राहुल गांधी के लोकतंत्र विरोधी साम्यवादी मंसूबे उजागर - अरविन्द सिसोदिया
Loktantra Virodhi Rahul
राहुल गांधी के जन्म से बहुत पहले , परतन्त्र भारत में तब के बड़े नेता मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू तब के रूस की यात्रा पर जाते थे , कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों में सम्मिलित होते थे । जब देश स्वतन्त्र हुआ तब हिंदी चीनी भाई भाई के नारे भी खूब सुनाई दिये। जो तिब्बत तब विदेशी मामलों में ब्रिटीश भारत के पास था और स्वतंत्र भारत के साथ रहना चाहता था । उसे नेहरूजी नें चीन की झोली में डाल दिया । नेहरूजी तब सैन्य गुटों में भी रूस के गुट में रहे और पाकिस्तान अमेरिकी गुट का फायदा उठाता रहा । अर्थात नेहरू परिवार का साम्यवादी प्रेम कई पीढ़ियों का है ।
जब कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी थीं और देश में कांग्रेस की मनमोहनसिंह सरकार थी तब सोनिया गांधी , राहुल गांधी और मनमोहनसिंह नें चीन यात्रा की और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ MoU किया । जिसकी तस्वीरें इंटरनेट पर अभी भी मिल जाती हैं ।
हाल ही में राहुल गांधी अपने गुरु सेम पित्रोदा के साथ अमेरिका में यात्रा पर हैं और वहां से उनका चीन प्रेम वरस रहा है , भारत विरोध की बिजलियाँ कोंध रहीं हैं और देश में आंतरिक फुट डालने गड़गड़ाहट हो रही है । यह सब भारत का हितचिंतन तो है नहीं । सहज प्रश्न है कि फिर काँग्रेस का एजेंडा क्या है ? भारत के तीन टुकड़े पहले ही कांग्रेस के सहयोग से किये जा चुके हैं , अब क्या लक्ष्य है ।
जो काँग्रेस नेताओं के मुंह से आरहा है वह भारत में अराजकता उतपन्न करने का संकेत करते हैं , यदि यह है तो केंद्र सरकार को सभी लिहाज छोड़कर कर कड़े कदम उठाने होंगे ।
राहुल गांधी के अमेरिका से जो सन्देश समझ पड़ रहे हैं वे लोकतंत्र को बड़े खतरे का इशारा करते हैं । वे सन्देश साम्यवाद के अराजकतावादी स्वरूप की ओर बढ़ रहे हैं , इनसे देश की हिफाजत के बारे में गंभीरता से सोचना होगा ।
राहुल गांधी के जन्म से बहुत पहले , परतन्त्र भारत में तब के बड़े नेता मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू तब के रूस की यात्रा पर जाते थे , कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों में सम्मिलित होते थे । जब देश स्वतन्त्र हुआ तब हिंदी चीनी भाई भाई के नारे भी खूब सुनाई दिये। जो तिब्बत तब विदेशी मामलों में ब्रिटीश भारत के पास था और स्वतंत्र भारत के साथ रहना चाहता था । उसे नेहरूजी नें चीन की झोली में डाल दिया । नेहरूजी तब सैन्य गुटों में भी रूस के गुट में रहे और पाकिस्तान अमेरिकी गुट का फायदा उठाता रहा । अर्थात नेहरू परिवार का साम्यवादी प्रेम कई पीढ़ियों का है ।
जब कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी थीं और देश में कांग्रेस की मनमोहनसिंह सरकार थी तब सोनिया गांधी , राहुल गांधी और मनमोहनसिंह नें चीन यात्रा की और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ MoU किया । जिसकी तस्वीरें इंटरनेट पर अभी भी मिल जाती हैं ।
हाल ही में राहुल गांधी अपने गुरु सेम पित्रोदा के साथ अमेरिका में यात्रा पर हैं और वहां से उनका चीन प्रेम वरस रहा है , भारत विरोध की बिजलियाँ कोंध रहीं हैं और देश में आंतरिक फुट डालने गड़गड़ाहट हो रही है । यह सब भारत का हितचिंतन तो है नहीं । सहज प्रश्न है कि फिर काँग्रेस का एजेंडा क्या है ? भारत के तीन टुकड़े पहले ही कांग्रेस के सहयोग से किये जा चुके हैं , अब क्या लक्ष्य है ।
जो काँग्रेस नेताओं के मुंह से आरहा है वह भारत में अराजकता उतपन्न करने का संकेत करते हैं , यदि यह है तो केंद्र सरकार को सभी लिहाज छोड़कर कर कड़े कदम उठाने होंगे ।
राहुल गांधी के अमेरिका से जो सन्देश समझ पड़ रहे हैं वे लोकतंत्र को बड़े खतरे का इशारा करते हैं । वे सन्देश साम्यवाद के अराजकतावादी स्वरूप की ओर बढ़ रहे हैं , इनसे देश की हिफाजत के बारे में गंभीरता से सोचना होगा ।
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