कल्पना कुछ भी करो , ईश्वर तो है
कल्पना कुछ भी करो , ईश्वर तो है !
ईश्वर तो है , उसके द्वारा निर्मित सृष्टि भी है ,
उसके द्वारा उतपन्न विविध प्रकार की शक्तियां भी हैं , गुरुत्वाकर्षण , चुम्बकत्व , प्रकाश ,ध्वनि , तापमान , आकर - निराकार , गति ,बल , बुद्धि , उसका कैमरा , उसका स्टोरेज , उसकी कार्यक्षमता , उसका पूर्ण सफल और असरकारक प्रशासन आदि आदि । इस संदर्भ में हिन्दू सनातन धर्म के संतों नें विदवानों नें बहुत काम किया है, वे सत्य के निकट भी पहुचे है। उन्हे गंभीरता से लेना चाहिये।
ईश्वर की श्रेष्ठतम सर्वोच्च वैज्ञानिकता भी है और सबसे बड़ी बात उसके कंप्यूटर सिस्टम में , उसके इंटरनेट सिस्टम से , उसकी वाई फाई व्यवस्था से इस संपूर्ण सृष्टि का कोई भी घटनाक्रम छुप नहीं सकता, वह सच को अपनी हार्ड डिस्क में रिकार्ड रखता है । इसीलिए हिन्दू सनातन सत्य को सर्वोपरी मानता है ।
जब हम अपने शरीर को देखते हैं , तो ईश्वर की परम् श्रेष्ठ इंजीनियरिंग को शरीर में पाते हैं , हमारे घुटने , हमारे टखने , हाथो और पैरों के पंजे और सबसे श्रेष्ठ इंजीनियरिंग का कमाल आंखों को अपने शरीर में पाते हैं । यह सिर्फ हम तक सीमित नहीं है , तमाम भिन्न भिन्न प्रकार के शरीरों में यह सब देखने को मिलता है । जुगनू का शरीर क्रत्रिम प्रकाश उत्पन्न करता है । तितलियाँ पराग कणों को इधर से उधर ले जातीं हैँ। तो वृक्षों को हजारों वर्षों तक एक स्थान पर खड़े रह कर जीवन बिताते हुये देखते हैं । उस ईश्वर की लीलाओं के विराट को हम तुक्ष्य बुद्धि प्राणी समझ नहीं सकते । अनंत के भूत से अनंत के भविष्य तक एक ही परम् शक्ति इस तमाम सृजन को संचालित करती है उसी को ईश्वर नाम दिया गया है । जो इस नश्वर संसार में को अपना इष्ट मान कर चलता है वही ईश्वर है ।
सवाल यह है ही नहीं कि हम उसे माने या न मानें , हम उसे नहीं माने तो भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता । एक व्यक्ति साम्यवादी है वह ईश्वर को नहीं मानता , मगर इसका एक एक पल चलता ईश्वर की व्यवस्था से ही है । हर सांस ईश्वर की ऑक्सीजन लेती है , भोजन वह ईश्वर की प्रकृति से ही प्राप्त करता है , पानी वही पिता है जो ईश्वर का है और अंत में वह ईश्वर की व्यवस्था से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । उसके साम्यवादी होने से संसार को चलाने वाले को कोई फर्क नहीं पड़ता ! क्योंकि सृष्टि का शासन उसके आदेश निर्देश से ही चलता है । रेल में सवार व्यक्ति अज्ञानवश यह कहता रहे कि वह रेल है ही नहीं , मगर सत्य यही है कि वह रेल में ही सवार है ! इसी तरह से पृथ्वी के हम प्राणी उस परम पिता परमेश्वर की ही सन्तानें हैं , मानो न मानो ।
पृथ्वी पर बहुत से ज्ञानी अपने अपने तौर तरीके से ईश्वर के बारे में बताते हैं , कोई उसे किसी रूप में तो कोई ओर किसी रूप में ! सच यह है कि उसके स्वरूप को जानना समझना इतना आसान नहीं है , जितना धर्माचार्य या पंथाचार्य कह देते हैं । सच यह है कि हम सिर्फ उसकी लीलाओं को वहीं तक समझ पा रहे जहाँ तक हमारे शरीर की क्षमता है । वह तो हमारे शरीर से अनंतकोटी विराट है , हम उस प्रभु की सर्वज्ञता तक कभी पहुंच ही नही सकते । इसलिये विविध पन्थों में ईश्वर को बांट लेने से भी कुछ नहीं होगा । क्योंकि इन सभी पन्थों का अंत होता रहता है इनका स्थान दूसरा विचार लेता रहता है । यह भी दिनरात की तरह कर्म है जो चलता आरहा है और चलता रहेगा ।
क्योंकि सृजन के मूल में समय है , समय को काटने के लिए सारे खेल हैं , खेल में चुनोतियाँ हैं , समस्याएं हैं , हार जीत है, मनोरंजन है , सक्रियता है तो विश्राम भी है । इसमें लगे ईश्वर को , उनके देवताओं को , उसकी व्यवस्था क्रम के हम अत्यंत तुक्ष प्राणियों को , सभी को समय को काटने के जत्नों में अपने अपने खेल खेलने हैं। हमारे खेल एक शरीर के रूपमें जन्म लेना , जीवन जीना और मृत्यु को प्राप्त हो जाना फिर जन्म लेना जीवन जीना और मर जाना , दिन रात की तरह यह क्रम अनंत कोटि कालखण्ड तक चलता रहता है । जब ईश्वर विश्राम लेता है तो हम सभी को भी विश्राम मिलता है ।
अर्थात कल्पना कुछ भी करो , ईश्वर तो है !
God exists, the universe created by him exists,
There are various types of powers generated by him, gravity, magnetism, light, sound, temperature, shape - formless, speed, force, intelligence, his camera, his storage, his efficiency, his completely successful and effective administration etc. etc. In this context, the saints and scholars of Hindu Sanatan Dharma have done a lot of work, they have also come close to the truth. They should be taken seriously.
God also has the best scientific ability and the biggest thing is that no incident of this entire universe can be hidden from his computer system, his internet system, his Wi-Fi system, he keeps the truth recorded in his hard disk. That is why Hindu Sanatan considers truth to be supreme.
When we look at our body, we find God's supreme engineering in our body, our knees, our ankles, our hands and feet and the wonder of the most superior engineering is our eyes. This is not limited to us only, all this can be seen in many different types of bodies. The body of a firefly produces artificial light. Butterflies carry pollen grains from here to there. Then we see trees living in one place for thousands of years. We, creatures with a meagre intellect, cannot understand the vastness of that divine play. From the past of infinity to the future of infinity, only one supreme power controls this entire creation, that is called God. The one who moves in this mortal world by considering God as his Ishta is God.
The question is not whether we believe in Him or not, even if we do not believe in Him, it does not affect Him. A person is a communist, he does not believe in God, but his every moment is run by the law of God. Every breath he takes is oxygen from God, he gets food from God's nature, water is the same father who belongs to God and finally he dies by the law of God. His being a communist does not make any difference to the one who runs the world! Because the rule of the universe runs only by his orders. A person travelling in a train may keep saying out of ignorance that it is not a train, but the truth is that he is travelling in a train! Similarly, we the creatures of the earth are the children of that supreme father God, believe it or not.
Many wise people on earth tell about God in their own ways, some describe him in one form and some in another! The truth is that it is not as easy to know and understand his form as religious leaders or sect leaders say. The truth is that we are able to understand his deeds only to the extent of our body's capacity. He is infinitely bigger than our body, we can never reach the omniscience of that God. Therefore, dividing God into various religions will also not help. Because all these religions come to an end, they are replaced by other thoughts. This too is an act like day and night which is going on and will continue.
Because at the root of creation is time, there are games to pass the time, there are challenges, problems, victory and defeat, entertainment, activity and then rest. God, his gods, we, the insignificant creatures of his system, all have to play our own games to pass the time. Our games are to take birth in the form of a body, live life and die, then take birth again, live life and die, like day and night, this sequence continues for infinite time periods. When God takes rest, we all also get rest.
That is, imagine anything, God exists!
अनुमान क्या होता है इसकी भी एक सच्ची कहानी है -
में अपने गांव मोड़का , जिला गुना मप्र में रहता था , आपसी शत्रुता गांव में चरम पर थी । वर्षात का मौसम था । मक्का और सोयाबीन खेतों में खड़े थे । एक दो दबंग इस तरह के भी थे जो अपने जानवरों से रात्रि में फसलों को नुकसान पहुंचाते थे । इन नुकसान पहुंचाने वालों को कैसे रोका जाए इसकी योजना बनाई ।
एक सहरिया जाती का हाली हमारे पास था , उसने जुगत बताई की आधीरात्री के बाद जब जानवरों को लेकर निकलते हैं , तब शेर की आवाज निकली जाए तो ये लोग डर सकते हैं ।
योजना पर अमल किया गया , रात्रि के 3 बजे के करीब उसी हाली नें ट्रैक्टर की खाली ट्रॉली में छुप कर एक मटकी में मुंह लगा कर शेर की आवाज निकली , करीब करीब 15 मिनिट तक उसने आवाज निकली और फिर सो गए ।
उसी दिन सुबह प्रतिक्रिया सामने आई -
1- पहले व्यक्ति नें कहा आज तो बच ही गए , शेर गांव में आगया था । उसके पैर के निशान ही एक - एक वालिस्त के थे ।
2- दूसरे व्यक्ति नें कहा आज तो जान बच गई शेर मेरे नीचे से ही निकल गया । उसने बताया कि वह रात्रि को फसल की रखवाली के लिए मचान पर सोया हुआ था , शेर मचान के नीचे से निकल गया , उसने थोड़ी देर रुक कर सूंघा सांघी भी की , में तो सुन्न पड़ गया सो बच गया ।
3- तीसरी प्रतिक्रिया , एक व्यक्ति नें कहा आज तो शेर का जोड़ा गांव में आगया था , कोई सामने पड़ जाता तो मारा जाता , मैनें तो छांव देखी चांदनी में सो ईमली के पेड़ पर चढ़ गया । वे गडार गडार जंगल में चले गए पर खतरा तो होगया ।
अर्थात एक घटना शेर जैसी आबाज की हुई और उस पर अंदाजे के आधार पर कई प्रतिक्रियाएं सामने आईं... इनके अपने अपने कारण भी रहे होंगे । मगर मानव झूठ कितना आगे जा सकता है यह इससे समझ में आता है कि एक ने खुर की लंबाई नाप ली , दूसरे नें उसे अपने नीचे से गुजरता देख लिया तो तीसरे नें जोड़ा देख लिया। जबकि थी एक कृत्रिम आवाज !! यही सब ईश्वर के स्वरूप को नियत करने की कल्पना को लेकर है । जिसकी जैसी समझ उसने वैसा स्वरूप दे दिया ।
There is a true story of what is conjecture -
I used to live in my village Modka, district Guna, MP. Mutual enmity was at its peak in the village. It was the rainy season. Maize and soybean were standing in the fields. There were one or two bullies who used to damage the crops at night with their animals. We made a plan to stop these harm-doers.
A farmer of Sahariya caste was with us, he told us a trick that when we go out with the animals after midnight, if we make the sound of a lion, these people can get scared.
The plan was implemented, at around 3 o'clock in the night, the same farmer hid in the empty trolley of the tractor and put his mouth on a pot and made the sound of a lion, he made the sound for about 15 minutes and then went to sleep.
The reaction came the same morning -
1- The first person said that we have been saved today, the lion had come to the village. His foot prints were of a single lion.
2- The second person said that today my life was saved, the lion passed under me. He told that he was sleeping on the scaffolding to guard the crop at night, the lion passed under the scaffolding, it stopped for a while and sniffed, I became numb so I was saved.
3- Third reaction, a person said that today a pair of lions had come to the village, if anyone had come in front of me, I would have been killed, I saw shade in the moonlight so I climbed the tamarind tree. They went into the forest but there was danger.
That is, an incident of a lion-like sound happened and many reactions came out on the basis of guesswork... these must have had their own reasons too. But how far human lies can go can be understood from the fact that one measured the length of the hoof, the second saw it passing under him and the third saw the pair. Whereas it was an artificial voice!! This is all about the idea of determining the form of God. Whatever understanding one has, he has given that form.
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