आप पार्टी को एकला चलो की नीति पर ही आना होगा - अरविन्द सिसौदिया

 


आप पार्टी को एकला चलो की नीति पर ही आना होगा - अरविन्द सिसौदिया 

( - यह विचार मेरे स्वंय के निजि विचार हैं)


हरियाणा में आप पार्टी को स्पापित होना है तो एकला चलो की नीति पर ही आना होगा । क्यों कि उनका मूल मुकाबला कांग्रेस से ही है। उके विदेशों में बैठे अज्ञात पक्षधर भी वे ही हैं जो कांग्रेस के हैं । अर्थात जो भारत में संघ और भाजपा के प्रभाव को कम करना चाहते हैं, पूरे विश्व में सनातन और हिन्दुत्व को कमजोर करना चाहते हैं। भारत के अन्दर आराजकता उत्पन्न कर अन्ततः इस देश को गैर हिन्दू देश बनाना चाहते हैं और इस योजना को कामयाब करने के लिये अरबों डालर खर्च करना चाहते हैं। वे ही शक्तियां आप और कांग्रेस को परोक्ष अपरोक्ष सर्पोट करतीं हैं।


गुजरात विधानसभा में आप पार्टी, कांग्रेस के सामनें लडी, कांग्रेस बुरी तरह ध्वस्त हो गई, इसका मतलब कांग्रेस के वोटर की अगली पशंद आप पार्टी है। आम आदमी पार्टी को गुजरात विधानसभा चुनावों में 40 लाख से अधिक वोट मिले और कुल वोटों में आप के खाते में 13 फीसदी मत आए। वहीं, आम आदमी पार्टी गुजरात की दो दर्जन से अधिक सीटों पर दूसरे नंबर पर रही और पांच सीटों पर जीत मिली। उसनें कांग्रेस को ऐतिहासिक पराजय पर लाकर खडा कर दिया। यही उसनें दिल्ली विधानसभा चुनाव में किया कांग्रेस का इतिहास में दफन कर दिया , अब उसके सामनें दिल्ली में सिर्फ भाजपा ही टक्कर देती है। यही पंजाब में हुआ अर्थात आप पार्टी को कांग्रेस से सीधे टकरानें में ही फायदा होता है, गठबंधन में सिर्फ नुकसान होता है, क्यों कि कांग्रेस उसका पूरे मन से साथ नहीं देती।  

जिस तरह लोकसभा में कांग्रेस सीटों के बंटवारे को लटकाये रही और अंत में उसने अपने मुनाफे के हिसाब से सीटों का बंटवारा किया। वही खेल वह हरियाणा में भी कर रही है। आप पार्टी को नमक के बराबर सीटें देनें का उसका विचार सार्वजनिक हो चुका है। जो कि आप पार्टी का अपमान भी है। 

कांग्रेस को केजरीवाल के जेल में होनें का फायदा मिल रहा है। इसलिये वह पांच सात सीटों पर ही आप को रखना चाहती है। वहीं मीडिया में खबर चल रही है कि आप पार्टी 50 सीटों पर कभी भी अपने प्रत्याशी घोषित कर सकती है। 


आप पार्टी को संघर्ष के रास्ते पर चलना चाहिये

आप पार्टी और कांग्रेस साथ साथ बहुत नहीं चल सकते, कांग्रेस किसी भी अन्य राज्यस्तरीय दल के साथ भी बहुत लम्बा नहीं चलेगी। क्यों कि कांग्रेस ने अनेको राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दिये है। अकेले नेहरू परिवार से तीन प्रधानमंत्री रहे है, चौथा प्रधानमंत्री वे डेढ दसक से तैयार कर रहे हैं। वे सिर्फ अपने आपको उठानें के लिये गठबंधन कर रहे है। उन्हे स्वंय नेता बनना है वे किसी दूसरे को नेता क्यों बनायेंगे। आगे पीछे आप पार्टी को अकेला चलो की नीति पर आना होगा । यही अन्य दल भी करेंगे, क्यों कि गठबंधन में सब कांग्रेस से सावधान हैं।

----------------


AAP will have to adopt the policy of going alone - Arvind Sisodia

(- These views are my personal views)

If AAP has to emerge in Haryana, it will have to adopt the policy of going alone. Because their main competition is with Congress. Their unknown supporters sitting abroad are also those who belong to Congress. That is, those who want to reduce the influence of RSS and BJP in India, want to weaken Sanatan and Hindutva in the whole world. By creating anarchy in India, they ultimately want to make this country a non-Hindu country and want to spend billions of dollars to make this plan successful. Those same forces directly or indirectly support AAP and Congress.


AAP fought against Congress in Gujarat Assembly, Congress was badly defeated, which means that the next choice of Congress voters is AAP. Aam Aadmi Party got more than 40 lakh votes in Gujarat Assembly elections and 13 percent of the total votes came in AAP's account. On the other hand, Aam Aadmi Party came second in more than two dozen seats in Gujarat and won five seats. It brought Congress to a historic defeat. It did the same in Delhi Assembly elections and buried Congress in history. Now only BJP is giving it a tough competition in Delhi. The same happened in Punjab, that is, AAP gains only in directly clashing with Congress, there is only loss in alliance, because Congress does not support it wholeheartedly.


Just like Congress kept the seat sharing pending in Lok Sabha and finally distributed seats according to its profit, it is playing the same game in Haryana as well. Its idea of ​​giving seats equal to its salt to AAP has become public. Which is also an insult to AAP.


Congress is getting the benefit of Kejriwal being in jail. That is why it wants to keep AAP on only five to seven seats. At the same time, there is news in the media that AAP can declare its candidates on 50 seats anytime.


AAP should follow the path of struggle


AAP and Congress cannot go on together for long. Congress will not last long with any other state level party either. Because Congress has given many Presidents, Vice Presidents and Prime Ministers. There have been three Prime Ministers from Nehru family alone. They are preparing for the fourth Prime Minister for the last one and a half decade. They are making alliances only to lift themselves up. They themselves want to become leaders. Why would they make someone else a leader? Sooner or later AAP will have to adopt the policy of going it alone. Other parties will also do the same because everyone in the alliance is cautious of Congress.


टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

चुनाव में अराजकतावाद स्वीकार नहीं किया जा सकता Aarajktavad

‘फ्रीडम टु पब्लिश’ : सत्य पथ के बलिदानी महाशय राजपाल

महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा में भाजपा नेतृत्व की ही सरकार बनेगी - अरविन्द सिसोदिया

भारत को बांटने वालों को, वोट की चोट से सबक सिखाएं - अरविन्द सिसोदिया

शनि की साढ़े साती के बारे में संपूर्ण

ईश्वर की परमशक्ति पर हिंदुत्व का महाज्ञान - अरविन्द सिसोदिया Hinduism's great wisdom on divine supreme power

देव उठनी एकादशी Dev Uthani Ekadashi