकारा जाता है, प्रवेश द्वारों पर और मार्गों पर अक्सर उनकी तस्वीर या
प्रतीक चिन्ह देखने का मिलते हैं। मान्यता रही है कि उगते सूरज की तरफ जिस
भी घर के सामने उनकी तस्वीर लगी होती है, वहां वास्तु दोष नहीं होता है।
गणपति का मूल रूप से शासनाध्यक्ष के रूप में भी शासन व्यवस्था सूत्र
देते हैं जो एक राष्ट्र प्रमुख की गुणवत्ताएं होनी चाहिए वह सभी गुणवत्ताएं
गणेश जी के मस्तिष्क, कान, आंख, सूंड, उदर और सवारी रूपी मूषक के रूप में
अपनी - अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करती हैं।
कुछ वर्ष पहले की बात है कि अचानक खबर आई
कि अमेरिका में गणेश जी दूध पी रहे हैं और कुछ ही मिनटों में यह चमत्कारिक
घटना पूरे विश्व में घटित हुई। भारत से लेकर अमेरिका तक प्रत्येक देश में
जहां भी हिन्दू निवास करते थे और गणेश जी का मंदिर था, वहां गणेश जी ने दूध
पिया। इस तरह की चमत्कारिक घटना का दूसरा कोई और उदाहरण वर्तमान समय में
नहीं मिलता। इसलिए गणेश जी को न केवल पूज्य देव ही माना जाता है, बल्कि
सर्वशक्तिमान, अज, अनादि और अनन्त भी माना जाता है। इसी कारण जो प्रतिमा
स्थापना चतुर्थी को होती है, उसका विसर्जन अनन्त चतुर्दशी को होता है।
ऋग्वेद में एक ऋचा आती है,
”गणनां त्वां गणपति, हवामहे कविनामुपमश्रवस्तमम्।“ अर्थात गणपति वैदिक देवता हैं।
एक समय जापान, चीन, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, थाईलैंण्ड, मलाया और सुदूर
मैक्सिको तक गणेश पूजा का विशेष महत्व था और इन देशों में बहुतायत में गणेश
प्रतिमायें मिलती हैं।
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मेरे अन्य आलेख
हनुमान जी का दिन मंगलवार
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2021/08/blog-post_31.html
पौराणिक मान्यताओं और विशेष कर स्कंद पुराण के अनुसार, मंगलवार के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था, इस कारण से यह दिन उनकी पूजा के लिए समर्पित कर दिया गया. इस दिन विधि विधान के साथ बजरंगबली की पूजा करने से वे जल्द प्रसन्न होते हैं, श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और संकटों को भी दूर करते हैं.
वैसे तो आप किसी भी भगवान की देवी - देवता की पूजा किसी भी दिन कर सकते हैं लेकिन हफ्ते के सातों दिन किसी न किसी देव को , भगवान को समर्पित हैं और उस दिन उनकी विशेष पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है, इस तरह की मान्यता है। ठीक इसी तरह मंगलवार का दिन हनुमान जी का दिन माना जाता है और इस दिन बजरंगबली की पूजा करने से मनोवांछित और उत्तम फल की प्राप्ति होती है.।
ईश्वर की विराट शक्तियों का दिग्दर्शन श्रीकृष्ण
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2021/08/blog-post_48.html
पग पग पर सत्य की रक्षा और असत्य, अधर्म और अन्याय को पराजित करने वाला श्रीकृष्ण होता है।
भगवान श्री कृष्ण - विजयश्री का पूर्ण पुरूषार्थ करो
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2021/08/blog-post_29.html
हिन्दू
धर्म में सृजन के देव बृम्हा जी, संचालन के देव विष्णु जी और संहार के देव
शिव जी को कहा गया है। माना जा सकता है कि जनरेट , ओपरेट और डिस्ट्राय से
ही GOD बना है। भगवान विष्णु जी को सुव्यवस्थित संचालन एवं अव्यवस्थाओं के
विनाश हेतु बार - बार जन्म लेना होता हे। भगवान श्रीकृष्ण के रूप में यह
उनका आठवां अवतार है। अन्याय, अधर्म,अनाचार और विध्वंश को परास्त करने के
लिये विजय के मार्ग को प्रशस्त कर, धर्म की जय सुनिश्चित करने का संदेश
उनका जीवन देता हे। भागवत पुराण में वर्णित उनका जीवन और श्रीमद भगवत गीता
में दिये उनके उपदेश सिर्फ एक ही बात कहते हे। कि विजय के लिये पूरी ताकत
से पुरूषार्थ करो । विजय का पूर्ण प्रयत्न करो ।- अरविन्द सिसौदिया
9414180151
न्याय के देवता शनिदेव
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2021/08/blog-post_28.html
ईश्वर
की सृष्टि संचालन व्यवस्था में, प्राणीयों के जीवन को व्यवस्थित करने की
व्यवस्था में कर्म फल , दण्ड विधान एवं न्याय के महत्वपूर्ण कार्य के देव
शनि महाराज है। शनि महाराज का कालखण्ड एवं उनकी स्थिती हमें पूर्व जन्मों
के संचित फलों के बारे में भी इशारा करती है। जो भी हमारा कर्म फल बैंक का
बैंक बेलेंस है। उसी क्रम में जीवन का पथ कैसा होगा । इसकी ओर सही जन्म
पत्री इशारा भी करती है। हमें शनि महाराज को अपने चाल चलन से प्रशन्न करना
चाहिये। क्यों कि जिस तरह न्यायालय में न्यायिक अभिरक्षा होती है। उसी तरह
शनि देव भी न्यायिक अभिरक्षा प्रदान करते हे। शनि महाराज को न तो मित्र
मानना चाहिये न शत्रु । वे सिर्फ आपके वर्तमान चाल चलन को देखते हैं और
आपके प्रति नम्र या कठोर बनते है।
धरणीधर भगवान बलदाऊजी
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धरणीधर
भगवान बलराम , भगवान श्रीकृष्ण के बडे भाई बलदाऊजी है। वे शेषनाग के अवतार
हैं जो भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों में उनकी सहायता हेतु जन्म लेते
हे। उनके बलदाऊ जी के जन्म दिन को विषेशरूप से कृषक वर्ग आयोजित करता हे।
मूलतः इस जयंती पर्व को मातायें संतानों को बलराम जी की तरह बलशाली , दीर्घ
आयु एवं कुल गौरव बनानें की कामना से मनाती हें।
आतंकवाद पर साझा अन्तर्राष्ट्रिय रणनीति की जरूरत - अरविन्द सिसौदिया
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वहां
क्या हो रहा है,किसी को कुछ नहीं पता। तालिबान हो या कोई ओर,खूनी सिकंजे
में अफगानिस्तान फंस चुका है। यह खेल समाप्त तो क्या होगा...? आगे और बढेगा
!! संसार का उसूल है जैसे के साथ तैसा वाला और उसी से मार्ग मिलता है। यह
मामला सिर्फ अमरीका का नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व का है और सभी
आतंकवादियों के विरूद्ध है। नाम बदलने से हिंसा के अंजाम नहीं बदलता ! एक
सामूहिक अन्तर्राष्ट्रिय रणनीति एवं रणकौशल की जरूरत है। फिलहाल यह असंभव
सा लग रहा है। किन्तु समय रास्ता निकालता ही हे और कोई न कोई रास्ता
निकलेगा भी ।
अफगानस्तिन में असली “खेला“ होना बांकी है - अरविन्द सिसौदिया
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2021/08/blog-post_75.html
कूटनीति
की तराजू पर तालिवान का निष्कंट राज नहीं दिख रहा है। अभी असली खेल चालू
होना है। रूस और चीन के बीच अब शीतयुद्ध अफगानिस्तान के कारण होगा। क्यों
कि अफगानिस्तान बहुमूल्य खनिजों के भण्डार के साथ साथ अपना सामरिक महत्व भी
रखता है। चीन हर हाल में अफगानिस्तान पर तिब्बत की तरह कब्जा जमानें की
फिराक में रहेगा। रूस के सहयोग से पहले भी वामपंथी विचार वाली सरकार अफगान
में रही है। वह फिर उसी तरह की सरकार लानें का यत्न करेगा। वहीं चीन को
रोकनें की सबसे अधिक कोशिश ही रूस की होगी । रूस कभी नहीं चाहेगा कि अफगान
में चीन के पैर जमें। अफगान में असली खेला होना बांकी है।
शहीद मंदिर हुआ था, ढांचा तो अतिक्रमण था - अरविन्द सिसौदिया
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शहीद ढांचा नहीं मंदिर हुआ था, ढांचा तो अतिक्रमण था, जिसे जनमत ने हटा दिया।
इस
तरह का कुत्य पूरी दुनिया में इस्लामी आक्रमण कर्ताओं ने किये, भारत में
सोमनाथ मंदिर पर , काशी विश्वनाथ मंदिर पर, अयोध्या के श्रीराम जन्म भूमि
मंदिर पर, मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर पर ही नहीं अपितु लाखों मंदिरों और
करोडा मूर्तियों सहित अनेको किलों और भव्य इमारतों का इस्लामी करण रूपी
अतिक्रमण हुआ था। देश आजाद होते ही इन्हे पुनः अपने भव्य और मूल स्परूप में
आनें का अधिकार है और किसी को भी, इसमें बाधा बनने का अधिकर नहीं हे।
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