कर्मचारी 48 घंटे पुलिस रिमांड अथवा जेल में तो निलंबित, तो मुख्यमंत्री क्यों नहीं ?- अरविन्द सिसौदिया APP Arvind Kejriwal

कर्मचारी 48 घंटे पुलिस रिमांड अथवा जेल में तो निलंबित, तो मुख्यमंत्री क्यों नहीं ?- अरविन्द सिसौदिया


नोट - अगर कर्मचारी 48 घंटे से ज्यादा पुलिस हिरासत में रहता है तो विभाग उसे निलंबित कर देता है। और कोर्ट द्वारा सजा हो जाने पर नौकरी समाप्त हो जाती है।


भारतीय लोकतंत्र में यह सबसे शर्मनाक स्थिती है कि एक भ्रष्टाचार का आरोपी व्यक्ति जो छै माह के लगभग जेल में रहा है और अब जमानत पर है। उसे मुख्यमंत्री पद के कोई अधिकार नहीं हैं। तब भी वह दिल्ली का मुख्यमंत्री है। यह प्रश्न संवैधानिक व्यवस्था के साथ साथ न्यायालय को प्रश्नचिन्हित करता है। क्यों कि मुख्यमंत्री आम जनता के समान ही है। भारत में समानता का अधिकार उसे कोई अन्य विशिष्टता प्रदान नहीं करता है। जब कोई सरकारी कर्मचारी 48  घंटे पुलिस कस्टडी अथवा जेल में बिता लेता है तो पद से निलंबित हो जाता है और आरोप से मुक्त होनें पर ही पुनः पद प्राप्त कर सकता है। तो राजनैतिक व्यक्ति को पूरे 48 घंटे नहीं बल्कि 6 माह के लगभग जेल में रहनें पर और पद के कार्य को करनें पर रोक होनें पर भी मुख्यमंत्री बना हुआ है। न्यायपालिका को तो किसी नें रोका नहीं हैख् न ही उसे कोई संसद की तरह संख्याबल की जरूरत है। जहां संसद मौन हो वहीं से सर्वोच्च न्यायालय का कार्य प्रारम्भ होता है। देश की प्रतिष्ठा की रक्षा करनें के लिये साहसी कदम उठाना चाहिये। इस हेतु 48 घंटे वाला कानून नेताओं पर भी लागू हो । जब सरकारी कर्मचारी 48  घंटे रहने पर निलंबित हो जाता है तो सरकार का मुखिया इससे कैसे बचा रह सकता है।


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भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा सांसद सुश्री बांसुरी स्वराज द्वारा की गई प्रेस वार्ता संबोधन के मुख्य बिंदु 


सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से आज ये बात स्पष्ट हो गई कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी कानूनी रूप से वैध है।

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ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने पहले ईडी के केस में भी अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी को वैध पाया था और CBI के केस में भी गिरफ़्तारी को सही ठहराया गया है।

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अरविंद केजरीवाल न केवल शराब घोटाले के किंगपिन हैं, बल्कि वे सर से लेकर पांव तक शराब घोटाले में लिप्त हैं।

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आम आदमी पार्टी के नेता भ्रष्टाचार का जश्न मना रहे हैं।

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जिस तरह अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी को जकड़ कर बैठे हैं, ये उनकी उद्दंडता एवं हठधर्मिता को दर्शाता है, जिसके कारण दिल्ली की जनता का अहित हो रहा है।

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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केजरीवाल के जमानत की शर्तों से स्पष्ट है कि अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद के योग्य नहीं समझा गया और इसलिए उन्हें सरकारी कागजों पर हस्ताक्षर करने से एवं उन्हे मुख्यमंत्री कार्यालय जाने से भी वंचित रखा गया है।

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माननीय सर्वोच्च न्यायालय के संकेत को दरकिनार करते हुए, केजरीवाल सत्ता के लोभ में मदमस्त है। अरविंद केजरीवाल एक बेपरवाह सरकार के लापरवाह मुख्यमंत्री हैं।

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भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा सांसद सुश्री बांसुरी स्वराज ने आज शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय में एक महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गैर कानूनी गिरफ्तारी की बात को खारिज करते हुए कहा कि गिरफ्तारी कानूनी प्रक्रिया के तहत की गई है। सुश्री बांसुरी स्वराज ने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल को बेल तो दे दी है, मगर उन्हें सीएम दफ़्तर और सचिवालय जाने के लिए मना कर दिया है। सुश्री स्वराज ने अरविंद केजरीवाल को एक बेपरवाह सरकार का लापरवाह मुख्यमंत्री बताया।


भाजपा सांसद सुश्री बांसुरी स्वराज ने कहा कि शराब घोटाले के किंगपिन अरविंद केजरीवाल को सर्वोच्च न्यायालय ने सशर्त जमानत दी है, क्योंकि न्यायालय ने माना कि ट्रायल में देरी हो सकती है लेकिन आम आदमी पार्टी के नेता भ्रष्टाचार का जश्न मना रहे है। आम आदमी पार्टी के नेता कई बातों पर दिल्ली की जनता और मीडिया को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से ये बात स्पष्ट हो गई कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी कानूनी रूप से वैध है। अरविंद केजरीवाल ने सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष दो अर्जी लगाई थी, पहली उनकी गिरफ़्तारी को लेकर और दूसरी उनकी जमानत के लिए। ये तीसरी या चौथी बार है, जब देश की न्यायिक संस्थाओं ने पाया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की गिरफ़्तारी वैध है। ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने पहले ईडी के केस में भी अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी को वैध पाया था और सीबीआई के केस में भी उनकी गिरफ़्तारी को सही ठहराया गया है।


सुश्री बांसुरी स्वराज ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश पढ़ते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी पूर्ण रूप से संवैधानिक है। जांच एजेंसियों के पास पुख्ता सबूत और तथ्य मौजूद थे जो ये दर्शाते हैं कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी जायज है। अरविंद केजरीवाल न केवल शराब घोटाले के किंगपिन हैं, बल्कि वे सर से लेकर पांव तक शराब घोटाले में लिप्त भी हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुबंध 47 के तहत अरविंद केजरीवाल को किसी भी सरकारी कागज पर हस्ताक्षर करने एवं मुख्यमंत्री कार्यालय में जाने से रोका गया है। ईडी के केस में जब ट्रायल हो रहा था तब भी सर्वोच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल को सांकेतिक तौर पर यह जताया था कि नैतिकता के आधार पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को अपने पद पर रहने के बारे में विचार करना चाहिए। लेकिन जिस तरह अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी को जकड़ कर बैठे हैं, ये उनकी उद्दंडता एवं हठधर्मिता को दर्शाता है, जिसके कारण दिल्ली की जनता का अहित हो रहा है। अरविंद केजरीवाल माननीय सर्वोच्च न्यायालय के संकेत को दरकिनार करते हुए सत्ता के लोभ में मदमस्त है। 


भाजपा सांसद ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आज भले ही अरविंद केजरीवाल को जमानत दे दी हो, लेकिन आज पुनः न्यायालय के आदेश से यह स्पष्ट हो गया है कि अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में संलिप्त हैं। अरविंद केजरीवाल के जमानत की शर्तों से स्पष्ट है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद के योग्य नहीं समझा गया और इसलिए उन्हें सरकारी कागजों पर हस्ताक्षर करने से एवं मुख्यमंत्री कार्यालय से भी वंचित रखा गया है। अरविंद केजरीवाल एक बेपरवाह सरकार के एक लापरवाह मुख्यमंत्री हैं।

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री गौरव भाटिया के मीडिया संबोधन के मुख्य बिंदु


सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचारी अरविंद केजरीवाल को सशर्त जमानत दी है, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘जेल वाला सीएम, अब बेल वाला सीएम हो गया है।’

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जो अरविंद केजरीवाल पहले कहा करते थे कि अगर किसी पर आरोप लग जाए, तो उसे इस्तीफा दे देना चाहिए, आज उन्हीं केजरीवाल को सशर्त जमानत मिली है।

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अरविंद केजरीवाल 6 महीने तक जेल में रहे और आज सशर्त बेल मिलने पर भी इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘भ्रष्टाचार युक्त, सीएम अभियुक्त।’

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माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी किसी भी रूप से गैर कानूनी नहीं है, बल्कि कानून के अनुरूप है।

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न ही केजरीवाल के ऊपर लगे आरोप खारिज हुए हैं, न ही उनको आरोपों से मुक्त किया गया है। दोषमुक्त होने की तो बात ही नहीं हो सकती, क्योंकि उनपर मुकदमा चलेगा।

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भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलती है, जिसके चलते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को भी अपने इस्तीफे की बात कहनी पड़ी। इसी तरह अरविंद केजरीवाल को भी इस्तीफा देना पड़ेगा, क्योंकि उनका इस्तीफा भी दिल्ली की जनता मांगेगी।

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क्या दिल्ली को एक ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए, जो किसी मुकदमे का अभियुक्त हो और 10 लाख का मुचलका भरकर बेल पर बाहर हो?

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पापी ‘आप’ के डीएनए में भ्रष्टाचार भरा हुआ है। आप के सीएम केजरीवाल, पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और सांसद संजय सिंह सहित सभी भ्रष्टाचार के मामलों में बेल पर हैं।

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सर्वोच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल पर विदेश यात्रा पर रोक लगा दी, उन पर हर सोमवार और गुरुवार को जांच अधिकारी को रिपोर्ट करने, किसी भी गवाह से न मिलने और मामले से संबंधित किसी भी सबूत के साथ छेड़छाड़ न करने की शर्तें लगाईं।

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जो सीएम किसी फाइल को साइन नहीं कर सकते, दफ्तर नहीं जा सकते, उनके लिए बचा क्या है? अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के चरित्र को दागदार कर दिया है।

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कट्टर बेईमान अरविंद केजरीवाल से नैतिकता की उम्मीद नहीं की जा सकती है और इसलिए आदेश के बाद भी उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया।

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री गौरव भाटिया ने आज शनिवार को नई दिल्ली स्थित भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय में मीडिया को संबोधित करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री को दिए जाने वाले बेल पर अपना वक्तव्य रखा और बताया कि अरविंद केजरीवाल को पूर्ण रूप से राहत नहीं मिली बल्कि सशर्त जमानत दी गई है। श्री भाटिया ने कहा कि जो सीएम किसी फाइल को साइन नहीं कर सकते, दफ्तर नहीं जा सकते, तो उनके लिए बचा ही क्या है? अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद की गरिमा रखते हुए और दिल्ली की जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए अपना इस्तीफा देना चाहिए।


राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कट्टर बेईमान पापी आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को फिर से आईना दिखाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचारी अरविंद केजरीवाल को सशर्त जमानत का आदेश दिया है, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘जेल वाला सीएम, अब बेल वाला सीएम हो गया है।’ इस आदेश के बाद अरविंद केजरीवाल को तुरंत अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। लेकिन अरविंद केजरीवाल ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि उनमें नैतिकता की एक बूंद भी नहीं बची है। जो अरविंद केजरीवाल पहले कहा करते थे कि अगर किसी पर आरोप लग जाए, तो उसे इस्तीफा दे देना चाहिए, आज उन्हीं केजरीवाल को सशर्त जमानत मिली है। अगर कोई व्यक्ति किसी संवैधानिक पद पर बैठा हो और उसे जेल हो जाए, तो उस व्यक्ति को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए। मगर अरविंद केजरीवाल 6 महीने तक जेल में रहे और आज सशर्त बेल मिलने पर भी इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘भ्रष्टाचार युक्त, सीएम अभियुक्त।’


श्री भाटिया ने कहा कि जो अरविंद केजरीवाल पहले कहते थे कि उनकी गिरफ़्तारी गैर कानूनी है, मगर उनके इस वक्तव्य को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 2 न्यायाधीशों की पीठ ने खारिज किया है और कहा है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी किसी भी रूप से गैर कानूनी नहीं है, बल्कि कानून के अनुरूप है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले से कट्टर बेईमान अरविंद केजरीवाल और उनकी पूरी भ्रष्टाचार में लिप्त पार्टी के द्वारा चलाएं जाने वाले प्रोपेगेंडा को खारिज किया है। अरविंद केजरीवाल एक अभियुक्त है और उनके पास ये अधिकार है की न्यायलय के समक्ष जाकर खुद के लिए कानूनी लड़ाई लड़े जिसको कानून की परिभाषा में “लगाए गए आरोपों को खारिज करना” कहते है जिसका अधिकार केवल माननीय हाईकोर्ट या फिर सर्वोच्च न्यायालय के पास है। ये बात उल्लेखनीय है की अरविंद केजरीवाल जो राहत चाह रहे थे वो उन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्राप्त भी नहीं हुई और उनके खिलाफ आरोपों को भी खारिज भी नहीं किया गया है। जिसका पूर्णरूप से यह मतलब है कि उनके खिलाफ आरोपों के आधार, प्रमाण और साक्ष्य मौजूद है और इसलिए प्रथम दृष्टया उन पर मुकदमा चलना चाहिए।


राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि किसी भी कानूनी केस में कई अलग-अलग पैमाने होते हैं, जिसमें तीसरा पक्ष होता है दोषमुक्त होना। ये बात समझने वाली है की न ही केजरीवाल के ऊपर लगे आरोप खारिज हुए हैं, न ही उनको आरोपों से मुक्त किया गया है और दोषमुक्त होने की तो बात ही नहीं हो सकती है क्योंकि उनपर मुकदमा चलेगा ही। जब अरविंद केजरीवाल को कोई राहत मिली ही नहीं है और उनपर केस भी जारी रहेगा तो भ्रष्टाचारी आम आदमी पार्टी को ये साफ करना चाहिए कि आज अरविंद केजरीवाल इस्तीफा क्यों नहीं दे रहे हैं? भारतीय जनता पार्टी की नीति है भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की है, जिसके अनुरूप ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को झुकना पड़ा और अपने इस्तीफे देने की बात को कहना पड़ा। ऐसे ही भ्रष्टाचारी अरविंद केजरीवाल को भी झुकना पड़ेगा और इस्तीफा देना पड़ेगा क्योंकि उनसे उनका इस्तीफा भी दिल्ली की जनता मांगेगी।


श्री भाटिया ने कहा कि उन्होंने अरविंद केजरीवाल को ‘भ्रष्टाचार युक्त, सीएम अभियुक्त’ एवं ‘जेल वाला सीएम, बेल वाला हो गया’ का शीर्षक इसलिए दिया है क्योंकि अरविंद केजरीवाल 10 लाख रुपए का मुचलका भरकर बाहर निकले हैं। क्या दिल्ली को एक ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए, जो किसी मुकदमे का अभियुक्त हो और 10 लाख का मुचलका भरकर बेल पर बाहर हो? पापी आप के डीएनए में भ्रष्टाचार भरा हुआ है। आप के सीएम केजरीवाल, पूर्व डिप्टी सीएम सिसोदिया और सांसद संजय सिंह सभी बेल पर हैं। यह कैसी पार्टी है, जिसमें जरा सी भी नैतिकता नहीं बची है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि शराब घोटाले मामले में जो शर्ते अन्य आरोपियों पर लगाई गई हैं, अरविंद केजरीवाल पर भी वह सभी शर्ते लागू होंगी।


राष्ट्रीय प्रवक्ता ने मनीष सिसोदिया के बेल ऑर्डर को पढ़ते हुए बेल की शर्तों के बारे में बताया, जिसके तहत पहली शर्त है कि अरविंद केजरीवाल को अपना पासपोर्ट न्यायालय में जमा कराना होगा और वह विदेश यात्रा पर नहीं जा सकते हैं। दूसरी शर्त है कि अरविंद केजरीवाल को मामले के जांच अधिकारी को हर सोमवार और बृहस्पतिवार को सुबह 10 से 11 बजे के बीच में रिपोर्ट करना होगा। जिसके बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का क्या कद, इकबाल और रसूख बचेगा? दिल्ली की जनता को एक बेहतर मुख्यमंत्री मिलना चाहिए। अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति को इतने निचले स्तर पर ले आए हैं कि सर्वोच्च न्यायालय को अपनी तीसरी शर्त में यह कहना पड़ा कि वह किसी गवाह को डरा या धमका नहीं सकते और साथ ही मामले से जुड़े किसी साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ भी नहीं कर सकते हैं। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि जांच की शुरुआत में मोबाइल फोन और आवश्यक सबूतों को नष्ट किया जा रहा था।


भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि अरविंद केजरीवाल पर 2 मुकदमे चल रहे हैं। आज सीबीआई की गिरफ़्तारी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपना आदेश दिया है। 12 जुलाई 2024 को ईडी की गिरफ़्तारी मामले में बेल ऑर्डर में भी कुछ शर्तें रखी गई थी। जिनमें सबसे प्रमुख यह शर्त थी कि अरविंद केजरीवाल सीएम दफ्तर और दिल्ली सचिवालय नहीं जा सकते हैं। यह कैसा मुख्यमंत्री है, जो सीएम दफ्तर ही नहीं जा सकता है? अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के चरित्र को दागदार कर दिया है। जो सीएम किसी फाइल को साइन नहीं कर सकते, दफ्तर नहीं जा सकते, उनके लिए बचा क्या है? अब बचा है तो सिर्फ शराब घोटाले की काली कमाई को इस्तेमाल करना और नया भ्रष्टाचार करना। आदेश के आखिरी पैराग्राफ में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक प्रश्न उठाया गया कि अगर कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद पर है और उसपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते हैं, तो क्या वह व्यक्ति उस पद पर बना रह सकता है? सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसे नैतिक के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए कि नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने यह सोचकर कहा होगा कि उस व्यक्ति में इतनी नैतिकता और शर्म बची होगी कि वह संविधान की दृष्टि से दिल्ली की जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए इस्तीफा देगा। लेकिन कट्टर बेईमान अरविंद केजरीवाल से नैतिकता की उम्मीद नहीं की जा सकती है और इसलिए आदेश के बाद भी उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। अगर मुख्यमंत्री एक दिन भी जेल में रहता है तो इस्तीफे के लिए पर्याप्त होता है लेकिन यहां तो भ्रष्टाचारी अरविंद केजरीवाल 6 महीने जेल में रहकर बेल पर बाहर आये हैं, लेकिन इस्तीफा देने से तब भी मुकर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली की जनता की बात भाजपा के मंच से प्रस्तुत की है और इसका संज्ञान लेकर अरविंद केजरीवाल को तुरंत अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए।

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