कालजयी संस्कृति को समाप्त करनें का षडयंत्र अब रोकना होगा - अरविन्द सिसौदिया


कालजयी संस्कृति को समाप्त करनें का षडयंत्र अब रोकना होगा - अरविन्द सिसौदिया

सनातन सभ्यता और हिन्दू संस्कृति अनादिकाल से जीवन्त है और उसे समाप्त करनें के लिये , उसके ज्ञान को समाप्त करनें के लिये, उसकी आदर्ष जीवन पद्यती को समाप्त करनें के लिये एक बडा षडयंत्र फिर से सिर उठा रहा है। इसे रोकना और विफल करना प्रत्येक भारत वासी का कर्त्तव्य है , प्रत्येक हिन्दू का सनातन का कर्त्तव्य है।


देश की स्वतंत्रता में भारत के हिन्दूंओं से छल किया गया, स्वतंत्रता के बाद लगातार इसे छला गया और यह सब अब भी बडी बेशर्मी से हो रहा है। इस तस्वीर को बदलना होगा , इसके लिये मतशक्ति से सरकारों पर भी दबाव बना होगा । हिन्दुत्व को अक्क्षुण्य रखनें के लिये सब कुछ छोंक देना होगा, पूरी ताकत लगाना होगी, जो धारणा आज हमारे सामनें है, उसे बदलना होगा । इसका नीचे वर्णन है जो कि सोसल मीडिया पर फैली हुई है। इस धारणा को स्विकारना स्वयं आत्म हत्या करना होगा ।फ इसलिये आज से ही हिन्दुत्व को अजर अमर करने में जुट जायें।
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*शेर दहाड़ते रह गये, भेड़िए जंगल पर कब्जा बनाकर बैठ चुके हैं!*

*हिन्दू एक मरती हुई नस्ल*
*Hindu, a dying race*

साल 1914 में *यूएन मुखर्जी साहब* ने एक छोटी सी पुस्तक लिखी, नाम था... 
*"हिन्दू - एक मरती हुई नस्ल'"*

सोचिए 108 साल पहले उन्हें पता था !

1911 की जनगणना को देखकर ही, 1914 में मुखर्जी ने पाकिस्तान बनने की भविष्यवाणी कर दी थी।

उस समय संघ नहीं था,
सावरकर नहीं थे, 
हिन्दू महासभा नहीं थी।

तब भी मुखर्जी ने वो देख लिया, जो पिछले 100 सालों में एक दर्जन नरसंहार और एक तिहाई भूमि से हिन्दू विलुप्त करा देने के बाद भी, राजनैतिक विचारधारा वाले सेक्युलर हिन्दू नहीं देख पा रहे हैं ।

*इस किताब के छपते ही सुप्तावस्था से कुछ हिन्दू जगे। अगले साल 1915 में पं मदन मोहन मालवीय जी के नेतृत्व में हिन्दू महासभा का गठन हुआ। आर्य समाज ने शुद्धि आंदोलन शुरू किया जो एक मुस्लिम द्वारा स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के साथ समाप्त हो गया।*

*फिर 1925 में हिन्दुओं को संगठित करने के उद्देश्य से संघ बना।*

लेकिन ये सारे मिलकर भी वो नहीं रोक पाए जो *यूएन मुखर्जी* ने 1915 में ही देख लिया था। 

गांधीवादी अहिंसा ने इस्लामिक कट्टरवाद के साथ मिलकर मानव इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार को जन्म दिया और काबुल से लेकर ढाका तक हिन्दू शरीयत के राज में समाप्त हो गए ।      

*जो बची भूमि हिन्दुओं को मिली वो हिन्दुओं के लिए मॉडर्न संविधान के आधार पर थी*
और
*मुसलमानों के लिए*
*शरीयत की छूट*
*धर्मांतरण की छूट*
*चार शादी की छूट*
*अलग पर्सनल लॉ की छूट*
*हिन्दू तीर्थों पर कब्जे की छूट*

सब कुछ स्टैंड बाय में है। 

*जहां हिन्दू एक बच्चे पर आ गए हैं। वहां आज भी आबादी बढ़ाना शरीयत है।*

जो लोग इसे केवल राजनीति समझते हैं, उन्हें एक बार इस स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाना चाहिए 2015 में 1915 से क्या बदला है? 

आज भी साल के अंत में वो अपना नफा गिनते हैं, हम अपना नुकसान।

हमें आज भी अपने भविष्य के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं है। 

आज भी संयुक्त इस्लामिक जगत हम पर दबाव बनाए हुए हैं कि हम, अपने तीर्थों पर कब्जा सहन करें, लेकिन उपहास और अपमान की स्थिति में उसी भाषा में पलटकर जवाब भी न दें।

मराठों ने बीच में आकर 100-200 साल के लिए स्थिति को रोक दिया, जिससे हमें थोड़ा और समय मिल गया है। लेकिन ये संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है।

अपने बच्चों को देखिए, आप उन्हें कैसा भविष्य देना चाहते हैं ?  मरती हुई हिन्दू नस्ल जैसा कि 1915 में यूएन मुखर्जी लिख गए थे?

*इसीलिए अपने समय का, अपनी कमाई का एक हिस्सा, बिना किसी स्वार्थ के, हिन्दू जनजागरण में लगाइये, अगर ये कोई भी दूसरा नहीं कर रहा, तो खुद करिए।*

नहीं तो.... आपके बच्चे अरबी मानसिकता के गुलाम, चौथी बीवी या फिदायन हमलावर बनेंगे और इसके लिए सिर्फ आप जिम्मेदार होंगे। 

Hindu dying race नहीं है, हम सनातन हैं।

और ये आखिरी सदी है। जब हम लड़ सकते हैं। इसके बाद हमारे पास भागने के लिए कोई जगह नहीं है।

*बेशर्मी और निर्लज्जता की हद देखिए........*

*एक हिन्दू महिला (नुपुर शर्मा ) के विरुद्ध लगातार आग उगल रहे हैं, जान से मारने के फतवे दे रहे हैं, बलात्कार की धमकी दे रहे हैं। और ये हाल तब है। जब ये मात्र 25% है।*

*गम्भीरता से सोचिए......*

आपके सामने आपकी महिला को, कट्टरपंथी खुलेआम गर्दन काटने, बलात्कार की धमकी दे रहे हैं। पोस्टर चिपका रहे हैं। जहां आप बाहुल्य समाज हैं।

उनका दुस्साहस देखिए, आपके इलाके में जाकर आपकी महिला के विरुद्ध प्रदर्शन में, आपकी दुकानें बंद करवाने पहुंच गए.  नही माने तो पत्थरबाज़ी कर दंगा कर दिया  l 

ये हाल तब है, जब वे 20 दिनों से लगातार फव्वारा चिल्ला रहे हैं।

यहां मसला केवल एक महिला का नही, बल्कि गर्दन काटने को उतारू उस कट्टरपंथ मानसिकता का है, जिसका प्रतिकार बहुत आवश्यक है।

समय रहते इसे बढ़ने से रोकना बहुत आवश्यक है, वरना देश जंगलराज हो जाएगा।

*इसे यही रोकिये, हल्के में मत लीजिए।*

मानवता वाली भूमि को, रेगिस्तान बनने से रोक लीजिए....
आप घिर चुके हैं.......

ठीक उसी प्रकार जैसे...
शतरंज में राजा को प्यादे,
जंगल मे शेर को भेड़िए,
और चक्रव्यूह में अभिमन्यु.......

शरजील इमाम ने "चिकेन नेक" की बात की थी, क्या आप जानते हैं हर शहर का एक चिकन नेक होता है! हर बाजार का एक चिकेन नेक होता है और सभी चिकन नेक पर उनका कब्जा हो चुका है।

आप अपने शहर के मार्केट में निकल जाइए, अपना लैपटाप बनवाने, मोबाईल बनवाने या कपड़े सिलवाने l आप को अंदाजा नही है कि चुपचाप "बिजनेस जिहाद" कितना हावी हो चुका है ।

गुजरात का जामनगर हो,
लखनऊ का हजरतगंज,
मुम्बई का हाजी अली,
गोरखपुर का हिंदी बाजार या
दिल्ली का करोलबाग,,,
आप "चेक मेट" हो चुके हैं।

अब हर जगह इनका कब्जा हो चुका है ! क्योंकि हमारा युवा, अपना पारम्परिक काम छोड़कर, नौकरी की तलाश में भटक रहा है ।

*जितनी जमीन पर आप के मंदिर नही हैं, उतनी जमीनें उनके "कब्रिस्तान" के नाम पर रसूल की हो चुकी हैं।*

एक दर्जी की दुकान पर सिलाई करने वाले सभी, उनके हम-मजहब है, चेन से लगाकर बटन तक के सप्लायर नमाजी हैं ! ढाबे उनके, होटल उनके, ट्रांसपोर्ट का बड़ा कारोबार हो या ओला उबर का ड्राइवर, सब जुमा वाले हैं।

*आप शहर में चंदन जनेऊ ढूढते रहिए, नहीं पाएंगे, वहीं हर चौराहे पर एक कसाई बैठा जरूर मिल जाएगा*

घिर चुके हैं आप !

इसका उपाय इतना आसान नही है, गहराई से काम करना होगा, अपनी दुकानें बनानी होंगी, अपना भाई हर जगह बैठाना होगा।

वरना गजवा_ए_हिंद चुपचाप पसार चुका है। अपना पांव,...
बस घोषणा होनी बाकी है।

*शेर दहाड़ते ही रह गया, भेड़िए जंगल पर कब्ज़ा बना कर बैठ चुके हैं।*

*आँखे बंद करिए और ध्यान दीजिए.... हर जगह आप को "नारा ए तकबीर",, "अल्लाह हू अकबर"!! सुनाई देगा..*

और अगर नहीं सुनाई दे रहा है तो मुगालते मे हैं आप।

बस एक जवाब लिख दीजिए और बता दीजिए कि "कब जागेंगे आप" ??? 
कब तक सेकुलर का चोला ओढ़े रहेंगे...????

**हिंदू एक मरती नस्ल **

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